कोई है जो फेंके रोटी
(कविता)
कोई है जो फेंके रोटी, कोई बीन कर खाता है।
कोई पानी ब्यर्थ बहाएं, कोई प्यासा रह जाता है।
गजब है लीला इश्वर की, मैं समझ नहीं कुछ पाता हूँ।
फेंकने वाला रोता और, बीनने वाला मुस्काता है।
जो पैसा खूब कमाते हैं, रोटी की कीमत क्या जाने।
कचरा चुग कर बेचने वाला, रोटी का दाम बताता है।
समझ नहीं पाते अमीर हैं, कभी गरीब की पीड़ा को।
पर गरीब सबके ही दुख में, हस कर साथ निभाता है।
सुखी कहा धनवान है वो जो, हल्की पीड़ा न सह पातें हो।
सुखी तो होता है गरीब जो, हर गम हस कर सह जाता है।
कोई पानी ब्यर्थ बहाएं, कोई प्यासा रह जाता है।
गजब है लीला इश्वर की, मैं समझ नहीं कुछ पाता हूँ।
फेंकने वाला रोता और, बीनने वाला मुस्काता है।
जो पैसा खूब कमाते हैं, रोटी की कीमत क्या जाने।
कचरा चुग कर बेचने वाला, रोटी का दाम बताता है।
समझ नहीं पाते अमीर हैं, कभी गरीब की पीड़ा को।
पर गरीब सबके ही दुख में, हस कर साथ निभाता है।
सुखी कहा धनवान है वो जो, हल्की पीड़ा न सह पातें हो।
सुखी तो होता है गरीब जो, हर गम हस कर सह जाता है।
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अजय कुमार व्दिवेदी
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
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