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Wednesday 9 December 2020

सफलता क्या है? (आलेख) - धीरेन्द्र त्रिपाठी

 

सफलता क्या है?

(कविता)

जब हम, आप जन्म लेते हैं उसके कुछ समय पश्चात ही हमें सफलता नामक शब्द का ज्ञान अकारण, अकस्मात हो जाता है ।
न केवल हम वरन हमारे आसपास ,समाज व हर वर्ग , हर पीढ़ी इस सफलता नामक शब्द अथवा चिड़िया या जो भी आप कह ले उसके पीछे भागती रहती हैं किंतु सफलता का क्या आशय है? सफलता का क्या अर्थ है? यह हमें जाना और समझना बेहद आवश्यक हैं ।
सफलता का आशय लक्ष्य संधान अथवा किसी वस्तु की प्राप्ति से नहीं है अपितु सफलता का आशय स्वयं को आनेवाले कल में आज से बेहतर पाना है । 
किंतु आज की युवा पीढी सफलता के लिए कुछ भी कर सकने का जुनून रखते हैं किन्तु सफलता को कैसे प्राप्त किया जाए स्वयं को आज से बेहतर आने वाले कल में कैसे पाएं इसके लिए कुछ तथ्यों को जानना अथवा समझना अति आवश्यक है अथक प्रयासों के बाद अध्यात्म के आधार पर मनोवैज्ञानिक तर्कों के आधार पर सफलता के चार प्रमुख साथी (सूत्र )बताने का प्रयास किया गया है जो निम्न हैं 

1. परिवारिक स्थिति - हमारे सफलता के सबसे बड़े सहायक के तौर पर हमारे परिवार की स्थिति ही निकल कर सामने आती है। यहां पर पारिवारिक स्थिति का आशय आर्थिक स्थिति से लगाना न्याय संगत नहीं होगा, आपके पास ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े है की परिवार आर्थिक रूप से सम्पन है किंतु पुत्र किसी कार्य का नही, आप ऐसा कोई उदाहरण नही दे सकते कि इस व्यक्ति के पिता बहुत ही पैसे वाले थे तो वह व्यक्ति बहुत महान हुआ।हमारे राष्ट्र और विश्व की महान हस्तियां जो सम्मान की दृष्टि से देखी जाती है उनका परिवार आर्थिक रूप से बहुत सक्षम नहीं था।परिवारिक स्थिति का अर्थ परिवार की अर्थ, समाज, शिक्षा, एवं संगत ,रिश्ते से है ।हमारे सफलता में परिवार का सहयोग सर्वप्रथम माना जाता है दूसरा स्थान आता है हमारे मित्रवत व्यवहार अथवा मित्र समूह का जो हमारे लिए एक वातावरण तय करते हैं। हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति हमारे कार्य में बाधा बने न बनें किंतु हमारे परिवार की शैक्षिक स्थिति , हमारे रिश्तेदार , मित्रों का दृष्टिकोण हमारे सफलता के सबसे बड़ा सहायक होता है । अतः हमें अपने कार्य के लिए किसी भी व्यक्ति की टिप्पणी पर ध्यान ना देकर सबसे मधुर संबंध रख सफलता के लिए आगे बढ़ना है। सफलता के लिए अपने परिवार का साथ कितना आवश्यक इसके लिए हमें यह प्रसंग अकारण ही स्मरण हो जाता है जब राम ने रावण का वध किया तब शरीर त्यागने से पहले राम जी ज्ञान लेने के लिए रावण के पास गए तो रावण ने राम की जीत का सबसे पहला कारण यही बताया कि उनका भाई अर्थात उनका परिवार उनके साथ हैं और उसका भाई अर्थात उसका परिवार उसके विरुद्ध खड़ा है ।अतः हमें अपने परिवार को सफलता की सबसे बड़े पूरक तौर पर ही देखना चाहिए । 

2. समय - समय जीवन का वह कारक जिससे सफलता को असफलता और असफलता को सफलता में बदला जा सकता।यदि मनुष्य समय का भरपूर उपयोग करना शुरू कर दे,तो उसका मोल समय के मोल के बराबर हो जायेगा। समय को व्यर्थ गवाने से अथवा समय के साथ न चलने से हमारी कई शक्तियां, प्रतिभा, गुण स्वतः समाप्त हो जाते है।यदि समय समय पर इनका उपयोग किया जाए तो समय के साथ इनमें निखार आता है।हमें यह तय करना अत्यंत मुश्किल होता है कि कब,किसे और कैसे तथा क्यों समय देना है? मैंने अपने स्वयं के अध्यन में जो तथ्य पाया है,वह यह कि स्वयं को समय देना ही सबसे अचूक प्रयोगों में से एक है। यह प्रयोग कभी भी निष्फल नही होता है।हमें स्वयं को समय कैसे देना है,यह बात हमारे कौशल और सामाजिक परिवेश पर निर्भर करता है। हमे अपने अध्धयन और अपने समाज तथा अपने परिवार एवम राष्ट्र के मूलभूत तथ्यों को समय देना है,यह हमें अपने विवेक से तय करना है कि हम समय को कैसे भूनते है।जो व्यर्थता से परे होकर समय को भुनाने में सफल होता हैं, वह समय पर सदैव के लिये अपने मेहनत को स्थापित कर देता है,जिससे वह समय के साथ स्वयं को बेहतर पाता है और जैसा कि मैंने पहले ही लिखा है समय के साथ स्वंय को बेहतर बनाना ही सफलता है।

