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Thursday, 23 January 2020

संकल्प 2020 (आलेख) - दिलीप भाटिया

संकल्प 2020
(लघु आलेख)
परमाणु ऊर्जा विभाग से सेवानिवृत्ति के पश्चात् प्रति वर्ष समय के सकारात्मक सदुपयोग हेतु सन्कल्प लेता हूँ। प्रति सप्ताह कम से कम एक शिक्षण संस्थान में विद्यार्थियों को समय प्रबंधन एवं कैरियर चुनाव पर विचार व्यक्त करने के लिए समय देना है। हर वर्ष 75 प्रतिशत से अधिक यह सन्कल्प पूरा हो जाता है। वर्ष 2019 में लक्ष्य प्राप्ति का प्रतिशत 125 रहा क्योंकि नवंबर 2019 में नाथद्वारा दरीबा चित्तोडगढ प्रवास में 12 शिक्षण संस्थानों में लगभग 3000 विद्यार्थियों के साथ समय के सदुपयोग पर विचार व्यक्त किए। सरकारी विद्यालयों की मेधावी बेटियों की उच्च शिक्षा के लिए पेन्शन का 5 प्रतिशत देने का सन्कल्प 100 प्रतिशत पूर्ण हो जाता है। अपनी लिखित एवं प्रकाशित समय एवं कैरियर की पुस्तकों की सोफ्ट पी डी एफ प्रति उपहार स्वरूप 1000 विद्यार्थियों को वाट्सएप मेल पर देने का सन्कल्प 75 प्रतिशत से अधिक पूर्ण हो जाता है। प्रति वर्ष अपने जन्मदिन 26 दिसम्बर पर रक्तदान का पुण्य 65 वर्ष की आयु तक करता रहा। पर अब अधिक उम्र होने के कारण इस सन्कल्प को निभाना सम्भव नहीं है। जन्मदिन पर एक पौधा रोपण करने का सन्कल्प प्रति वर्ष पूरा हो जाता है। 2020 में भी इन सभी सन्कल्पो को पूर्ण करने का प्रयास करूंगा। साथ ही जन जागरूकता अभियान में परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर लेख लिखने का सन्कल्प भी प्रति वर्ष निभ रहा है एवं जीवन की अंतिम साँस तक निभाने का प्रयास रहेगा। जीवन सन्ध्या में देश की कुछ सेवा तन मन धन से करते रहने के लिए सकारात्मक सन्कल्प पुरी ईमानदारी से निभा रहा हूँ एवं शेष जीवन में भी निभाते रहने का प्रयास रहेगा। Dileep Bhatia के नाम से मेरी फेसबुक टाइम लाइन पर इन सभी सन्कल्पो के निभाने के समाचार एवं फोटो प्रमाण स्वरूप देखे जा सकते हैं।
-०-
दिलीप भाटिया
रावतभाटा (राजस्थान)


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अबकी बार रणचंडी का वार (कविता) - मोनिका शर्मा

अबकी बार रणचंडी का वार
(कविता)
कब तक हैवानियत यू नंगा नाच नाचेगी
कब तक औरत बार-बार बलि चढ़ाई जाएगी
बंद करो यह विनाश नहीं तो ज्वाला आएगी
बन चंडी यह औरत, विध्वंस मचाएगी
नहीं जन्मे गी फिर किसी पुरुष को
क्योंकि
भूल जाता है वह अपनी हदें,
बन जाता है वहशी जानवर
करता है अपनी मर्यादा को भंग
मार डालेगी
तुम पुरुषों को अपनी कोख में
नहीं पनपने देगी तुम्हारे पुरुषत्व का बीज अपने अंदर
बनेगी सीता बनेगी, रणचंडी ,
लक्ष्मीबाई यह बन जाएगी
नहीं होगी अब
यह सती तुम्हें मगर जला जाएगी
-०-
पता:
मोनिका शर्मा
गुरूग्राम (हरियाणा)

-०-

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धूप से... (कविता) - प्रकाश तातेड़

धूप से... 
(कविता)
धूप!
तुम आते ही
छतों पर पसर गई।
जरा नीचे उतरो
इन अंधेरी गलियों को देखो
जहां नंगे अधनंगे बच्चे
ठंड में ठिठुरते हुए
तुम्हारे आने का
इंतजार कर रहे हैं ।
उनके घरों पर छतें नहीं है
और छतें हैं भी तो
उन पर जाने की सीढ़ियां नहीं है।

ओ सर्दियों की सुहानी धूप!
तुम छतों से उतरो
इन नन्हे कांपते शिशुओं को
अपनी गर्म बाहों में भर लो
गोद में उठा लो -०-
पता-
प्रकाश तातेड़
उदयपुर(राजस्थान)
-०-

