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Thursday, 2 January 2020

विदाई संग स्वागत (कविता) - व्यग्र पाण्डे



विदाई संग स्वागत
(कविता)
कहने को उन्नीस, इक्कीस से कम नहीं
जा रही हो पर, सदियों भूलेंगे हम नहीं
मान संग स्वाभिमान, हर्ष दिया उत्कर्ष
देश हमेशा ॠणी रहेंगा हे उन्नीसवीं वर्ष
धूमिल मस्तक किरीट को दमकाया तूने
किये अनेक प्रश्न हल जो पड़े थे जूने
हर हृदय में प्रेम की गंगा तूने खूब बहाई
कुछ-कुछ झेले ताने सदा रही मुस्काई
तुझे विदा करने को हमारा मन ना करता
तेरी प्रशंसा करें कितनी ही मन ना भरता
विदाई संग स्वागत की वेला आन पड़ी है
उन्नीस गयी, बीस द्वार पर आन खड़ी है
जाने वाला गया सबको कुछ यादें देकर
नव-वर्ष आये हमको बहुत मुरादें लेकर
देश-संस्कृति अक्षुण्ण रहे हम सब चाहते
स्वागत में दो हजार बीस हम शीश नवाते
-०-
व्यग्र पाण्डे
सिटी (राजस्थान)

-०-

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नया साल (कविता) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'



नया साल
(कविता)
आओ जशन मनाओ नया साल आ रहा है ।
ईमान की दौलत लेकर नया साल आ रहा है ।।

मुबारक हो वतन के हर खाश-ओ-आम को ।
ढेर सारी खुशियाँ लेकर नया साल आ रहा है ।।

मुल्क की तरक्की के लिए हम सब दुआ करें ।
अमन का पैग़ाम लेकर नया साल आ रहा है ।।

ज़लज़ले-हादसों से हो वतन की हिफाजत।
भाईचारे का पैकर बनकर नया सालआ रहा है।।

हुक्मरानो जरा सोचो ये मुल्क हम सब का है ।
नफरत के बादलों को छांटने नया सालआ रहा है।।

जन-जन को खुशहाली की ढेरों सौगात मिले।
आवाम की आवाज़ बन नया साल आ रहा है ।।

जमाने भर की बुराइयाँ मुल्क से हो रफा दफ़ा ।
इंसानियत का तौफा बन नया सालआ रहा है।।

मुल्क में जय-जयकार की सदाएं बुलन्द हो।
नूर का उजाला लेकर नया साल आ रहा है ।।

जन-जन नैतिक मूल्यों व् कर्तव्य का पालन करें।
"नाचीज़"हसीन जज्बात ले नया सालआ रहा है।।
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

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नववर्ष (कविता) - प्रज्ञा गुप्ता


नववर्ष
(कविता)
स्वागत नव वर्ष ! स्वागत ! ,
अभिनंदन नववर्ष ! अभिनंदन !

इस दिव्य प्रभात में ,
सूर्य की प्रकीर्णित रश्मियों से ,
जाग्रत करो तुम समूची मानवजाति को ,
इस तरह कुछ , कि ज्ञान का विस्तार हो ,
संदेश मानवता का फैले , दिग-दिगंत ,
वीरानगी दूर हो दिलों से ,
इस तरह नववर्ष ! कि प्यारनेह के फूल खिलें ,
और बसंत कूके ,
दिल गुलशन बने ,
अपनत्व से सिक्त हों
मन की डालियां ,
और फल लगे उन पर ,
सद्भाव और समता के ,
समृद्धि और खुशहाली की बेल बढ़े ,
मेरे देश में आओ नव-वर्ष ! इस तरह कुछ ,
कि बयार ऐसी बहे अबके ,
कि देश की धरती सोना उगले ,
अकाल की काली छाया हटे
रोज उत्सवों की धूम मचे ,
सजे रोज दिवाली के दिए ,
मन हो फाल्गुनी सबके ,
बुने रंगीन सपने ,
आओ नव-वर्ष !
इस तरह तुम होले-होले ,
कि सूखी पथराई आँखों में ,
जीवन की किरण जगे ,
आओ नववर्ष !
इस तरह तुम आओ नववर्ष !

