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Sunday 8 March 2020

नारी सब पर भारी हो ! (कविता) -मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'

नारी सब पर भारी हो !
(कविता)
नारी हो तुम
सब पर भारी हो
तुम किसी की बेटी बन
घर की रौनक बन जाती हो
नारी हो तुम
सब पर भारी हो ..... !

तुम बहन के रूप में
भाई की कलाई पर
पवित्र धागा बांध
भाई से रक्षा बंधन का भाव पाती हो
नारी हो तुम
सब पर भारी हो ..... !

नानी-दादी से बनते
कई रिश्तों की सौगात से
घर-परिवार-समाज को
अद्भूत सौन्दर्य से निखारती हो
नारी हो तुम
सब से भारी हो ..... !

वैवाहिक बंधन में बंध
गृहलक्ष्मी की भूमिका में
प्रेम,समर्पण,मर्यादा से
घर संसार को रोशन करती हो
नारी हो तुम
सब से भारी हो ..... !

धरती सा धीरज तो तुम हो
प्यार, दुलार,शक्ति-विश्वास की खान
तुम जननी,जीवन का सार हो
माँ, बन,जग में महान कहलाती हो
नारी हो तुम
सब से भारी हो ..... !!!
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

***
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नारी तुम माँ हो (कविता) - डॉ. कान्ति लाल यादव


नारी तुम माँ हो
(कविता)
नारी तुम माँ हो, बहिन हो,पत्नी हो, बेटी हो,
कई अलग रूपों से गुजर कर भी तुम्हे किसने अबला बना दिया ?
कन्या का पूजन करवा कर भी तुम्हें कई बार गोद में ही मरवा दिया।
हुस्न की जाल में तुम्हारी अस्मत को भी लूट लिया।
आदमी ने मकान बनाया औरत ने उसे घर दिया।
मकान को घर बनाने वाली का श्रेय आदमी ने छीन लिया।
हर दास्तान से गुजरी हो तुम ।
दहेज में भी जली हो तुम।
आदमी के पापाचार में
अपनी अस्मत से भी तली हो तुम।
गहनों के जाल में बंधी हो तुम।
घूँघट की आड़ में छुपाई गई हो तुम।
बलात्कारी भेड़ियों से हर बार लूटी हो तुम।
भेड़ियों के छल में हवस की शिकार हुई हो तुम।
अपनी आबरू को बचाने में कई बार मरी हो तुम।
गहनों की जाल में फसाई गई हो तुम।
उम्मीदों के चिरागों में पली हो तुम।
सुंदरता के द्वेष में भी बदनाम हुई हो तुम।
खूब सुरती की मुस्कान में भी मुरजाई हो तुम।
समाज की जंजीरों से हरबार गुलाम रही हो तुम।
पुरुष की विकृति से मसली गई हो तुम
तो कभी भयानक चोट से कुचली गई हो तुम।
निष्काम सेवा-भक्ति से सदा बंधी हो तुम।
तुम हंसी हो, रुदन हो,दर्द के आँसू पीकर कई बार सोई हो तुम।
बच्ची से बेटी बन बाप-भाई के घर, जवानी में पति के सायें में और बूढ़ी होकर बेटे के घर में ठहरी हो तुम।
ठहर कर भी ठिकाने की महोताज बनी हो तुम।
रिश्तों के रास्तों में लटकी हो तुम।
सब कुछ कर भी कुछ नही कह रही हो तुम।
अपनी संतानों को ही सब कुछ समझती हो तुम।
अपने को तिल-तिल जलाकर कर्म का हवन होगई हो तुम।
धर्म की पालक,कर्म की पावन,समाज की सीढ़ी हो तुम।
हर युग की अजब-अबूझ ,
अधूरी पहेली हो तुम।
आज नारी,नारी से बटी हो तुम।
इसीलिए अपने वजूद से कटी हो तुम।
-०-
डॉ. कान्ति लाल यादव
(सामाजिक कार्यकर्ता)
-०-

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औरतें (कविता) - डा. नीना छिब्बर

