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Wednesday 5 February 2020

! ग्रेसी ! (लघुकथा) - डॉ विनीता राहुरीकर

! ग्रेसी !
(लघुकथा)
पिछले आठ दिनों से मेजर एक मिनट के लिए भी सोये नहीं थे। बस ग्रेसी के पलँग के पास या उसके रूम के बाहर गलियारे में कुर्सी पर बैठे रहते। आज ग्रेसी की हालत बहुत नाजुक थी। डॉक्टर सुबह से ही उसके इलाज में जुटे हुए थे।
बारिश में भीगते हुए लगातार आठ दिन तक रात दिन ग्रेसी मेजर के साथ जंगलों में आतंकवादियों द्वारा छुपाई हुई विस्फोटक सामग्री ढूंढती रही थी। डॉग्स तो दूसरे भी थे लेकिन ग्रेसी की सूंघने और भांपने की शक्ति बहुत तेज थी। कुल बारह किलो सामग्री उसने पकड़वाई वरना जानमाल का न जाने कितना बड़ा नुकसान होता। विस्फोटों की बहुत बड़ी साजिश को ग्रेसी ने नाकामयाब करके देश को बड़े संकट से बचा लिया। आखरी विस्फोटक की सूचना देने के साथ ही उसे पक्षाघात हुआ और वो बेहोश हो गई, तबसे वह 109 डिग्री बुखार में जीवन-मृत्यु के बीच झूल रही है।
"बेहोश होने से पहले भी उसने आखरी एक्सप्लोसिव पकड़वा ही दिया, मैं तो पाँव रखने ही वाला था वहाँ पर लेकिन ग्रेसी ने मेरी यूनिफार्म खींचकर मुझे आगाह कर दिया। वरना आज मैं जिंदा न होता। उसने देश के प्रति अपनी जिंदगी समर्पित कर दी।" मेजर अपने साथी कमांडो अर्जुन से बोला।
"अद्भुत थी उसकी समझ। दुःख बस यही है कि इंसान तो जमीन, धन या सत्ता की लालच में खून खराबा और लड़ाईयां करता है लेकिन ये मूक पशु बेचारे....
ये निर्दोष बेवजह इंसानों की खूनी महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ते है।" अर्जुन दुखी स्वर में बोला।
"इन बेचारों को पता भी नहीं होगा कि क्यों इन्हें बारिशों में भीगना पड़ता है, जानलेवा विस्फोटकों को ढूंढने में अपनी जान खतरे में डालनी पड़ती है या कभी चली भी जाती है। न उन्हें नाम का लालच न धन का, न पद का।" मेजर ने टूटते स्वर में कहा।
तभी ग्रेसी के कमरे से निकलते हुए डॉक्टर ने उसका कन्धा थपथपाते हुए बताया कि ग्रेसी नहीं रही।
"मनुष्य के स्वार्थ पर न जाने कब तक मूक पशु बलि चढ़ते रहेंगे।"
और ग्रेसी की मौत पर मेजर और अर्जुन की आँखों से आंसू बह निकले।
-०-
पता :
डॉ विनीता राहुरीकर
भोपाल (मध्यप्रदेश)
-०-

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बेटियाँ (कविता) - राजकुमार अरोड़ा 'गाइड'

बेटियाँ
(कविता)
बेटियाँ कमाल होती हैं
वास्तव में बेमिसाल होती है
घर के आँगन की महक
बगिया की निराली शान होती हैं
बेटियाँ स्नेह,प्यार, दुलार
अनुराग और ममता की खान होती हैं
पूजा का सामान,मंदिर का दीप
गुलाब की भीनी सुगन्ध होती हैं

रहती हैं धरा पर, नज़र रखती हैं आसमां पर
कल्पना की ऊंची उड़ान होती हैं
लक्ष्मी, शारदा औऱ दुर्गा का रूप
ये सभी रिश्ते नातों की जान होती हैं
गिटार,बांसुरी का सुरीला सुर
शहनाई की मधुर तान होती हैं
कविता का छन्द,ग़ज़ल का मिसरा
उमर खय्याम की रूबाई होती हैं

सबके अधरों की मुस्कान
पिता का गर्व और अभिमान होती हैं
ममता की चादर में लिपटी
माँ के आंचल की छाया का भान होती हैं
निष्ठुर जमाने की ललचायी नजरें
जहाँ उम्र का कोई पैमाना नहीं
घर की देहरी पर,जब तक न पहुंचे बेटी
सांसत में माँ बाप की जान होती है

