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Saturday, 5 December 2020

💐वक्त की दरकार💐 (कविता) - राजकुमार अरोड़ा 'गाइड'

  

💐वक्त की दरकार💐
(कविता)
वक्त की दरकार है, वक्त को समझो तो बेड़ा पार है।
वक्त ही वक्त आने पर, तरह तरह का एहसास करा देता है।।
वक्त भी न जाने कब मुझे
यह कैसी पहेली दे गया है।
उलझ कर रह जाने को जिंदगी,समझने को सारी उम्र दे गया है।।
******************
सब ने खूब समझाया हमको,वक्त आने पर वक्त बदल जाता है।
जिन्दगी को समझा यारो!
हमने जब बहुत ही करीब
से।।
न जाने कौन कौन मिला जहां में,हमको हमारे ही नसीब से।
वक्त ने कराया एहसास,
वक्त आने पर इंसान ही बदल जाता है।।
*******************
वक्त तो वक्त है, गूंगा  नहीं,बस मौन ही मौन है।
वक्त ही वक्त आने पर बता देगा, यहाँ किसका कौन है।।
जिसने समझा नहीं वक्त को,वो अक्सर ही झुक जाता है।
गर बच भी गया तलवार से तो फूल से ही कट जाता है।।
******************
कारण कुछ भी नहीं था बचपन में, हम अकारण ही मुस्कराते थे।
अब बड़े होने पर,देखो मुस्कराने का कारण ही
छिपा लेते हैं।
 न जाने हमारी पेशानी में,अब ये कैसी कैसी  परेशानियां हैं।
तभी तो गम के गद्दों पर,
खुशी के फूलों की चादर ही सजा देते हैं।।
*******************
आज हम जो हर वक्त,
दौलत के साये में इतने 
मगरूर रहते हैं।
दुनिया घूमती हैआगे पीछे
न जाने कौन कौन सलाम करते हैं।।
अंत में रह जायेगी अपनी,
सिर्फ एक सफेद चादर की औकात।
खुद न उसे न हिला,न डुला पाएंगे, न कर पाएंगे
कोई बात।।
*******************
नये नये लिबासों का,नई
नई पोशाकों का,हमको शौक था कितना।
जब कोई निहारता हमें,
हिकारत से,मन ही मन
इतराते थे उतना।।
हम रहते थे अपनी धुन में,मानी कभी किसी की
कोई सीख नहीं।
पर जब आया आखिरी वक्त,कह भी न सके,यह
कफ़न तो ठीक नही।।
*******************
जो हर समय रहते थे गरूर में,न जाने कौन सा
फतूर था।
दर्प था,घमंड था,दिल मे उनके कुछ न कुछ तो जरूर था।।
छत को थाअहंकार अपने छत होने का,सहसा यह क्या कहानी हो गई।
एक मंजिल और डली, छत छत न रही,फर्श हो गई।।
*******************
वक्त ने बदल दिया,अब वक्त को इतना ज्यादा ।
अब हमारा वक्त भी हमारा नहीं रहा।।
जब वक्त था, तब नहीं की, हमने वक्त की कदर।
अब हालात बदल गए  इस कदर,अब कोई भी हमारा नहीं रहा।।
*******************
वक्त वक्त की बात है, वक्त ने कब दिया सदा किसका साथ है।
जो वक्त के साथ चला,
मिलीं,उसको ही सब 
सौगात हैं।।
वक्त की  सच्चाई को, गहराई को, जिसने दिल से महसूसा है।
वह रुका नहीं, झुका नहीं,
शान से हर बार, मंजिल पर अपनी पहुंचा है।।
-०-
पता: 
राजकुमार अरोड़ा 'गाइड'
बहादुरगढ़(हरियाणा)


-०-

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इश्क़ का फलने दो (कविता) - देवकरण गंडास 'अरविन्द'

 

इश्क़ का फलने दो
(कविता)
इश्क़ नहीं होता बदन की खूबसूरती
इश्क़ तो दिलों का पावन अहसास है।

इश्क़ में नहीं होती है पाने की ज़िद
इश्क़ में जज़्बात ही सबसे ख़ास है।

इश्क़ में निहित ही खुशियों की चाह
इश्क़ तो ख़ुदा के दर पर अरदास है।

इश्क़ दिलों का खिलाता है अरविन्द
ज्यों पुष्पों को महकाता मधुमास है।

इश्क़ को फलने फूलने दो जहान में
ज्यों कन्हैया ने खिलाया बृजरास है।

-०-
पता:
देवकरण गंडास 'अरविन्द'
चुरू (राजस्थान)

-०-


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याद फाल्गुन में आती है (कविता) - निक्की शर्मा 'रश्मि'

  

याद फाल्गुन में आती है
(कविता)
टेसू के फूल से लदे पेड़ आमों की खुशबू और
कहीं सरसों की बयार,हवा भी कुछ रंगीन हो जाती है
हाँ तब पिया की याद भी इस फाल्गुन में आती है
हाँ रह रह कर दिल पर दस्तक दे जाती है
आँखें बार बार दरवाजे पर ही जाती है

उन्हें भी कहां अब चैन होगा आने को मन बैचेन होगा
रंगीन मौसम रंगीन नजारे रह रहकर
याद दिलाते हैं पिया साथ बिताए दिन तुम्हारे
होली में अब आना ही होगा रंगो से भिगोना ही होगा
फागुन के गीत संग मेरे झूमना ही होगा।

बिन तेरे सब सुनीं होरी, तेरे बिन फागुन भी अधुरी
टकटकी निगाहें हरपल तेरा रास्ता देखे कब आओगे
ये अँखियाँ सतरंगी सपना देखे
आ भी जाओ अब ये नैन बरस पड़ेंगे
होली में ना फागुन में.. बिन तेरे हम अब रह न सकेंगे
-०-
निक्की शर्मा 'रश्मि' 
मुम्बई

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कुछ औरतें (कविता) - डॉ दलजीत कौर

  

कुछ औरतें
(कविता) 
ख़तरनाक होती हैं
कुछ औरतें
झांक लेती हैं
भाँप लेती हैं
भीतर तक
हर स्थिति
घर की सयासत में
रचती हैं चक्रव्युह
ये अनपढ़ गवार औरतें
सीधी -सपाट नहीं होती
ख़तरनाक होती हैं
कुछ औरतें
हर प्रश्न के एवज़ में
उठती हैं नया प्रश्न
किसी नेता की तरह
जवाब की मोहताज नहीं होती
ख़तरनाक होती हैं
कुछ औरतें
छिपकली -सी  छिप कर
सेंध लगाती हैं घरों में
रिश्तों में उगाती हैं शूल
बहार की हक़दार नहीं होती
ख़तरनाक होती हैं
कुछ औरतें
तहस -नहस कर देती हैं
बसा -बसाया कोई घर
किसी की खुशियाँ देख
कभी खुश नहीं होती
ख़तरनाक होती हैं
कुछ औरतें
शतरंज नहीं जानती मगर
चलती हैं जीवित मोहरे
माँ -बाप ,भाई -बहन ,पति -बच्चों
किसी की वफ़ादार नहीं होती
ख़तरनाक होती हैं
कुछ औरतें
-०-
संपर्क 
डॉ दलजीत कौर 
चंडीगढ़

-०-

***
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