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Thursday, 17 December 2020

निशब्द (लघुकथा) - बजरंगी लाल यादव

    

निशब्द
(लघुकथा)
" चंदा बिटिया! यह लो... गाय को रोटी खिला दो "
" मांँ! एक रोटी और दो ना, बाहर खड़े मोती को भी दे दूं"
" अरे नहीं...! तेरे बाबूजी खाना खाने के बाद उसे जूठन डाल देंगे "
" मांँ! गाय को निरा रोटी और कुत्ते को जूठन? यह भेद क्यों? जबकि दोनों तो जानवर ही हैं? "
" बेटी, गायें तो हमें दूध देती हैं "
" मगर मांँ! कुत्ते भी तो अपने मालिक के बहुत वफादार होते हैं और घर के विश्वसनीय चौकीदार भी...!"
" किंतु बेटी! गाय सदियों से ही पूजनीय और सदा हमारे समाज के लिए उपयोगी रही है, इसलिए इसे गौमाता भी कहा जाता है "
तो मांँ...! फिर यह गौमाता को हम कसाई- खाने में क्यों भेज देते हैं ?" बेटी के आख़िरी सवाल से मांँ निशब्द हो गई और होठ अनायास ही खामोश हो गए। मगर, मांँ की आँखों ने आंँसुओं के सहारे काफी कुछ कह दिया।
-०-
पता:
बजरंगी लाल यादव
बक्सर (बिहार)


-०-



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