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Tuesday 12 January 2021

'हिन्दी का गौरव गान करें' (कविता) - रजनीश मिश्र 'दीपक'

   

'हिन्दी का गौरव गान करें' 
(कविता)
आओ विश्व हिन्दी दिवस पर,हिन्दी का गौरव गान करें ।  
भारत माँ की इस बिंदी पर,हम थोड़ा सा अभिमान करें। 
 गीत कहानी कविताओं का,उपजा इससे संसार है ।      
हिंदुस्तानी ज्ञान गंगा  की,इसमें  बहती रसधार है ।      
यह सूर, कबीर, तुलसी, रसखान,                                 
मीरा, सुभद्रा, महादेवी की शान।                                  
गांधी, नेहरु, तिलक महान,                                    
दिनकर, निराला, पंत जी की पहचान ।                        
विदेशियों ने भी आकर यहाँ,गाया हिन्दी का गुण गान।    
हिन्दी में ही सब शोध किये,हिन्दी पढ़ाकर पाया मान ।    
ईसाई धर्म का प्रचार करने,                                
बेल्जियम से फादर कामिल बुल्के थे आये।                    
भारत की भाषा और हिन्दी भाषी लोग,                        
उनके मन को बहुत ही भाये ।                                      
कलकत्ता यूनिवर्सिटी से उन्होंने,संस्कृत में डिग्री ली ।      
सन उन्नीस सौ पचास में उन्होंने,                        
रामकथा पर पीएचडी की।                                         
 फिर रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में,                            
हिन्दी के प्राध्यापक बने।                                           
 प्रतिदिन नये शब्दों को खोज कर,                                 
हिन्दी शब्द कोश विस्तारक बने।                                
बुल्के जी का कहना था,कि संस्कृत भाषा महारानी है।    
हिन्दी अपनी रानी जैसी, और अंग्रेजी नौकरानी है।        
आओ हम भी नवल प्रयास करें।                          
अपनी रानी मां से सुभाष करें।                                    
अपनी इस हिन्दी मातृभाषा पर,                                  
गर्वोक्ति का अहसास करें।
-०-

पता 

रजनीश मिश्र 'दीपक'
शाहजहांपुर (उत्तरप्रदेश)

-०-



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नमन विवेकानंद जी (कविता) - विक्रम कुमार


नमन विवेकानंद जी
(कविता)

आदर्श उनके हैं बसे ब्रह्मांड के आधार में

जीवन लगाया अपना बस युवाओं के उद्धार में

दुनिया में सुधारक तो लाखों आए थे मगर

विवेकानंद जी सा ना हुआ कोई संसार में


आपको है हिंद का वंदन विवेकानंद जी

युवा दिवस पे आपको नमन विवेकानंद जी


थे बहुत कुशाग्र और क्षमताओं में अनंत थे

उत्थान उजालों के थे, और तम का अंत थे

राह एक नयी जमाने को दिखा गए सफल

अद्वितीय संसार में थे, क्रांतिकारी संत थे


मां भारती के कीमती रतन विवेकानंद जी

युवा दिवस पे आपको नमन विवेकानंद जी


ज्ञान की घुट्टी नई दुनिया को था पिला दिया

सीमाएं न बचीं कोई सबको था मिला दिया

बोलने की आई जो बारी तब विदेश में

ऐसा बोलने लगे कि दुनिया को हिला दिया


जीता तब संसार का था मन विवेकानंद जी

युवा दिवस पे आपको नमन विवेकानंद जी


गुरुशरण में शिष्य के सब धर्म निभाते रहे

आध्यात्म की लौ हरेक दिल में जलाते रहे

गंगा, गीता, गाय और गायत्री में रख आस्था 

हिंदुत्व का सदा ही वो मान बढा़ते रहे


बता गए क्या होता है सनातन विवेकानंद जी

युवा दिवस पे आपको नमन विवेकानंद जी


आप के हीं गुणों को गा रहा है ये गगन

आपकी ही याद में है गंगा और गीता मगन

हिंद के पुरोधा स्वामी विवेकानंद जी

देश पूरा कर रहा है आपको दिल से नमन


आभारी आपका सदा वतन विवेकानंद जी

युवा दिवस पे आपको नमन विवेकानंद जी

-०-

पता 
विक्रम कुमार
वैशाली (बिहार)


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मां (लघुकथाएँ) - समीर उपाध्याय

माँ

(लघुकथा)

