पुतले का ख़त
(पत्र)
हमारे प्यारे भक्तों ,
नही। हम आप को कोई आशिर्वाद नही दे सकते। क्योंकि हमने कोई शब्द लिखा तो आप सीधे सीधे हमारे जात और धर्म पर जाओगे। हमे किसी ना किसी धर्म या जातिसे जोडोगे। एक बात साफ तौरसे हम स्पष्ट करते है कि, यह खत हम सब धर्म के पुतले मिलकर लिख रहे है। पहले ही आप लोगो ने हमारे जैसे महात्मा, समाजसुधारक जैसे लोगोंको जाति-धर्म मे बाँट दिया है। हर एक धर्म को किसी ना किसी रंग मे रंग दिया है। वह रंग उस धर्म की पहचान बन गया है। वैसे देखा जाए तो पाणी का कोई रंग नही होता है। लेकिन मेरे भक्तों, आपने पाणी को भी छुत-अछुत की खेल मे पकड रखा है।
मेरे भाईयों, क्या अवस्था कर रखी है हमारी ? आपकी व्यवस्था ने हमे पत्थर के पुतले बना रखा है। जिंदा थे तब भी कभी सुकुन से ना खा सकते और ना ही चैन की निंद सो सकते थे हम। मरने के बाद कुछ शांति के पल का आनंद भी हमारे नसी़ब मे नही है। स्वर्ग मे रह कर भी उन सुखों का हम आनंद नही ले सकते है, जिन्हे आप लोग स्वर्ग सुख कहते हो। आप की भूमी कभी स्वर्ग जैसी थी, लेकिन आप लोगोंकी करतुतोंसे वह भी नरक बन चुकी है। कभी कभी यह स्वर्ग छोडकर उस नरक मे आना पडता है। वहाँ हमारे पुतलों की जो अवस्था आप मे से कोई लोग करते है, वह देख कर हमे बडा दुख होता है। कोई सरफिरा पुतला फोडता है, कोई हमे चपलोंकी माला पहनाता है, कोई स्याही फेंकता है तो कोई अन्य वस्तु डाल कर हमारा चेहरा खराब कर देता है। ऐसी कोई घटना घटते ही आप दो जाति-धर्म के लोग आपस मे भीड जाते हो। गुस्से से लाल होकर एक दूसरे के जान के दुश्मन बन जाते हो। एक दूसरे पर हल्ला बोलकर किसी का सर फोडते हो तो किसी के हाथ पैर तोड देते हो। कितनी माता- बहनों के सर से सिंदूर मिट जाता है। आम तौर पर कभी किसी को जाति याद नही आती। लेकिन दूसरे जाति का कोई आदमी तुम्हारे जाति के बारे मे कुछ कहे या आँख टेढी कर के देखे तो आप का खुन खौलता है। आप के अहंकार को ठ़ेस पहूंचती है। सर पर खून सवार होते ही आप सामनेवाले पे टुट पडते हो। क्या आप का धर्म यही सीखा़ता है? आप जैसे सर फिरे गुस्से से बेकाबू होकर पुतलों पे निशाना साधते हो। पुतलों को तोडते हो या अन्य कोई हथकंडा अपनाकर हमे प्रताडित करते हो, अपमानित करते हो। किस धर्म मे ऐसी सीख है कि निरपराध लोगोंको मार गिराओ? कौन से महात्माओने या संतोने ऐसा संदेश दिया है?
बहुत प्यार करते हो ना हमसे, बडे लाड- प्यारसे, बडे आनंद से हमे बिठाते हो। लेकिन कहाँ बिठा़ते हो? चौक मे...गाँव के बाहर...खुली जगह पर हमे खडा करते हो। आप के आदर्श, पूज्य व्यक्ती का स्थान ऐसी जगह ? हमारे लिए तुम्हारे मन मे इतना प्यार है, इतनी भक्ती है तो हमे ऐसी खुली जगह क्यों बैठने की सजा देते हो? चारों तरफसे मैदान होता है। हाँ, हमारे सरपर एक छोटासा छत्र जरूर होता है। लेकिन वह इतना छोटा होता है की,वह हमारी धूप, थंड, बरसात से कोई रक्षा नही कर सकता । हम जब तुफानी बरसात का सामना करते है, कडी धूप से टक्कर लेते है या फिर थंड से बचने की कोशीश करते है तो आप लोग दूम दबाकर घर मे छिपे बैठते है। क्या यह हमारा अपमान नही है? क्या यह हमारी विटंबना नही है? इन सब बातोंका हम क्यों सामना करें? क्या महात्माओंके नसी़ब मे यह सब होता है? पल भर की गरमी आप नही सह सकते? पंखा या कूलर जैसी व्यवस्था का सहारा लेते हो फिर कभी हमारे बारे में सोचा है? किस हाल मे हम रहते है? बहुत सारे मंदिर या प्रार्थना स्थल वातानुकूलित है फिर हमे क्यों आसमान का छत दिलाते हो? कुछ पुतलों की व्यवस्था बडी अच्छी होती है। उन के इर्द गिर्द बागबगिचा होता है फिर हमसे ऐसा सौतेला बर्ताव क्यों? सभी पुतलों की एक जैसी व्यवस्था होनी ही चाहिए। चाहे वह गाँव मे बसा पुतला हो या बडे शहरों मे खडा पुतला हो। अरे, भाई, हमे भगवान मानते हो ना , भक्ती युक्त अंत:करणसे हमारी प्रार्थना करते हो ना तो फिर हमारे साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों? बडी अच्छी इमारत मे हमे क्यों नही बिठा़ते हो? रात के अंधेरे मे यहाँ कौन कौन आता है, क्या अनाप शनाप बकता है, ये आप को है पता? कौन यहाँ बैठ कर क्या खाता है, क्या पिता है ये सब हमे मालुम है।
