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Sunday, 1 December 2019

हिंदी भाषा (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'

हिंदी भाषा
(कविता)

हिंदी भाषा मित्र हमारी ,
सचमुच प्यारी भाषा है ।
नाम करेगी जग में अपना,
इससे ऐसी आशा है ,

जैसा लिखते वैसा पढ़ते ,
ये गुण केवल हिंदी में ।
अक्षर हमको नहीं मिलेंगे ,
कोई निर्बल हिन्दी में ।।

चार तरह से एक बात को,
कह कर हम सुख पाते हैं।
शब्दों के पर्याय हमारे ,
दुनिया भर को भाते हैं ।।

शब्दों से धनवान बहुत हम,
गर्व हमें है हिंदी पर ।
कंप्यूटर की भाषा हिंदी ,
मोबाइल है इसका घर ।।

हमको है विश्वास जगत में,
बढ़ती ही ये जाएगी ।
मान और सम्मान हमें ये,
घर घर में दिलवाएगी।।
-0-अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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आउटडेटेड (लघुकथा) - प्रज्ञा गुप्ता


आउटडेटेड
(लघुकथा)
मैं ड्राइंग रुम में बैठा , दबी सी आवाज में बेटे और उसकी मां का वार्तालाप सुन रहा था । बेटा बोला “तुम और पापा मेरे नये मकान में आना चाहते हो तो सारा सामान बेंच दो क्योंकि आउटडेटेड हो गया है । मां सोच में पड़ गई थी कि क्या यही उनका बेटा है 

जिसे 1 महीने पहले मकान की किश्त पूरी करने के लियेे अपनी गाढ़ी कमाई दी है । बेटा बोला “मां मुझे तुम्हारे निर्णय का इंतजार रहेगा ।” बेटा बोलते-बोलते ड्राइंग रूम से गुजर रहा था तो भी मुझसे बगैर आंखें मिलाये धड़ाधड़ सीढ़ियां उतर गया । मैं अंदर पहुंचा तो देखा पत्नी की आंखों से अश्रु की अविरल धारा बह रही थी । मैंने पूछा “क्या हुआ ?” पत्नी बोली “आपका बेटा जिस सामान को उपयोग में लाकर पला बढ़ा उसको हीे आउटडेटेड बोल रहा है । फिर जब हम सामान बेचकर उसके घर रहने जाएंगे तो हमको भी आउटडेटेड बोलेगा और बिना सामान के हम लौटेंगे कहां ?” पत्नी का प्रश्न त्रिशूल की तरह मेरी छाती में धंसता जा रहा था । 
-०-
प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा, (राज.)

-०-
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रेस का घोड़ा (लघुकथा) - डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

रेस का घोड़ा
(लघुकथा)
"हेलो सर!"
"हलो...।"
"क्या मेरी बात डॉ. शर्मा जी से हो रही है।"
"हाँ जी, बोल रहा हूँ। पर आप..."
"काँग्राचुलेशन्स सर। मै साहित्यिक वेबसाइट 'ढिंचाक' से मिस सुधा बोल रही हूँ। सर, आप इस हफ्ते 'आथर ऑफ द वीक' के लिए नॉमिनेट किए गए हैं।"
"अच्छा, ये क्या होता है ?"
"सर, हमारी साहित्यिक वेबसाइट की ओर से हर सप्ताह एक राइटर को 'आथर ऑफ द वीक' के रूप में चुना जाता है। जिस राइटर को सबसे अधिक लाइक्स और वोट मिलते हैं, उसे आकर्षक 'ई सर्टिफिकेट' देकर सम्मानित किया जाता है। सम्मानित राइटर को हमारे पैनल के प्रकाशकों की पुस्तकों की खरीदी करने या उनसे अपनी पुस्तकें प्रकाशित कराने पर 25% का भारी डिस्काउंट मिलता है। मैंने ईमेल के माध्यम से आपको वोटिंग लाइन की लिंक भेज दी है। सो प्लीज, आप अपने परिचितों को अधिक से अधिक संख्या में शेयर करें और उन्हें भी करने को कहें, ताकि आप 'आथर ऑफ द वीक' चुने जा सकें।"
"देखिए मैडम जी, मैं एक राइटर हूँ, रेस का घोड़ा नहीं।"
उन्होंने कहा और जवाब की प्रतीक्षा किए बिना फोन काट दिया।
-०-
पता: 
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर (छत्तीसगढ़)