अपराध बोध की भावना के साथ जज साहब अपनी मां को वृद्धाश्रम छोड़ने गए। एडमिशन फॉर्म के साथ जरूरी फीस भी जमा कर दी। जज साहब ने कुछ रुपये देकर वृद्धाश्रम के मैनेजर के साथ दोस्ती कर ली और मां की अच्छी तरह से देखभाल करने के लिए सिफारिश कर दी। मैनेजर ने कहा-" साहब, चिंता मत कीजिए ।आपकी मां हमारी मां है। हम उनका पूरा ख्याल रखेंगे। समय-समय पर खाना और दवाई भी देते रहेंगे। अब आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।"

मैनेजर ने जज साहब से पूछा-" साहब,मां को वृद्धाश्रम में छोड़ने का कोई खास कारण ?"जज साहब ने आंखों में आंसू के साथ अपने दिल की बात करते हुए कहा -"मेरे घर में पत्नी और एक जवान बेटा और एक बेटी है। घर भी बहुत बड़ा है। लेकिन मेरी पत्नी का मां के साथ व्यवहार बहुत बुरा है। ना समय पर खाना देती है और ना दवाई। अब तो पत्नी के इशारे पर बच्चों ने भी मां के साथ बोलना बंद कर दिया है।यह सब कुछ देखकर मुझे बड़ा आघात लगता है। मां दिन भर रोती रहती है। मां की हालत मुझसे देखी और सही नहीं जाती। आखिर थककर मैंने मां को वृद्धाश्रम में छोड़ने का फैसला किया है। मैं अपराध बोध की भावना महसूस कर रहा हूं।"

जज साहब इतना बोलते ही रो पड़े। मैनेजर ने कहा -"आप तो विद्वान और न्यायाधीश है। कोर्ट में सत्य और तथ्य आधारित न्याय करते है। सबूत के आधार पर फैसला सुनाते है।न्यायाधीश होते हुए भी आप अपनी मां को न्याय दिलाने में असफल रहे है। आपके पास सारे सबूत हैं। आपने सब कुछ अपनी आंखों से देखा है। यदि आप अपनी मां को न्याय नहीं दिला सकते तो दूसरों को क्या न्याय देंगे?"

मैनेजर के इन शब्दों ने जज साहब को भीतर से झकझोर दिया। वह वापस घर लौटे।रात भर जागते रहे। अपना कमरा बंद करके दो दिन तक लेटे रहे। ना कुछ खाया और ना कुछ पिया। कोर्ट भी नहीं गए।

तीसरे दिन जज साहब कमरे से बाहर निकले। पत्नी और बच्चे तो घबराए हुए थे। पत्नी ने उन्हें खाने के लिए बुलाया। बच्चे भी उनका इंतजार करते रहे। जज साहब ने पत्नी को बुलाकर एक कागज उसके हाथ में थमा दिया। कागज की एक लाइन पढ़ते ही पत्नी के हाथों से थाली नीचे गिर गई। कागज में लिखा था कि मैं तुम्हें तलाक दे रहा हूं। बच्चों को बुलाकर कह दिया कि आज से मेरी सारी जायदाद और बैंक बैलेंस सब कुछ आपका है। मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।

बच्चों ने जबरदस्ती करके उन्हें कुर्सी पर बैठाया। हाथ जोड़कर इसका कारण पूछा तब जब साहब आंखों में अश्रुधारा के साथ बोले -"मेरी 70 साल की वृद्ध मां को वृद्धाश्रम छोड़ कर आया हूं। अजनबी लोगों के बीच छोड़ कर आया हूं। मां का क्या होगा इसका विचार करते ही शरीर कांपने लगता है। मां को खाना कौन देगा ?समय-समय पर दवाई कौन देगा ?मैं कुछ सोच ही नहीं सकता और आप सब मुझे कारण पूछ रहे हैं ?शर्म नहीं आती आपको ?आप सब संवेदनाहीन बन गए हैं।आप में से किसी ने भी मां के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया।इतना ही नहीं बात करना भी छोड़ दिया। आप सब यह भूल गए कि पूरा शहर इस जज को सलाम करता है। इस जज को बनाने में मां ने कितनी मेहनत की होगी ।पिताजी की मौत के बाद भी मां ने हीमत नहीं हारी ।उसने दिन-रात ट्यूशन किए।अपने अरमानों को दबाकर मुझे पढ़ाया ।भगवान जैसी मां को मैं संभाल नहीं सका और उसे वृद्धाश्रम छोड़ आया।"

