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Sunday 23 February 2020

कोई है जो फेंके रोटी (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी


कोई है जो फेंके रोटी
(कविता)
कोई है जो फेंके रोटी, कोई बीन कर खाता है।
कोई पानी ब्यर्थ बहाएं, कोई प्यासा रह जाता है।

गजब है लीला इश्वर की, मैं समझ नहीं कुछ पाता हूँ।
फेंकने वाला रोता और, बीनने वाला मुस्काता है।

जो पैसा खूब कमाते हैं, रोटी की कीमत क्या जाने।
कचरा चुग कर बेचने वाला, रोटी का दाम बताता है।

समझ नहीं पाते अमीर हैं, कभी गरीब की पीड़ा को।
पर गरीब सबके ही दुख में, हस कर साथ निभाता है।

सुखी कहा धनवान है वो जो, हल्की पीड़ा न सह पातें हो।
सुखी तो होता है गरीब जो, हर गम हस कर सह जाता है।
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-



***
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कुहासा (मुक्तक) - अशोक 'आनन'


कुहासा
(मुक्तक)
तना धरा पर -
घना कुहासा 
       नयनों -
       मोतियाबिंद हुआ है 
       समक्ष सभी के -
       बस धुआं है 
दिखे आंख से -
नहीं ज़रा - सा 
       सड़क बीच -
       जो लाश पड़ी है 
       रात उसी पर -
       बर्फ गिरी है 
बचपन कांपे -
आज फुहा - सा 
       जिनके तन पर -
       मफ़लर - जर्सी 
       उनके ताने -
       सुनती सर्दी 

मौसम पाज़ी -

आज मुआ - सा 
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

-०-




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तुम बिन जिंदा कैसे रहूँ (कविता) - मोनिका शर्मा

तुम बिन जिंदा कैसे रहूँ
(कविता)
तुम को खोकर तुम्हीं  को पाना
यह दर्द बड़ा नासूर है।।
तुमको तुम ही से चुरा ना
यह दर्द बड़ा नासूर है।।
मोहब्बत यह एक तरफा है
तुमको यह जताना
बड़ा नासूर है ।।
इस दर्द में रहकर
दर्द का मजा पाना
बड़ा नासूर है।।
इंतजार पल पल का तुम्हारा होता है
जो ना दिखो तुम, अगले पल
तुम बिन जिंदा रहना
नासूर है ।।
नहीं करती यह उम्मीद तुमसे
कि तुम मेरे बनो
मगर तुम बिन
मुझको रहना नासूर है।।
-०-
पता:
मोनिका शर्मा
गुरूग्राम (हरियाणा)

-०-

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अस्पताल के फेरे (व्यंग्य रचना) - श्रीमती सुशीला शर्मा

अस्पताल के फेरे
(व्यंग्य रचना)
ईश्वर इस द्वार के फेरे किसी को ना लगवाए ।नरक -स्वर्ग के इस विशाल भवन की भूल-भुलैया में मरीज ऐसा गुम जाता है कि जांचों के मायाजाल में अपनी असली बीमारी तो भूल ही जाता है । रिपोर्टें आते ही नई नई लघु बीमारियाँ और पता चल जाती हैं जिससे वो स्वयं को आजीवन मरीज मान बैठता है ।सही इलाज हो गया तो स्वर्ग वर्ना नरक तो भुगतना ही होगा ।
यदि आपने अपना चिकित्सा बीमा करवा रखा है तो सच मानिए कि किसी बड़े अस्पताल में जाते ही आपकी ऐसी आव भगत होगी जैसे लक्ष्मी स्वयं उनके द्वार पर चलकर आई है ।बीमारी भले ही छोटी सी हो लेकिन डॉक्टर उसके ऐसे नामों से आपका परिचय करवाएँगे जो कभी आपने सपने में भी नहीं सुने होंगे ।आज के डाक्टर मरीज की नब्ज देखने या हाथ लगाकर बीमारी बताने का हुनर तो रखते ही नहीं ।बीमारी सुनते ही हजारों की जाँचे लिखकर मरीज और घरवालों की आधी कमर तोड़ देते हैं ।जाँचें करवाने में मरीज और उसकी सुश्रुषा करने वाला विभिन्न जाँच शालाओं के इतने भ्रमण कर लेता है कि यदि पहले इतनी घुमाई करता तो शायद बीमार ही नहीं पड़ता ।खैर यहाँ के सारे काम राजा शाही होते हैं ।एक दिन खून देकर आओ, दूसरे दिन रिपोर्ट लाओ, तीसरे दिन ईसीजी आदि आदि ।इस जाल से बाहर आकर हाथ में रिपोर्टों का पुलिंदा लिए जब डॉक्टर के पास जाओगे तो उसके चेहरे की रौनक देखते ही बनती है कि अब ये पोषित बकरा जल्दी हलाल होने को तैयार है और बस फिर क्या आपको शाही बीमारी के साथ सबसे पहले "आई सी यू "कहकर यमद्वार के भीतर प्रवेश दे दिया जाएगा।अंदर कोप भवन में आपके सम्पूर्ण शरीर की जाँचें होंगी ।बीमारी पकड़ में आ जाए तो आपकी किस्मत वर्ना दाए की जगह बाएँ अंग का इलाज हो जाएगा ।
डाक्टर को हमने देवदूत माना है इसलिए थोड़ी सी शारीरिक व्यथा होते ही उनकी शरण में चले जाते हैं फिर वो 'तारे या मारे ' उसकी कृपा पर निर्भर है ।बाबा रामदेव जी बेचारे आँख को जोर दे देकर प्रकृति से जुड़ने की हिदायत देते हैं ।आयुर्वेद की जड़ी-बूटी खाने को कहते हैं लेकिन आधुनिक शरीर बिना कृत्रिम साँस और ग्लूकोज की नली लगाए बिना ठीक ही नहीं होता ।खानपान, रहन-सहन, दिनचर्या को अव्यवस्थित करके हमने अपने पैर खुद कुल्हाड़ी मारी है तो आए दिन अस्पताल रूपी यम द्वार के दर्शन तो करने ही होंगे ।
स्वस्थ रहें, मस्त रहें,यही कामना करती हूँ ।
-०-
पता:
श्रीमती सुशीला शर्मा 
जयपुर (राजस्थान) 
-०-


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हिन्दु–मुस्लिम (कविता) - संगीता ठाकुर (नेपाल)


हिन्दु–मुस्लिम
(कविता)
हे हिन्दु–मुस्लिम क्यूँ लड़ते हो ?
अपने ही भाई–भाई में
हम जाति चाहे जो भी हो
पर पुत्र है एक ही साई के ।।

कभी पूछा है उन माताओं से
जिसने दिया है जन्म तुम्हे
खूद मृत्यु के मुख में पड़कर
जिसने अमृतदान दिया तुम्हे ।।

माँ के संतान को जब करते हो छल्ली
क्या अन्तरमन नही दुःखता तेरा ?
क्या अपने संतती को भी कर सकते हो ?
जैसे करते हो माँ ! के संतती छल्ली ।।

जो मानव–मानव में द्वेश कराये
वह कैसा है धर्म यहाँ
हे मानव ! खूद पर दया करो
मत कोख उजारो माता का ।।

आओ हम कुछ संकल्प करे
मानव –मानव से प्रेम करे
इस धरातल पर हम मिलजुल कर
आओ राष्ट्र उत्थान करे
जीवन में उच्च, सत्यकर्म करे ।।-०-
संगीता ठाकुर
ललितपुर (काठमांडू - नेपाल)



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