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Monday 18 January 2021

रूठकर उदास (ग़ज़ल) - अलका मित्तल


रूठकर उदास 
(ग़ज़ल)
रूठकर उदास बैठी हैं ख़ुशियों इक ज़माने से
पर ग़म चले आते हैं किसी न किसी बहाने से

ओढ़ने से चादर ग़मों की हासिल कुछ भी नहीं
ज़िन्दगी के कुछ दर्द चले जाते हैं मुस्कुराने से

कभी पा लूँ उसे ये तो शायद मुमकिन ही नहीं
तबियत बहल जाती है ख़्याल उसका आने से

ख़्वाहिश न हो जब तलक रिश्ते नहीं बनते
गर चाहो दिल से बात बन जाती है बनाने से।

तुम कभी दिल की गहराइयों से अपनी पूछना
कितना सुकूँ मिलता है ओरो के काम आने से

खामोशियाँ सी छा गईं उसके मिरे दरमियाँ
नहीं भूलती वो यादें”अलका”लाख भुलाने
-०-

पता:
अलका मित्तल
मेरठ (उत्तरप्रदेश)

-०-

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मेरा भारत महान है (कविता) - प्रीति चौधरी 'मनोरमा'

  

मेरा भारत महान है
(कविता) 
मेरे देश को नमन करता यह जहान है,
हृदय गाता रहे मेरा भारत महान है।

जहाँ कल - कल बहती है गंगा पावन 
जहाँ  प्रतिक्षण बरसता है प्रेम का सावन,
जहाँ विवाह होता है सात जन्मों का बंधन
उस देश की भूमि को शत- शत वंदन,
पूण्य भारत भारती पर प्राण कुर्बान है।
हृदय गाता रहे मेरा भारत महान है...

जहाँ अहिंसा ही होती परम् धर्म है
जहाँ व्यक्ति जानते वेद,पुराणों का मर्म है,
जहाँ भाग्य से बड़ा होता सत्कर्म है,
जहाँ पिता नारियल का जैसा सख़्त और नर्म है,
मेरे देश में हिंदी भाषा का सम्मान है।
हृदय गाता रहे मेरा भारत महान है...

जहाँ प्रस्तर का भी पूजन होता है,
रूप तुलना में गुणों का नमन होता है,
त्योहारों पर आत्मीयता से आलिंगन होता है,
बुजुर्गों की सेवा का प्रचलन होता है,
भारत में माँ- बाप भगवान के समान हैं।
हृदय गाता रहे मेरा भारत महान है  ..
-०-
पता
प्रीति चौधरी 'मनोरमा'
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)

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प्यार उनसे... (ग़ज़ल) - नरेन्द्र श्रीवास्तव

 

प्यार उनसे...
(ग़ज़ल)
प्यार उनसे जो कर लिया हमने।
क्या बतायें क्या कर लिया हमने।।

उनके पहलू में हम जब आये।
सौ जनम जैसे जी लिया हमने।।

उनके जितने करीब आये हम।
दूर जमाने को कर लिया हमने।।

कौन है वो कि कभी जाना नहीं।
लुटा दिल अपना कर लिया हमने।।

आरजू कोई बाकी ना रही।
वो मिले तो सब पा लिया हमने।।
-०-
संपर्क 
नरेन्द्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)  
-०-

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सबकी ख़ातिर (ग़ज़ल) - डॉ० अशोक ‘गुलशन’

   

सबकी ख़ातिर
(ग़ज़ल)
सबको  हम अपने  ही जैसा माने बैठे हैं,
सबकी ख़ातिर अच्छा-अच्छा सोचे बैठे हैं।
00
दिल में दुनिया भर की पीड़ा दाबे बैठे हैं,
दर्द सभी का सबका दुखड़ा ढोये बैठे हैं।
00
दादा-बाबा ने जितना हमको सिखलाया था,
हम अब तक बस केवल उतना सीखे बैठे हैं।
00
जो रहते थे साथ हमारे अपना कहते थे,
उन अपनों से ही हम धोखा खाये बैठे हैं।
00
दुःख की बदली छँट जायेगी है विश्वास हमें,
कल  सुन्दर  होगा  यह  सपना देखे बैठे हैं।
00
याद तुम्हारी आते 'गुलशन' सबकुछ भूल गये,
बिना  ताल-लय-सुर  के गाना   गाये  बैठे हैं।
-०-
संपर्क 
डॉ० अशोक ‘गुलशन’
बहराइच (उत्तरप्रदेश)
-०-



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गाऊंगी (कविता) - होशियार सिंह यादव

 

गाऊंगी
(कविता)
तुम बन जाओ गीत मेरे,
मैं नृत्य बनकर गाऊंगी,
तुम बन जाओ भ्रमर तो,
तो फूल बनके आऊंगी।

तुम बन जाओ चितचोर,
मैं प्रेमिका बन लुभाऊंगी,
तुम बनोगे ढोलक अगर,
मैं सारंगी बनके आऊंगी।

तुम मेरे दिल की धउ़कन,
मैं दिल का रूप बनाऊंगी,
तुम बनाकर आओ हँसी,
मैं होठों पर मुस्कराऊंगी।

तुम आग का रूप बनोगे,
मैं पानी बन प्यास बुझाऊं,
जब जब तुम मुझे पुकारो,
मैं संगिनी बन कर आऊंगी।

तुम होठों का रूप धरोगे,
मैं बंशी तेरी बन जाऊंगी।,
तुम प्रेम से याद करो तो,
गीत बनकर ही गाऊंगी।।
-०-
पता: 
होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ (हरियाणा)

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