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सबसे बड़ी कमाई (कविता) - सुनील कुमार माथुर

सबसे बड़ी कमाई

(कविता)
साहित्य समाज का दर्पण होता है 
साहित्यकार अपनी ठनठनी लेखनी से
समाज को सत्य से अवगत कराता है 
वह सरस्वती का उपासक होता है 
इतना ही नहीं वह समाज व राष्ट्र 
हित के लिए 
घर फूंक तमाशा देखता है मगर
समाज साहित्यकार की 
वास्तविक स्थिति से बेखबर होता है 
साहित्यकार समाज व राष्ट्र को एक नई सोच 
नई दिशा देता है 
उसके रचनात्मक प्रयासों से
समाज उसे जो मान सम्मान देता है 
उसे पाकर साहित्यकार को 
जो खुशी होती है व
मन में जो अपार प्रसन्नता होती हैं 
वही साहित्यकार की 
सबसे बडी कमाई होती है चूंकि 
वह सरस्वती का उपासक है 
समाज को सही दिशा देना
सद् साहित्य उपलब्ध कराना और 
स्वस्थ मनोरंजन करना
साहित्यकार का परम धर्म है 
उसके लिए सत्य ही ईश्वर है और 
ईश्वर ही सत्य है
-०-
सुनील कुमार माथुर ©®
जोधपुर (राजस्थान)

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अयोध्या (कविता) - दुल्कान्ती समरसिंह (श्रीलंका)


अयोध्या
(कविता)
जुड़वां फैजाबाद है,
राम का जन्मस्थान है,
रामायण तेरे संग है,
सरयू नदी किनारे ही हो ,
नाम अयोध्या है ,
प्रिय तेरा नाम अयोध्या है ।

हरिदर्शन भजन मंडल ,
मनिपर्वत टेम्पल,
हनुमानघरी मन्दिर,
राजद्वार मन्दिर,
तेरी शान है ,
अयोध्या तेरी शान है ।।

श्री सीताराम मन्दिर,
श्री कलेराम मंदिर,
और नया घट, राजसदन,
होंगे तेरे अभिमान ।।

कनक भवन, तुल्सी उद्यान,
राजघट उद्यान,
हैं तेरे मनमोहन आँगन
आशा और इच्छा है,
बंधन है, हर दिल में ।।।
-०-
दुल्कान्ती समरसिंह
कलुतर, श्रीलंका

-०-

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इसका तोहफा उसके सर (व्यंग्य आलेख) - डॉ दलजीत कौर

