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Saturday 21 December 2019

वक्त (कविता) - शुभम कुमार

वक्त
(कविता)
मानव बदला, दानव बदला।
समय बदला, वक्त बदला।।
किस्मत बदली, रहमत बदली।
भगवान बदले, भक्त बदला।।

शोहरत मिली, आदत बदली।
शुख मिली, आभाव बदली।।
घर बदला, कपड़े बदले।
लगाव बदला, स्वभाव बदली।।

बड़ा हुआ, आदत बदली।
धीरे - धीरे चाहत बदली।।
माँ के आँचल को छोड़ा।
धीरे - धीरे राहत बदली।।

दोस्त बदले, दोस्ती बदली।
गांव छोड़ा, भाषा बदली।।
भोजन बदला, जीवन बदली।
अपनों से फिर आशा बदली।।

मगर समय के इस बदलाव में,
माँ का नहीं प्यार बदला।।
समय बदला, वक्त बदला।
स्वभाव बदली, विचार बदला।।
-0-
पता: 
शुभम कुमार
मुजफ्फरपुर (बिहार)
-०-

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शिव कुमार 'दीपक' की कुण्डलिया (कुण्डलिया) - शिव कुमार 'दीपक'


शिव कुमार 'दीपक' की कुण्डलिया
(कुंडली)
(दिनांक ११ दिसंबर २०१९ की पोस्ट से क्रमश ..)
सोतीं भूखी आज भी, कई करोड़ों जान ।
मगर उन्हीं के पास है, बचा हुआ ईमान ।।
बचा हुआ ईमान, और सब कुछ खोया है ।
मेहनतकश इंसान , गरीबी में रोया है ।।
संसद में भरपेट , भूख पर चर्चा होतीं ।
'दीपक' फिर भी देख,जिंदगी भूखी सोतीं ।।-8

रोटी कपड़ा हो न हो, ना हो भले मकान ।
खड़े धर्म के नाम पर, बंदूकों को तान ।।
बंदूकों को तान, विरुद्ध खड़े भारत के ।
गंवा रहे हैं जान, ख्वाब पाले जन्नत के ।।
'दीपक' पाकिस्तान,चल रहा चालें खोटी ।
बांट रहा बंदूक, नहीं खाने को रोटी ।।-9

हारा वह जिसके यहां ,था कोई गद्दार ।
घर के भेदी ने किए, घर के बंटाढार ।।
घर के बंटाढार , किए घर के लोगों ने ।
दिए उन्हींने भेद, सहे अन्याय जिन्होंने ।।
'दीपक' खुफिया तंत्र,जहां चौकस था सारा ।
साक्षी है इतिहास, कभी वह जंग ना हारा ।।-10

सुंदर हो मधु गंध हो,खींचे सबका ध्यान ‌ ।
माली ऐसे फूल को , देता है सम्मान ।।
देता है सम्मान, योग्यता को कोई भी ।
शोभा बनते फूल, मूर्ति मंडप अर्थी की ।।
देगा 'दीपक' छोड़ ,फूल में अगर कसर हो ।
चुना गया वह फूल , गंध जिसकी सुंदर हो।।-11

लंकापति को आज तक, मार न पाए राम ।
उठा-उठा सिर दीखता, यहां वहां हर ठाम ।।
यहां वहां हर ठाम , रूप रावण के दिखते ।
कवि लेखक हर वर्ष,जल गया रावण, लिखते ।।
'दीपक' बारंबार , यही होती है शंका ।
किस रावण को मार, राम ने जीती लंका ।।-12

मानवता रोती रही, सहे नियति के डंक ।
पलता रहा समाज में, अनाचार आतंक ।।
अनाचार आतंक , बढ़ा तब लोग लड़े हैं ।
अब भी उनका जोश, हौसले बढ़े चढ़े हैं ।।
दीपक अपने पास, करो पैदा वह क्षमता ।
डर का होवे अंत, फले फूले मानवता ।।-13

पाले थे क्यों आपने, आस्तीन के सांप ‌ ।
काट लिया तो आपकी, रूह गई है कांप ।।
रूह गई है कांप, डरे हो , पछताते हो ।
पालोगे अब श्वान, हमें क्यों बतलाते हो ।।
'दीपक' होते ठीक, श्वान फिर भी रखवाले ।
सहता है खुद डंक, सांप जिसने हों पाले ।।-14