बेटा, बेटा करने वालो याद रखो
यही बेटे जब लेते हैं मुँह फेर
तब बेटी चाहे रहती हो कितनी दूर
हर हाल में माँ बाप की ढाल होती हैं
बेटियाँ पुत्र वधू बन,नये घर को
बेटी से बढ़ कर निहाल करती है
ससुर पापा जैसा सम्मान पाते
सास,सास नहीं, मदर-इन-लव बन जाती हैं

रेल,बस, मेट्रो तक चला रही हैं बेटियाँ
अब तो वायुयान, फाइटर प्लेन भी उड़ाती हैं
दीपा, सिंधु,सायना, मिताली, गीता,बबीता
सुपर मॉम मैरी कॉम भारत का कितना मान बढ़ाती हैं
सच,सच ही तो है, बेटियाँ कमाल होती हैं
वास्तव में बेमिसाल, बेमिसाल ही होती हैं
दो परिवारों के माथे का चंदन, आँगन की महक
बगिया,पूरी बगिया की
निराली शान होती हैं
-०-
पता: 
राजकुमार अरोड़ा 'गाइड'
बहादुरगढ़(हरियाणा)


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भूख (कविता) - छगनराज राव

भूख
(कविता)
खाली पेट
क्षीण पड़ता शरीर
मजदूरों की सांसे
बिलखते बच्चे
रोती हुई आँखे
मन की आशाएँ
रोजगार तलाशती
जीवन जिज्ञासा
जगी उम्मीद
नव चेतना
ये रवानी
ये जवानी
वीरता का जोश
सबके होश
आक्रोश की आंधी
सच्च के साक्षी
बोलती जुबान
नया संकल्प
मेहनत का विकल्प
उड़ते पंछी
जग के जीव
नर और नारी
दुनिया सारी
सुनहरे सपने
पराये व अपने
कोई ना मरे
भूख से
करता हूँ मैं ये आराधना
सुनलो भगवन मेरी प्रार्थना
-०-
पता
छगनराज राव
जोधपुर (राजस्थान)
-०-

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माँ की ममता (कविता) - लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

माँ की ममता
(कविता)
एक बार फिर से मिल जाए,
माँ का वह मुझे दुलार।
धन दौलत सब तज दूँ मैं,
बस! माँ से करूँ मैं प्यार।।

किसी ने सृष्टि में अब तक,
माँ जैसा न ममता दी है।
मुझे दूध पिलाने में माँ तो,
रात रात भर जागी है।।

माँ जैसा निःस्वार्थ प्यार,
जग में न कोई दे सकता।
माँ के चरणों में सच ही,
साक्षात स्वर्ग ही बसता।।

बच्चे के ख़ुशियों की ख़ातिर,
ख़ुद पर अत्याचार भी सहती।
कितना दर्द भी सहकर माँ,
न किसी से कुछ भी कहती।।

एक बार फिर से मैं माँ,
तेरा बेटा बन पाऊँ।
मुझे मेरा बचपन लौटा दे,
तेरे गोदी में सो जाऊँ।।

हर रिश्ते में माँ का दर्जा,
सबसे ज्यादा महान है।
कर्ज कभी चुका न सकता,
चाहे जो जितना धनवान है।।

माँ जैसा ममत्व न दूजा,
मर कर भी बच्चे को जीवन दे,
अपने बच्चों के लिए तो माँ,
सर्वस्व समर्पण कर दे।।

एक बार फिर प्रभु मुझे,
माँ का वरदान मिले।
माँ की सेवा फिर से कर लूँ,
जीवन में मेरे फूल खिले।।
-०-
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
स्थायी पताबस्ती (उत्तर प्रदेश)



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करुणा की मूर्ति (कहानी) - डॉ गुलाब चंद पटेल

