विदाई संग स्वागत
(कविता)
कहने को उन्नीस, इक्कीस से कम नहीं
जा रही हो पर, सदियों भूलेंगे हम नहीं
मान संग स्वाभिमान, हर्ष दिया उत्कर्ष
देश हमेशा ॠणी रहेंगा हे उन्नीसवीं वर्ष
धूमिल मस्तक किरीट को दमकाया तूने
किये अनेक प्रश्न हल जो पड़े थे जूने
हर हृदय में प्रेम की गंगा तूने खूब बहाई
कुछ-कुछ झेले ताने सदा रही मुस्काई
तुझे विदा करने को हमारा मन ना करता
तेरी प्रशंसा करें कितनी ही मन ना भरता
विदाई संग स्वागत की वेला आन पड़ी है
उन्नीस गयी, बीस द्वार पर आन खड़ी है
जाने वाला गया सबको कुछ यादें देकर
नव-वर्ष आये हमको बहुत मुरादें लेकर
देश-संस्कृति अक्षुण्ण रहे हम सब चाहते
स्वागत में दो हजार बीस हम शीश नवाते
कहने को उन्नीस, इक्कीस से कम नहीं
जा रही हो पर, सदियों भूलेंगे हम नहीं
मान संग स्वाभिमान, हर्ष दिया उत्कर्ष
देश हमेशा ॠणी रहेंगा हे उन्नीसवीं वर्ष
धूमिल मस्तक किरीट को दमकाया तूने
किये अनेक प्रश्न हल जो पड़े थे जूने
हर हृदय में प्रेम की गंगा तूने खूब बहाई
कुछ-कुछ झेले ताने सदा रही मुस्काई
तुझे विदा करने को हमारा मन ना करता
तेरी प्रशंसा करें कितनी ही मन ना भरता
विदाई संग स्वागत की वेला आन पड़ी है
उन्नीस गयी, बीस द्वार पर आन खड़ी है
जाने वाला गया सबको कुछ यादें देकर
नव-वर्ष आये हमको बहुत मुरादें लेकर
देश-संस्कृति अक्षुण्ण रहे हम सब चाहते
स्वागत में दो हजार बीस हम शीश नवाते