माटी का दीपक बना, बाती जिसके प्राण ।
स्नेह जल रहा उम्र का,लौ जिसकी मुस्कान ।।
लौ जिसकी मुस्कान,सुखद आलोक लुटाती ।
खर्च रही है कोष, सांस हर आती जाती ।।
दीपक ही है श्रेष्ठ, दीप्ति जिसकी परिपाटी ।
प्रतिफल दिव्यप्रकाश, शेष है, सो है माटी ।।-15
-०-
शिव कुमार 'दीपक'
हाथरस (उत्तर प्रदेश)
-०-




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सुबह का भूला (लघुकथा) - डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

सुबह का भूला
(लघुकथा)

"मैंने थोड़ी-सी शराब क्या पी ली, आप लोगों ने तो पूरा आसमान ही सिर पर उठा लिया। आप लोगों को क्या लगता है कि मैं दिन भर खाली-पीली घूमता रहता हूँ। बैलों की तरह हाथ ठेला खींच कर जैसे तैसे गृहस्थी की गाड़ी चला रहा हूँ। तुम लोगों का क्या है, दिन भर घर में बैठे रहते हो। कभी खुद काम कर के देखो, तो समझ में आए कि ये शराब मेरे लिए क्यों जरूरी है।" अधेड़ रामा अपनी माँ और पत्नी से बोला।
"ठीक है रामा। अब तुम घर में रहना। हम सास-बहू ही तुम्हारा हाथ ठेला खींचकर गृहस्थी चलाएँगी।" तंग आकर उसकी माँ ने कहा।
और सचमुच सास-बहू ने रामा का हाथ ठेला खींचना शुरू कर दिया।
अपनी सत्तर वर्षीया बूढ़ी माँ और अधेड़ उम्र की पत्नी को हाथ ठेला खींचते देख कर रामा का सारा नशा काफूर हो गया। उसकी आँखों के सामने बचपन से लेकर अब तक की माँ और पत्नी से जुड़ी घटनाएँ घूमने लगीं।
वह दौड़कर अपनी माँ के पास पहुँचा। उनके पैरों में गिरकर बोला, "माँ मुझे माफ कर दो। मैं कसम खाकर कहता हूँ कि अब कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा।"
माँ ने बेटे को सीने से लगा लिया। बोलीं, "सुबह का भूला अगर शाम को लौट आए, तो उसे भूला नहीं कहते।"
-०-
पता: 
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर (छत्तीसगढ़)

-०-

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रफ़्तार (कहानी) - मोनिका शर्मा

