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Tuesday 22 September 2020

अग्रदूत (कविता) - अमित डोगरा

अग्रदूत
(कविता)
अनहद नाद  का दूत हूं मैं,
मेरा किसी से
कोई रिश्ता नाता नहीं ,
मैं केवल सत्य
और सच्चाई का दूत हूं,
जब-जब धर्म की हानि होती है ,
तब तब मैं पृथ्वी पर
अवतरित होता हूं ,
कभी मैं राम बनकर
रावण का वध करता हूं ,
तो कभी कृष्ण बनकर
कंस जैसे अत्याचारियों का दमन करता हूं,
कभी मैं मीरा बनकर
भक्ति रस में खो जाता हूं,
तो कभी मैं नानक बनकर
जगत में मानवता का संदेश देता हूं ,
तो कभी मैं गोविंद सिंह बनकर
शत्रुओं को खुदेड़ता हूं ,
तो कभी अल्लाह का बंदा बन कर
अल्लाई नूर बांटता हूं ,
फिर भी इस बुद्धिजीवी युग के लोग
मुझे मिथ कहते हैं,
मैं मिथ नही,
केवल मैं ही सत्य हूं ,
और मैं ही सत्य रहूंगा  
-०-
पता:
अमित डोगरा 
पी.एच डी -शोधकर्ता
अमृतसर

-०-

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रोपा पिछड़ा धान (कविता) - शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’

मन का वृंदावन
(कविता)
बादल निकले हुए सैर पर,
खा सागर का पान |

घोर असंगति, प्रश्नावलियों
की वाचकता दूर,
किसी खेत के कोने पर हो
जैसे फैला घूर,
हिल-हिल झूम रहा पुलई सँग,
रोपा पिछड़ा धान |

फूट-फूट रोई गौरैया,
टूट गए हैं पंख,
घोंघा लादे घूम रहा है,
नदी किनारे शंख,
गजरा गया हुआ है करने,
खुशबू-कन्यादान |

उन्नतियों की चौपाटी पर,
तड़प रहा है पेट,
दिन भर खुरपी से बतियाता,
गमछा बाँधा मेट,
सेवा बोल रही है भागा,
लेकर कौआ कान |

तथ्यात्मक रचना के पीछे,
दौड़ रहा नवगीत,
और चुटकुले बैठ मंच पर,
चाट गए नवनीत,
कविता काफी हाउस बैठी ,
भूल गया पथ गान |
-०-
पता: 
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
-०-


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काल (कविता) - राजीव डोगरा 'विमल'


काल 
(कविता)
मैं तूफानों से निकला हूं
मुझे आंधियों से
अब कोई डर नहीं,
मैं महाकाल से मिला हूं
मुझे काल से
अब कोई डर नहीं ,
मैं अपने अस्तित्व को
मिटा चुका हूँ,
मुझे जीवन से अब
कोई मोह नहीं।
मैं माँ काली से प्रेम
पा चुका हुँ,
मुझे दुनिया वालों से
अब कोई स्नेह नहीं।
-०-
राजीव डोगरा 'विमल'
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-



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साकी जाम में तेरी (ग़ज़ल) - राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'


साकी जाम में तेरी 
(ग़ज़ल)
साक़ी जाम में तेरे नशा वो नहीं,
जो नशा उन नशीली निग़ाहों में है।
दुनिया भर में हुनर क़त्ल का वो नहीं,
जो हुनर उनकी क़ातिल अदाओं में है।।
घूमा सारा ज़माना मज़ा वो नहीं,
जो मज़ा प्यार की उनकी राहों में है।
मिल सका न सुकूँ मेरे दिल को कहीं,
जो सुकूँ रघुवंशी उनकी बाहों में है।।
इस जहां में मुझे वो कशिश न मिली,
जो कशिश उनकी जुल्फों की छाव में है।
रघुवंशी ऐसी लड़की न देखी सुनी,
ये तो बस एक तस्व्वुर के गांव में है।।
-०-
पता- 
राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'
हमीरपुर (उत्तर प्रदेश)

-०-

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मैं और लेखन (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा


मैं और लेखन 
(कविता)
दिल में छिपे दर्द जब,
नासूर बन पलने लगे,
शब्दों की इक पोटली,
खुल कर बिखेरने सी लगी।
वर्ण शामिल हो गए,
मात्राओं का दे वास्ता,
लेखनी रफ़्तार से ,
काग़ज़ पे फिर चलने लगी।

गुमनाम सी थी ज़िंदगी,
शब्दों ने घेरा आ मुझे,
खोल कर दहलीज़ दिल की,
खिड़कियाँ खुलने लगी।
आगे आगे लेखनी ओर,
शब्द पीछे चल दिए,
ग़म तो बे हिसाब थे पर,
ख़ुशियाँ भी आ मिलने लगी।

आँख के आँसू मेरे ,
संतोष का आधार थे,
ग़म की क़तारें छँट गई,
ख़ुशियों का वो भंडार थे।
देख कर के रास्ता,
ये राह जो मैंने चुनी,
तन है काग़ज़,मन है जीवन
ज़िंदगी लेखन बनी।

मार के ठोकर ग़मों को,
रास्ते बनने लगे,
यूँ लगा ज्यों हाथ थामे,
ज़िंदगी चलने लगी,
मन में जो जज़्बात थे ,
निकले तो कवितायें बनी,
मेरे लिए लेखन नहीं,
लेखन के लिए मैं बनी।
-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
-०-



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