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Thursday 26 November 2020

किसी बहाने से (ग़ज़ल) - अलका मित्तल

 

किसी बहाने से
(ग़ज़ल)
रूठकर उदास बैठी हैं ख़ुशियों इक ज़माने से
पर ग़म चले आते हैं किसी न किसी बहाने से

ओढ़ने से चादर ग़मों की हासिल कुछ भी नहीं
ज़िन्दगी के कुछ दर्द चले जाते हैं मुस्कुराने से

कभी पा लूँ उसे ये तो शायद मुमकिन ही नहीं
तबियत बहल जाती है ख़्याल उसका आने से

ख़्वाहिश न हो जब तलक रिश्ते नहीं बनते
गर चाहो दिल से बात बन जाती है बनाने से।

तुम कभी दिल की गहराइयों से अपनी पूछना
कितना सुकूँ मिलता है ओरो के काम आने से

खामोशियाँ सी छा गईं उसके मिरे दरमियाँ
नहीं भूलती वो यादें”अलका”लाख भुलाने
-०-

पता:
अलका मित्तल
मेरठ (उत्तरप्रदेश)

-०-

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नहीं दूध में (बालगीत) - डा. जियाउर रहमान जाफरी

   

नहीं दूध में
(बालगीत)
बोली     माँ से    नन्हीं  शालू 
रख लो    वापस पूरी   आलू 

लो खिचड़ी भी तुम ही खालो 
रखो यहां मत दाल उठा    लो 

सेब न मुझको कुछ भाता   है 
ये सब कौन है  जो खाता    है 

बनो  न मेरी   नानी       मम्मी  
ले जाओ  बिरयानी       मम्मी 

कहाँ पुलाव  मैं    खा पाती हूं 
बस भूखी ही  रह      जाती हूं 

सुनकर  बोली मम्मी      प्यारी 
ग़लत है बिटिया  बात तुम्हारी 

बच्चे सब    कुछ  जो खाते   हैं 
वो सेहतमंद    रह     पाते    हैं 

बड़ी हो तुम  ये    बात   पता है 
नहीं दूध  में    सारी ग़िज़ा    है 
-0-
-डा जियाउर रहमान जाफरी ©®
नालंदा (बिहार)



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ढूँढते फिरोगे (कविता) - भावना ठाकर

 

ढूँढते फिरोगे

(कविता)

कसक जब साथ बिताएं हसीन लम्हों  की याद आएगी तब, 
ज़िंदगी की किताब के हर पन्नों पर हमसे वाबस्ता इश्क के फ़साने ढूँढोगे।

नादाँ मेरे महबूब अकेले में तड़पते गुज़रा हुआ ज़माना ढूँढोगे 
हम है तो वीरानियों में भी बहार ए चमन है,ना रहेंगे हम तो मौसम ए बारिश की फुहार ढूँढोगे।

जा रहे हे रुख़सत जो दे रहे हो आज अपनी महफ़िल से हंस हंसकर,
कल दिल बहलाने की ख़ातिर हमें  लगातार ढूँढोगे।

बेख़बर हो हुश्न ए रौनक के नूर से तुम, उदास रातों में इन आँखों का नशा पाने मैख़ाने की दहलीज़ ढूँढोगे

बरसों का मोह है चंद पलों की दिल्लगी नहीं भूल पाओ तो भूला देना, 
भूलाने की कोशिश में हमें और करीब पाओगे 
तब अश्क जम जाएंगे ख़्वाबगाह में रोने के बहाने ढूँढोगे।

चाहा है तुम्हें चाहत की हद से गुज़रकर हमने रोम रोम भरकर, साँस साँस छनकर,
ढूँढने पर भी जब नज़र ना आऊँगी तब मचलकर मौत के बहाने ढूँढोगे।

-०- 
पता 
भावना ठाकर
बेंगलोर (कर्नाटक)

-०-



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आज फिर (कविता) - सरिता सरस

 

आज फिर
(कविता)
आज फिर....
उसका मुस्कराता चेहरा
तैर गया मेरी आँखों में
कांप गया मेरा वज़ूद ही
उस दिन की अपनी चुप्पी पर....

जब हंसे थे कुछ लोग
उसकी विकलांगता पर,
जब बेचारा कहकर
कर दिया गया था उसे किनारे
मैंने भी तो
बड़ी दया दृष्टि से देखा था उसे
मगर,
आज वह उसकी मुस्कान
चीरती है मेरे खोखले संस्कार को
अट्टहास करती है
मेरे दिमाग के बौनेपन पर...

आज वह उसकी मुस्कान
मुझमें ज्वालामुखी - सी हलचल पैदा कर दी है...
आज जब मैं अकेले... उदास..
जीवन से हारी हुई
बैठी थी अश्रु में डूबी
ओ आया......
वही एक पैरों वाला
हौले से कंधे पर हाथ रखा
फिर वही मुस्कान तैर रही थी
उसके अधरों पर....
बोला फिक्र मत कर ऐ दोस्त
तू अकेली नहीं
मैं तुम्हारे साथ हूँ.....

कलेजे को चीर गए ये शब्द
लगा धरती कांप उठी
अम्बर डगमगा उठा.....
आज मैं समझ पाई
विकलांगता का सच...
उसने मुझे मेरे
बौनेपन से आज़ाद कर दिया......
-०-
पता:
सरिता सरस
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
-०-



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