*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Sunday, 26 January 2020

आह्वान (कविता) - अशोक 'आनन'




आह्वान
(कविता)
मिला है , न कुछ मिलेगा , तुम्हें देश बंद से ।
मौज़ूद हैं कुछ लोग आज भी जयचंद - से ।

उद्देश्य है बंद तो तुम ख़ून बंद करो ।
लूटमार , भ्रष्टाचार , तुम दहेज़ बंद करो ।
खंड - खंड करना चाहते हैं जो देश को -
सोचना ये उनका आज तुम बंद करो ।
बाग में तुम आज कुछ ऐसे फूल से खिलो -
महक उठे देश फिर केसरिया गंध - से ।

देश के विकास में आज अवरोध जो बना ।
पसरा है आज अंधेरा चहुंओर जो घना ।
दिनमान को उठाकर कंधों पर आज तुम -
साकार कर दो उजाले का तुम हर सपना ।

विश्व में आज तुम आदर्श कुछ ऐसे बनो -
सीख सारा विश्व सीखें आज फिर हिन्द से ।

जाति , भाषा भिन्न चाहे हमारा धर्म हो ।
प्रेम बसा हो जिसमें ऐसा हमारा मर्म हो ।
भला हो जिससे दुनिया में आज मानव का -
ऐसे ही हमारे दुनिया में नेक कर्म हों ।

एक साथ , एक सुर में , गाएं हम एक हैं -
पंजाब से , असम से , गाएं हम बंग से ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

-०-




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२६ जनवरी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभाकामनाएं

७१ वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक बढ़ियाँ एवं शुभकामनाएँ 
सादर प्रणाम
प्रस्तुत हैं 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर सृजन महोत्सव पटल प्रकाशित रचनाएं। सभी रचनाकार और पाठक गणों का हार्दिक अभिनंदन और आभार। अपनी रचनाओं को अधिकाधिक साहित्यिक मित्रों व व्हाट्सएप्प ग्रुप में शेयर करें ताकि आपकी रचना अधिक पाठकों तक पहुंचे।धन्यवाद
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
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★★ एकता की पहचान ★★ (कविता) - अलका 'सोनी'
मेरा भारत महान (कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'
भाईचारा (कविता) - डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया
ए भारत तुझे प्रणाम (कविता) - दिनेश चंद्र प्रसाद 'द...
आओ एकता का डोर बुने (कविता) - संगीता ठाकुर (नेपाल)
भारत देश महान (कविता) - सुमन अग्रवाल "सागरिका"
! ग्रेसी ! (लघुकथा) - डॉ विनीता राहुरीकर
'भारत माँ की जय' (कविता) राजू चांदगुडे
संडे का खून (लघुकथा) - गोविंद भारद्वाज
“हम भारत के लोग” (कृति चर्चा) - संदीप सृजन
ज़रा याद करें (कविता) - राजीव डोगरा
ऐ मेरे मेहबूब वतन (गीत) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'
गणतांत्रिक देश हमारा..... (कविता) - रामगोपाल राही...
!! मैं देश बदलने निकला हूँ !! (कविता) - अमन न्याती...
नया अभियान करें (राष्ट्रभक्ति बालगीत) - राजेंद्र श...
आये वतन पे खतरा (कविता) - रूपेश कुमार
हिंदुस्तान हमारा है (कविता) - अलका पाण्डेय
भारत माँ की जय (कविता) - विजयानंद विजय
हे...वीर (कविता) - गोविन्द सिंह चौहान
भारत की शान तिरंगा (कविता) -शुभा/रजनी शुक्ला
नन्ही कोशिश (कघुकथा) - डा. नीना छिब्बर
प्यारा वतन (कविता) - रश्मि लता मिश्रा
लिखूँ न लिखूँ (कविता) - सुशीला जोशी
आँख मेरी भर आती है (कविता) - अंजलि गोयल 'अंजू'
तिरंगा (कविता) - डॉ.नीलम खरे
राष्ट्रभक्ति (लघुकथा) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
तिरंगे का मान बढाये (कविता) - सुनील कुमार माथुर
मेरा भारत महान (कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'
गणतंत्र उबल रहा है (कविता) - श्रीमती सरिता सुराणा
सुभाषचन्द्र बोस (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'
दास्तान भारत की (ग़ज़ल) - महावीर उत्तराँचली
सिर्फ लाल... (कविता) - रूपेश कुमार
आ गया गणतंत्र दिवस (कविता) - डॉ. प्रमोद सोनवानी
मिट्टी में मिल जानी है (कविता) - सरिता सरस
बलिदानी (कविता) - गोविन्द सिंह चौहान
वतन हमारा (कविता) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

