चुलबुल ,चंचल, नटखट , बचपन
(कविता)
चुलबुल ,चंचल, नटखट , बचपन ,
अठखेलियां खेलने की जिद करता है ।
कभी तिलचट्टे से, कभी चींटियों से ,
कभी मक्खी तो कभी मधुमक्खियों से ;
युद्ध करने की हठ करता है ।
चुलबुल, चंचल, नटखट, बचपन ,
अजब गजब का खेल खेलता है ।
कभी पेड़ो पर लटके बंदरों की तरह ,
कभी पंजों के बल बिल्ली की तरह ;
तो कभी छाती के बल छिपकली की तरह ,
उल्टे सीधे हरकत करता है ।
चुलबुल, चंचल, नटखट, बचपन ,
अजीबोगरीब कामो में मस्त रहता है ।
नेहरू जी के लाल गुलाब को ,
कभी काला तो कभी नीला ;
बनाने का काम मन करता है ।
कभी कभी तो ,
बापू जी के चिकने सर पर ;
बाल उगाने का भी दिल करता है ।
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सुरेश शर्मा
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