रफ़्तार
(कहानी)
आर्यन कक्षा 10 में गया ही था कि वह रोज मां से जिद करता, मां मुझे एक्टिवा की चाबी दे दो मुझे चलाना है।
मां ने समझाया अभी तो भारतीय संविधान ने भी तुम्हें एक्टिवा हाथ में लेने के लिए नहीं कहा है ।
पहले इतने बड़े तो हो जाओ कि तुम एक्टिवा चला सको ।
आर्यन ने बोला "मां स्कूल के सारे लड़के एक्टिवा चलाते हैं एक तुम ही हो जो मुझे हमेशा मना करती रहती हो"।
मां को हमेशा डर रहता कि कहीं आर्यन ओर लड़कों की तरह एक्टिवा हाथ में आते ही रफ्तार ना पकड़ ले ।
उसने खुले शब्दों में आर्यन को कहा था 18 साल के होने के बाद तुम एक्टिवा क्या बुलेट ले लेना लेकिन अभी नहीं।
एक दिन की बात है मां को किसी रिश्तेदार के घर नोएडा जाना था उसने आर्यन को कहा "आर्यन रिक्शे के पैसे ले लो तुम कल ट्यूशन खुद ही चले जाना ,मुझे बुआ जी के घर नोएडा जाना है।
ठीक है मां मैं चला जाऊंगा आर्यन ने कहा ।
अगले दिन मां नोएडा चली गई।
आर्यन स्कूल से आकर ,खाना खाकर ट्यूशन के लिए तैयार हुआ ।
उसकी नजर मेज पर पड़ी एक्टिवा की चाबी पर पड़ी । उसका मन ललचाया,उसने एक्टिवा की चाबी उठाई और सोचा मां को कहां पता चलेगा कि मैंने एक्टिवा चलाई है।
चुपचाप लाकर खड़ा कर दूंगा।
उसने एक्टिवा स्टार्ट की और निकल पड़ा घूमने के लिए। उस दिन आर्यन ट्यूशन नहीं गया।
उसने सोचा कि आज दोस्तों के साथ सैर सपाटा करता हूं ,मां को पता ही नहीं चलेगा ।
‌उसने अपने दोस्तों को फोन करके बुलाया।
सब ने आनंद बेकरी पर मिलने की सोची।
आर्यन जब स्कूटी चला रहा था तो स्कूटी की रफ्तार हवा से बातें करती , पीछे बैठा अमित उसको बार-बार कहता," थोड़ा धीरे चला अभी तू कच्चा है कहीं गिर ना जाए", अपने हाथ पैर भी तोडे़गाऔर मेरे भी "।
आर्यन बोला "अरे कुछ नहीं होगा डरपोक कहीं का "।
उसने पीछे मुडकर यह बात कही थी कि अचानक उसके सामने एक कार आ गई और धड़ाम से आवाज आई दोनों कार के नीचे थे आर्यन और अमित लहूलुहान थे। दोनों बेहोश हो गए थे। आसपास के लोगों ने मिलकर दोनों को अस्पताल पहुंचाया ।
अमित को 3 फ्रैक्चर आए थे ।आर्यन जोकि मौत और जिंदगी से लड़ रहा था । मां ने जब आयन का फोन किया तो किसी ने बताया कि आपका बेटा अस्पताल में एडमिट है उसका एक्सीडेंट हुआ है ।
मां के तो जैसे होश उड़ गए, मां जैसे तैसे नोएडा से दिल्ली आती है ।
बताए पते पर अस्पताल पहुंचकर उसने जब आर्यन और अमित को देखा तो अपने आप से यही सोचती रही कि जिस बात का डर था आज वही हो गया, मैं आर्यन को बार-बार समझाती थी कि यह तेज रफ्तार सही नहीं । पता नहीं आज के नवयुवक क्यों नहीं मां-बाप की बात समझते ।
रह रह कर रोती रही अमित की मां आर्यन को बार-बार कोस रही थी कि आर्यन ने ही अमित को फोन करके बुलाया था घूमने के लिए।
आर्यन की मां के पास रोने के अलावा कुछ नहीं था ।
थोड़ी देर में डॉक्टरों ने जवाब दे दिया मस्तिष्क में अंदरूनी खून बहने के कारण आर्यन की मौत हो गई ।
आर्यन के मां बाप बार-बार इसी बात के लिए तड़पते रहे कि क्यों उनका बेटा एक्टिवा लेकर निकला ?क्यों उसने तेज रफ्तार पकड़ी ?
आज की युवा पीढ़ी क्यों अपने मां-बाप की बातों को अनदेखा कर देती है?
यह एक शाप बन के के बन के के रह गया उनकी जिंदगी पर।
-०-
पता:
मोनिका शर्मा
गुरूग्राम (हरियाणा)

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पत्र जो लिखा पर भेजा नहीं (कविता) - लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

पत्र जो लिखा पर भेजा नहीं
(कविता)
संजो कर रखे हैं आज भी मैंने,
उन प्रेम पत्रों को,
जो मेरी चाहतों के थे,
मेरे प्रीत के थे,
पर कभी भेज न सका,
एक डर अंदर ही अंदर,
मुझे ही सता रहा था,
कि पत्रों को पढ़ कर,
तुम बुरा न मान जावो,
या कहीं नाराज न हो जावो,
उन पत्रों में अपनी भावनाओं को,
एक एक कर उकेरा है,
बस! चाहतों का बसेरा है,
आज भी कभी उन पत्रों को पढ़ता हूँ,
दिल में एक टीस उभर आती,
काश! अगर भेज दिया होता,
तो शायद! बात बन जाती,
पर एक संतोष भी रहता है,
अगर पढ़ लेती उन पत्रों को,
और मेरे प्यार को कहीं,
पत्र पढ़कर,
कर देती मुझसे,
प्यार का इज़हार,
जीवन पर हो जाता,
तुम्हारा मेरे ऊपर उपकार,
पर कर देती इंकार,
तो मेरे दिल पर होता,
एक मजबूत प्रहार,
अच्छा ही हुआ न भेजा,
उन अनगिनत पत्रों को,
जिसमें लिखा था मैंने,
अपना पवित्र प्यार,
कभी भेज न सका।।
-०-
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
स्थायी पताबस्ती (उत्तर प्रदेश)