3. अध्यन - यह एक ऐसा सूत्र है,जिसका प्रयोग आजतक कभी भी निष्फ़ल नही हुआ। अध्य्यन का अर्थ,बहुत से लोग केवल पुस्तक पढ़ने से लागते है,किंतु अध्ययन का अर्थ- अपने भूत,वर्तमान और भविष्य के तथ्यो को मनोनयन करते हुए उनकी समीक्षा करने की क्षमता अध्य्यन है। हम इस बात को भी नकार नही सकते कि हमारे अध्ययन के सबसे बड़े सहायक पुस्तक है, किन्तु पुस्तकों के अध्ययन के पश्चात हम जो अपने निजी अनुभव वर्तमान में डालकर अपने भविष्य की कल्पना कर ,भविष्य को सुगम एवम उत्तम बनाने के प्रयास करते है,तब हमें अध्ययन का सही अर्थ पता चलता है।अब हमें अध्यन क्या करना है इस बात पर चर्चा कर लेते है, हमें हमेशा स्वयं का अध्ययन करना है।अब आप कहेंगे कि स्वयं के बारे में क्या अध्ययन हमें अपने बारे में सब पता है।किंतु यहां स्वयं का अर्थ स्वयं का इतिहास,स्वयं की संस्कृति, सभ्यता,स्वयं की पुरातन व्यस्था एवम वर्तमान तथा स्वयं के बुजुर्गों का विकास एवं अपना वर्तमान तथा आने वाले स्वयं के भविष्य का अध्धयन करना ही स्वयं का अध्ययन करना है। जिस मनोविज्ञान को हम सब सफलता का एक बड़ा साधन मानते है उस मनोविज्ञान का अर्थ ही स्वयं का अध्ययन है। हमें अध्ययन का क्या लाभ है यह स्वामी विवेकानंद के जीवन चरित्र को जाना जा सकता है।

4. दृष्टिकोण - हमारे जीवन में हमारे दृष्टिकोण का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है,हमारा दृष्टिकोण सीधा हमारे मनोदशा पर प्रभाव करता है।यदि हम नकारात्मक दृष्टिकोण रखते है तो हमें सब तथ्य ग़लत और अंसभव नज़र आता है और वही हम जब सकारात्मक दृष्टिकोण हो, सब अच्छा और सम्भव नज़र आता है। सकारात्मक दृष्टिकोण का यह फायदा है कि सकारात्मक दृष्टिकोण न केवल सकारात्मक अपितु नकारात्मक दोनो का पर विचार करना कि स्वतंत्रता देता है और इसके ठीक विपरीत नकारात्मक दृष्टिकोण बस और बस नकारात्मकता को ही दर्शाता है।इसका स्प्ष्ट आशय यह है कि जब हम सकारात्मक दृष्टिकोण रखते है तो हम सही और गलत चुनने में सक्षम होते है और यदि हम नकारात्मक दृष्टिकोण रखते है तो हम केवल और केवल गलत और बेकार फ़ैसले चुनते हैं और व्यक्ति के व्यक्तित्व का आकलन भी नहीं कर पाते। मनोविज्ञान के के खण्ड मनोदशा जिसमें व्यक्ति की पढ़ा जाता है उसमें द्रष्टिकोण का बड़ा महत्व बताया गया है। उसमें बताया गया है कि हम यदि नकारात्मक दृष्टिकोण रखते है तो हम स्वयं को बीमार महसूस करते है औऱ फिर हमारी मनोदशा एक बीमार व्यक्ति के जैसी हो जाती है,वही हम यदि सकारात्मक दृष्टिकोण रखते है तो हम स्वयं को उर्जावान एवं स्वस्थ्य महसूस करते है।जिससे हमें नकारात्मक व्यक्ति के अपेक्षा हम किसी परिस्थिती से जल्दी ही निकल सकते है। अर्थात सकारात्मक दृष्टिकोण ऊर्जा का बहुत बड़ा स्रोत है।अतः हम बिना सकारत्मक दृष्टिकोण के सफल नहीं बन सकते है।
अर्थात पारिवार एवम अध्यन के सहायता से अपने दृष्टिकोण को , समय के साथ निष्कर्ष में बदलना ही सफलता में है। 
-०- 

पता 
धीरेन्द्र त्रिपाठी
सिद्देधार्शथनगर (उत्तरप्रदेश)
-०-



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"पथ नहीं भूली" (आलेख) - भावना ठाकर

"पथ नहीं भूली"

(आलेख)

