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Thursday 26 November 2020

आज फिर (कविता) - सरिता सरस

 

आज फिर
(कविता)
आज फिर....
उसका मुस्कराता चेहरा
तैर गया मेरी आँखों में
कांप गया मेरा वज़ूद ही
उस दिन की अपनी चुप्पी पर....

जब हंसे थे कुछ लोग
उसकी विकलांगता पर,
जब बेचारा कहकर
कर दिया गया था उसे किनारे
मैंने भी तो
बड़ी दया दृष्टि से देखा था उसे
मगर,
आज वह उसकी मुस्कान
चीरती है मेरे खोखले संस्कार को
अट्टहास करती है
मेरे दिमाग के बौनेपन पर...

आज वह उसकी मुस्कान
मुझमें ज्वालामुखी - सी हलचल पैदा कर दी है...
आज जब मैं अकेले... उदास..
जीवन से हारी हुई
बैठी थी अश्रु में डूबी
ओ आया......
वही एक पैरों वाला
हौले से कंधे पर हाथ रखा
फिर वही मुस्कान तैर रही थी
उसके अधरों पर....
बोला फिक्र मत कर ऐ दोस्त
तू अकेली नहीं
मैं तुम्हारे साथ हूँ.....

कलेजे को चीर गए ये शब्द
लगा धरती कांप उठी
अम्बर डगमगा उठा.....
आज मैं समझ पाई
विकलांगता का सच...
उसने मुझे मेरे
बौनेपन से आज़ाद कर दिया......
-०-
पता:
सरिता सरस
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
-०-



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