एक और बात, हमारी जयंती या पुण्यतिथी तो मनाते हो लेकिन बहुत सारे जगहोंपर जयंती को हमे पहनायी गयी पुष्पमालाऐं पुण्यतिथी के समय और पुण्यतिथी को पहनायी गयी पुष्पमालाऐं हमारी जयंती को निकाली जाती है। ऐसा क्यों? दो तीन दिन बाद सुखी हुई मालाओंका भार हम क ई महिनोंतक क्यों संभाले? ऐसे समय आप की भावनाओंको ठेस नही पहुंचती? यह हमारा अपमान नही है? साफसफाई की बात न करे तो अच्छा है। विशेष दिन और कभी कभी होनेवाली सफाई को छोड दे तो हर रोज की सफाई का क्या? अपने स्वयं के घर मे आप को अस्वच्छता या कचरा पसंद है? आप अपनी घरकी जैसी रोज दो-दो बार सफाई करते हो वैसा खयाल हमारे परिसर का क्यों नही करते हो? आप खुद हमारे भक्त होकर भी हमारा उचित खयाल नही रखते हो और अगर कोई दूसरी जाति का आदमी हमारी तरफ आँख टेढी करके देखता है तो आप का चेहरा गुस्से से क्यों लालपिला होता है? आप भी तो वही करते हो, तरिका अलग होता है। कभी कभी आप हमारे पास आते हो, हमसे आप का दुख बाँटते हो, हमसे बाते करते हो, इसलिए हम भी आज आपसे यह संवाद कर रहे है।
दूसरे जाति-धर्म के लोगोंका खून बहाते समय आप को कुछ भी बुरा नही लगता। सामनेवाला का सर फुटता है, हाथपाँव टूटते है तो आप को बडा आनंद मिलता है। एक काम किजीए, जैसे झेंडे का रंग आपस मे बाँट लिए है ना, वैसेही अलग अलग रंग देकर खून को भी आपस मे बाँट लो। इससे जब दंगल होगी ना तो उस समय जो खून बहेगा उससे पता चलेगा कौनसे रंग का खून ज्यादा बहा है। बहता हुआ खून ऐ बतलाएगा की, कौनसे जाति का खून ज्यादा है। उसी खूनसे पता चलेगा की, धर्म युद्ध मे या पुतलेके अपमान मे जो जंग चल रही है उस जंग मे कौनसी जाति जीत रही है। प्यारे भक्तो, हमारे उपर आपका प्यार हमारी जयंती, पुण्यतिथी या आप की चुनावी जित के बाद ज्यादा उमड आता है। बाकी समय पर तो हमारे इर्द गिर्द सदा शांति बनी रहती है। हमारे उपर इतना प्यार है ना तुम्हारा तो भक्तो हमारी जयंती- पुण्यतिथी के समय चंदा क्यों जमा करते हो? खुद के पैसोंसे क्यों नही मनवाते यह उत्सव? चंदा जमा करते समय क्यों गुंडागर्दी, जोरजबरदस्ती होती है? आपको पता है, आपकी दहशत की वजहसे घबराकर लोग चंदा देते है, लेकिन आपकी पीठ पिछे क्या कहते है? यह कभी समझने की कोशीश की है? बहुत सारे लोग आपको तरह तरह की गालियाँ देते है, साथ मे हमे भी नही बख्शते। फिर आप क्यों करते है, ये सब? उत्साह माने बहुत बडा आनंद देनेवाला पल। एक मंगलमय दिन। लेकिन आप के इस चंदा जमा करने की आदतसे समाज का एक बडा हिस्सा नाराज होता है। इन की नाराजी को हवा मिलते ही, कुछ समाजद्रोही , अवसरवादी लोग मौका देखकर हमला बोल देते है। उस समय यह लोग हम पुतलों को अपना निशाना बना लेते है। क्यों कि हम तक पहूंचना बहुत आसान होता है। फिर शुरू होता है जातियुद्ध, धर्म युद्ध। हमे तोडा जाता है, उखाडकर फेंक दिया जाता है। हमे अपमानित किया जाता है। दूसरी तरफ विरोधी जाति-धर्म के लोग भी यही हरकत करते है। कब रुकेगा ये मेरे भाईयों? कब धमेगा यह घिनौना खेल?......
हम सब धर्म के पुतले मिलकर सब जाति- धर्म के लोगोंसे, हमारे भक्तोंसे बिनती करते है, खत्म कर दो ऐ जाति-धर्म के झगडे। अगर कुछ तोडना ही है तो यह गलिच्छ राजनीति तोड दो। सब कुछ भुल कर एक हो जाओ। बडे लाड प्यारसे साथ रहो। आपको बार बार क्यों भडकाया जाता है, इस बारे मे सोचो। आपकी चिता की ज्वालाओंपर कोई अपनी रोटी सेंक रहा है, तो उसकेपिछे चल रही राजनीति पहचानो। एक साथ आकर डट कर मुकाबला करो, भ्रष्टाचार को कभी ना अपनाओ। स्वच्छ, प्रामाणिक स्वातंत्र्य का लाभ उठाओ। हमे भी इस वातावरण से मुक्ति दिलाओ। कर सकोगे इतना? ......
तुम्हारा
पुतला
-0-नागेश सू. शेवाळकर
पुणे (महाराष्ट्र)
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