औरतें
(कविता)
1. औरतें
दिखती कोमल
रहती हैं तैयार
सहती दर्द
सहज।।
2.. औरतें
. सोच समझ
निभाती हैं रिश्ते
रक्षासूत्र से
बाँध ।।
3. औरतें
उकेरेती चित्र
खोलती भीतरी बंध
रंग देती
वर्तमान ।।
4. औरतें
नमकीन हँसी
जादू की पुड़िया
घुल जाए
खुशगवार।।
5. औरतें
माँगती दुआएँ
बांधती ड़ोरे गंड़े
भूखे जपे
हरिनाम ।।
6. औरतें
बहुत बोलती
सन्नाटे से लड़ती
खुद बनती
महान ।।
7. . औरतें
सीख लेती
भूखे रह दिखना
संतुष्टि की
दुकान ।।
8 . औरतें
वज्र मूर्ख
खुद ही देती
अपना सुख
दान ।।
9 औरतें
हीर लैला
प्रेमपगी मधुर सी
झूमता हुआ
मधुमास ।।
10. औरतें
पकाती हैं
चूल्हे पर अरमान
छौंकती सुगंधित
एहसास।।
11. औरतें
शीतलहर सी
फैलाए जब पंख
गर्म हवाएँ
छू ।।
12. औरतें
नन्हीं कलियाँ
खिल खिल बढ़े।
दूसरा उपवन
गुलजार ।।
13. औरतें
नटनी सी
रस्सी पर चले
दिल दिमाग।
संतुलित ।।
14. औरतें
पढ़े ग्रंथ
ढूंढे कुछ हल
जिंदगी तबभी
सवाल ।।
15. औरतें
जगमग जुगनू
दिखलाए जो राह
नन्ही कोशिश
शाबाश ।।
16. औरतें
जानबूझ कर
बन जाए नासमझ
सहलाए उनका
अहम ।।
17. औरतें
रंगीली दिखे
इंद्र्धनुष सी खिले
आकाश उसका
परिवार ।।।
18. औरतें
खुली किताब
शब्द शब्द कहानी
पढ़ इसे
भरतार ।।
19. औरतें
जब पकड़े
मनमीत का हाथ
सौंपे तब
सर्वस्व ।।
20., औरतें
अबूझ पहेली
दोनों आँखें सुनाती
अलग कहानी
अनजानी ।।
-०-
डा. नीना छिब्बर
जोधपुर(राजस्थान)

-०-

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बेटियाँ (कविता) - डॉ.नीलम खरे


बेटियाँ
(कविता)
हैं मान बेटियां ,
सम्मान बेटियां ।

गर्व का विषय,
गुणगान बेटियां।

लज्जा का आवरण,
अभिमान बेटियां ।

समझो न कम उन्हें,
बलवान बेटियां ।

हरदम सरल-सहज,
आसान बेटियां ।

संकल्प है प्रबल,
जयगान बेटियां ।

यश-कीर्ति पले,
उत्थान बेटियां ।

दुनिया बने नई,
अरमान बेटियां ।

छल,फ़रेब से,
अनजान बेटियां ।

धर्म,नीति की,
हैं जान बेटियां ।

बेटे के संग में,
सहगान बेटियां !

योग,साधना,
हैं ध्यान बेटियां !

ओलंपिक की बात तब,
सम्मान बेटियां !

परिवार दर्द में,
तो भान बेटियां !

नीति का सृजन,
हैं शान बेटियां !

अन्नपूर्णा,
हैं धान बेटियां !

हैं संस्कार की,
पहचान बेटियां !

दो कुल हँसें "नीलम"
हैं आन बेटियां !-०-
डॉ.नीलम खरे
व्दारा- प्रो.शरद नारायण खरे, 
मंडला (मध्यप्रदेश)


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नारी का देवत्व (दोहे) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे


नारी का देवत्व
(दोहे)
नारी सच में धैर्य है,लिये त्याग का सार !
प्रेम-नेह का दीप ले, हर लेती अँधियार !!

पीड़ा,ग़म में भी रखे,अधरों पर मुस्कान !
इसीलिये तो नार है,आन,बान औ' शान !!

नारी तो है श्रेष्ठ नित ,हैं ऊँचे आयाम !
इसीलिये उसको "शरद", बारम्बार प्रणाम !!

नारी ने नर को जना,इसीलिये वह ख़ास !
नारी पर भगवान भी,करता है विश्वास !!

नारी से ही धर्म हैं,नारी से अध्यात्म !
नारी से ही देव हैं,नारी से परमात्म !!

नारी से उपवन सजे,नारी है सिंगार !
नारी गुण की खान है,नारी है उपकार !!

नारी शोभा विश्व की,नारी है आलोक !
नारी से ही हर्ष है,बिन नारी है शोक !!


नारी फर्ज़ों से सजी,नारी सचमुच वीर !
साहस,कर्मठता लिये,नारी हरदम धीर !!

जननी की हो धूप या,भगिनी की हो छांव !
नारी ने हर रूप में,महकाया है गांव !!