इसका तोहफा उसके सर
(व्यंग्य आलेख) 
तोहफा देना -लेना आज समाज की रीत हैं |यह कब शुरू हुई किसने की हमें क्या लेना |बस तोहफों से मतलब होना चाहिए |तोहफे भी कई तरह के होते हैं |कुछ हम बहुत दिल से देते हैं , कुछ काम चलाऊ ,कुछ तो न चाहते हुए भी देने पडतें हैं|दीपावली एक बड़ा मेला हैं तोहफों का |प्रदर्शनी कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा |बाज़ारों में तोहफे खरीदने वालों की भीड़ घरों में तोहफों से भरे कमरे |तोहफों की एक अलग दुनिया | 
इस के बाद बरी आती है तोहफे खोलने की |कोई तोहफा खोलते ही आँखों की चमक बता देती है कि तोहफा पसंद आ गया |कोई तोहफा नाक -भौं सिकोड़ने को मजबूर करता है |कोई तो अपशब्दों तक उतर आता है |यही तोहफे फिर से पैक किए जाते हैं |कोई एक -आध ही घर की ज़रूरत अनुसार या पसंद आने पर घर में रह पाता हैं |अन्यथा ये तोहफे फिर से दूसरों के घर जाने को तैयार हो जाते हैं |घरों से पिछले साल के पड़े तोहफे भी निकल आते हैं |जिनके डिब्बों में विजटिंग कार्ड पड़े होते हैं ताकि पता चल सके कि किसने दिया था |यदि कोई तोहफा फिर उसी के पास चला गया ,जहाँ से आया था तो अनर्थ हो जायेगा| 
फिर लिस्ट बनाई जाती है कि कौन -सा तोहफा किसको देना है |मिसेज़ शर्मा वाला ,मिसेज़ गुप्ता को ,गुप्ता वाला वलियाज़ को |वलियाज़ वाला शर्मा को आदि -आदि |बहुत दिमाग खर्च होता है ,इस सब में |बीच-बीच में शिकायते भी चलती रहती हैं --'ये मेहता जी ज्यादा पैसे खर्च नहीं करते बस हर बार वहीं शोपीस ,छोटा -सा |हमने पिछली बार कितना बड़ा ड्राई फ्रूट का डिब्बा दिया था|ये शोपीस क्या खाने के काम आता है ?ढंग का हो तो घर में रखें या किसी और को देने के काम आ जाए |दीपावली से चार -पांच दिन पहले से तोहफों का आदान -प्रदान शुरू होता है और लोग ऐसे दूसरों पर एहसान करते हुए तोहफा देने आते हैं कि पूछिए मत ----''जगह -जगह जाम लगा है |अभी बहुत काम बाकी पड़ा है |आज दस घर निपटने है |कल बहनों के जाना है |क्या मुसीबत है | तीन -तीन सिस्टर्स हैं ,वह भी एक अम्बाला ,दूसरी पिंजौर और तीसरी नंगल |तीनों दिशाओं में |बस लेना -वेना कुछ नहीं |फुर्सत कहाँ है |'' एक बार तो मुझे लगा कि जैसे कह रहे हों कि क्या मुसीबत है ?पिता जी ने इतनी लड़कियाँ पैदा कर दी|कहाँ -कहाँ जाएँ ?पैदा हो भी गई थीं तो एक घर में ब्याह देते |हमें दीपावली के तोहफे देने में आसानी होती | 
हद तो तब हो गई जब पिछले साल दो सहेलियों में दीपावली पर घमासान हो गया |वह भी तोहफे को ले कर |न जाने कब से मन में आग सुलघ रही थी जो दीपावली पर पटाखा बन कर फूटी |एक सहेली जरा मुहं फटहै |जब दूसरी उसके घर तोहफा देने गई तो उसने तोहफा उसके सामने ही खोल दिया और बोली -----''ये तुम क्या तोहफा लाती |इससे तो अच्छा है मत दिया करो |मै हमेशा तुम्हें हज़ार रूपये से ऊपर का तोहफा देती हूँ और तुम कभी 500 से ऊपर नहीं जाती |पिछली बार तुम्हारे तोहफे में से मिसेज़ एंड मिस्टर लाल का विजटिंग कार्ड निकला था |अगर किसी का तोहफा किसी को देना ही हो तो कार्ड तो निकाल देना चाहिए |उस दिन से तोहफों का आदान -प्रदान तो दोनों में बंद हुआ ही बोल -चाल भी बंद है | 
लोगों की इस तोह्फेबाज़ी से मुझे बहुत घबराहट होती है |मैं तो घर में रहकर सकून से दीवाली मनाती हूँ |जिसे मन किया फोन पर शुभकामनाएं दे दी |बस |क्या मिलता है इन पचड़ों में पड़ कर |दीवाली तोहफों का नहीं रौशनी का त्यौहार है |क्यों न अपने मन में थोड़ी रौशनी कर लें | 
-०-
संपर्क 
डॉ दलजीत कौर 
चंडीगढ़


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भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता (आलेख) - सुरेखा 'सुनील' दत्त शर्मा


भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता

(आलेख)
भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही विभिन्न पर्वों और त्योहारों को मनाया जाता रहा है। यदि कहां जाए कि भारतीय संस्कृति पर्व ,उत्सव व त्यौहारों में बसती है, तो अतिशयोक्ति न होगी। त्योहार उत्सव पर्व हमारी संस्कृति के मेरुदंड हैं। समाज में जब-जब स्थिरता आई उसकी प्रगति अवरुद्ध हुई, तभी उन्होंने उसे गति प्रदान करने की और मनुष्य को भविष्य के प्रति आस्थावान बनाने में योगदान दिया।
आज की सदी का मनुष्य इन पर्वों को रूढ़िवादिता का परिचायक मानने लगा है ,उसकी दृष्टि में यह तीज त्यौहार पुरातन ता के परिचायक हैं। इनमें आस्था रखने वाला मनुष्य पिछड़ा हुआ है। पुराने विचारों का है। उसे मॉडर्न सोसाइटी का अंग नहीं माना जाता परंतु आज वास्तव में क्या ऐसा है? नहीं! भारतवर्ष में मनाए जाने वाले प्रत्येक पर्व अपने ही देश के हैं वह सार्थक हैं।किसी भी छोटे बड़े त्योहारों की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता। इनकी सार्थकता को देखकर प्राचीन मुनियों की बुद्धिमत्ता पर आश्चर्यचकित हो जाना पड़ता है हमारे यहां के अधिकतर त्योहार ऋतु परिवर्तन के सूचक हैं। जैसे होली जाड़े की समाप्ति की सूचक है, दीपावली दशहरा वर्षा की समाप्ति और जाड़े के आगमन के सूचक हैं ,तो हरियाली तीज ,गर्मी की समाप्ति की घोषणा करती है। किसी भी ऋतु का परिवर्तन रोग के आगमन का सूचक भी होता है अतः घर की सफाई बहुत जरूरी हो जाती है। भारतीय लोग इस समय त्योहारों का आयोजन कर घर की स्वच्छता को सबसे जरूरी मानते हैं। अपने घर को अच्छे से साफ सफाई करके सजाते हैं। होली के पश्चात वैशाख मास की कृष्ण प्रतिपदा को मनाए जाने वाला ,बैसाखी का त्यौहार होता है। पंजाब में इसे वर्ष का प्रथम दिवस कहते हैं, इस अवसर पर लोग गंगा में स्नान करते हैं। त्योहारों का संबंध ऋतु परिवर्तन और नई फसल के आगमन की प्रसन्नता से भी है इस त्यौहार के माध्यम से लोग फसल काटने की प्रसन्नता को व्यक्त करते हैं, यह त्यौहार अनेक लोग एक साथ मनाते हैं अतः इसका अपना एक सामाजिक महत्व है!
आषाढ़ मास की प्रचंड गर्मी और वर्षा के आने की सूचना देने वाला त्यौहार हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार सावन महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस त्यौहार को लड़कियों का और सुहागन महिलाओं का त्योहार माना जाता है। सावन में ग्रीष्म से तपे धरती वर्षा की रिमझिम फुहारों से शीतलता प्राप्त करती हैं। झूले पर सभी सखी सहेलियां एक साथ लंबी पींगे बढ़ाते हैं लड़कियां अनोखी प्रसन्नता का अनुभव करती हैं ,मानो उनका बचपन फिर लौट आया हो! पहले समय में लड़की अधिकतर घर के अंदर ही काम में लगी रहती थी! शुद्ध वातावरण में भी उसे सांस लेने का मौका नहीं मिलता था इसलिए सावन के महीने में शादीशुदा महिलाएं भी अपने पिता के घर आकर उस स्वच्छ वायु में सांस लेने का और मौज मस्ती करने का सखी सहेलियों के साथ झूलने सजने संवरने का मौका मिलता था। हरियाली तीज के बाद श्रावणी पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है !इस त्यौहार को भाई-बहन बहुत ही हर्षोल्लास से मनाते हैं बहन ने भाई को राखी बांधती है और मंगल सूचक तिलक करती हैं, इसमें राखी वचन का प्रतीक है ,जो भाई के द्वारा बहन को दिया जाता है !