बाजारों की सांसे फूल रही है
(व्यंग्य आलेख)
कोरोना के चलते भारत में लॉकडाउन के लगभग दो माह पूरे होने को है। देश संकट के दौर से गुज़र रहा है। दुनिया के विकासशील कहे जाने वाले देशों में सबसे आगे रहने वाले भारत की अर्थव्यवस्था लॉकडाउन से पूरी तरह से चरमरा गई है। अभी कोई उपाय भी नहीं दिखता कि जल्दी से ये व्यवस्था सुधर जाए। क्योंकि वर्तमान की परिस्थिति में इस महामारी का एकमात्र इलाज है, और वह है स्वयं को इसके प्रकोप से बचाना होगा। जब तक लॉक डाउन है तब तक तो हम घरों में सुरक्षित हैं। पर लॉकडाउन के बाद जीवन पिंजरे से छूटे पंछी की तरह उड़ान भरने लगेगा। जो कि जनजीवन के लिए घातक सिद्द होगा। लेकिन करे भी तो क्या, पहली प्राथमिकता जान बचाना है, तो जान तो बचा ली। लेकिन जान आगे तभी बची रहेगी जब खाना मिलेगा। और खाना तब मिलेगा जब व्यापार की गाड़ी पटरी पर आएगी।
इस महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया है। व्यापार जगत में चारों तरफ संकट दिखाई दे रहा है। देश में अनिवार्य चीजों का उत्पादन हो रहा है वह भी जान पर खेलकर। देश की रौनक माने जाने वाला खुदरा व्यवसाय पूरी तरह घुटने टेक चुका है। व्यापारियों के पास अपने नियमित कर्मचारियों और मजदूरों को देने के लिए पैसा नहीं है। छोटे दुकानदार जो गली-मोहल्लों में छोटी सी दुकान लगा कर अपने परिवार का भरणपोषण करते थे, उनके घरों में अब राशन खत्म होने को है। बड़े शोरुम और मॉल में लाखों की पूंजी लगाकर बैठे दुकानदारों को घर बैठे ये चिंता खाए जा रही है कि दुकान का किराया, कर्मचारियों का वेतन, और लोन का ब्याज किस तरह दिया जाएगा।
लॉकडाउन जिस समय शुरु हुआ वह भारत में शादी ब्याह और पारिवारिक उत्सवों का दौर था। आगे अच्छे व्यापार की संभावनाओं को लेकर देशभर के कपड़ा, बर्तन, इलेक्ट्रानिक, फर्नीचर, ज्वेलरी, कास्मेटीक व्यापारी बड़ा स्टॉक कर चुके थे। अब उस स्टॉक को देख कर कईयों की सांसे फूल रही है। क्योकि एक महिने बाद बरसात की शुरुआत हो जाएगी। बरसात के दिनों में इस तरह के व्यापार की संभावना नहीं होती है। रेस्टोरेंट, होटल के व्यवसाय की तो दिवाली से पहले शुरुआत होने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। और अन्य खाने-पीने के समान बेचने वाले, आईसक्रीम, कोल्ड्रिंक्स, आदी के ठेले लगाकर सीजन का व्यापार करने वालों के सारे अरमान धरे के धरे ही रह गये है।
बीस लाख करोड़ का सरकारी पैकेज कुछ लोगों को थोड़ी राहत दे सकता है। लेकिन खुदरा व्यवसायियों और छोटे दुकानदारों को इससे क्या लाभ होगा? इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। इस सरकारी पैकेज के बहाने सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ और ‘लोकल के लिए वोकल’ जैसी कुछ योजनाओं को जनता के समाने रखा है जो भविष्य में देश के लिए कारगर सिद्ध होगी। इसमे कोई दो मत नहीं है। ये योजनाएँ देश की अर्थव्यवस्था को आने वाले समय में मजबूत करेगी। पर वर्तमान में व्यवसायियों की समस्या इससे हल होगी, ऐसा लगता नहीं है। सरकारी नफे-नुकसान के आंकड़े अर्थशास्त्रीयों और राजनेताओं के भले ही समझ में आ जाए लेकिन भूखे पेट बैठे मजदूर, और सैकड़ों लोगों के जीवन की धूरी बनकर रहने वाले छोटे व्यापारी को न कभी समझ आए है और न आएंगे। उनका उद्देश्य घर चलाना है। और घर चलेगा तो ही देश चलेगा। आदमी अपनी जरुरत के लिए कमाता भी है और टेक्स देता है। इसलिए आज करोना की उलझन के बीच जरुरत है व्यापार को पटरी पर लाने की।
