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Wednesday, 13 May 2020

सब कुछ छोड़ (मुक्तक) - राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'

सब कुछ छोड़
(मुक्तक)
सब कुछ छोड़ कर मैं गांव लौट आया हूं,
आज सदियों के बाद खेत अपने आया हूं।
शहरों की भाग दौड़ में उलझ के थक गया था,
दिल मेरा था बेचैन अब मैं चैन पाया हूं।।
पेड़ पौधे मेरे मुझसे शिकायत करते हैं,
बच्चों सी करके शरारत फिर मुझसे लड़ते हैं।
महीनों हो गए बातें नहीं की हैं हमने,
बैठो छाया में मेरी दिल की बातें करते हैं।।
रघुवंशी हमें छोड़ के ना जाया करो,
याद आती है बहुत यू न तुम सताया करो।
ये मत समझो कि हम जी नहीं सकते तुम बिन,
हम हैं दिलदार तुम्हारे यूं ना आजमाया करो।।
गया बेरी के पास कहा बेर खिलाओ,
पेड़ बोला कि अब क्यों आए हो भाग जाओ।
मैंने कहा मजबूरी थी मान भी जाओ यार,
अब ना जाऊंगा कभी शिकवे गिले भूल जाओ।।
छोड़कर तुमको फिर से कभी अब न जाऊंगा,
छोटी कुटिया बनाके यहीं रुक जाऊँगा।
रघुवंशी जहाँ के झंझटों से थक चुका है,
रहूंगा जंगलों में जहाँ भूल जाऊंगा।।
-०-
कवि 
राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'
-०-

***
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