विजयानंद विजय
बक्सर ( बिहार )
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प्रकृति प्रदत्त उपहार-माँ गंगा इत्यादि महान् नदियों के पवित्र तटों को कब्जा करने वाले और भोले-भाले मानव को झूठ-मूठ का प्रवचन देकर उनकी मेहनत की कमाई का धन छीनकर अपना घर-परिवार सजाने वाले तथा उन्हीं भोले-भाले मानवों से नहाने-धोने के लिए कहकर पवित्र जल को दूषित करने वाले और धर्म के नाम पर जमीन आदि को कब्जा करने वाले भारत माता रूपी धाम में मौजूद ये कुछ पाखण्डी बाबाओं एवं भ्रष्टाचार में लिप्त कुछ मूर्ख मनुष्य न तो किसी काम के हैं और जो भी ये राम-रहीम, आशाराम जैसे पाखण्डी बाबा लोग काम करते भी हैं उससे प्रकृति प्रदत्त उपहार-माँ गंगा इत्यादि महान् नदियों, और जल-जंगल-जमीन आदि का नुक़सान ही होता है और तो और ये कुछ पाखण्डी, अंधविश्वासी बाबा एवं मूर्ख लोग धर्म के नाम पर माँ गंगा, यमुना, सरयू, मंदाकिनी, शिप्रा इत्यादि महान् नदियों के पवित्र तटों और जमीन को कब्जा करने वाले, मेहनत से धरती माता में उगाये गये विभिन्न खाद्य पदार्थों (नारियल,लड्डू दूध, आरो का पानी) को धर्म के नाम पर चढ़वाते हैं जबकि भगवान् श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन से विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों को किसी भूखे-प्यासे मानव एवं जीव को खिलाने-पिलाने की बात कही है जो कि भगवान् तक पहुंँचता है। लेकिन हमारे भारत माता रूपी धाम में मौजूद ये कुछ पाखण्डी बाबा लोग इस बात को भोले-भाले मानव को न समझाकर अनावश्यक गलत बात बताकर एक तरफ ये कुछ पाखण्डी राम-रहीम ,आशाराम जैसे मूर्ख लोग जो कि अभी अधिकतर सरकार के पकड़ से दूर हैं, खाद्य पदार्थों की धर्म के नाम पर बर्बादी करवाते हैं और दूसरी तरफ भोले-भाले मानव एवं अधिक भ्रष्टाचार में लिप्त और बेईमानी से कमाकर इकट्ठा किये हुए कुछ धनवान् लोगों से रुपए-पैसे, सोना-चाँदी और यहाँ तक कि जमीन-जायदाद भी ठगकर अपना घर-परिवार सजाने में लगे हुए हैं और जन-सामान्य घर-गृहस्थी चलाने में परेशान रहता है। तभी तो परमज्ञानी सन्त तुलसीदास जी लिखते हैं कि-
*बहु दाम सँवारहिं धाम जती।*
*विषया हरि लीन्हि न रही बिरती।।*
*तपसी धनवंत दरिद्र गृही ।*
*कलि कौतुक तात न जात कही।।*
- सन्त तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस उत्तरकाण्ड, छंद- 01, पृष्ठ संख्या- 870 , संवत- 2058 तिरसठवाँ संस्करण, पुस्तक कोड- 82 , गीताप्रेस गोरखपुर |
-- इसीलिए उपर्युक्त कहे गए भारत माता रूपी धाम में विराजमान् मानव एवं जीव-जन्तु रूपी मूर्तियों को खाने-पीने के लिए विद्यमान विभिन्न खाद्य-पेय पदार्थो को नुकसान पहुँचाने वाले पाखण्डियों के संदर्भ में यह कहावत कही गई होगी कि-
*काम का न धाम का दुश्मन अनाज का "*
मानव एवं जीव-जन्तु रूपी मूर्तियों का आधार पावन भूमि से युक्त भारत माता की जय!
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पता:
डाॅ० सिकन्दर लाल
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)