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Wednesday 6 November 2019

कोयल की कक्षा (बाल कहानी) ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

कोयल की कक्षा
(बाल कहानी)
कोयल ने अपने छात्रों को घर पर रियाज करने के लिए कहा था. सभी छात्र अपनाअपना रियाज कर रहे हैं या नहीं ? यह देखने के लिए वह उड़ चली.
रास्तें में उसे बुलबुल चिड़िया मिली. वह कूद रही थी. एक, दो, तीन. साथ ही उस के साथ ही गिनती बोल रहे थे. नौ, आठ, सात, छह, पांच, चार, तीन, दो, एक.
बुलबुल चिड़िया गाना गा रही थी. “सारे जहां से अच्छा, तिनका-तिनका घर हमाराहमारा.”
कोयल को बुलबुल का गाना अच्छा लगा. उस की छात्रा बुलबुल गाने का रियाज कर रही थी. वह आगे उड़ी. वह एक गधा मिला. वह जिद् कर के कल ही कोयल के संगीत विद्यालय में भरती हुआ था.
वह जमीन पर लोट लगा रहा था. एक, दो, तीन. फिर जमीन पर लोट मार कर अपना गला साफ किया. गाने लगा, “ सारे जहां से अच्छा, धूल सना गांव हमाराहमारा.”
“ वाह ! सुंदर रियाज”, कहते हुए कोयल उड़ कर आगे चल दी.
आगे जाने पर उसे एक कठफोड़वा मिला. वह अपनी चोंच से पेड़ के काट कर अपने लिए घर बना रहा था. नौ, आठ, सात, छह, पांच, चार, तीन, दो, एक.
फिर उस ने तीन बार जोर से पंख फड़फडाएं. ऊंचेनीचे उड़ा. और गाने लगा, “ सारे जहां से अच्छा, प्यारासा वृक्ष हमाराहमारा.”
कोयल को कठफोड़वा का गाना अच्छा लगा. वह आगे चल दी. उस ने कौए को अपना शिष्य बनाया था. वह अपनी कर्कश आवाज से परेशान था. कोयल ने उसे कहा था. “अपनी कर्कश आवाज सुधारना चाहते हो तो नमक मिले गरम पानी से गरारे करना. इस से गला साफ हो जाता है. खराश भी दूर हो जाती है.”
कौआ अपने घर में बैठा हुआ गरारे कर रहा था. उस ने सब से पहले गरम पानी मुंह में डाला. फिर, मुंह ऊंचा कर के बोला, “ गर्रर...गर्रर. नौ,आठ, सात, छह, पांच, चार, तीन, दो, एक.” फिर जोर से ऊंचेनीचे उछला.
एक दो तीन. फिर गाने लगा, “ सारे जहां से अच्छा, तिनकातिनका जहां हमाराहमारा.”
कोयल को कौए का गाना अच्छा लगा. उस की कर्कश आवाज मधुर हो रही थी. अब कोई यह नहीं कहेगा कि कौआ कर्कश बोलता है. यह सोच कर कोयल उड़ी.
वह नीलकंठ के पास पहुंची. वह अपने दोस्तों के साथ बैठा हुआ रियाज कर रहा था, “ सारे जहां से अच्छा, ये दोस्तां हमाराहमारा.”
साथ ही सभी साथी गा रहे थे. यह देख कर कोयल ने कहा, “ शाबाष नीलकंठ ! तुम अपने दोस्तों को भी सीखा रहे हो. इसी तरह अभ्यास करते रहो. एक दिन बहुत उम्दा गाना गाना सीख जाओगे.”
यह सुन कर नीलकंठ बोला, “ बहुतबहुत आभार गुरूजी.” कहने के साथ वह तीन बार उछला. फिर बोलने लगा, “ नौ, आठ, सात, छह, पांच, चार, तीन, दो, एक. आया मजा.”
“ हुरर्र रे !” कहते हुए तीनों साथी चिल्ला पड़े.
कोयल के सभी छात्र बढ़िया रियाज कर रहे थे. यह देख कर वह खुश थी. उसे अपनी अंतिम छात्र का रियाज देखना था. वह उड़ कर गौरेया के पास पहुंची. वह पानी में नहा रही थी.
छपाक, छपाक, छपाक. साथ ही कह रही थी,” नौ, आठ, सात, छह, पांच, चार, तीन, दो, एक.”
इस की नकल उस के बच्चे उतार कर रहे थे. उन्हें भी कूदने में मजा आ रहा था. वह अपनी गौरेया मां की तरह कूदे. छपाक-एक, छपाक-दो, छपाक-तीन.
फिर उलटी गिनती दोहराने लगे. नौ, आठ, सात, छह, पांच, चार, तीन, दो, एक.
यह देख कर कोयल खुश हो गई. तभी गौरेया ने गाना गाया, “ सारे जहां से अच्छा, गुलिस्तां हमाराहमारा.”
“ सारे जहां से अच्छा, यह गुलिस्तां हमाराहमारा.”
यह सुन कर कोयल को अपनी लय व तान मिल गई. उस ने भी एकदोतीन कह कर अपने गले से लंबी तान निकाली. उलटी गिनती बोली, “ नौ, आठ, सात, छह, पांच, चार, तीन, दो, एक.”
फिर गाना शुरू कर दिया, “ सारे जहां से अच्छा, गुलिस्तां हमाराहमारा.”
यह कहतें हुए वह उड़ गई. उसे अपने विद्यालय के लिए एक बहुत बढ़िया गाने की लय मिल गई थी. उस ने सोचा कि वह कल सभी को यही गाना सीखएगी. वह अपनी विद्यालय पहुंची.
वह कई विद्यार्थी गाना सीखना चाहती थी. वे उन का फार्म भरते हुए गाने लगी, “ सारे जहां से अच्छा, गुलिस्तां हमाराहमारा.”
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ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

