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Friday, 20 December 2019

कहीं धूप कहीं छाया (कविता) - अलका 'सोनी'

◆ कहीं धूप कहीं छाया◆
(कविता)
खुशियों को कैद कभी
कहाँ कोई कर पाया है ।
महलों के संग इसने
निर्धन का घर भी सजाया है।।

वरदान बन ये बस्ती में
निश्छल मुस्काती है।
जब बच्चों के मुख पर
मीठी सी हंसी आती है।

ढूंढ ही लेता है बचपन
रद्दी में भी अपने खिलौने।
वहीं भवनों में पल भर में
रद्दी बन जाते, नए खिलौने।

कब टूटेगी विषमता की
ये मजबूत होती दीवारें?
छोटी-छोटी बातों के लिए
कब तक ये मन को मारे ?

दोष है क्या इनमें इनका
जन्म निर्धनता में पाया?
इस जग की रीत यही है
कहीं धूप, कहीं छाया !!-०-
अलका 'सोनी'
बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)

-०-

***
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हिदायत (लघुकथा) - अपर्णा गुप्ता

हिदायत
(लघुकथा)
सुमन ने यौवन की दहलीज़ पर कदम रखा ही था कि हिदायतें मिलनी शुरू हो गई थी। आज उसका सोलहवां जन्मदिन दिन था। मम्मी के साथ खरीदी हुई प्यारी सी गाउन पहनी थी । गुलाबी-सी रेशमी आभा से गाल भी गुलाबी रंगत लिये लगने लगे थे । सहेलियां आ गई थी ।मां हिदायत पर हिदायतें दे रही थी .......
"फोन कर देना।"
"ज्यादा देर मत लगाना।"
"जल्दी आ जाना।"
"नानवेज मत खाना।"
"मंदिर में हाथ जरूर जोड़ ना प्रसाद जरूर चढ़ा देना।"
"अरे मां बस भी करो कितनी हिदायतें दोगी अभी आती हूँ ना ! बाय मां...."
कुछ समय बाद फोन बजा।
"आपकी बेटी अस्पताल में हे बहुत सीरियस है जल्दी आ जाइये।"
गिरते-पड़ते हास्पीटल पहूंची। बेटी आखिरी सांसे गिन रही थी। मां उस पर झुकी बेटी कुछ कहना चाह रही थी। "माँ इतना कुछ बताया ये तो नहीं बताया तुमने।"
बेटी ने हाथ और सांस दोनो छोड़ दी।
पुलिस रेप का केस बता रही थी।
-०-
पता
अपर्णा गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
-०-

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हिम्मत (कविता) - सौरभ कुमार ठाकुर

हिम्मत
(कविता)
तुम कुछ कर सकते हो 
तुम आगे बढ़ सकते हो ।
तुममे है बहुत हिम्मत
तुम जग को बदल सकते हो ।
तुम खुद से हिम्मत नही हारना ।
कभी खुद का भरोसा मत हारना ।
तुम झूठ का मार्ग छोड़
सच्चाई के रास्ते पर चलते रहना ।
मुसीबत बहुत आते हैं जीवन में
बस डट कर सामना करना ।
तुम ही देश के भविष्य हो
यह बात हमेशा याद रखना ।
आत्मविश्वास बनाए रखो
तुम हर कार्य पूरा कर पाओगे
अपनी प्रयास तुम जारी रखो
एक दिन जरुर सफल हो जाओगे ।
तुम करना कुछ ऐसा की,
सारी दुनिया तुम्हारे गुण गाए ।
तुम बनना ऐसा की महानों की,
महानता भी कम पड़ जाए ।
तुम रखना हिम्मत इतना की,
वीर योद्धा की तलवार भी झुक जाए ।
तुम बनना इतना सच्चा की
हरीशचंद्र के बाद तुम्हारा नाम लिया जाए ।
-०-
सौरभ कुमार ठाकुर
(बालकवि एवं लेखक)
मुजफ्फरपुर (बिहार)
-०-

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सच्चाई (कविता) - राजीव कपिल

सच्चाई 
(कविता)
सच बोलने वाले कभी सफाई नहीं देते
नीव के पत्थर ईमारत में कहीं दिखाई नहीं देते ।

वो जो कमाता रहा जिंदगी भर अपनों के लिए
उसके बच्चे भी अब उसको अपनी कमाई नहीं देते।

कर लेती है सियासत बंद जब अपने कानों को ,
बोल उस शख्स के भीड़ में कहीं सुनाई नहीं देते ।।

