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Tuesday 18 February 2020

लिजलिजे लोगों की कहानी (आलेख) - डॉ. लालित्य ललित

लिजलिजे लोगों की कहानी
(आलेख)
ये वे लोग है; जो किसी भी उम्र की महिलाओं को देखते ही अपनी लोक-लाज शर्म वर्म सब भूल कर उस आवारा आशिक की भूमिका में आ खड़े होते है कि उनका पहला जुमला ही ये होता है कि आप दुनिया की सबसे सुंदर महिला है। किसी भी एंगल से आप उस अदाकारा से भी अलग हट कर है फिर उस महिला को भी वह अधेड़ उम्र छलिये की बातें अच्छी लगने लगती है। वह अधेड़ उम्र का आशिक अपने को पचीस साल का समझने लगता है फिर शुरू होता है। प्रेम शरेम वाली बातें! अब वह महिला इंटरेस्ट लेने लगती है कि कोई परपुरुष किस हद तक जा सकता है चुनांचे हर बन्दा घर की बिरयानी से उकता चुका है। जब हदें पार कर चुके तब नम्बर एक्सचेंज फिर लव स्माईली का दौर शुरु यानी स्यापे का लोकतांत्रिक रिफेशर कोर्स आरम्भ!
जरा सोचिए ये वे अधेड़ बालिग है जो तमाम सुख की परिकल्पनाओं से कहीं आगे के लोग है जो न तो अखरोट तोड़ सकते न ही किसी बाधा दौड़ को पार कर सकने वाले सामर्थ्यवान! बस इन्हें जीवन के अलहदा सुख की तलाश है। ये वे जीव है जो सत्तर पार कर चुके हैं लेकिन प्रेम के अंकगणित को फिर से समझने का मन एक बार लगाना चाहते है। उनकी पत्नी सब जानती समझती है कि ये बुढ़ापे का शोर है, जो किसी भी खतरे से परे है
यानी कोई दुर्घटना या किसी भी प्रकार के खतरे की उम्मीद उनसे नहीं की जा सकती। बहरहाल दुनिया में पागल प्रेमी हर महल्ले,हर नगर और हर प्रदेश में है जिन्हें कुहूकने का मौलिक अधिकार है।
बहुत से लोगों को जानता हूँ। आजकल वे जरूरत से ज्यादा खुश नजर आते हैं। अच्छा है जिसके कारण उनका रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। भला हो ऐसे लिजलिजे लोगों का जिनके कारण अतृप्त आत्माएं पहले से ज्यादा गॉसिप के मूड में है।
सुना है आजकल किट्टी पार्टियों में महिलाओं के पास नया विषय है। बढ़ती उम्र में अतिरिक्त सम्बन्ध के प्रति नैसर्गिक लगाव व स्नेह के प्रति मौलिक अवधारणा!
अजी! सुनिए टमाटर ले आओ, अभी टेलीविजन चिल्ला रहा है कि कल से इसकी भी कीमत बढ़ने वाली है। कल मैं आलू की सब्जी और कचौड़ी बनाने जा रही हूँ, बिना टमाटर कैसे बनेगी! जल्दी जाओ और जल्दी आओ। पांडेय जी ने कहा कि जी, देवी यूं गया जैसे मतदाता को किसी बादपीडित इलाके में खाद्य सामग्री का थैला किसी हेलीकाप्टर से लूटना है।
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संपर्क
डॉ लालित्य ललित
संपादक
नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया
नई दिल्ली
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ऐ चांद! वो तेरा हमशक्ल है (कविता) - सुरेश शर्मा


ऐ चांद! वो तेरा हमशक्ल है
(कविता)
रातों को सोने की तरकीब ढूंढता हूं,
करवटे बदल बदल के,
सिलवटे पर जाते है ;
व्यथित हो जाता सारा शरीर 
न जाने नींद कहाॅ चली गई ।
जिसके लिए मै जाग रहा हूं ,
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।

नाराज क्यों हो रहा है तू ,
उसका दीदार तो कर लेने दे ;
अपनी शीतलता को थोड़ी देर 
बरकरार रखने की कोशिश कर
क्योंकि, 
तेरी ही रेशमी रोशनी मे ,
जाग रहा हूं मै जिसके लिए ;
वो कोई गैर नही !
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।

इतना इतरा मत अपने आप पर,
हो सकता है तेरे चाहने वाले ;
हजारों और लाख मे है ।
मगर,
मेरा बेदाग सुन्दर -सा चांद ,
सिर्फ मेरा और मेरे पास है ।
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।

ऐ चांद तू तो मुझसे लाखो मील दूर है ,
मगर ,
मेरा चांद मेरे पास है ,
मेरा नूर है ,मेरा गुरूर है ;
इसलिए उसके हर नखरे ,
मुझे मंजूर है ।
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।
-०-
सुरेश शर्मा
गुवाहाटी,जिला कामरूप (आसाम)
-०-

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देश तरक्की कर रहा है (कविता) - विकास पाटील