पता- *पोस्ट ऑफिस के पास , रतनगढ़ जिला-नीमच (मध्यप्रदेश)
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छठ मैया (गीत) - बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

छठ मैया
(गीत)
चरणन में छठ माँ के,
कोसिया भरावण के,
दऊरा उठाई चले,
सब नर नार हो।

गंगा के घाट लगी,
भीड़ भगतन की,
देखो छठ मइया की,
महिमा अपार हो।

माथे पे सब चले दऊरा उठाई,
बबुआ, देवर, कहीं भतीजा, भाई,
सुहानी नार सजी,
बिहाने बिहाने चली,
पग में महावर लगी,
सँग भरतार हो।

जल में खड़े हो अर्घ देवन को,
उगते सूरज की पूजा करन को,
सब दिवले जलाये,
फल, पुष्पन चढाये,
माला अर्पण करे,
करो स्वीकार हो।

छठ माई पूर्ण करो इच्छाएँ सारी,
तेरी तो महिमा जग में है भारी,
अन-धन भंडार भरो,
सब को निरोग रखो,
चाही सन्तान देवो,
सुखी संसार हो।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया (असम)
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दोस्ती (बाल कहानी) - रशीद ग़ौरी

दोस्ती
(बाल कहानी)
छुट्टियाँ बिताने के बाद बच्चे अपने-अपने स्कूल लौटने लगे थे। स्कूल में काफी चहल-पहल थी। बच्चे अपने दोस्तों से कई दिनों बाद मिल रहे थे और एक दूसरे को अपनी छुट्टियों के संस्मरण सुना रहे थे।
कुछ दिनों बाद विश्वास नाम का एक लड़का उनकी कक्षा में नया-नया आया । वह नया लड़का किसी से भी बात नहीं करता था । वह अकेला ही रहता।
" आओ दोस्त,आज हमारे साथ बैठकर खाना खाओ। " राजू ने विश्वास को आवाज लगाई ।
" नहीं राजू, अभी नहीं, धन्यवाद।" कहते हुए विश्वास एक तरफ जाकर बैठ गया और अपना टिफिन बॉक्स खोलकर खाने लगा।
राजू ने अपने पास बैठे खाना खा रहे रवि से कहा- "इससे पूछ , यह हमारे साथ खाना क्यूँ नहीं खाता है? हमारा दोस्त क्यूँ नहीं बनता ? "
" अरे मार गोली, घमंडी लगता है। " सामने बैठे कमल ने भी तीर छोड़ दिया।
राजू ने अपना फैसला सुनाया- " अब हम भी इससे बात नहीं करेंगे। आखिर यह अपने आप को समझता क्या है?"
सभी सहमत हो गए। पूरी कक्षा में विश्वास से कोई भी बात नहीं करता था।
कुछ दिनों बाद, विश्वास ने स्वयं उनके साथ घुलना- मिलना चाहा, मगर किसी ने भी उससे सीधे मुँह बात नहीं की ।
उस दिन राजू अपनी नयी स्टार साईकिल पर सामने देखने के बजाय दूसरी तरफ देखते हुए बड़ी लापरवाही से चला जा रहा था। उसे पता ही नहीं चला कि कोई ट्रक बाँयीं तरफ से आ रहा है। चौराहे के मोड़ पर ज्यों ही वह मुड़ा, यमदूत सा ट्रक उसी की ओर आता हुआ दिखा। उसके हाथ- पाँव काँप गए। उसी क्षण, उसके पीछे ही साईकिल पर आ रहे विश्वास ने उसकी कॉलर पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। ट्रक के पहिये साईकिल को कुचलते हुए निकल गए । साइकिल चकनाचूर हो गयी।
