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Tuesday, 7 January 2020

कोहरे की चादर (कविता) - नीलम पारीक


कोहरे की चादर
(कविता)
कोहरे की चादर लपेटे,
सर्द रात,
निहार रही ज़मीं पर,
अलाव तापते
कहीं कोई कान्हा,
छेड़ रहा बाँसुरी की तान,
सर्द ठिठुरती रात,
अलाव की नर्म गर्माहट ले,
हटा कोहरे की चादर,
लगी है थिरकने,
मन्द-मन्द कदम ताल में,
और रात के नर्तन संग,
बाँसुरी की धुन पर,
गाने लगा है चाँद,
मधुर-मधुर स्वरों में,
गीत कोई प्रेम का,
गुनगुनाने लगा है चाँद,
भोली भाली रात के,
भोलेपन पे रीझ कर,
मुस्कुराने लगा है चाँद...
-०-
पता
नीलम पारीक
बीकानेर (राजस्थान)
-०-


***
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माँ की जन्म घुटी (कविता) - श्रीमती सुशीला शर्मा

माँ की जन्म घुटी
(कविता)

माँ जो तूने घुटी पिलाई
अब वो काम नहीं करती
बदल गया है आज जमाना
वो युक्ति ना अब चलती

प्यार मुहब्बत नहीं चाहिए
नहीं भावना ही चलती
बच्चों की माँ-बाप से केवल
व्यापारी दिनभर रहती ।

रूपया पैसा उन्हें चाहिए
भौतिक जीवन जीने को
फर्ज गिनाते माता-पिता का
होश नहीं है कुछ उनको ।

हमने लाज रखी माँ तेरी
सारे फर्ज निभाए हैं
उम्र के इस अन्तिम पड़ाव में
माँ तू ही याद आए है ।
-०-
पता:
श्रीमती सुशीला शर्मा 
जयपुर (राजस्थान) 
-०-


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रोकिए पहर-पहर (कविता) - सुरजीत मान जलईया सिंह


रोकिए पहर-पहर
(कविता)
रोकिए पहर-पहर
जल रहा शहर-शहर।
घिर रही घटा-घटा
देखिए कहर-कहर।

मन्दिरों के गर्भ में
आरती भी मर गयी।
मौन आयतें हुईं
फिर कुरान डर गयी।
देखिए कि देखिए
चीखती अज़ान है।
लाश बेकसूर की
रो रहा मसान है।
धर्म-धर्म चीखता
कौन ये यहाँ वहाँ।
तुम समहल के जाइए
इस डगर-डगर-डगर
रोकिए पहर-पहर
जल रहा शहर-शहर।
घिर रही घटा-घटा
देखिए कहर-कहर।

राम की रहीम की
कौन सुन रहा है अब।
सिर्फ राजनीति का
भौंन घुन रहा है अब।
भोले-भाले लोग सब
आ गये फरेब में।
देश आ गया है अब
नेताजी की जेब में।
लुट ले गये चमन।
रौंद दी कली-कली।
मतलबी जुबान ने
बो दिया ज़हर-ज़हर।
रोकिए पहर-पहर
जल रहा शहर-शहर।
घिर रही घटा-घटा
देखिए कहर-कहर।

अपने आप अपनी ही
बेच दी आजादियाँ।
नफ़रतों की आग में
जल गयीं हैं वादियाँ।
हर गली-गली-गली
खून बह रहा है अब।
भाई-भाई को भी भाई
कौन कह रहा है अब।
कलकलें चिनाब की
मौन होती जा रहीं।
रावी और सिन्धु भी
अब गयीं ठहर-ठहर
रोकिए पहर-पहर
जल रहा शहर-शहर।
घिर रही घटा-घटा
देखिए कहर-कहर।
-०-
सुरजीत मान जलईया सिंह
दुलियाजान (असम)
-०-
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निशानी (लघुकथा) - गोविन्द शर्मा

