एक नई सोच
(आलेख)
मेरी एक मित्र बहुत दिनो से मुझे अपने घर बुला रही थी ।शनिवार को सुबह का काम निपटाकर करीब ग्यारह बजे मैं उसके घर गई ।पूर्व सूचना मैने उसे नहीं दी ।घर के बरामदे में पहुँची तो अंदर से खूब ठहाके लगने की आवाजें आई ।मै थोड़ी देर रुकी ।लग रहा था जैसे अंदर और महिलाएँ भी हैं ।जब आवाज कम हुई तो मैने घंटी बजाई ।एक महिला ने दरवाजा खोला ।वो मुझे नहीं पहचानती थी लेकिन बड़ी ही शालीनता से उसने मुझे नमस्ते किया और अंदर आने के लिए कहा ।जब मेरी मित्र ने मुझे अचानक देखा तो बहुत खुश हुई और मेरा परिचय अपनी बहू से करवाया ।निकटता जानते ही उसने पैर छूकर आशीर्वाद लिया ।बेटे की शादी को अभी अधिक समय नहीं हुआ था ।मैं भी किसी कारण से शादी में नहीं जा पाई थी ।खैर अब उसने अन्य महिलाओं से भी परिचय करवाया ।पता चला वहाँ मोहल्ले की पार्टी चल रही थी ।सभी महिलाएँ सास - बहू की जोड़ी में थीं ।काफी हँसी ठिठोली, चुहलबाजी और बातों के चटकारे चल रहे थे ।वातावरण बहुत ही सकारात्मक था ।एक दूसरे पर व्यंग्य भी हो रहा था ।यहाँ सास -बहू का कोई दबाव या भय का माहौल नहीं था ।बस सब तनाव मुक्त थे ।मुझे बहुत अच्छा लगा ।मै तो सोच में पड़ गई कि सास - बहुओं में इतना खुला और तनावरहित रिश्ता वास्तव में सराहनीय है।मन ही मन उन सबको शुभकामनाएँ दीं और चाय नाश्ता कर मैं एक नई सोच के साथ घर लौटी और
घरवालों से सारी बातें साझा करके मन प्रसन्न हो गया ।
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पता:
श्रीमती सुशीला शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
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