अपने आप को कोसते हुए जज साहब बोले -"दूसरों को न्याय देने वाला जज आज अन्याय करके हार गया।मैं जज नहीं बल्कि एक बहुत बड़ा गुनहगार हूं। मैंने गुनाह किया है । मुझे शायद कानून तो माफ कर देगा किंतु ईश्वर के न्यायालय में मुझे माफी नहीं मिलेगी ।अब मैं अपने गुनाह का प्रायश्चित करने जा रहा हूं ।मेरा सर्वस्व आपको सौप रहा हूं ।अब मैं मां के साथ आश्रम में रहूंगा और आश्रम में रहने वाले वृद्धों की सेवा करूंगा।"

जज साहब ने अपनी पत्नी से कहा -"तूने मेरी मां को वृद्धाश्रम भेजा है।तू भी एक मां है। कल तुम्हारे बच्चे भी तुम्हें वृद्धाश्रम भेजेंगे तब तुम्हें मेरे इन शब्दों का अर्थ समझ में आएगा।" इतना कहकर जज साहब वृद्धाश्रम जाने के लिए घर से निकल पड़े।

आधी रात को जज साहब को वृद्धाश्रम में देखकर सब चौक गए ।मां के कमरे में जाकर देखा तो मां सोई हुई थी। नजदीक जाकर देखा तो मां पूरे परिवार की तसवीर को अपनी छाती से लगा कर रोती रोती सो गई थी। आश्रम के सभी लोग भी जाग गए क्योंकि पीछे जज साहब की पत्नी और उनके बच्चे भी आ रहे थे। उन लोगों को भी महसूस हो रहा था कि उन्होंने बहुत बड़ा पाप किया है और मां को विनती कर रहे थे कि हमें माफ कर दे। हमसे बहुत बड़ा पाप हो गया है। हमें माफ कर दे और वापस घर लौटे।

तब आश्रम का एक कर्मचारी बोला-"आपने मां को बहुत दुख दिया है ।क्या पता घर जाकर आप फिर से उनके साथ बुरा बर्ताव शुरू कर दे !यह सुनकर जज साहब की पत्नी के दिल को गहरी चोट लगी ।वह बोली-"बहन जी ,हम कबूल करते हैं कि हमने बहुत बड़ा पाप किया है लेकिन अब हम मां को मारने नहीं नया जीवन देने के लिए आए हैं ।आश्रम के सभी बुजुर्गों और वृद्धों की आंखों में आंसू थे। सभी रो पड़े ।खुशी के आंसू के साथ सभी ने जज साहब को प्रणाम करके वृद्धाश्रम से विदा किया।

"मां!तुम्हारे ऋण को मैं कैसे चूका पाउंगा? यदि तू मुझसे नाराज़ है तो भगवान भी मुझ पर कैसे प्रसन्न होगा?"

-०-

पता 
समीर उपाध्याय
सुरेंद्उरनगर (गुजरात)


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युवा दिवस और युवाओं के लिए संदेश (आलेख) - राजीव डोगरा