मल्टीनेशन कंपानियों ने तो वर्क फ्रॉम होम का फार्मुला अपनाकर अपनी कार्य व्यवस्था और अपने कर्मचारियों को संभाल लिया। उनको कोई फर्क नहीं पड़ना है। बंद कमरे में वैसे भी उनके काम होते थे, अब घरों में हो रहे है। पर उद्योग और व्यापार जगत जो सीधे-सीधे बाजार को प्रभावित करता है, या कहे बाजार का आधार है वह पुरी तरह से वेंटिलेटर पर आने की तैयारी में है। बगैर कमाए कब तक उद्योगपति अपने कर्मचारी और मजदूरों को तनख्वाह दे पाएंगे। बगैर कमाए कब तक छोटे व्यवसायी और मजदूर अपने परिवार को खाना खिला पाएंगे। दो महिने से घर बैठे मन मार कर खाते रहे पर अब पूरे देश के व्यापारियों को व्यापार चाहिए। पूरे देश में व्यापारी एक ही बात करते नजर आते है। अब लॉकडॉउन में उन्हें राहत मिलना चाहिए।
वैसे भी छोटे व्यवसायी कोई बड़ा राहत पैकेज मिले इसकी इच्छा भी नहीं रखते। कारण राहत पाने के लिए जितनी खानापूर्ति करनी और जितने कागज काले करने होते है। उतने समय में वे अपने आज और कल के खाने की व्यवस्था कर सकते है। सरकारी राहत केवल ऊंट के मुंह में जीरे के समान है न कि उम्र भर की रोजी-रोटी, वैसे भी छोटे व्यवसायी अपनी किस्मत रोज अपने हाथों से लिखना जानते है। रोज कमा कर खाना उनको आता है। बस वे चाहते है कि जिन क्षेत्रों में कोरोना का प्रभाव कम है उन क्षेत्रों में सरकार अब लॉकडाउन के तरीके में बदलाव करे। कुछ जगह बदलाव किए गये भी है। जो कारगर लग रहे है। कुछ शहरों में दुकानों को खोलने के अलग-अलग समय निर्धारित किए गये है। ताकि जरुरत का सामान लेने व्यक्ति उसी समय घर से निकले और सामान लेकर व्यर्थ बाजार घुमने की बजाए सीधे घर जाए। इस व्यवस्था से व्यापारियों को, स्थाई कर्मचारियों को, बाजार में हम्माली करने वालों को, घरेलू उद्योग करने वालों को, उत्पाद को बाजार तक पहुँचाने वालों को, खुली मजदूरी करने वालों को, ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोगों को राहत मिलेगी। वर्तमान युग में जीवन भी तभी रहता है जब आजीविका चालु रहे। कमाई होगी तो ही लोग खाएंगे, जरुरत की चीजें खरीदेंगे और तभी धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था भी गति पकडेगी।
वैज्ञानिको के अनुसार कोरोना को लेकर जितना एहतियात देश की जनता आज बरत रही है। उतना ही आने वाले समय में भी बरतना होगा। तो फिर क्यों न इस एहतियात भरे भविष्य को स्वीकार करके सरकार देश को पटरी पर लाने की पहल करे। बाजार खोलने के लिए चाहे ऑड-इवन पालिसी हो या टाईम मैनेज पालिसी। दोनों में से एक व्यवस्था को क्षेत्र की व्यवस्था के हिसाब से लागु करना ही होगा । बाजार खोलने की शुरुआत इसी तरह होगी तो ही भीड़ भी नियंत्रीत होगी। धीरे धीरे पुरा बाजार खुल सकेगा और पैसे की आवक जावक बाजार में होगी।
बगैर पैसे के आज के युग में जीवन की कल्पना संभव नहीं है। और पैसा तभी हाथ में आता है जब काम चले, व्यापार चले, सरकार भी तभी चलती है जब टेक्स आता है। और टेक्स के लिए व्यापार का चलना जरुरी है। लॉकडाउन के कारण छोटे- बड़े सभी उद्योग,धंधे बंद है। कोरोना न फैले इसके लिए ये जरुरी भी था। लेकिन अब उद्योग धंधे करने वालों की सांसें फूलने लगी है। घर में बैठ कर अब खर्चा नहीं चलाया जा सकता है। अब जरुरत इस बात की है कि लॉकडाउन से कैसे बाहर निकले। जानकारों का मानना है कि महामारी पर विजय तो तभी मिलेगी जब इसका कोई इलाज या वैक्सीन बन कर आ जाए। तब तक लॉकडाउन तो नहीं रखा जा सकता है? हॉ व्यापारिक स्थल के तौर-तरीकों में बदलाव ला कर काफी हद तक इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। और देश बचाया जा सकता है।