सभी प्रत्यक्षदर्शी लोग दौड़कर आए । राजू और विश्वास को कोई चोट नहीं आई। मामूली खरौंचों के अलावा।
सभी ने मुक्तकंठ से विश्वास के साहस और सूझबूझ की प्रशंसा की। स्कूल के प्रधानाचार्य और अध्यापकों ने उसे शाबाशी दी। जिला स्तर पर आयोजित पन्द्रह अगस्त के मुख्य समारोह में उसे अपने साहस का परिचय देने के लिए जिला कलेक्टर के द्वारा प्रशंसा-पत्र देकर सम्मानित किया गया।
विश्वास ने राजू को उनके साथ नहीं रहने का कारण बताया- " भाई राजू , उन दिनों मुझे खुजली की बीमारी थी। डॉक्टर साहब ने मुझे दूसरों से अलग रहने को कहा था। इसीलिए मैं तुम सभी से दूर-दूर रहा करता था। ठीक होने पर मैंनें तुमसे दोस्ती करनी चाही मगर तुमने मुझे दोस्त नहीं माना। "
यह सुनकर राजू बहुत शर्मिंदा हुआ। उसने आगे बढ़कर विश्वास को गले लगा लिया - "आज से तुम हमारे पक्के दोस्त।"
सभी दोस्त मुस्कराने लगे । उन्हें एक और अच्छा दोस्त मिल गया था।
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रशीद ग़ौरी 
21- समीर, दिल्ली दरवाजा कॉलोनी,
सोजत सिटी, पाली, (राजस्थान)
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दरबारों के कंख (नवगीत) - राजपाल सिंह गुलिया

दरबारों के कंख
(नवगीत)

प्रेम भाव की दावत में जब ,
बँटी जूतियों दाल .
जीत रहे अपराधी मिलकर ,
राजनीति का खेल .
बोता फिरे बागवाँ देखो ,
कदम कदम विषबेल .
लात पेट पर मार भूख ने ,
दागे कई सवाल .
डाल गए ये अपनेपन में ,
साम दाम औ' भेद .
अपने करते संबंधों की ,
नैया में अब छेद .
हुआ ताल के जल का मालिक ,
हरा भरा शैवाल .
उड़ा रहे हैं श्वेत कबूतर ,
नोंच नोंच कर पंख .
अवसरवादी बन बैठे सब ,
दरबारों के कंख,
पूजन करें पेट का फिर ये ,
करें भूख हड़ताल
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राजपाल सिंह गुलिया
गाँव - जाहिदपुर,  डाकखाना - ऊँटलौधा
तहसील व जिला - झज्जर (हरियाणा)
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दो परिवार की डोर मैं (कविता) - मेघा श्रीवास्तव खरे ‘जलधि’


दो परिवार की डोर मैं
(कविता)
मैं और मेरा ससुराल
विवाह के बाद
एक नया जीवन प्रारंभ किया मैंने...
बचपन छोड़कर
एक नया मोड़ लिया मैंने...
लडकियाँ जानती हैं
कि एक दिन ससुराल जाना पड़ता है
पुराना छोड़कर
एक नया संसार बनाना पड़ता हैं
नौ वर्षों में
बहुत कुछ अनुभव किया मैंने..
प्रथम दिन से
आज तक की कहानी क्या कहूँ...
जो गुज़र गया
उसकी रवानी क्या कहूँ
शब्दों पर विचार कीजिये
जो कह दिया मैंने...
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मेघा श्रीवास्तव खरे ‘जलधि’   
नागपुर (महाराष्ट्र)






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