युवा दिवस और युवाओं के लिए संदेश
(आलेख)
स्वामी विवेकानंद जी एक ऐसे शख्स है जिस पर सिर्फ भारत वासियों को नहीं समूची मानव जाति को उन पर गर्व है इन्होंने अपनी ओजस्वी वाणी से टूटी हुई भारतीय जनता को फिर से उठ खड़े होने के लिए प्रेरित किया। वास्तव में किसी भी युग पुरुष की जयंती मनाने का मतलब उनको सिर्फ याद करना ही नहीं होता जयंती का मतलब है हम उनके उपदेशों को अपने जीवन में डाल कर अपने जीवन को सही ढंग से चला सकें। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उनके बारे में कहा था- "यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।"युग-पुरुष 'स्वामी विवेकानंद' का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) में हुआ।उनका जन्म दिवस राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। विवेकानंद जी ने अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी के दिव्य ज्ञान और उनके बताएगें सन्मार्ग पर चल कर मानव जाति के लिए बड़े-बड़े कल्याणकारी कार्य किए। विवेकानन्द जी अपने साथियों को संबोधित करते हुए कहते थे, "मनुष्य गाड़ना ही हमारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य हो। हमारी एकमात्र साधना हो। वृथा विद्या का गर्व छोड़ दो।भले ही कोई मतवाद उत्कृष्टतम हो, हमें उस की आवश्यकता नहीं है।ईश्वर की अनुमति ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य है।श्री रामकृष्ण देव अपने जीवन में इन आदर्शों को दर्शा गए हैं हमें उनके आदर्श जीवन का ही अनुकरण करना है।"
स्वामी जी ने 11 सितंबर 1893 शिकागो में सर्वधर्म सम्मेलन में ऐसा जोरदार भाषण दिया कि जिसको सुनकर सारे विश्व में हिंदुत्व की गूंज सुनाई देने लगी और विवेकानंद जी को तूफानी हिंदू के नाम से सब जाने लगे। स्वामी जी ने शिकागो में हुई सर्व धर्म सम्मेलन में कहा था, "मनुष्य मनुष्य के बीच भेद पैदा करना धर्म का काम नहीं है।जो धर्म मनुष्य में टकराव पैदा करता है।वह कुछ सिरफिरे लोगों का निजी विचार अथवा मत हो सकता है।उसे धर्म की संज्ञा देना मनुष्य के धार्मिक विवेक का अपमान करना है।धर्म द्वंद से परे है धर्म का आधार है प्रेम,भाईचारा,सहानुभूति,दया,ममता, आत्मीयता तथा सह- अस्तित्व की भावना।"
स्वामी जी ने हमें धर्म की सही परिभाषा का ज्ञान करवाया है मगर हम उस ज्ञान को अनदेखा कर आज भी धर्म के नाम लड़ -झगड़ रहे। स्वामी जी ने भारत के मूल धर्म का परिचय देते हुए कहा है,"जिस धर्म के वह प्रतिनिधि है वह सनातन हिंदू धर्म है।समुंदर पार भारतवर्ष नाम किस धर्म की विशेषता है कि यह समूची मनुष्य जाति के लौकिक एवं अध्यात्मिक विकास का संकल्प लेकर चला है। इससे सोच की मूल भूमि मनुष्य मात्र का कल्याण है। समस्त बुराइयों का परित्याग कर समस्त अच्छाइयों की ओर पूर्वक बढ़ने का निर्देश देता है यह धर्म।विश्व के सभी धर्मों की तुलना में सनातन हिंदू धर्म सर्वाधिक प्राचीन उधार है इस धर्म में किसी तरह की संकीर्णता तथा नकारात्मकता के लिए कोई स्थान नहीं है।" जिस सनातन हिंदू धर्म को स्वामी जी ने सारे विश्व में गर्व का पात्र बनाया।उसी धर्म की आज हम खिल्ली उड़ा रहे क्योंकि जिस तरह उन्होंने धर्म की व्याख्या की उस तरह आज हम अपने धर्म को नहीं निभा रहे हैं। आज तो हम धर्म के नाम पर आपस में मार कटाई ही कर रहे।स्वामी जी को यु्वाओं से बड़ी उम्मीदें थीं।उन्होंने युवाओं की अहं की भावना को खत्म करने के उद्देश्य से कहा है 'यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खड़े हो जाओगे, तो तुम्हें सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढ़ेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले ‘अहं’ ही नाश कर डालो।' उन्होंने युवाओं को धैर्य, व्यवहारों में शुद्ध‍ता रखने, आपस में न लड़ने, पक्षपात न करने और हमेशा संघर्षरत् रहने का संदेश दिया। स्वामी जी ने अपनी ओजस्वी वाणी से युवकों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया मगर आज हमारा युवा वर्ग स्वामी जी के उपदेशों को भूलकर अपने जीवन का अर्थ ही भूल गया है। आज युवा दिवस के अवसर पर मैं यही कहना चाहूंगा कि हमारे युवा वर्ग को जागने की जरूरत है क्योंकि जब वो जागेगा और स्वामी विवेकानंद जी के उपदेश पर चलेगा।उस दिन हमारे भारतवर्ष का स्वरूप बिल्कुल ही बदल जाएगा। क्योंकि युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्वकांक्षाओं से भरे हुए होते हैं। उनकी आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है। अंत में मैं स्वामी जी की सुप्रसिद्ध पंक्तियों से अपनी कलम को विराम देता हूं
"जिस पल मुझे यह ज्ञात हो गया कि हर मानव के हृदय में भगवान हैं तभी से मैं अपने सामने आने वाले हर व्यक्ति में ईश्वर की छवि देखने लगा हूं और उसी पल मैं हर बंधन से छूट गया। हर उस चीज से जो बंद रखती है, धूमिल हो जाती है और मैं तो आजाद हूं।" 
-स्वामी विवेकानंद
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राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
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