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अशोक आनन के हाइकु (हाइकु) - अशोक आनन


अशोक आनन के हाइकु
(हाइकु)
पेट पे लात 
मारकर वे बोले - 
शुभ -प्रभात । 
***** 
पूछो न प्यारे 
कोल्हू के बैलों जैसे - 
हाल हमारे । 
***** 
पेट ने किया - 
उम्र भर लाचार । 
जीवन - सार । 
***** 
पेट न होता 
शब्दकोश में शब्द - 
' भूख़ ' न होता । 
***** 
नाचतीं रहीं - 
तवे पर रोटियां । 
पेट के लिए । 
***** 
आंख न लगी - 
लौट गए सपने । 
पेट था खाली । 
***** 
मत देखिए- 
भूखे मर जाओगे ‌। 
रोटी में धर्म । 
***** 
पेट के ठीए । 
भूख के , भूख द्वारा 
भूख के लिए । 
***** 
रांधती रही - 
भूख सारी उमर । 
पेट न भरा ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

-०-




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जीवन पथ... (कविता) - राजेश सिंह 'राज'

जीवन पथ...
(कविता)
जीवन पथ...
राह कठिन हो कितनी भी,
'पथिक' नही अब रुकना है
संघर्षों से मिलती मंजिल,
हरदम, हरपल रटना है

बीत गए पल, जीवन था
नित, पथ, जीवन चलना है
अंधकार में, पूण्य पुंज बन
खुद को खुद ही ढलना है

कदम-कदम पे, जीत जश्न
और, मन उत्साह से भरना है
राह 'पथिक' के साथ- साथ
कठिन परिश्रम करना है

अहंकार, मदभाव, बिलगता
भृम बस भेद से बचना है
टेढ़ा - मेढ़ा रस्ता सारा
सम्हल-सम्हल पग धरना है

प्रेम भाव औ सहज सादगी,
अंतर मन में रखना है
जग पथिक 'राज' को याद करें
उस जीवन 'पथ' को गढ़ना है
-०-
राजेश सिंह 'राज'
बाँदा (उत्तरप्रदेश)

-०-

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एक नई सोच (आलेख) श्रीमती सुशीला शर्मा

एक नई सोच
(आलेख)
मेरी एक मित्र बहुत दिनो से मुझे अपने घर बुला रही थी ।शनिवार को सुबह का काम निपटाकर करीब ग्यारह बजे मैं उसके घर गई ।पूर्व सूचना मैने उसे नहीं दी ।घर के बरामदे में पहुँची तो अंदर से खूब ठहाके लगने की आवाजें आई ।मै थोड़ी देर रुकी ।लग रहा था जैसे अंदर और महिलाएँ भी हैं ।जब आवाज कम हुई तो मैने घंटी बजाई ।एक महिला ने दरवाजा खोला ।वो मुझे नहीं पहचानती थी लेकिन बड़ी ही शालीनता से उसने मुझे नमस्ते किया और अंदर आने के लिए कहा ।जब मेरी मित्र ने मुझे अचानक देखा तो बहुत खुश हुई और मेरा परिचय अपनी बहू से करवाया ।निकटता जानते ही उसने पैर छूकर आशीर्वाद लिया ।बेटे की शादी को अभी अधिक समय नहीं हुआ था ।मैं भी किसी कारण से शादी में नहीं जा पाई थी ।खैर अब उसने अन्य महिलाओं से भी परिचय करवाया ।पता चला वहाँ मोहल्ले की पार्टी चल रही थी ।सभी महिलाएँ सास - बहू की जोड़ी में थीं ।काफी हँसी ठिठोली, चुहलबाजी और बातों के चटकारे चल रहे थे ।वातावरण बहुत ही सकारात्मक था ।एक दूसरे पर व्यंग्य भी हो रहा था ।यहाँ सास -बहू का कोई दबाव या भय का माहौल नहीं था ।बस सब तनाव मुक्त थे ।मुझे बहुत अच्छा लगा ।मै तो सोच में पड़ गई कि सास - बहुओं में इतना खुला और तनावरहित रिश्ता वास्तव में सराहनीय है।मन ही मन उन सबको शुभकामनाएँ दीं और चाय नाश्ता कर मैं एक नई सोच के साथ घर लौटी और
घरवालों से सारी बातें साझा करके मन प्रसन्न हो गया ।
-०-
पता:
श्रीमती सुशीला शर्मा 
जयपुर (राजस्थान) 
-०-


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