नारी की हो वंदना,निशिदिन स्तुति गान !
नारीके सम्मान से,ही है नित उत्थान !!
-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मप्र)
-०-

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केवल वे मेरे हैं - मेरे माता-पिता (कविता) - सहज सभरवाल

केवल वे मेरे हैं - मेरे माता-पिता
(कविता)
जब हर कोई अपने स्वयं के जीवन से संबंधित है,
केवल वे ही यहाँ मेरे साथ हैं,
अपने बारे में चिंतित नहीं,
लेकिन मेरे जीवन के साथ ही।

जब हर कोई मेरे खिलाफ है,
केवल वे मेरे साथ हैं,
और जैसा कि वे मुझ पर विश्वास करते हैं और
मुझे अच्छी तरह से जानते हैं,
मेरे खिलाफ किसी भी संख्या में लोगों के खिलाफ पर्याप्त हैं,
और मुझे भी साबित करो,
सभी लोगों को मेरे पक्ष में होने के लिए बदलना।

जब हर कोई मुझसे नफरत करता है,
और मेरे लिए नफरत है,
उनका प्यार मुझे ठीक करने के लिए काफी है,
और उन्हें भी मुझसे प्यार करने के लिए।

जब हर कोई अपने हथियारों के साथ मुझ पर फायर करता है,
वे एक जादुई अदृश्य ढाल के रूप में उभरते हैं,
अपने बारे में चिंतित नहीं,
लेकिन केवल मेरी सुरक्षा करना।

जब सब लोग मेरा दिल तोड़ देते हैं,
और मैं बस मरने वाला हूँ,
वे मेरी हृदय रेखा बन जाते हैं,
और मुझे खुशहाल जीवन जीने का आशीर्वाद दिया।

जब सब लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं,
जो मुझे हतोत्साहित करता है,
वे मुझे सुधारते हैं और प्रेरित करते हैं,
और मुझे मेरी कमियां बताओ,
जिसे सभी ने नोटिस किया,
लेकिन उनकी हंसी और आनंद के स्रोत के रूप में दृश्य का आनंद लेते हैं।

जब सभी अंतिम, अंतिम परिणाम देखते हैं,
यह केवल मुझे पता है,
मेरे पीछे उनकी मेहनत,
और प्रशंसा जो वे मेरे लायक हैं और नहीं।

मैं कौन हूँ ?
मैं सिर्फ एक नया हूं,
वे अनुभव कर रहे हैं,
लेकिन कोई कल्पना नहीं कर सकता कि मैं भविष्य में कैसे उभरूंगा,
लेकिन वे मुझ में ही लिप्त हैं,
मेरे लिए सब कुछ करना, जितना वे कर सकते हैं, उससे अधिक।

भगवान की कृपा से,
वास्तव में वे मेरे हैं,
मेरे लिए उनके योगदान के लिए उन्हें एक महान सलामी,
और मैं उनका पुत्र बनकर धन्य हूं,
मेरा जीवन उनके साथ ही ठीक है।-०-
पता:
सहज सभरवाल
जम्मू-कश्मीर

-०-

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सब की भाग्य विधाता है (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'


सब की भाग्य विधाता है
(कविता)
धन की दाता, विद्या की दाता, ये शक्ति प्रदाता है ।
शिल्पकार है नारी जग में सब की भाग्य विधाता है ।।
नारी का सम्मान करो ये शक्ति भक्ति की मूरत है।
दया धर्म का मूल यही है ये करुणा की सूरत है ।।
नारी को पहचाना जिसने शक्ति स्वरूपा जाना है।
मिली सफलता उसको सारा जग उसका दीवाना है।।
जननी पद पर रही प्रतिष्ठित गोदी में अवतार रहे ।
उस गोदी का क्या कहना जिसमें खुद तारणहार रहे।।
पैदा करना और पालना उसको बेहद भाता है । 
शिल्पकार है नारी जग में सब की भाग्य विधाता है।।

खून पिलाकर के बच्चों को अमर बनाया नारी ने।
कभी बनाया शिवा ,कभी राणा जैसा महतारी ने ।।
जीजाबाई को लोगों इतिहास भुला कब पाया है ।
सुत की देह बना फौलादी अपना फर्ज निभाया है।।
गुस्से में आकर जब नारी चंडी रूप दिखाती है ।
अच्छे अच्छों की छाती टुकड़े टुकड़े हो जाती है।।
दुर्गा के गुण धर्म रूप की महिमा ये जग गाता है। 
शिल्पकार है नारी जाग में सबकी भाग्यविधाता है।।