निशानी
(लघुकथा)
वह मैले कपड़े पहने,छितराए बालोंवाला लड़का कई दिन से घर के दरवाजे पर खड़ा दिखाई दे रहा था। मैंने बाहर आकर डाँटा तो बोला- साहब, मैं भिखारी नहीं हूं। घर का खर्च चलाने के लिए कबाड़, पुरानी किताबें खरीदता हूं और आगे बेचता हूूँ। मुझे आपके पड़ोसियों ने बताया है कि आप लेखक हैं। आपके पास बहुत किताबें होती है। आप बेच सकते हैं। इसलिए.....।
मैं लेखक हूं। मेरी किताबें रद्दी वाले को बेचने लायक होती हैं? हो सकता है पड़ोसियों ने यह व्यंग्य में कहा हों पर उसके चेहरे पर ऐसे भाव नहीं थे।मैंने उसे भेज दिया। वह बार-बार आने लगा तो एक दिन मैंने किताबों का एक बंडल उसे बेच दिया। यह बच्चों की फटी-पुरानी किताबें थी।
दो दिन बाद वह फिर दरवाजे पर खड़ा था। मैंने उसे डाँटा कि इतनी जल्दी वह फिर पुरानी किताबें खरीदने आ गया? इस बार क्या कहा है मेरे पड़ोसियों ने?
किसी ने कुछ नहीं कहा साहब। मैं खुद ही आया हूं। कुछ खरीदने नहीं, यह किताब वापस करने। इस किताब पर किसी बच्चे की फोटो चिपकाई हुई है। कुछ लिखा हुआ भी है। लगता है यह आपके किसी बच्चे की निशानी है। इसे आप संभालकर रखना चाहेंगे।
उसकी बात से मुझे हैरानी हुई । कुछ अजीब भी लगी। गलियों में रद्दी खरीदने वाला यह बच्चा किसी की स्मृति के बारे में इतनी ऊँंची बात कर रहा है। वह किताब हाथ में लेते हुए मैंने पूछा- तुम्हारे घर में किस किस की निशानी जमा है। तुम निशानी के महत्त्व के बारे में क्या जानते हो?
वह बोला- ज्यादा तो नहीं, पर मेरे दादा-दादी मुझे अपने बेटे की निशानी कहते हैं। मेरे माता-पिता इस दुनिया में नहीं है।
-०-
गोविन्द शर्मा
संगरिया- हनुमानगढ़ (राजस्थान)

-०-
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जनवादी कथाकार : स्वयं प्रकाश (आलेख) - सत्यम भारती

