“हम भारत के लोग”
भारतीय गणतंत्र की दास्तान कहती कृति
(आलेख)
भारतीय गणतंत्र की स्थापना के 70 वें साल में वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद् डॉ. देवेन्द्र जोशी की हाल ही में प्रकाशित हुई कृति “हम भारत के लोग” में उनके द्वारा गणतंत्र की स्थापना से लेकर अब तक की यात्रा को सप्रमाण सचित्र उभारा गया है। पुस्तक की शुरूआत हम भारत के लोग से शुरू होने वाली भारतीय संविधान की प्रस्तावना से होती है, इस कारण पुस्तक को नाम दिया गया है “हम भारत के लोग”। पुस्तक के आमुख में भारतीय संविधान की विशेषताएं दी गई है। वहीं पुस्तक के मूल में भारतीय गण है जिसकी वर्तमान स्थिति को अलग - अलग नजरिए से पाठकों के समक्ष लाने की कोशिश की गई है।
डॉ देवेन्द्र जोशी की नितान्त मौलिक परिकल्पना पर आधारित इस अत्यंत श्रमसाध्यपूर्ण कृति में उनकी प्रखर कलमकारी के दर्शन होते हैं। गणतंत्र के गण की नब्ज को लेखक ने 20 भारतीय चरित्रों के माध्यम से टटोलने की रचनात्मक चेष्टा की है। पुस्तक गणतंत्र के गण के रूप में देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति से लेकर आम जन तक सबकी खबर लेती है। पहली पड़ताल में डॉ जोशी प्रश्न उठाते हुए लिखते है- “ देश में अरबपतियों की संख्या सिर्फ 101 ही क्यों है? देश में प्रतिवर्ष अर्जित की जाने वाली कुल सम्पत्ति के 73 प्रतिशत हिस्से पर केवल 1 प्रतिशत अमीरों का ही कब्जा क्यों है?”
कृति मे 20 अध्यायों के माध्यम से भारत की वर्तमान स्थिती पर प्रकाश डाला गया है जिनके नाम किसान, मजदूर, सैनिक, पुलिस, गरीब - अमीर,आदिवासी, कैदी, डॉक्टर, नेता, बाल मजदूर, नवजात शिशु, विधवा, महिला सुरक्षा, युवा, वृद्ध, साधु, भीड, जनता और राष्ट्रपति दिए गये है, जो कि सभी एक शब्द के है। और भारत के अभिन्न लोग है। भारत निर्माण की बात यदी की जाए तो इन सभी के योगदान के बगैर भारत का निर्माण संभव नहीं है। लेकिन भारत में गणतंत्र की स्थापना के 70 साल बाद भी अगर किसान आत्म हत्या कर रहे है, युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं, महिलाएं बलात्कार की शिकार हो रही है, मजदूर मेहनताने के लिए संघर्षरत हैं, गरीब - अमीर की खाई चौडी होती जा रही है, निरीह लोग भीड की हिंसा क शिकार हो रहे हैं,विधवाएं बदतर जिन्दगी जीने को अभिशप्त हैं, साधु संत समाज को दिशा देनेके बजाय अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं, नेता अपनी कुर्सी बचाने और डॉक्टर मरीज का खून चूसने में लगे हैं तो प्रश्न उठना लाजमी है कि आखिर कब परिपक्व होगा भारत का गणतंत्र ?
डॉ जोशी की यह पुस्तक सवाल ही नहीं खडे करती उनका समाधान भी देती है। गणतंत्र की दास्तान होने के बावजूद यह एक प्रामाणिक कृति है क्योंकि हर बात पूरी जिम्मेदारी के साथ भारत सरकार के प्रमाणित आंकडों के आधार पर कलमबद्ध की गई है। सीधी सरल भाषा, रोचक शैली और उत्कृष्ट कलमकारी के साथ प्रस्तुत यह पुस्तक हम भारत के लोग का यथार्थ चित्र उपस्थित करने के साथ ही पाठकों के ज्ञान में वृद्धि भी करती है। हम भारत के लोग को गणतंत्र के 70 वें साल में गण की दास्तान को लिपिबद्ध करने की एक अभिनव कोशिश के रूप में स्वीकारा जाना चाहिए। डॉ जोशी इस कृति को सामाजिक और राजनैतिक जागरुकता पैदा करने के उद्देश्य से समाज को सौप रहें है। यह कृति आज के लिए लिए है, वर्तमान स्थिती पर है, जो कि भारत के भविष्य को उज्जवल बनाने का मार्गदर्शन करती नजर आती है।
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संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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