करुणा की मूर्ति
(कहानी)
एक छोटे से गांव आ कड़ियां में किसान के परिवार में एक सात साल की लड़की अंध बन गई,, उनकी माता उ ज़ाम और पिताजी बावन जी भाई की आँखों से अश्रु धारा बहने लगी, दुख के समंदर में डुबकी लगाई और उस अंध लड़की की पागलपन की तरह इलाज के लिए दौड़ ने लगे लेकिन उन्हें असफलता ही प्राप्त होता था, बहुत सारे डॉक्टर, मन्नत और भगवान को प्राथना की, वो लड़की देख नहीं सकती थी लेकिन सुन तो सकती थी, यह सब सुनकर वो भी बहुत दुखी हो जाती थी, उस ने मन ही मन निश्चय किया कि प्रज्ञा को खुद ही अंदर से प्रकट कर के अंधकार का सामना करना होगा, निराशा से निकलकर पढ़ाई कर के सिद्धि प्राप्त करने का निर्णय किया,
उस ने अपनी बात जब परिवार में बताई की मुजे पढ़ाई करनी है, अंध पाठ शाला में पढ़ाई कर ने के लिए जाना हे, तब उसकी माता का जी जल उठा, यह अंध लड़की को केसे भेज सकते हैं? रिस्तेदार बाबु भाई तथा भानजे भाई ने लड़की के मात पिता को समझाया और अंध पाठ शाला में पढ़ाई शुरू हुई, एक ही महीने में ब्रेल लिपि शिख लिया, सुर की साधना भी हासिल की, उसकी शिक्षिका पुष्पा बहन ने तो यह अंध' श्रुति को कहा कि तुमने तो मदर टेरेसा का रूप धारण कर लिया है, श्रुति ने अब उसके जेसी बहुत सारी प्रज्ञा चक्षु लड़कियों को समाल ने का काम शुरू कर दिया
मीरा के गीत उन्हें बहुत ही पसंद थे, दर्द भरे गीतों सुनकर अपना मन हल्का कर लेती थी, निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर के विजय प्राप्त किया, किसी भी अंध लड़की तैरना नहीं जानती है किन्तु मुक्ता ने तैरना शिख लिया, अंध लड़के के साथ तरण प्रति योगिता मे प्रथम स्थान हासिल किया खादी बुनने लगी, अंतिम परिक्षा मे पाठ शाला में फर्स्ट क्लास प्राप्त किया, तब उसके मात पिता और भाई बहन बहुत ही खुश हो गए, उसके बाद उसे कनु भाई वडोदरा की अंध कन्या शाला में दाखिला दिला कर उसे वहा रखा गया, ब्रेल लिपि के साथ टाइप करना भी शिख लिया, अंध लोग सुई मे धागा केसे पिरोते है वो भी शिख लिया, पढ़ाई के दौरान प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रथम स्थान हासिल करने लगी, काव्य प्रतियोगिता में भाग लिया और प्रथम स्थान प्राप्त किया, वो कविता उसे आज भी याद है,वो काव्य रचना अंधकार को दूर भगाने की शक्ति प्रदान करती है, बी ए तक पढ़ाई की, बहरे गूंगे और कम बुद्धि के बच्चों को समाल ने की तालीम प्राप्त कर लिया, वेकेशन मे मुंबई में अलग अलग कोर्स, पर्सनालिटी डेवलपमेंट, लीडर शीप, ट्रेनिंग, टेलीफोन ऑपरेटिंग सिस्टम भी शिख लिया, बेंगलुरु जाकर स्पोर्ट्स का कोर्स करने का अवसर मिला, बी ए तक पढ़ाई पूर्ण करके महात्मा लुइस ब्रेल की किताबों का अभ्यास किया, 
अब जीवन में नया मोड़ आया, सोनेरी स्वप्ना साकार करने के लिए सेवा का वेश धारण कर लिया, अपने जेसी अनेक प्रज्ञा चक्षु लड़कियों की जिंदगी संवर ने का द्रढ़ निश्चय किया, उसे पता था कि यह मामूली बात नहीं है, मार्ग मे कांटे आयेंगे तो उसे सह कर हँसमुख चेहरे के साथ आगे बढ़ कर उस प्रज्ञा चक्षु लड़कियों के जीवन में रोशनी डालने का काम शुरू किया, मैंने प्राप्त की हुई शक्ति को उनके लिए न्यौछावर कर देने का फैसला किया, उन्हें तालीम दूंगी, उन्हें अपने पेर पर खड़ा होने शिखा ना शुरू किया, अंध ज़न प्रगति मंडल से जुड़ी, संस्था आर्थिक रूप से कमजोर होने से वेतन की बात नहीं थी, लड़कियों को गृह विज्ञान की तालीम देना शुरू किया, अब श्रुति की उम्र इक्कीस साल हो गई, इस लिए उसे शादी देना होगा, लेकिन श्रुति ने बता दिया था कि उसके सेवा कार्य में कोई