-०-

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★★ एकता की पहचान ★★ (कविता) - अलका 'सोनी'



★★ एकता की पहचान ★★
(कविता)
जन में, गण में, मन में बसे
कोटि -कोटि नमन में बसे
करती हूं वंदना मां भारती
तू हर हृदय और वर्ण में बसे।

मुश्किलों से पायी है आज़ादी
देकर कुर्बानियां आयी है आज़ादी
सांस तक मैं वार दूँ चरणों में तेरे
नई पहचान दिलायी है आज़ादी

हम सभी माँ भारती की संतान हैं
इस बात से फिर भी अनजान हैं
बढ़ रही है फूट जाने क्यों यहां
एकता ही रही जिसकी पहचान है।
-०-
अलका 'सोनी'
बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)

-०-

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मेरा भारत महान (कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'



बस शिकायत नहीं..
(कविता)
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
एक संग नाम लेना है।

हैं एक देश की संतानें बस,
सभी को मान देना है।।

इतनी महोब्बत हो कि निशां,
नफरत का मिट जाये।
हम सब हैं भारत वासी बस,
यही पैगाम देना है।।

विश्व के शिखर पर हमें भारत
का नाम चाहिये।
चोटी पर लहराता तिरंगा
आलीशान चाहिये।।

हिये वही पुरातन विश्व गुरु
का दर्जा भारत को।

फिर वही सोने की चिड़िया
वाला हिंदुस्तान चाहिये।।

शत शत नमन उन शहीदों को
जो देश पर कुर्बान हो गये।

वतन के लिए होकर बलिदान
वह बस बे जुबान हो गये।।

उनके प्राणों की कीमत पर ही
सुरक्षित है देश हमारा।

वह जैसे जमीन ऊपर उठ कर
आसमान हो गये ।।

अम्बर के उस पार जा कर,
नया हिंदुस्तान बनाना है।

भारत के गौरव चंद्रयान से,
चाँद को छू कर आना है।।

अंतरिक्ष की उड़ान से सम्पूर्ण,
मानवता को देना है संदेश।

सम्पूर्ण विश्व में भारत को,
हमें महान कहलाना है।।
-०-
पता:
एस के कपूर 'श्रीहंस'
बरेली (उत्तरप्रदेश) 

-०-

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भाईचारा (कविता) - डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया





भाईचारा
      (कविता)
विविधता में एकता ही
देश का प्यारा है नारा ,
विश्व बंधुत्व की भावना में है
हमारा न्यारा भाईचारा ।
जाति- पाँति, ऊँच-नीच,
धर्म-संप्रदाय का जहाँ नहीं बँटवारा ,
भावात्मक एकता में ही
अखण्ड भारत का है भाईचारा ।
देखो, देश की सरहद पर
आत्मीयता का सुन्दर मंदिर !
नहीं कोई अपना-पराया
वहाँ बेमिसाल है भाईचारा ।
अपनत्व का सम्बन्ध
संसार में है सबसे न्यारा ,
मानव जीवन की अनमोल
पूँजी है प्यारा भाईचारा !
छोटे-बड़े प्रसंगों को
उठाते हैं अपने कंधों पर ,
कर्त्तव्य-निष्ठा का धर्म
निभाता है जग में भाईचारा ।
संघर्षी झंझावात, दुश्मनों के
हमले के रक्षक हमारा ,
तन-मन से देश को
समर्पित है हमारा भाईचारा ।
प्रेम के बोल, उष्मा सा स्पर्श
करते हैं तन में रक्त संचार ,
सुख-दु:ख की जड़ी बूटी सा है
स्वस्थ जीवन भाईचारा ।
मंजिल प्राप्ति की सक्षम
आँख व पाँख का है जीवनाधार ,
टूटे मनोबल के हौसले की
उम्मीदें हैं भाईचारा ।
"कैसे हो दोस्त ! चिन्ता न करो,
हम साथ साथ हैं यार !"
सुन के पुलकित होता मन
जो जीवन उर्जा है भाईचारा ।
शिवमय कर्म,त्याग,समर्पण का
ताज है सिर पर ,
शौर्य,ऐक्य बंधुत्व का
नाज है भाईचारा ।
ईश्वर खजाने की है ज्योति,
पींड, रक्त एक ही प्रकार !
फिर भी क्यों उलझे दंगे-फसाद में
भूल के हम भाईचारा !!
-०-
पता:
डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया
सौराष्ट्र (गुजरात)