विद्या चाहो ,सरस्वती से मांग लो विद्या देती है ।
बच्चे हों या बड़े सभी को भाती बढ़ी चहेती है ।।
कलमकार इससे वर पाकर मंजिल को छू पाते हैं ।
मंचों पर इसकी पूजा करते हैं ,नहीं अघाते हैं ।।
धन की चाहत रखने वाले लक्ष्मी का पूजन करते। 
करके राजी विष्णुप्रिया को धन से घर अपने भरते।।
पार्वती जननी गणेश की रिद्धि सिद्धि की दाता है । 
शिल्पकार है नारी जग में सब की भाग्य विधाता है।।

लाखों से हथियार डलाकर रण में धाक जमाई है ।
इंदिरा गांधी की सूरत अब तक जहनों पर छाई है ।।
किये पाक के टुकड़े जिसने बांग्लादेश बना डाला ।
बनी विश्व की नेता ऐसा काम किया है मतवाला ।।
जनजन का दुःख था जिसका ऐसा मनआंगन देखा था।
लोगों ने जिस दिन इंदिरा का ,चंडी नर्तन देखा था।।
नारी का वो रोद्र रूप ,ही तो काली कहलाता है । 
शिल्पकार हैं नारी जग में, सबकी भाग्यविधाता है ।।

तुलसीदास के पीछे नारी ,सीख बड़ी अनमोल रही। 
लिखवा दी रामायण, खुशियां जो घरघर में घोल रही।।
राम बने आज्ञा पालक तो दुष्टों का संहार किया ।
शबरी के झूठे फल खाएं पतितों का उद्धार किया ।।
प्यार किया राधा बनकर ,तो बैठ गई अंतर्मन में ।
सेवा का संकल्प लिया तो सीता साथ गई वन में।।
कृष्ण यशोदा की ममता की छांया में सुख पाता है। 
शिल्पकार है नारी जग में सबकी भाग्य विधाता है।।

फूलन देवी कभी बनी तो मार गिराया लोगों को ।
संसद में पहुंची तो जाकर गले लगाया लोगों को।।
नाम महादेवी का भी तो, एक चमकता तारा है ।
हिंदी की बिंदी से जिसने मां का भाल संवारा है।।
अंतरिक्ष में गई कल्पना ,जीत गया कद नारी का ।
था जुनून उसके मन में लोगों केवल सरदारी का।।
परम पिता को भी नारी का रूप बड़ा मन भाता है। 
शिल्पकार है नारी जग में, सबकी भाग्य विधाता है।।

मरियम ने ईसा को पैदा करके अमर निशानी दी।
मानवता फैलाने वाली अनुपम नई कहानी दी ।।
बनी फातिमा जन्नत की मालिक ये सबने माना है।
वो माँ है हसनैन की लोगों भूला नहीं जमाना है ।।
माता बनी आमना बीबी नूर खुदा का फैलाया ।
गोदी में रेहमत खेली तो ,नारी ने गौरव पाया ।।
ये सब ऐसी माएं हैं जिनके गुण खुद रब गाता है। 
शिल्पकार नारी है जग में सबकी भाग्यविधाता है।।

मीराबाई बन, नारी ने भक्ति का संचार किया ।
विष पीकर वो अमर हो गई कैसा उसने प्यार किया।।
झांसी की रानी ने ,अंग्रेजों को खूब छकाया है ।
लक्ष्मी बाई ने नारी का, यश परचम फहराया है।।
पद्मावती नहीं जब पाई दुश्मन हाथ मसलते थे ।
जौहर की ज्वाला में उनके,अरमां धूं धूं जलते थे।।
नूरजहाँ है आविष्कारक सबको इत्र बुलाता है ।
शिल्यकार है नारी जग में सबकी भाग्यविधाता है।।

राष्ट्रपति के पद पर बैठी ,प्रतिभा पाटिल नारी थी।
लोकतंत्र की ताकत थी, सब के वोटों पर भरी थी।।
भले सोनिया भले सुमित्रा जयललिता हो या सुषमा। 
इनके सम्मुख कौन खड़ा होगा किसमे इतनी उष्मा।।
माया ,ममता ,वसुंधरा या कहो राबड़ी जानेंगे ।
उमाभारती कहो सानिया मिर्जा सब पहचानेंगे।।
मदर टेरेसा का सेवा परचम जग में लहराता है । 
शिल्पकार है नारी जग में सबकी भाग्यविधाता है।।-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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