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Thursday, 17 December 2020

कोरोना कहर (दोहे) - मोती प्रसाद साहू

 

कोरोना कहर
(दोहे)
कोविड नाइंटीन से, अवगत हैं सब लोग।
दवा नहीं इसकी अभी, बढ़ता जाता रोग।।१।।

निकला चीन वुहान से, पहुंचा पश्चिम देश।
आते जाते लोग ही, हुए डाकिया भेष।।२।।

इटली स्पेन अमरीका, सर्वाधिक जन हानि।
त्राहि त्राहि सब कर रहे, कैसी विपदा आनि।।३।।

दस अरू आठ लाख हैं, निगरानी में आज।
एक लाख पर गिर चुकी, क्रूर मौत की गाज।।४।।

श्वसन तंत्र का संक्रमण, जाकर करे‌ विषाणु।
नाक चले ज्वर भी बढ़े, ये लक्षण पहचानु।।५।।

इसे मिले संजीवनी, भीड़ भाड़ में मेल।
आओ तोड़े श्रृंखला, बढ़े न आगे खेल।।६।।

बाहर से आएं तभी, धुल लें अपने‌ हस्त।
साबुन‌ सेनेटाइजर, बड़े सहायक शस्त्र।।७।।

संकट कहे पुकार के , बनो प्रकृति का भक्त।
भक्ष्याभक्ष्य विचार लो, शाकाहार सशक्त।।८।।

रेल रुकी बसयान भी, वायुमार्ग संक्षिप्त।
बने रहें घर‌ आपने, तनिक न‌ हों विक्षिप्त।।९।।

अखिल विश्व चर्चा यही, बंद हुआ व्यापार।
अर्थव्यवस्था के लिए, स्वस्थ नहीं आसार।।१०।।

निकलो घर से जब कभी, आवश्यक लख‌ काज।
दूरी हो दो व्यक्ति में , बहुत जरुरी आज।।११।।
-०-
मोती प्रसाद साहू 
अल्मोड़ा (उत्तराखंड)

-०-

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निशब्द (लघुकथा) - बजरंगी लाल यादव

    

निशब्द
(लघुकथा)
" चंदा बिटिया! यह लो... गाय को रोटी खिला दो "
" मांँ! एक रोटी और दो ना, बाहर खड़े मोती को भी दे दूं"
" अरे नहीं...! तेरे बाबूजी खाना खाने के बाद उसे जूठन डाल देंगे "
" मांँ! गाय को निरा रोटी और कुत्ते को जूठन? यह भेद क्यों? जबकि दोनों तो जानवर ही हैं? "
" बेटी, गायें तो हमें दूध देती हैं "
" मगर मांँ! कुत्ते भी तो अपने मालिक के बहुत वफादार होते हैं और घर के विश्वसनीय चौकीदार भी...!"
" किंतु बेटी! गाय सदियों से ही पूजनीय और सदा हमारे समाज के लिए उपयोगी रही है, इसलिए इसे गौमाता भी कहा जाता है "
तो मांँ...! फिर यह गौमाता को हम कसाई- खाने में क्यों भेज देते हैं ?" बेटी के आख़िरी सवाल से मांँ निशब्द हो गई और होठ अनायास ही खामोश हो गए। मगर, मांँ की आँखों ने आंँसुओं के सहारे काफी कुछ कह दिया।
-०-
पता:
बजरंगी लाल यादव
बक्सर (बिहार)


-०-



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माँ (कविता) - बलजीत सिंह

  

             माँ
                (कविता)
           बेटा व बेटी
           जिसकी नजर में
           एक समान ।            
           वो माँ होती है
           कभी नहीं घटती
           उसकी शान ।।
           बड़े प्रेम से
           गोद में बैठाकर
           खिलाये खाना ।                        
           बच्चों को चाहे
           पलकों की छाँव में
           सदा बिठाना ।।                                                               
           अपनी आयु
            लग जाये बच्चों को
            माँ का सपना ।
            मुसीबत में
            चीरकर दिखा दे
            दिल अपना ।।
            जन्मों तक भी
            कोई चुका ना पाये
            दूध का कर्ज ।
            माँ निभाती है
            मरते दम तक
            अपना फर्ज ।।

