हिन्दु–मुस्लिम
(कविता)
हे हिन्दु–मुस्लिम क्यूँ लड़ते हो ?
अपने ही भाई–भाई में
हम जाति चाहे जो भी हो
पर पुत्र है एक ही साई के ।।
कभी पूछा है उन माताओं से
जिसने दिया है जन्म तुम्हे
खूद मृत्यु के मुख में पड़कर
जिसने अमृतदान दिया तुम्हे ।।
माँ के संतान को जब करते हो छल्ली
क्या अन्तरमन नही दुःखता तेरा ?
क्या अपने संतती को भी कर सकते हो ?
जैसे करते हो माँ ! के संतती छल्ली ।।
जो मानव–मानव में द्वेश कराये
वह कैसा है धर्म यहाँ
हे मानव ! खूद पर दया करो
मत कोख उजारो माता का ।।
आओ हम कुछ संकल्प करे
मानव –मानव से प्रेम करे
इस धरातल पर हम मिलजुल कर
आओ राष्ट्र उत्थान करे
जीवन में उच्च, सत्यकर्म करे ।।-०-
संगीता ठाकुर
ललितपुर (काठमांडू - नेपाल)
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