-०-

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ए भारत तुझे प्रणाम (कविता) - दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'



ए भारत तुझे प्रणाम
(कविता)
ये भारत तुझे प्रणाम बार-बार प्रणाम
हजार बार प्रणाम अनगिनत बार प्रणाम
बनी रहे शान तेरी चाहे चली जाए जान मेरी
ऐसे विचार जहाँ के लोगों का हो
उस भूमि को मेरा सलाम
ये भारत तुझे बार-बार प्रणाम
माँ से भी प्यारी मातृभूमि होती है
तभी तो माएं अपने लाल
तुझ पर निछावर करती है
वैदिक काल से ही हो तुम महान
इस बात को जानता सकल जहान
यहीं पर जन्मे बुद्ध, नानक, राम और श्याम
हे भारत तुझे बार-बार प्रणाम
यहाँ की संस्कृति है बेमिसाल
अतिथि देवो भवः बना महान
वसुधैव कुटुंबकम का दिया संदेश
यहां की मिट्टी है बड़ी अनोखी
देवता भी करना चाहे यहां विश्राम
हे भारत तुझे बार -बार प्रणाम
कल करती बहती नदियां तेरी
हरियाली से भरे जंगल पर्वत विशाल
पांव पखारे समुद्र जहाँ
ऐसा मनोरम दृश्य और कहाँ
इंडिया हिंदुस्तान तेरा ही नाम
ये भारत तुझे बार-बार प्रणाम
तेरी आन बान शान की खातिर
कितने वीर शहीद हुए कितनी
मांओं की कोख उजड़ी
कितनी दुल्हन विधवा बनी
कितनी बहने रोती रही लेकर भैया का नाम
येभारत तुझे बार-बार प्रणाम
हँसते-हँसते फाँसी पर चढ़ने वाले तेरे बेटे यहाँ अनेकता में एकता की विशेषता यहां
सभी धर्मों का मेल होता यहां
सुबह को अजान तो शाम को आरती यहाँ
होती रहती है आठों याम
ये भारत तुझे बार-बार प्रणाम
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक
कच्छ से लेकर कोहिमा तक
कितना सुंदर है तस्वीर तेरा
भाव राग ताल का मिश्रण जीवन तेरा
"दीनेश"का तुझे शत बार प्रणाम
बार- बार प्रणाम
ए भारत तुझे बार-बार प्रणाम-०-
पता: 
दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
-०-


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आओ एकता का डोर बुने (कविता) - संगीता ठाकुर (नेपाल से )




आओ एकता का डोर बुने 
(कविता)
राष्ट्र हमारी माता है
आओ मिलकर हम
गुणगान करे ।
जिसने हमको है
जन्म दिया
आओ हम उनको
तैयार करे ।
उनके आंगन के बगिया में
हम रंग-बिरंगे फूल रोपे
गंदगी और विकारों से
आओ धरती हम
स्वच्छ करे ।
सुन्दर , सुदृढ भविष्यो का
आओ हम
उत्थान करे ।
गरिब-कमजोर,नारी अत्यारों को
आओ मिलकर
सब दूर करे।
मानव केा मानवभय त्रासों से
अपनी धरती को
मुक्त करे ।
स्वतन्त्र -सहयोग की भावना से
राष्ट्र अपना सिंचित करे।
संविधान दिवस अमर रहे
हर नागरिक नियम
पालन करे।
भारत-नेपाक के अटूट मित्रता की
आओ मिलकर हम गीत गायें
धरती पर संतती सब मिलकर
राष्ट्र माता का हम
गान करे ।
सुन्दर राष्ट्र निर्माणो का
हर संतती का
कर्तव्य बने ।
26 जनवरी अमर रहे
आओ मिलकर जयकार करे
राष्ट्र के नन्हे-मुन्हे मिलकर
अपनी मां को खुब साजे
आओ हम एकता का डोर बुने।-०-
संगीता ठाकुर
ललितपुर (काठमांडू - नेपाल)