-०-
प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा, (राजस्थान)

-०-
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नई आशा (कविता) - रश्मि लता मिश्रा


नई आशा
(कविता)
नए साल के संकल्पों से,
शुभ नवजोत जलाएँ।
स्वागत बीस-बीस का करके
प्रेम ध्वजा लहराए।
गंगा-जमुनी अपनी संस्कृति
फिर क्यूँ तेरा-मेरा,
इंसा होकर इंसानियत न
करे रे मन मे फेरा।
चलो भेद यह दूर भगाएं,
नव संसार रचाएं।
नए साल के संकल्पों से,,,
नए तंत्र हों नईविधाएं,
नए दौर में नई फिजाएं
तू,मैं हम हो जाएं
वर्ग भेद और जाति भेद से,
खुद को दूर भगाएं
नए साल के संकल्पों से,,,,
नई समाज और नई हो शिक्षा
नया बनाए रस्ता
नए रास्तों पर चलकर
मंजिल पाएं आहिस्ता।
एक-एक फिर फूल को चुनकर
गुलदस्ता बनवाएं।
नये साल के संकल्पों से,,,,
-०-
पता:
रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 
-०-


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'नूतन वर्षाभिनन्दन' (कविता) -श्रीमती सरिता सुराणा



'नूतन वर्षाभिनन्दन'
(कविता)
नूतन- नूतन वर्षाभिनन्दन !
अभिनव काव्य का सृजन करें।
कोमल कुसुम काव्य कलियों से
मां शारदे का शृंगार करें।
गाएं गीत सदा प्रेम भाव के
राग-द्वैष का त्याग करें।
इंसानियत पर हावी होती
हैवानियत का नाश करें।
सांप्रदायिकता के विषैले उन्माद को
आपसी सद्भाव से दूर करें।
इंसान सबसे पहले है इंसान
इस सत्य को स्वीकार करें।
जगाएं अखण्ड शिक्षा की ज्योति
दुर्गुणों का हवन करें।
आतंकवाद की जड़ें काटकर
'भारतमाता' का संताप हरें।।
-०-
श्रीमती सरिता सुराणा
हैदराबाद (तेलंगाना)
-०-

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* नया साल * (कविता) - मुनव्वर अली 'ताज'



* नया साल *
(कविता)
कुछ इस अदा से आए नया साल दोस्तो
हो जाए वर्तमान ही ख़ुशहाल दोस्तो

जब तक रहेगी वासना खुशहाल दोस्तो
तब तक रहेगी साधना बदहाल दोस्तो

ऐसा करो कि संयमी हो जाए हर पुरुष
मिट जाए दिल से रेप का ख़याल दोस्तो

जो साल इक ग़रीब की झोली न भर सके
वो साल हर सदी में है कंगाल दोस्तो

हम अपने रहनुमा से यही आरज़ू करें
मिल जाए सादा रोटियों को दाल दोस्तो

हर आदमी का काम लगातार चल सके
अब हो न देश में कोई हड़ताल दोस्तो

ऐ ताज , आओ सबके लिए ये दुआ करें
आए न अब कभी कहींं भूचाल दोस्तो -०-
मुनव्वर अली 'ताज' 
उज्जैन -म. प्र.

-0-


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बरस उन्नीस (नववर्ष कविता) - डॉ लता अग्रवाल


बरस उन्नीस
(नववर्ष कविता)
बरस उन्नीस
तुम आए और चल दिए अभी तो
देखा भी नहीं
जी भर मैंने तुम्हें
बैठी भी नहीं चंद पल पास तुम्हारे
चैन से चाहती थी
बतियाना तुम संग,
स्मृतियाँ
कुछ बीते समय की
ताजा करना
कुछ हंसी ठिठोली कर बहलाना
खुद को ,
व्यस्तता के चक्रव्यू ने
उलझाए रखा कयच्छ ऐसे
उभरने ही न दिया
कि सुना दिया तुमने फरमान
अपनी रवानगी का ..
रोकना चाहती हूँ तुम्हें
कुछ पल और
मगर रोके से कब किसके रुके हो तुम
थमा कर ऊँगली
बीस की
कह रहे हो
टाटा! टाटा! बाय ! बाय !
अच्छा बाय ! बाय !

प्रिय उन्नीस !
करना चाहती हूँ आभार तुम्हारा
दी हैं जो उपलब्धियाँ तुमने ,
बांधे हैं जितने भी ताज
सिर मेरे,
सफलताओं के हार
पहनाए गले मेरे
उनका साभार ।
आँगन में मेरे बिखेरे हैं
जो भी खुशियों के पल
दी हैं सौगात
नए रिश्तों की,
सजाई है होठों पर
मेरे मुस्कान
उन एक-एक लम्हों की
रहूँगी ऋणी।

हाँ ! सुनो देते जाओ मंगलकामनाएं
बीस के लिए
सहेजना चाहती हूँ
आंचल में
फिर यही प्रेम दुलार,
रहे आशीष
ना कभी पीड़ित रहूँ
विजय दंभ से ,
न सताए ताप
ईर्ष्या , द्वेष का ,
भावना - संभावनाओं की राह गहूँ,
बरस उन्नीस! आते रहना स्मृतियों में यदा-कदा,
आने-जाने से
बना रहता है प्यार
पुनः सादर आभार ।-0-
निवास -
डॉ लता अग्रवाल
भोपाल (मध्यप्रदेश)
-0-