देश तरक्की कर रहा है
(मुक्तक कविता)
किसान देश में हरित क्रांति लाया, अनाज का उत्पाद बढ़ाया
सभी का पेट भरता है, बेचारा खुद भूखा रहता है
बढ़ा दी खाद की कीमत चौगुना
मिट्टी के मोल में पड़ता है अनाज बेचना
किसानों की मेहनत पर चलता है धंधा
अभी तक गले में फसा है साहुकार का फंदा
देश तरक्की कर रहा है
सरहद पर जवान कर रहे है, देश की रखवाली
देश की सुरक्षिता के लिए, झेल रहे हैं सीने पर गोली
विपत्ति भरी परिस्थितियों में, खेली खून की होली
उनके त्याग और बलिदान के बदले, हमने दी खाली झोली
देश तरक्की कर रहा है
ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में किया विकास
आदिवासियों के जीवन में न ला सके प्रकाश
दिन-ब-दिन बढ़ रही है, आकाश को छू लेनेवाली ईमारतें
पर उनके बाहर बीत रही है, भीख माँगों की सारी रातें
देश तरक्की कर रहा है
अपनी कुर्सी के लिए
मजहब के नाम पर लोगों में भेद किए
नेता अपने कुकर्म से लोगों को आपस में लड़ाते हैं
गरीब युवाओं के खून से अपना चुल्हा जलाते हैं
देश तरक्की कर रहा है
पार्टियाँ देश को लूटने के लिए अपना-अपना मोर्चा खोलती हैं
कुर्सी पाने के लिए, एक-दूसरे को गाली-गलोज करते हैं
किसी एक को बहुमत न मिलने पर, वे गले मिलते हैं
सवाल पूछने पर कहते हैं, जन की सेवा के लिए हम हाथ मिलाते हैं
देश तरक्की कर रहा है
स्वतंत्रता के पूर्व देखे हुए सपने चूर हुए
सत्ता, कुर्सी मिलने पर जनता को भूल गए
अमीरों का रूतबा दिनों-दिन बढ़ रहा है
देश का गरीब सदियों से पीसा जा रहा है
देश तरक्की कर रहा है
कुपोषण, गरीबी या हो महिलाओं पर अत्याचार
भ्रष्टाचार, रिश्वत या हो जनता पर दुराचार
पूर्व हो या पश्चिम, दक्षिण हो या उत्तर
संसार में कोई नहीं है, जो दे सके हम से टक्कर
देश तरक्की कर रहा है
-०-
पता:
विकास पाटील
सांगली (महाराष्ट्र)

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अफ़सोस (लघुकथा) - माधुरी शुक्ला

अफ़सोस
(लघुकथा)
शर्मा भाभी के यहां महिला संगीत में जब से शोभा ने माधवी की सहजता-सरलता देखी बहुत प्रभावित हुई है। उसे अपने किए पर अफसोस हो रहा है। दरअसल शोभा ने अपने इंजीनियर बेटे के लिए कुछ महीने पहले आए खूब पढ़ी-लिखी माधवी के रिश्ते को फीके रंग की वजह से तवज्जो नहीं दी थी। वह पास बैठी माधवी की बुआ से आज फिर रिश्ते की चर्चा निकालती है। बुआ हंस कर कहती है अरे इसकी सगाई तो पिछले महीने ही हो गई। अच्छे खानदान का योग्य लड़का मिला है। अगले महीने शादी है आपको जरूर आना है।
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पता:
माधुरी शुक्ला 
कोटा (राजस्थान)


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लम्हा इक छोटा-सा (ग़ज़ल) - डॉ० भावना कुँअर

पन्ने भर नहीं सकते
(ग़ज़ल)
लम्हा इक छोटा सा फिर उम्रे दराजाँ दे गया
दिल गया धड़कन गयी और जाने क्या-क्या ले गया

वो जो चिंगारी दबी थी प्यार के उन्माद की
होठ पर आई तो दिल पे कोई दस्तक दे गया 

उम्र पहले प्यार की हर पल ही घटती जा रही
उसकी आँखों का ये आँसू जाने क्या कह के गया 

प्यार बेमौसम का है बरसात बेमौसम की है
बात बरसों की पुरानी दिल पे ये लिख के गया 

थी जो तड़पन उम्र भर की एक पल में मिट गयी
तेरी छुअनों का वो जादू दिल में घर करके गया
-०-
डॉ० भावना कुँअर 
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

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जीवन के रंग हुए बेरंग (कविता) - रीना गोयल

जीवन के रंग हुए बेरंग
(कविता)
है रंगहीन सा दिल ये मेरा क्यूँ जीवन में कोई रंग नही
वो क्यूं तन्हा सा छोड़ गये जब उनसे मेरी जंग नही ।।

वहाँ चंदा मिले चकोरी से ये खग भी कलरव करते हैं
मैं किसको अंग लगाऊँ कहो जब पी ही मेरे संग नही ।।

हो आतुर नैन पुकार रहे अविरल आँखो से धार बहे
हूँ बेकल भई पुकार करुं कोई चाह नही उंमग नही ।।


ये रैन भी पूछे बार बार क्यूं साजन तेरे आये ना
तुम सुन के भी अन्जान बने क्या उठती लहर तरंग नही ।।


ना केश सँवारु आज सखि ना कजरा कोरे नैनन में 
ये पल्लू ढलका जाये मेरा पिया बिन जीने का ढंग नही ।।
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

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