पहले जो मांगा करते थे हमसे दावते हरदम ,
अब वो खफा इतने हैं कि कभी बधाई नहीं देते ।

कमी कुछ रह गई शायद अपने मकसद को पाने में ,
अपनी नाकामी का हम किसी को इल्जाम नहीं देते ।

हर एक शख्स निकाले हैं नुक्स मेरे कामों में ,
क्यों मुझे एब मेरे कहीं दिखाई नहीं देते ।

दोस्ती प्यार का पैगाम है अपनों के लिए जिसमें ,
प्यार के गुलाबों में नफरत के शूल दिखाई नहीं देते ।
-०-
पता:
राजीव कपिल
हरिद्वार (उत्तराखंड)
-०-

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मेरे दोस्त (कविता) - डॉ दलजीत कौर

मेरे दोस्त
(कविता) 
मेरे दोस्त !मुझ से बचकर रहना
सीख रही हूँ आजकल
हर किसी को मूर्ख बनाना
मीठे बन कर छुरी चलाना
सबसे काम निकलवाना
किसी के काम न आना
मेरे दोस्त !मुझ से बचकर रहना
सीख रही हूँ आजकल
सरेआम धोखा देना और
सफाई से मुकर जाना
नफरत दिल में रखना
बहुत प्यार से मुस्कुराना
मेरे दोस्त !
सीख रही हूँ आजकल
आस्तीन का साँप होना
और खुद को हमदर्द बताना
बात -बात पर झूठ बोलना
कहानी हरीशचंद्र की सुनना
मेरे दोस्त !
सीख रही हूँ आजकल
रिश्तों में खेल खेलना
पैरों तले की ज़मीन खिसकाना
ठग्गी में माहिर होना और
वाक् -छल से सबको हराना
मेरे दोस्त !
चाहती तो नहीं तुम्हें खोना
मगर दूर तलक है मुझे जाना
ज़माने के हुनर सीखना -सिखाना
क़ामयाबी की कुर्सी पर इतराना
मेरे दोस्त !
मेरे दोस्त !-०-
संपर्क 
डॉ दलजीत कौर 
चंडीगढ़


-०-

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लोकल ट्रेन (कविता) - छगनराज राव

लोकल ट्रेन
(कविता)
महानगरों की शान है
अपडाउन की जान है
मिनट मिनट में चलने वाली
हाँ ये लोकल ट्रेन महान है

भीड़ भाड़ धकम धक्का
कभी चौका कभी छक्का
लोगो की इस रेलमपेल में
होते देखो हक्का बक्का
रखते सब हथेली पे जान है
हाँ ये लोकल ट्रेन महान है

ट्रैन में कब चढ़े पता न चला
ट्रैन से कब उतरे पता न चला
उतरना था हमको तो गोरेगांव
पर उतरे है अँधेरी पता न चला
अच्छे अच्छो का भटका ध्यान है
हाँ ये लोकल ट्रेन महान है

सेकंड की जगह फर्स्ट क्लास में
लेडीज डिब्बा आ गया पास में
मैं हड़बड़ी में चढ़ गया फटाक से
टी टी बाबू खड़ा था इसी आस में
देखो पकड़ लिया मेरा कान है
फिर भी लोकल ट्रेन महान है

सब लोग अपनी मस्ती में
रहते इतने कौनसी बस्ती में
फेरी वाले फुटकर सामग्री को
बेचे महंगी तो कभी सस्ती में
ये चलती फिरती दुकान है
हाँ ये लोकल ट्रेन महान है
-०-
पता
छगनराज राव
जोधपुर (राजस्थान)
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राह निहारत श्याम तिहारी (पद) - रीना गोयल

राह निहारत श्याम तिहारी
(पद)
मत्तगयंद सवैया 
【१】
प्यार दुलार करे बहु वो बढ़ मात मुझे जब गोद बिठाए ।
मोहिनि सी मुस्कान धरी मुख ,प्रेम पगे नित गीत सुनाए ।
वार मुझी पर जीवन के सुख, नाज करेअति नेह लुटाए ।
छाँव करे मुख मात सदा ही अरु नैनन गगरी छलकाए ।।
【२】
आय बसो हरि नैनन में अब ,राह निहारत श्याम तिहारी ।
मूरत एक छिपाय फिरूँ मैं मन मंदिर अविराम तिहारी ।
बीत गए दिन मास पिया अब आवत देर क्यों होत बिहारी ।
नाथ सुनो अब टेर गरीब कि हैं अखियां प्रभु ओर निहारी।।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

-०-

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