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भारत देश महान (कविता) - सुमन अग्रवाल "सागरिका"




भारत देश महान
(कविता)
हम भारत की संतान है भारत की गाथा गाएंगे।
केसरिया, सफेद, हरा, तिरंगा झंडा फहराएंगे।

वतन के वास्ते शहीद हुए शत-शत उन्हें प्रणाम है,
सुभाष, भगतसिंह, सुखदेव उनको मेरा सलाम है।

सत्मार्ग पर चलकर हमको देश का तम मिटाना है,
भारतवासियों को देश के प्रति निष्ठावान बनाना है।

देशभूमि के कण-कण में देशभाव मन में जगायेंगे,
हम भारतवासी एकजुट होकर ज्ञानदीप जलाएंगे।

देश के लिए जान लुटा गए वो सच्चे वीर जवान है,
हे भारत के वीर सपूतों तुम पर हमें अभिमान है।

अमर शहीदों की कुर्बानी हम व्यर्थ नही जाने देंगे,
जन-गण-मन का गायन गाकर राष्ट्रध्वजा लहरायेंगे।

देश सुरक्षा की ख़ातिर खड़े रहे सदा सीना-तान,
भारत के वीर सपूतों का हम सब करते हैं सम्मान।

गर्व हमें इस पावन मिट्टी पर भारत देश महान है।
देश की आजादी शहीदों की देन तर्पण उनके प्राण है,

गणतंत्र पर ध्वजा फहराएं, करें वीरों का स्मरण।
अश्रुपूरित श्रंद्धाजलि देकर करें शहीदों को नमन।
-०-
सुमन अग्रवाल "सागरिका" 
आगरा (उत्तर प्रदेश)

-०-


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'भारत माँ की जय' (कविता) राजू चांदगुडे



गुरु
(कविता)
कुर्बान हुए हर देश भक्त की,
रुह अभी भी गाती है।
'भारत माँ की जय' कहने की,
गूँज सुनाई देती है।।

इस देश कि हर कहानी वो,
रग-रग में ज्योत जलाती है।
और देख के उंचे तिरंगे को,
इस जिगर मे जान आती है।।

भाषाये भले हि अलग अलग,
पर सोच यही कहलाती है।
मानवताही है धरम यहा का,
यही यहा कि जाती है।।

पुरखोने खूब बना दिया,
कुदरत भी बहुत सजाती है।।
ये देश नही, ये जन्नत है,
अब दुनिया भी कह जाती है।।

ऐसे ही रहे मेरा देश सदा,
हर बात यहां की भाती है।
दुश्मन की भी मिट्टी मिटाने को,
हर एक की चौड़ी छाती है।।
-०-
पता:
राजू चांदगुडे
पुणे (महाराष्ट्र)

-०-

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संडे का खून (लघुकथा) - गोविंद भारद्वाज

संडे का खून
(लघुकथा)
नव साल का कलैण्डर देखते ही बडे़ बाबू का माथा ठनका। कुछ देर के लिए वे माथा पकड़ कर बैठ गये। उनका उतरा चेहरा देखकर छोटे बाबू ने पूछा,"क्या हुआ बडे़ बाबू.. ये अचानक परेशानी सी कैसे छा गयी चेहरे पर ...कलैण्डर देखते ही?" "परेशानी की तो बात ही है। एक संडे का खून हो गया अपना।" बडे़ बाबू ने कलैण्डर को एक तरफ पटकते हुए कहा।
"एक संडे का खून हो गया... मैं कुछ समझा नहीं बडे़ बाबू?" छोटे बाबू ने फिर पूछा। बडे़ बाबू ने टेढा़ सा मुँह बनाते हुए कहा,"अरे यार इस बार गणतंत्र दिवस संडे का पड़ रहा है। संडे की छुट्टी होना तो गयी भाड़ में,ऊपर से हम सब को ऐसी कडा़के की सर्दी में अपने दफ्तर आना पडे़गा, ध्वजारोहण के लिए।" बडी़ देर से उसकी बातें सुन रही पास में बैठी एक महिला सहायिका ने उसे सुनाते हुए कहा,"इस देश को गणतंत्र बनाने के लिए हमारे देश के देशभक्त शहीदों ने कभी कोई वार नहीं देखा,ना ही सर्दी - गर्मी और बरसात देखी। देखा तो उन्होनें सिर्फ देश को स्वतंत्र कराने का सपना। आप जैसों को आज संडे के दिन दफ्तर आने में तकलीफ हो रही है। अपने गणतंत्र पर गर्व करने की बजाय एक संडे की छुट्टी खराब होने की चिंता कर रहे हो। इसे संडे का खून बता रहे हो।" उसका सबक सुन के बडे़ बाबू का चेहरा शर्म से झुका हुआ था।
-0-
पता:
गोविंद भारद्वाज
अजमेर राजस्थान


