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Sunday, 22 November 2020

चाल (लघुकथा) - विवेक मेहता

चाल
(लघुकथा)
  शोरगुल और चमक भरी रात थी। हमेशा की तरह राजा ने श्मशान में प्रवेश किया। पेड़ पर लटकी लाश को उतारा, पीठ पर लादा और चल पड़ा।
                  लाश में छिपा बेताल मुखर हो गया। बोला-" राजन, तुम प्रयास करते करते थक गए होंगे। तुम्हारी थकान कम करने के लिए एक कहानी सुनाता हूं।
                लोकतांत्रिक जम्बू देश में भयानक बहुमत से ढ़पोरशंख राजा बन गया। हवाओं में चारों ओर जुमलो और वादों की बरसात हो गई। उसके राजा बनते ही उसकी पार्टी के लोग उत्साह में आ गए। उनके उत्साह ने उन्हें अनैतिक कार्यों से धन कमाने के लिए उकसाया। गलत कार्यों का भांडा कभी न कभी तो फुटना ही था। न जाने कैसे उनमें से कुछ के अनैतिक देह व्यापार की पोल खुल गई। मामले ने तूल पकड़ा और रेला राजा के नजदिकीयों के पांव तक पहुंचा। साम-दाम-दंड-भेद से मामले को दबाने के प्रयास होने लगे। विरोधियों को भी मामले में सत्ता की सीढ़ी दिखलाई पड़ने लगी। विरोध प्रदर्शन, कैंडल मार्च, बयान- बाजी होने लगी। समाचार पत्रों, टीवी बहसों में मामला छाने लगा। विरोध पक्ष ने राज्य भर में पदयात्रा कर मामला गरमाने की चाल चली। जिस दिन पदयात्रा शुरू होनी थी उसी रात को ही राज्य भर में चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई। टीवी पर प्रमुखता से समाचार आ रहे थे कि सीमा पार से दो आतंकी देश में घुस आए हैं।  सारे राज्य में नाकाबंदी कर उनकी तलाश की जा रही है। पदयात्रा हुई, भीड़  न जुटी। न समाचारों में मुद्दा छाया। पदयात्रा के समाप्त होते ही आतंकियों वाला मुद्दा भी बंद हो गया। नाकेबंदी, पुलिस सब गायब हो गए।"
               कहानी समाप्त कर बेताल ने पूछा-"राजन देह व्यापार वाली समस्या का क्या हुआ? वे आतंकी कहां गए? इन सवालों का जवाब जानते हुए भी नहीं दोगे तो तुम्हारे सर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे।"
             "आतंकवादी होते तो मिलते। समस्या से ध्यान भटकाने के लिए देशभक्ति का माहौल बनाना पड़ता है। देश सर्वोपरि होता है। सत्ताधारी इस मानसिकता को समझते हैं और प्रयोग में लाते हैं। यही इस खेल का मूल था। बात खत्म। खेल खत्म। 
             राजा की बात खत्म होते ही बेताल लाश को लेकर पेड़ पर लटक गया।
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पता:
विवेक मेहता
आदिपुर कच्छ गुजरात

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प्रेम (कविता) - प्रीति चौधरी 'मनोरमा'

 
प्रेम
(कविता) 
प्रेम नश्वर देह की जैसे श्वांस है
हृदय का अडिग सा विश्वास है।
प्रेम है प्रियतम का सानिध्य,
दिल का रिश्ता बहुत खास है।
प्रेम जीवन की अनमोल पूँजी
धनी है वो,यह जिसके पास है।
प्रेम आत्मा से आत्मा का मिलन,
ईश्वरीय शक्ति का जैसे एहसास है।
प्रियतम की अनुपस्थिति लगती है,
जैसे चाँद बिन चकोर उदास है।
प्रेम है अनुभूतियों का विषय,
समर्पण,निष्ठा का इसमें वास है।
प्रेम भौतिकवादिता से है परे,
अलौकिक सौंदर्य का दास है।
प्रेम है औषधीय गुणों से परिपूर्ण,
आनंद, हर्ष और उल्लास है।
प्रेम है आशाओं का अखण्ड दीपक
यही जीवन की एकमात्र आस है।
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पता
प्रीति चौधरी 'मनोरमा'
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)

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हमारी पहचान (कविता) - मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'

 

 

हमारी पहचान
(कविता)
गौ, गीता, गायत्री पहचान हमारी,
गौ सम्पूर्ण जगत की महतारी |
गौ सर्व देवों का पावन वास -
गौ की महिमा तीन लोक में न्यारी ||

गौ किसान को समृद्ध बनाती,
घास-पूंस खाकर अमृततुल्य दुग्ध देती |
पर आज भटक रही दर - दर,
मानवजाति गौ की महिमा आज भुलाती ||

ए मानव ! निज भूल स्वीकार कर,
प्रकृति के कहर का खौफ खा और ड़र |
नित गौ माता की सेवा करके -
अपना घर धन और धर्म से भर ||
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
फतेहाबाद-आगरा. 
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