इस महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया है। व्यापार जगत में चारों तरफ संकट दिखाई दे रहा है। देश में अनिवार्य चीजों का उत्पादन हो रहा है वह भी जान पर खेलकर। देश की रौनक माने जाने वाला खुदरा व्यवसाय पूरी तरह घुटने टेक चुका है। व्यापारियों के पास अपने नियमित कर्मचारियों और मजदूरों को देने के लिए पैसा नहीं है। छोटे दुकानदार जो गली-मोहल्लों में छोटी सी दुकान लगा कर अपने परिवार का भरणपोषण करते थे, उनके घरों में अब राशन खत्म होने को है। बड़े शोरुम और मॉल में लाखों की पूंजी लगाकर बैठे दुकानदारों को घर बैठे ये चिंता खाए जा रही है कि दुकान का किराया, कर्मचारियों का वेतन, और लोन का ब्याज किस तरह दिया जाएगा।
लॉकडाउन जिस समय शुरु हुआ वह भारत में शादी ब्याह और पारिवारिक उत्सवों का दौर था। आगे अच्छे व्यापार की संभावनाओं को लेकर देशभर के कपड़ा, बर्तन, इलेक्ट्रानिक, फर्नीचर, ज्वेलरी, कास्मेटीक व्यापारी बड़ा स्टॉक कर चुके थे। अब उस स्टॉक को देख कर कईयों की सांसे फूल रही है। क्योकि एक महिने बाद बरसात की शुरुआत हो जाएगी। बरसात के दिनों में इस तरह के व्यापार की संभावना नहीं होती है। रेस्टोरेंट, होटल के व्यवसाय की तो दिवाली से पहले शुरुआत होने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। और अन्य खाने-पीने के समान बेचने वाले, आईसक्रीम, कोल्ड्रिंक्स, आदी के ठेले लगाकर सीजन का व्यापार करने वालों के सारे अरमान धरे के धरे ही रह गये है।
बीस लाख करोड़ का सरकारी पैकेज कुछ लोगों को थोड़ी राहत दे सकता है। लेकिन खुदरा व्यवसायियों और छोटे दुकानदारों को इससे क्या लाभ होगा? इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। इस सरकारी पैकेज के बहाने सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ और ‘लोकल के लिए वोकल’ जैसी कुछ योजनाओं को जनता के समाने रखा है जो भविष्य में देश के लिए कारगर सिद्ध होगी। इसमे कोई दो मत नहीं है। ये योजनाएँ देश की अर्थव्यवस्था को आने वाले समय में मजबूत करेगी। पर वर्तमान में व्यवसायियों की समस्या इससे हल होगी, ऐसा लगता नहीं है। सरकारी नफे-नुकसान के आंकड़े अर्थशास्त्रीयों और राजनेताओं के भले ही समझ में आ जाए लेकिन भूखे पेट बैठे मजदूर, और सैकड़ों लोगों के जीवन की धूरी बनकर रहने वाले छोटे व्यापारी को न कभी समझ आए है और न आएंगे। उनका उद्देश्य घर चलाना है। और घर चलेगा तो ही देश चलेगा। आदमी अपनी जरुरत के लिए कमाता भी है और टेक्स देता है। इसलिए आज करोना की उलझन के बीच जरुरत है व्यापार को पटरी पर लाने की।