अवरोध नहीं आना चाहिए, बहुत समझाने के बाद मे प्रज्ञा चक्षु सुनील से मिलने के लिए राजी हुई, सुनील अमीर घराना का जैन परिवार का एक अच्छा सेवक था, वो शिक्षक था, एम ए बी एड तक पढ़ाई की थी, परिवार का अच्छा सा व्यापार छोड़कर उसने शिक्षक की नोकरी स्वीकर किया, श्रुति सुन्दर थी, वो दौनों की मुलाकात करायी गयी, श्रुति ने बताया कि मे शादी के लिए राजी हू लेकिन हम बच्चे को जन्म नहीं देंगे, उसे था कि ये सुनकर सुनील तैयार नहीं होगा, लेकिन सुनील ने उसे स्वीकार कर लिया, सुनील ने कहा कि हमे अपना वंश नहीं बढ़ाना है किन्तु प्रज्ञा चक्षु ओके जीवन को आबाद करना है, एक या दो नहीं लेकिन अनेक प्रज्ञा चक्षु ओके माता पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त करना है, सुनील ने अपने परिवार को बात की तो उसका विरोध किया गया, लेकिन अंत में सम्मति दी गई, सुनील श्रुति से शादी करने के लिए राजी हो गया, शादी के समय बारात गांव में आई तब श्रुति के मात पिता बहुत ही खुश हो गए, शादी के समय सुनील की तनखा 900 रुपये थी, सुनील और श्रुति ने दान यात्रा के साथ सेवा यज्ञ शुरू कर दिया,
श्रुति ने प्रण लिया कि जब तक संस्था आर्थिक विकास प्राप्त नहीं करेगी तब तक पेर मे जुते नहीं पहनेंगी, जब पेर मे पत्थर लगे या कांटे लगे तब सुनील को चिल्ला कर बुलाती, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और दान से जोली भार गई, माँ जेसी सास विजया और नंदी का भरपूर प्यार मिला, यकायक सुनील को साइटिका का दर्द हुआ उसे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, दो साल दवा ली, फिर भी सुनील को दर्द होता था, वो सह लेता था, प्रज्ञा चक्षु को तालीम देना का काम चालू रखा, उन्होंने तालीम के बाद शादी देना शुरू किया, करीब 32 प्रज्ञा चक्षु लड़कियों को शादी दी, उन्हों ने अपनी संस्था का सुंदर मकान भी बना लिया, सुनील नोकरी करता था और लड़कियों को तालीम भी देता था, श्रुति लड़कियों के लिए रोटी बनाती थी, उन्हें पता चले तो कहीं से भी प्रज्ञा चक्षु लड़कियों को अपनी संस्था मे ले आते थे, सुनील को एक साथ 230 लड़कियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, 
लड़कियों की शादी के लिए दूल्हा ढूढ़ना बहुत ही मुस्किल काम था, दान के प्रवाह के कारण लड़कियों की शादी कराने के लिए कोई मुस्किल नहीं था, अपनी संस्कृति लोगों तक पहुंचाने के लिए संस्था की ओर से पत्रिका शुरू की गई, संस्था की महक देश विदेश तक पहुच गई, श्रुति को राष्ट्र पति की ओर से स्त्री शक्ति अवॉर्ड के साथ एक लाख रुपये की धन राशि प्रदान की गई, वो राशि में ग्यारह हजार जोड़कर संस्था को दान कर दिया, सुनील और मुजे हम दौनों को एक साथ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया, यहा सभी जाति की लड़कियों को प्रवेश दिया और उन्हें तालीम और शिक्षा देकर शादी करने के बाद संस्था से बाहर जाने की अनुमति दी जाती थी, 
प्रज्ञा चक्षु बहनो की क्रिकेट टीम भी बनाई जाती हैं, उन्हें ट्रेकिंग मे भी भेजा जाता था, माँ को लड़की प्यारी होती है ऎसे उन्हें भी ये प्रज्ञा चक्षु लड़की या बहुत ही प्यारी लगती, संस्था को दौनों ने नंदन वन बना दिया, ऊनी यही सेवा को देखकर उन्हें राष्ट्र पति पुरस्कार मिला, श्रुति कहती हैं कि, 
"खोल दो पंख मेरे कहता है परिंदा. 
अभी और उड़ान बाकी है, 
ज़मी नहीं है मंज़िल मेरी 
अभी पूरा आसमान बाकी है"
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डॉ गुलाब चंद पटेल
गाँधी नगर  (गुजरात)
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