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“हम भारत के लोग” (कृति चर्चा) - संदीप सृजन


“हम भारत के लोग”
भारतीय गणतंत्र की दास्तान कहती कृति
(आलेख)
भारतीय गणतंत्र की स्थापना के 70 वें साल में वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद् डॉ. देवेन्द्र जोशी की हाल ही में प्रकाशित हुई कृति “हम भारत के लोग” में उनके द्वारा गणतंत्र की स्थापना से लेकर अब तक की यात्रा को सप्रमाण सचित्र उभारा गया है। पुस्तक की शुरूआत हम भारत के लोग से शुरू होने वाली भारतीय संविधान की प्रस्तावना से होती है, इस कारण पुस्तक को नाम दिया गया है “हम भारत के लोग”। पुस्तक के आमुख में भारतीय संविधान की विशेषताएं दी गई है। वहीं पुस्तक के मूल में भारतीय गण है जिसकी वर्तमान स्थिति को अलग - अलग नजरिए से पाठकों के समक्ष लाने की कोशिश की गई है। 

डॉ देवेन्द्र जोशी की नितान्त मौलिक परिकल्पना पर आधारित इस अत्यंत श्रमसाध्यपूर्ण कृति में उनकी प्रखर कलमकारी के दर्शन होते हैं। गणतंत्र के गण की नब्ज को लेखक ने 20 भारतीय चरित्रों के माध्यम से टटोलने की रचनात्मक चेष्टा की है। पुस्तक गणतंत्र के गण के रूप में देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति से लेकर आम जन तक सबकी खबर लेती है। पहली पड़ताल में डॉ जोशी प्रश्न उठाते हुए लिखते है- “ देश में अरबपतियों की संख्या सिर्फ 101 ही क्यों है? देश में प्रतिवर्ष अर्जित की जाने वाली कुल सम्पत्ति के 73 प्रतिशत हिस्से पर केवल 1 प्रतिशत अमीरों का ही कब्जा क्यों है?”

कृति मे 20 अध्यायों के माध्यम से भारत की वर्तमान स्थिती पर प्रकाश डाला गया है जिनके नाम किसान, मजदूर, सैनिक, पुलिस, गरीब - अमीर,आदिवासी, कैदी, डॉक्टर, नेता, बाल मजदूर, नवजात शिशु, विधवा, महिला सुरक्षा, युवा, वृद्ध, साधु, भीड, जनता और राष्ट्रपति दिए गये है, जो कि सभी एक शब्द के है। और भारत के अभिन्न लोग है। भारत निर्माण की बात यदी की जाए तो इन सभी के योगदान के बगैर भारत का निर्माण संभव नहीं है। लेकिन भारत में गणतंत्र की स्थापना के 70 साल बाद भी अगर किसान आत्म हत्या कर रहे है, युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं, महिलाएं बलात्कार की शिकार हो रही है, मजदूर मेहनताने के लिए संघर्षरत हैं, गरीब - अमीर की खाई चौडी होती जा रही है, निरीह लोग भीड की हिंसा क शिकार हो रहे हैं,विधवाएं बदतर जिन्दगी जीने को अभिशप्त हैं, साधु संत समाज को दिशा देनेके बजाय अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं, नेता अपनी कुर्सी बचाने और डॉक्टर मरीज का खून चूसने में लगे हैं तो प्रश्न उठना लाजमी है कि आखिर कब परिपक्व होगा भारत का गणतंत्र ? 