जनवादी कथाकार : स्वयं प्रकाश
(आलेख)
हिन्दी गद्य साहित्य के प्रमुख जनवादी कथाकार स्वयंप्रकाश की मृत्यु हिन्दी कथा साहित्य के लिए अपूर्णीय क्षति है । साठोत्तरी पीढ़ी के बाद के जनवादी लेखन से ताल्लुकात रखने वाले स्वयं प्रकाश जी पहले कविता लेखन तथा मंचों पर स्वसुर वाचन किये करते थे बाद में उन्होने कथा, उपन्यास, संस्मरण, रेखाचित्र,नाटक, निबंध आदि विविध गद्य विधाओं पर कलम चलायी । तकनीक की शिक्षा प्राप्त करने वाले स्वयं जी का का हिन्दी से यह लगाव मातृभाषा के प्रति उन्मुखता, सात्विक प्रेम तथा लोकप्रियता दृष्टिगोचर करती है । उनके कथा साहित्य में लोकरंग, लोकभाषा, लोकतत्व, ग्रामीण सभ्यता एवं संस्कृति, जन चेतना तथा राजस्थान बोलता है । उनके देशी पात्र अनेक रूप-रंग के ताने-बाने बुनने के साथ-साथ गूढ़ संदेश तथा समस्याओं को भी उजागर करते हैं । मध्यवर्ग की संभावनाओं को कहानियों में उकेड़ने वाले स्वयंप्रकाश आधुनिकता,मशीनीकरण, शहरीकरण, यांत्रिकता आदि जैसे प्रांसगिक विषयों को भी आत्मसात करती है । 'ईंधन' उपन्यास भूमंडलीकरण की समस्या पर लिखा गया है । मात्रा और भार, सूरज कब निकलेगा, आसमाँ कैसे-कैसे, अगली किताब, आयेंगे अच्छे दिन, छोटू उस्ताद, आदि उनकी सुप्रसिद्ध कहानी हैं । जलते जहाज पर, बीच में विनय, ईंधन, उत्तर जीवन कथा, ज्योति रथ के सारथी आदि उनके उपन्यास हैं । इसके अतिरिक्त उन्होने निबंध, नाटक, रेखाचित्र, संस्मरण आदि विधा में भी लेखनी चलायी है । स्वान्तः सुखाय, दूसरा पहलू, रंगशाला में एक दोपहर तथा एक कहानीकार का नोटबुक उनका प्रसिद्ध निबंध है तो वहीं फिनीक्स उनका सुप्रसिद्ध नाटक । बाल-साहित्य में भी उनकी खासी रूचि थी, उन्हें "प्यारे भाई रामसहाय" नामक बाल कृति पर साहित्य अकादमी से नवाजा गया था । प्रसिद्ध कथाकार रमेश उपाध्याय से प्रेरित होकर लेखन प्रारंभ करने वाले इंदौर के वीर-स्वयंप्रकाश का जनवादी स्वभाव तथा कला की बुनावाट ऐसे मुखरित होता है कि अनुभव उसके सामने शर्मिंदा हो जाता है । अच्छी और कालजयी रचना वही होती है जो वर्तमान के साथ-साथ भविष्य को भी जीयें स्वयंप्रकाश की कृति भी कुछ इसी तरह की हैं । उनके जाने से हिन्न्दी कथा साहित्य में जो बड़ा गैप हुआ है उसे पाटने में अभी वर्षों लग जायेंगे । कथाकार को विनम्र श्रद्धांजलि ।
-०-
पता-
सत्यम भारती
नई दिल्ली
-०-

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युधिष्ठिर की पीड़ा (कविता) -मोनिका शर्मा

युधिष्ठिर की पीड़ा
(कविता)
युधिष्ठिर को थी पीड़ा भारी
स्वयं को समझ पर बैठे
महाभारत का अधिकारी
ना चैन आया
उन्हें कौरवों के मरणोपरांत
देख धृतराष्ट्र को विचलित रहते
गांधारी ने किया क्षमा उन्हें
परंतु बिलक बिलक यही कहते
हुई भूल मुझसे यह कैसे
कारण वे समझ नहीं पाते समझ नहीं पाते
द्रौपदी समझाती,
उनको नकुल सहदेव गले लगाते
परंतु फिर युधिष्ठिर संताप के
तालाब से बाहर नहीं निकल पाते
बोया जो है वह यही तो काटा जाएगा
खाली हाथ में आया मनुष्य,खाली हाथ ही जाएगा
श्री कृष्ण कहे युधिष्ठिर से
उनकी भी बात वह समझ नहीं पाते हैं
हृदय डूबा घोर अंधेरे में
खुद को एक कोने में पाते हैं
युधिष्ठिर कहते भाइयों से,
मैं सन्यास ले लेता हूं
‌राज्य और प्रजा को
तुम्हारे हवाले करता हूं

‌भीष्म पितामह समझाते उनको
‌तुम ऐसा ना व्यवहार करो
‌‌महाभारत के युद्ध में समर्पित
‌लोगों का ना संताप करो,
‌सबके समर्पण का
ऋण तुम्हें चुकाना होगा‌
है युधिष्ठिर अब तुम्हें
राज्य अपनाना होगा।-०-
पता:
मोनिका शर्मा
गुरूग्राम (हरियाणा)

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