गर पतझड़ ही ना होती तो भला कहाँ फूलों को मुरझाने का शौक़ होता है...
मैं पथ नहीं भूली.....ज़िंदगी की भूलभूलैया ने गुम कर दिया है मुझे अपनों के पेट की ज्वालाएँ उठती सीधा मेरे उर को जलाती थी। दुन्यवी मायाजाल से बचती बचाती उलझती रही आख़िर बना दी गई कोठे की शान।
गंधडूबी काया अंदर ही अंदर अश्कों से नहाती पाक साफ़ पड़ी है। उपरी त्वचा के मोहाँध के हाथों रात की रंगीनियों के आगाज़ से लेकर सुबह तक ना जानें कितने हाथों से गुज़रती हूँ चाय की किटली पर पड़े इकलौते अखब़ार कि तरह। मेरे तन के स्नेह में भिगते कोई पढ़ता है मुझे तो कोई कुचलता है। किसीको सज़ल मेरी पुतलियों की नमी क्यूँ नहीं भिगोती। मेरा मन आकाश निर्लेप सा अड़ग खड़ा है। स्पंदन नहीं गलते किसी छुअन से मेरे, अग्नि की आँच में जैसे मोम पिघलता है।
ये रंजो गम का सफ़र आसान नहीं रूह ही नहीं रूह की परछाई तक छलनी है मेरी। बस कोई मेरे एहसास को हवा दो थोड़ी तो महसूस हो मुझे की मैं भी ज़िंदा हूँ अभी। ज़हर भी पीकर देखा ज़माने के हाथों आँख ही नहीं लगती। मेरी त्वचा पर असंख्य किड़े रेंगते अपनी छाप छोड़ गए है कोई ऐसी फूँक मारो की सारे दाग उड़ जाएं। आँचल उतरने वाले ही मिले किसीने पाक दुपट्टे के दामन से मेरे छरहरे बदन को ढ़कने की कोशिश तक नहीं कि। "कहाँ मैं किसीकी अपनी थी"
मेरे रक्तकणों में बह रही तरह तरह की हवस की बदबू खेल रही है। मणिकर्णिका से जब आख़री आँच उठेगी मेरी चिता से तब नासिका मत सिकुड़ लेना सब। काया भले ही मिट रही होगी कोठे वाली की पर मेरी छलनी रूह कान्हा की मुरली से प्रीत गुण्ठन करते अनंत के संग मिलन साध रही होगी।
ना कोई महफ़िल का शोर होगा ना उन्मादीत साँसों की गंध। झंझा से विमुख होते अन्तहीन निरवता के लय कणों में सोना है मुझे मधु-प्रभात के इंतज़ार में हंमेशा के लिए। ज़िंदगी की आपाधापी को झेलते कोठे वाली का तन भले अपवित्र हो चुका आत्मा की शिखा पाक सी दिपदिपाती है।

-०-
पता
भावना ठाकर
बेंगलोर (कर्नाटक)

-०-



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अपने भाग्बय विधाता (मुक्तक) - एस के कपूर 'श्रीहंस'

  

अपने भाग्बय विधाता
(मुक्तक)

ये जिंदगी खुद ही उलझाई और
सुलझाई भी  जाती  है।

अपने कर्मों से ही मान अपमान
की राह बनाई जाती है।।

स्वर्ग नर्क हम सब स्वयं  ही पाते
है   इसी  ही  धरती  पर।

अपने ही हाथों भाग्य  की लकीर
बनाई और मिटाई जाती है।।

-०-
पता:
एस के कपूर 'श्रीहंस'
बरेली (उत्तरप्रदेश) 

-०-

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अँधियारा (कविता) - रीना गोयल

 

अँधियारा 
(कविता)
आशा की स्वर्णिम किरणें फिर ,लायी नवल प्रभात ।
अब होगा उत्थान मनुज का ,तम पर कर प्रतिघात ।।

💫💫💫🌹🌹💫💫💫

रंग भेद औ जाति- पाति की,टूटेंगी दीवार ।
क्षमताओं की दीप्त प्रभा में ,छँटे सभी अँधियार ।
ऊँचा रहे मनोबल तो हो ,निराशाओं की मात ।
अब होगा उत्थान मनुज का ,तम पर कर प्रतिघात ।।

💫💫💫🌹🌹💫💫💫

जीवन है श्रम और साधना ,सहज सरल  मनभाव ।
श्वास डगर के सभी पथिक हैं ,नहीं तनिक ठहराव ।
दृश्य जगत मत उलझ बटोही ,मत कर उर आघात ।
अब होगा उत्थान मनुज का ,तम पर कर प्रतिघात ।।

💫💫💫🌹🌹💫💫💫

अभी नहीं हिम्मत  हारो तुम ,करो विजय की आस ।
पार क्षितिज के जाना तुमको ,सोच यही हो खास ।
तुम्हें कभी जो  छू भी पाए ,दुख की क्या औकात ।
अब होगा उत्थान मनुज का ,तम पर कर प्रतिघात ।।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)




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