मल्टीनेशन कंपानियों ने तो वर्क फ्रॉम होम का फार्मुला अपनाकर अपनी कार्य व्यवस्था और अपने कर्मचारियों को संभाल लिया। उनको कोई फर्क नहीं पड़ना है। बंद कमरे में वैसे भी उनके काम होते थे, अब घरों में हो रहे है। पर उद्योग और व्यापार जगत जो सीधे-सीधे बाजार को प्रभावित करता है, या कहे बाजार का आधार है वह पुरी तरह से वेंटिलेटर पर आने की तैयारी में है। बगैर कमाए कब तक उद्योगपति अपने कर्मचारी और मजदूरों को तनख्वाह दे पाएंगे। बगैर कमाए कब तक छोटे व्यवसायी और मजदूर अपने परिवार को खाना खिला पाएंगे। दो महिने से घर बैठे मन मार कर खाते रहे पर अब पूरे देश के व्यापारियों को व्यापार चाहिए। पूरे देश में व्यापारी एक ही बात करते नजर आते है। अब लॉकडॉउन में उन्हें राहत मिलना चाहिए।
वैसे भी छोटे व्यवसायी कोई बड़ा राहत पैकेज मिले इसकी इच्छा भी नहीं रखते। कारण राहत पाने के लिए जितनी खानापूर्ति करनी और जितने कागज काले करने होते है। उतने समय में वे अपने आज और कल के खाने की व्यवस्था कर सकते है। सरकारी राहत केवल ऊंट के मुंह में जीरे के समान है न कि उम्र भर की रोजी-रोटी, वैसे भी छोटे व्यवसायी अपनी किस्मत रोज अपने हाथों से लिखना जानते है। रोज कमा कर खाना उनको आता है। बस वे चाहते है कि जिन क्षेत्रों में कोरोना का प्रभाव कम है उन क्षेत्रों में सरकार अब लॉकडाउन के तरीके में बदलाव करे। कुछ जगह बदलाव किए गये भी है। जो कारगर लग रहे है। कुछ शहरों में दुकानों को खोलने के अलग-अलग समय निर्धारित किए गये है। ताकि जरुरत का सामान लेने व्यक्ति उसी समय घर से निकले और सामान लेकर व्यर्थ बाजार घुमने की बजाए सीधे घर जाए। इस व्यवस्था से व्यापारियों को, स्थाई कर्मचारियों को, बाजार में हम्माली करने वालों को, घरेलू उद्योग करने वालों को, उत्पाद को बाजार तक पहुँचाने वालों को, खुली मजदूरी करने वालों को, ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोगों को राहत मिलेगी। वर्तमान युग में जीवन भी तभी रहता है जब आजीविका चालु रहे। कमाई होगी तो ही लोग खाएंगे, जरुरत की चीजें खरीदेंगे और तभी धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था भी गति पकडेगी।
वैज्ञानिको के अनुसार कोरोना को लेकर जितना एहतियात देश की जनता आज बरत रही है। उतना ही आने वाले समय में भी बरतना होगा। तो फिर क्यों न इस एहतियात भरे भविष्य को स्वीकार करके सरकार देश को पटरी पर लाने की पहल करे। बाजार खोलने के लिए चाहे ऑड-इवन पालिसी हो या टाईम मैनेज पालिसी। दोनों में से एक व्यवस्था को क्षेत्र की व्यवस्था के हिसाब से लागु करना ही होगा । बाजार खोलने की शुरुआत इसी तरह होगी तो ही भीड़ भी नियंत्रीत होगी। धीरे धीरे पुरा बाजार खुल सकेगा और पैसे की आवक जावक बाजार में होगी।
बगैर पैसे के आज के युग में जीवन की कल्पना संभव नहीं है। और पैसा तभी हाथ में आता है जब काम चले, व्यापार चले, सरकार भी तभी चलती है जब टेक्स आता है। और टेक्स के लिए व्यापार का चलना जरुरी है। लॉकडाउन के कारण छोटे- बड़े सभी उद्योग,धंधे बंद है। कोरोना न फैले इसके लिए ये जरुरी भी था। लेकिन अब उद्योग धंधे करने वालों की सांसें फूलने लगी है। घर में बैठ कर अब खर्चा नहीं चलाया जा सकता है। अब जरुरत इस बात की है कि लॉकडाउन से कैसे बाहर निकले। जानकारों का मानना है कि महामारी पर विजय तो तभी मिलेगी जब इसका कोई इलाज या वैक्सीन बन कर आ जाए। तब तक लॉकडाउन तो नहीं रखा जा सकता है? हॉ व्यापारिक स्थल के तौर-तरीकों में बदलाव ला कर काफी हद तक इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। और देश बचाया जा सकता है।
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