आज लो एक बार फिर मौसम का जादू छा गया
नित नवल खुशियां लिये नववर्ष फिर से आ गया
किस तरह होगा उदय सूरज निशा की गोद से
ओढ़नी में भोर की छिपने लगा शरमा गया
हर दिशा में कोहरे की एक चादर छा रही
शीत की ठंडी लहर अब पर्वतों से आ रही
उपवनों के फूल सारे ताजगी से भर गये
खिलखिलाकर हँस पड़े मन को मयूरा कर गये
नव दिवस में उर सभी के नव उमंगें भर रहीं
खेलती मुस्कान अधरों पर शरारत कर रहीं
घाव सब पिछले बरस के धीरे से सहला गया
कुछ पलों का साथ सबका मन मेरा बहला गया
कोहरे की ओढ़ चादर चाँद भी छिप सा गया
लग रहा जैसे ख़ुशी का कारवाँ दिख सा गया।।
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अनामिका
खुर्जा (उत्तरप्रदेश)
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