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महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह (आलेख) -डॉ अवधेश कुमार अवध

महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह


(आलेख)
विश्वविख्यात वैज्ञानिक/ गणितज्ञ आइंस्टीन और गौस के सिद्धांतों को चुनौती देकर प्रसिद्धि पाने वाले महान
गणितज्ञ नहीं रहे। नासा में अपोलो मिशन लांचिंग के दौरान तीस कम्प्यूटर अचानक फेल हो गए, उसी क्षण पेन से सटीक कैलकुलेशन देकर अभियान सफल कराने वाले महान गणितज्ञ हमें छोड़कर चले गए। चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत पर शोध करके विश्व को नई दिशा देने वाले महान गणितज्ञ को हम खो दिए। 

बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गाँव में 2अप्रैल 1942 को एक ऐसे होनहार शिशु का जन्म हुआ जो स्कूल में पढ़ते हुए ही पाटलीपुत्र के मूर्धन्य गणितज्ञों को चौंका दिया था। मैट्रिक की परिक्षा इन्होंने 1962 में उत्तीर्ण की। शिक्षकों का असीम स्नेह एवं उत्साहवर्द्धन सदैव मिलता रहा। एक बार पटना में अमेरिका के गणितज्ञ प्रोफेसर कैली आए। इस बालक की प्रतिभा की ज्योति उनके तक पहुँची। आपसी मुलाकात के बाद प्रोफेसर कैली इन्हें कैलीफोर्निया में सादर आमन्त्रण देकर गए। 1963 में भारत का यह सपूत कैलीफोर्निया के लिए रवाना हो गया। वहाँ रहते हुए इन्होंने चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत पर विश्व प्रसिद्ध शोध किया। तदनन्तर वाशिंगटन में गणित के प्रोफेसर बन गए।

1971 में वाशिंगटन से इनका भारत आगमन हुआ। यहाँ आकर ये आई आई टी कानपुर में गणित के प्रोफेसर बनकर सेवा किये तथा जल्द ही सांख्यिकीय संस्थान कोलकाता में कार्यरत हुए। इसी बीच 2973 में श्रीमती वंदना रानी के साथ परिणय सूत्र में बँध गए। 

अभी विवाह हुए केवल एक साल ही बीता था कि 1974 से मानसिक दोरों का दौर शुरु हो गया। सर्वप्रथम मानसिक चिकित्सालय राँची में इलाज हुआ और फिर बंगलौर तथा दिल्ली में। किन्तु सरकारी उदासीनता हर कदम पर दिखती रही। सरकारी तन्त्र इस गणितज्ञ के इलाज में सर्वथा निष्क्रिय भूमिका में रहा। कुछ वर्षों तक उनका पता ही नहीं चला था और न किसी सरकार ने खोजने की कोशिश ही की थी.....। कई सारे संस्थान इनको गोद लेना चाहते थे किन्तु इनकी माता जी का पुत्र के प्रति स्नेह और स्वाभिमान इसकी इजाजत नहीं देता। 

इधर कुछ दिनों से आँख में मोतियाबिंद का ऑपरेशन होने के उपरान्त इनकी तबीयत बिगड़ती जा रही थी। पटना के कुल्हरिया कॉम्लेक्स में रहकर इलाज करा रहे थे। देश बाल दिवस मना रहा था और पी एम सी एच पटना में यह महान गणितज्ञ इस दुनिया से विदा हो गया। अंत समय में भी सरकारी तन्त्र तिरस्कृत करने की पुरानी आदत से बाज नहीं आया। कुकुरमुत्तों की तरह उगते नेताओं की कैद में तड़पती लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में ऐसे विश्वविख्यात गणितज्ञ श्रद्धेय वशिष्ठ नारायण सिंह की गुमनाम मौत कई अनुत्तरित सवाल छोड़ जाती है।
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डॉ अवधेश कुमार अवध
गुवाहाटी(असम)
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गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

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सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

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