-०-
बलजीत सिंह
हिसार ( हरियाणा )
-०-

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मजदूर.... (कविता) - सरिता सरस

 

मजदूर....
(कविता)
मजदूर....
तुम्हारी पीड़ा
छलनी कर रही मेरा हृदय,
किस तरह छले जाते हो तुम!!
भारत के नीव के
निर्माता......
तड़प उठती हूं मैं
तुम्हारे पाँवों के छाले देखकर,
आँखों में खून बन
दर्द उतर आता है...
तुम्हारे पीछे
तुम्हारे परिवार का जर्द पड़ा चेहरा
सीने में घाव - सा
बन जाता है...
जब देखती हूं
तुम्हारे पाँवों से रिसता खून
जी करता है..
फेफड़े से नसें निकाल कर
टांक दूँ इन्हें....
खौल उठता है पूरा ज़मीर
जी करता है आग लगा दूं
स्वार्थ से बिके लोगों में.......
-०-
पता:
सरिता सरस
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
-०-



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टीम गठन और मानव शरीर (आलेख) - डॉ अवधेश कुमार अवध

 

टीम गठन और मानव शरीर
(आलेख)
करोड़ों वर्षों के अनवरत जैव विकास के साथ मानव इस रूप को प्राप्त हुआ। यह भी कहना गलत नहीं होगा कि समस्त जैव जातियों- प्रजातियों में मानव सबसे बुद्धिमान प्राणी है, लिहाजा मस्तिष्क का प्रयोग भी सर्वाधिक करना स्वाभाविक है। स्वयं की शारिरिक संरचना जनित सुगम कार्य पद्धति से प्रभावित होकर मनुष्य आपसी मेल - जोल को सदैव महत्व देता रहा है और इसी से परिवार, समाज, समुदाय, जनपद, राज्य, भीड़, झुंड तथा टीम आदि व्युत्पन्न किये गये।

आज के उपभोक्तावादी प्रतिस्पर्धी समाज में औसत जीवन जीने के लिए "टीम" से जुड़ना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। टीम की परिकल्पना का आधार मनुष्य द्वारा स्वयं के शरीर को समझना ही रहा। मनुष्य ने महसूस किया कि मानव शरीर में सिर से पाँव तक विविध अंग हैं जो विविध कार्य करते हैं जो समग्र रूप से मस्तिष्क द्वारा निर्धारित उद्देश्य की दिशा में ही होते हैं। यह मस्तिष्क ही शरीर रूपी टीम का लीडर होता है और समस्त प्रमुख अंग इस टीम के मेम्बर।

कभी कभी देखा गया है कि मस्तिष्क जब अस्वस्थ होता है तो उसके द्वारा गलत या अनुचित निर्देश जारी किये जाते हैं। इसके कारण से हाथ या पैर उस निर्देश को मानकर कार्य को अंजाम देते हैं। परिणाम स्वरूप अंग भंग होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं या दंड भोगना पड़ता है। फिर तो शरीर में असंतोष फैलने लगता है। ठीक इसी प्रकार टीम लीडर के गलत निर्णय या निर्देश के कारण टीम में बिखराव हो जाता है। इसके विपरीत अंगों के गलत कार्य का दुष्प्रभाव भी मस्तिष्क पर पड़ता है। उदाहरणार्थ उदर ने अधिक ऊर्जा का संचय कर लिया तो तमाम बीमारियाँ शुरु हो जाती हैं और दूसरे अंग कमजोर होने लगते हैं। टीम में भी सदस्यों के असंगठित होने का परिणाम टीम लीडर के साथ ही पूरी टीम पर पड़ता है।

जैसे एक मनुष्य अपने शरीर के समस्त अंगों के प्रति सजग रहकर उनको संगठित रखता है, देखभाल करता है और उचित तरीके से उत्तरदायित्व बाँटता है। एक टीम को भी वैसे ही चाहिए कि मानव शरीर से प्रेरणा लेकर स्वयं को संगठित रखकर निर्धारित उद्देश्य को प्राप्त करे। 
-०-
डॉ अवधेश कुमार अवध
गुवाहाटी(असम)
-०-


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