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आओ नववर्ष की तैयारी करें (कविता) - मोनिका शर्मा


आओ नववर्ष की तैयारी करें
(कविता)
गुदगुदाती सुबह कर रही है इंतजार हमारा
आओ नववर्ष की तैयारी करें ।।
करें संकल्प न कोई भूखा रहे
भारतवर्ष में ।।
करें संकल्प न कोई जिंदा जले
नूतन वर्ष में ।।
पिता के कांधे का बोझ थोड़ा कम करें
आओ नववर्ष की तैयारी करें।।
करे संकल्प लड़कियों को खुला आसमान देने का
जिसमें वे डर के साए से बाहर निकल सकें।।
करें संकल्प जनहित का
न कर सके हनन कोई जन संपदा का
मिलकर नव राष्ट्र का निर्माण करें ।।
करें संकल्प सबका साथ, सबका विकास का
करें संकल्प स्वयं को ज्योति बनाने का,
जिससे दूसरों के जीवन को उजागर करें,
आओ नववर्ष की तैयारी करें।।
-०-
पता:
मोनिका शर्मा
गुरूग्राम (हरियाणा)

-०-

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नववर्ष से प्रश्न (कविता) - डॉ दलजीत कौर


नववर्ष से प्रश्न
(कविता) 
ऐ नव वर्ष !
तुम आए तो हो |
क्या कुछ नया भी लाए हो ?
नेता बदलेगा क्या अपनी परिभाषा ?
पहनेगी राजनीति क्या नया पहरावा ?
ऐ नव वर्ष !
तुम आए तो हो ---
तन ढकोगे क्या उस आबरू का
जो पिछले साल रही नंगी ?
राखी गिरवी जिस किसान ने जमीन
कम होगी क्या उसकी तंगी ?
ऐ नव वर्ष !
तुम आए तो हो ---
होशियार होने पर भी रह गया जो पीछे
दे पाएगा वह विद्यार्थी टयूशन फ़ीस ?
इज्ज़त से पाल लेगी बच्चे वह विधवा
क्या किसी के दाने पीस ?
ऐ नव वर्ष !
तुम आए तो हो ----
कुछ तो नया लाए हो ?
गर्भ में क्या -क्या छिपाए हो ?
तुम पर लगाये हैं सब आस
न हो कोई मन उदास |
ऐ नव वर्ष !
तुम आए तो हो
क्या- क्या नया लाए हो ?
-०-
संपर्क 
डॉ दलजीत कौर 
चंडीगढ़


-०-

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एक नया वर्ष (कविता) - राजीव डोगरा



एक नया वर्ष
(कविता)
नए वर्ष में नए युग का
संचार होगा ।
नाम होगा वो भी बेनाम होगा ।
और सब शत्रुओं का
संहार भी होगा ।
दौड़ेगी रणचंडी
साथ लेकर कटार तो
महादेव का सिर पर
हाथ भी होगा।
बीत गया जो वक्त छोड़कर
फिर से उसका आगाज होगा।
रुलाते थे जो
इश्क के लिए दिन-रात हमें
मोहब्बत पर हमारी
उनको भी नाज होगा।
छोड़ गया जो हर रिश्ता
मुख मोड़ कर
उनका ह्रदय भी
मिलने के लिए बेकरार होगा।
आएगा नया युग
दौड़ेगे हम पांव में धूल लिए।
हर मंजिल पर
हमारा पाँव होगा।
-०-
राजीव डोगरा
कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
-०-




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'नवल वर्ष, नव वंदन हो' (कविता) - ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'


'नवल वर्ष, नव वंदन हो'
(कविता)
सद्भावों के स्वच्छ प्रकाश से,
जीवन सबका रोशन हो।
दुर्भावों का हटे अँधेरा,
नवल वर्ष, नव वंदन हो।।

महँगाई का चीर हरण हो,
सुलभ वस्तु हर-जन को हो।
भूख अभाव न रहे दुनिया में,
निर्मल सबका तन मन हो।।

सबकी उन्नति हो जीवन में,
दुखी न कोई प्राणी हो।
विकास की गंगा बहे निरंतर,
कर्मशील हर प्राणी हो।।

दीन-दलित रहे नहीं कोई,
स्वाभिमानी नर नारी हो।
वीर-पराक्रमी हर बच्चा हो,
विकास-चक्र नित जारी हो।।

भारत का सौभाग्य सूर्य,
विश्व-क्षितिज पर छाया हो,
सत्य,अहिंसा, प्रेम,न्याय का
सबको पाठ पढ़ाता हो ।।
-०-
पता-
ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
सिरसा (हरियाणा)
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सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

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पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

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सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

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