डॉ जोशी की यह पुस्तक सवाल ही नहीं खडे करती उनका समाधान भी देती है। गणतंत्र की दास्तान होने के बावजूद यह एक प्रामाणिक कृति है क्योंकि हर बात पूरी जिम्मेदारी के साथ भारत सरकार के प्रमाणित आंकडों के आधार पर कलमबद्ध की गई है। सीधी सरल भाषा, रोचक शैली और उत्कृष्ट कलमकारी के साथ प्रस्तुत यह पुस्तक हम भारत के लोग का यथार्थ चित्र उपस्थित करने के साथ ही पाठकों के ज्ञान में वृद्धि भी करती है। हम भारत के लोग को गणतंत्र के 70 वें साल में गण की दास्तान को लिपिबद्ध करने की एक अभिनव कोशिश के रूप में स्वीकारा जाना चाहिए। डॉ जोशी इस कृति को सामाजिक और राजनैतिक जागरुकता पैदा करने के उद्देश्य से समाज को सौप रहें है। यह कृति आज के लिए लिए है, वर्तमान स्थिती पर है, जो कि भारत के भविष्य को उज्जवल बनाने का मार्गदर्शन करती नजर आती है।
-०-
संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
-०-



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ज़रा याद करें (कविता) - राजीव डोगरा




ज़रा याद करें
(कविता)
आओ मिलकर विचारों की
ज़रा आग जलाए।
डूब रही है जो देश की हस्ती
ज़रा उसको रोशनाए।
मर मिटे है जो अपने देश के लिए
ज़रा उनकी याद
सब को मिल करवाएं।
जो कहते हैं यौवन आता है
एक बार मस्ती का।
ज़रा उनको भगत सिंह के
आज तक गूंजते
नव यौवन की कहानी सुनाएं।
जो कहते है नहीं मिटती हिंसा
अहिंसा का पालन करने से।
ज़रा उनको गांधी जी के
विचारों की याद दिलाएं।
जो कहते है धर्म ही धर्म का दुश्मन है
उनको गुरु तेग बहादुर जी का,
हिंदू धर्म के लिए किया गया
ज़रा बलिदान याद करवाएं।
जो कहते हैं औरतें बस
पांव की जूती होती है,
उनको रानी लक्ष्मीबाई जी की
रणभूमि में चमकती
ज़रा तलवार दिखलाए।
जो कहते हैं मुर्दों में जान
नहीं फूंकी जा सकती,
ज़रा उन सब को मिलकर
गुरु गोविंद सिंह जी की
लिखी "चंडी की वार"सुनाएं।
-०-
राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-




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ऐ मेरे मेहबूब वतन (गीत) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'




ऐ मेरे मेहबूब वतन
(गीत)
तेरी सोने की जमीं है तेरा चांदी का गगन।
मेरे मेहबूब वतन, ऐ मेरे महबूब वतन ।।
*******
तुझपे कुर्बान मेरीजान दिल की हर धडकन।
एक तू ही तेरी पहचान, कहता मेरा मन ।।
करले स्वीकार मेरा प्यार मेरा ये वंदन ।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
*****
मुझको मखमल सी ये हरियाली बहुत भाती है।
मेहकी मेहकी हुई हर शाख नजर आती हैं ।।
गुनगुनाते हैं सुबह शाम तेरे रंगी चमन ।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
******
तेरी मिट्टी तेरा पानी तेरी चंचल वायु ।
मुफीद कितनी है मोहक ये तेरी जलवायु।।
द्वारा यौवन के खड़ी जैसे नवेली दुल्हन ।
मेरे महबूब वतन ,ऐ मेरे महबूब वतन ।।
*******
झिलमिलाते हुए इन रंगीं नजारों की कसम ।
खिलखिलाते हुए अंबर के सितारों की कसम।।
पूरी दुनिया को भा गया है तेरा चैनो अमन ।
मेरे मेहबूब वतन ,ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
*******
आग सीने में लिए घूमता है जल प्यारा ।
सिंचाई करता है करता है दूर अंधियारा।।
दूर करती है दर्द सारे तेरी गंगो जमन ।
मेरे मेहबूब वतन ए मेरे महबूब वतन ।।
******
तेरे खेतों में मोतियों की फसल क्या कहने।
नीली झीलों के ये रंगीन कमल क्या कहने।।
रसीले झरनों का करता है पवन आलिंगन।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
******
जिन्दगी धन्य हो जाए मेरी तस्कीन मिले।
राष्ट्र की अपने अगर दफ्न को जमीन मिले।।
तेरे आँचल का मिले औढ़ने को मुझको कफन।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।  -0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

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सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

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