कि अवसर आने पर वह बहन की रक्षा करेगा ,जैसे हुमायूं और कर्म वती का संबंध था, हुमायूं और कर्म वती का भाई बहन का संबंध राजनीतिक कारण से स्थापित किया गया था !यह तो सभी जानते हैं! रक्षाबंधन के समय के कुछ पश्चात भादो के महीने में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है, यह त्यौहार अन्याय और अत्याचार के शमन का प्रतीक है, जब कंस ने अत्याचार की अति कर दी थी तब कंस का वध करने के लिए कृष्ण ने जन्म लिया था। उसी को हम जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं, वर्षा काल की समाप्ति पर आश्विन शुक्ला दशमी को दशहरा मनाया जाता है, इसमें 9 दिन तक माता की पूजा होती है और देवी के व्रतों का आयोजन किया जाता है दसवें दिन राम के द्वारा रावण का वध करने के उपलक्ष में दशहरा मनाया जाता है! मानो यह याद दिलाया जाता हो कि बहुत अधिक विद्वान होने पर भी यदि व्यक्ति का अहंकार और बढ़ता जाता है, और वह पूर्णता अहंकारी हो जाता है, और दूसरों पर अत्याचार करने लगता है, तो उसका विनाश भी संभव है! मनुष्य को अहंकारी नहीं होना चाहिए, इस त्योहार पर छत्रिय अपने हथियारों को धोकर साफ करके उनकी पूजा करते हैं ।
दशानन विजय के उपरांत कार्तिक मास की अमावस्या को राम के अयोध्या लौटने के उपलक्ष में दीपावली मनाई जाती है ।यह हिंदुओं का आनंद और उल्लास से परिपूर्ण महान सांस्कृतिक त्योहार है ,इसको मनाए जाने के अनेक कारण बताए गए हैं कोई इसे समृद्धि का त्योहार मानता है, कोई इसका संबंध बुद्धि से जोड़ता है, वास्तव में यह भी ऋतु परिवर्तन का ही सूचक पर्व है, वर्षा ऋतु में घर में जो गंदगी और सीलन हो जाती थी इससे पूर्व उसे पूर्णता साफ कर दिया जाता था, दीपावली की सफाई का विशेष महत्व है ।सारे घर को बहुत अच्छे से साफ करके सजाया जाता है ।चूना होता था जिससे घर की पुताई करा कर घर के सारे कीटाणु मार दिए जाते थे घर को पूर्ण तहा कीटाणु रहित बना दिया जाता था और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी प्राचीन मनुष्यों ने इसका आयोजन किया है।
इस त्योहार पर रात में लक्ष्मी गणेश जी का पूजन किया जाता है ,घर के कोने कोने में सरसों के तेल के दीए जलाए जाते हैं, इसके पीछे भी संभवत यही हमारी भावना रहती है कि सरसों के तेल के धुएं से वातावरण शुद्ध होता है !और यह त्यौहार बहुत हर्षोल्लास से मनाया जाता है घर के प्रत्येक कोने में रोशनी की जाती है ,जिससे पूरा घर जगमग आ जाता है क्योंकि इसमें लोग एक दूसरे के घर आते जाते हैं तथा उन्हें भेंट भी देते हैं।
इस तरह अगर हम देखें तो भारतीय संस्कृति त्योहार बहुत हैं परंतु मनाए जाने वाला कोई भी त्यौहार निरर्थक या निरुद्देश नहीं है ,यह पर्व और त्योहार देश की आर्थिक दशा और ऋतु पर निर्भर है ,इन सभी का आयोजन सामाजिक राजनैतिक और स्वास्थ्य की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए किया जाता रहा है। अतः इन्हें रूढ़िवादिता और पारंपरिक ता से जोड़कर नकार देना सर्वदा अनुचित है यदि हमें अपनी संस्कृति को जीवित रखना है, और अपने बच्चों को हमें इन सब की महत्वता बतानी है, तो हमें उससे जुड़े सभी तीज त्यौहार आयोजनों की अनिवार्यता को समझना होगा, मानना होगा, और स्वीकार करना होगा, जिससे आने वाले हमारे कल, हमारे बच्चे इन त्योहारों के महत्व को समझें जाने और अपने जीवन में उतारें।।
-०-
सुरेखा 'सुनील' दत्त शर्मा
मेरठ (उत्तरप्रदेश)


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