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Wednesday, 1 April 2020

बचिए और बचाइए (दोहे) - संदीप सृजन

बचिए और बचाइए 
(दोहे)

चाल चली इक चीन ने, बिगड़े सबके हाल।
कोरोना यह वायरस, बना जीव जंजाल।

सारा जग इससे दुखी, किसे सुनाये पीर।
कोरोना ने कर दिए, हाल बहुत गंभीर।।

भारत का जन-जन करे, मिलकर बड़े प्रयास।
बिना मास्क छोड़े नहीं, अपना कभी निवास।।

हाथों को धोते रहे, सैनेटाइज साथ।
कीटाणु से मुक्त रहे, हर पल अपने हाथ।।

सर्दी और जुकाम संग,भारी हो गर सांस।
बिन देर किए पंहुचे,तुरन्त डॉक्टर पास।।

बचिए और बचाइए, कोरोना से आज।
इक्किस दिन तक छोडकर, अपने सारे काज।।

चौपालें सूनी करे, करे सड़क वीरान।
देश बचाने के लिए,दे बड़ा योगदान।।

कोरोना से बच गये, तो होंगे त्यौहार।
दीप जलेंगे आंगन में, जगमग होंगे द्वार।।

आओ मिलकर के करे, कोरोना संहार।
संयम से जीवन जिए, दूर सभी व्यवहार।।

इंसा है तो देश है, और देश का ताज।
पहले रक्षा स्वयं की, फिर पूजा व नमाज।।-०-
संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
-०-



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सोने के अंडे (लघुकथा) - मधुकांत

सोने के अंडे
(लघुकथा)
चुनाव से पूर्व उस क्षेत्र में एक बड़ी घोषणा हुई और देखते ही देखते किसानों की जमीन का अधिग्रहण करके सहकारी शुगर मिल के नाम से एक विशाल मुर्गी की स्थापना कर दी। किसान खुश,,,,,, अब उसको कम परिश्रम ,,,थोड़े चुगे, में सोने का अंडा मिलने लगेगा।
प्रधानमंत्री स्वयं उद्घाटन करने आए थे ।उन्होंने घोषणा की अब किसानों की फसलों का पर्याप्त दाम दिया जाएगा ,जिससे किसानों की आय दुगनी हो जाएगी।
पार्टी चुनाव जीत गई ।सहकारी मिल सिटी मारने लगी ।सरकार, मंत्री, प्रशासक सबकी नजर सोने के अंडों पर रहने लगी, मुर्गी कैसे रहती है? क्या खाती है? इसकी चिंता किसी को नहीं थी।
सरकार आती रही जाती रही। सब उसके अंडों की बंदरबांट करती रही ।मुर्गी कमजोर होती चली गई और अंत में मुर्गी अंडा देने में असमर्थ हो गई।
अब सबकी नजर मुर्गी को एक झटके में हलाल करके डकारने को मचलने लगी। फिर एक दिन चुपचाप औने पौने दामों में अपने लोगों के बीच मुर्गी की बंदरबांट कर ली ।
वर्षों पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन के समय लगाया गया शिलालेख सभी करदाताओं का, किसानों का मुंह चिढ़ा रहा था।

-०-
पता:
मधुकांत
रोहतक (हरियाणा)
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भूखा रमण (कविता) - कमलकिशोर ताम्रकार 'काश'

भूखा रमण
(कविता)

बस्ता लिए आ रहा था, भूखा रमन ।
बोझ तले दब रहा था, जिसका बचपन।।

बोलता ये बच्चा ,लगता हैं बिमार ।
रोटी को लाले पडे ,गरीबी का शिकार ।।

मां सही नहीं जाती, ये भूख की ज्वाला ।
तू ही बता कैसे जाऊं ,मै पढने को शाला।।

अब नही जपना मुझे ,वर्ण अक्षरों की माला।
स्कूल का नाम न लेना, लगाओ मुह पे ताला ।।

मां- देख मेरी दुर्दशा ,तुमको नही खलता।
होता सफल वहीं जो,अभावों मे पलता।।

अब्राहम लिंकन का ,बचपन कैसे बिता ।
करता तेरे जैसे तो, क्या राष्ट्रपति बनता।।

जा,मत जा,शाला, तू नहीं है मेरा लाला।
था पुत्र मेरा कोई , जिसे मैने खो डाला ।।

मां तेरी आंसू का, किमत मै चुकाऊंगा।
भूखे रह कर भी ,मै पढने को जाऊंगा।।

मां की गोद मे हैं जन्नत,सबको ये बताऊंगा।
मेरे नाम से जाने तुम्हें, ऐसा कर दिखांऊगा।।
-०-
पता:
कमलकिशोर ताम्रकार 'काश'
अमलीपदर, गरियाबंद (छत्तीसगढ़)
-०-

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कोरोना मुक्ति चालीसा (दोहा-चौपाई) -प्रशान्त कुमार 'पी.के.'

कोरोना मुक्ति चालीसा

(दोहा-चौपाई) 
दोहा 
"कोरोना" के नाम का, रोना हो जाये बन्द।
केवल इससे बचाव के, कर लो आप प्रबंध।।

चौपाई
जय जय हे कोरोना देवा।
चीन ने कीन्ही तुम्हरी सेवा।

समझा निज का तुमको रक्षक।
बन गये तुम उसके ही भक्षक।।

चीन ने तुम पर कीन्ह भरोसा।
पर तुम्हरा मन ना संतोषा।

जिसने तुमको पाला पोषा।
उसको तुमने दीन्हा धोखा।।

कर बेवफाई पैर पसारा।
पालक जन को तुमने डकारा।।

भ्रष्टाचार सा अवसर पाकर।
सब देशन मा घुसि गए जाकर।।

ध्यान रखो सब बाल वृद्ध जन।
युवक, युवती अन्य सब परिजन।।

खांसी जुकाम और दर्द गले मा।
दिक्कत होय सांस लेवे मा।।

यहि लक्षण जो कोई मा पावें।
सदा ही इनसे दूरी बनावें।।

मास्क लगाई फिरहु तजि डर का।
बिना काम नही छोड़हु घर का।।

हाथ मिलाई न, करहु नमस्ते।
भीड़ भाड़ से नापहु रस्ते।।

साफ सफाई सब तनि राखहु।
आस पास कुछ मैल न राखहु।।

घर पर आई के हाथ मलि धोवहु।
निर्भय इधर उधर फिर डोलहु।।

"कोरोना" को तजि फिर रोना।
जग से मिटि जाय यहि "को-रोना"।

हम सब जंग लड़ेंगे तुझसे।
हम सब नही डरेंगें तुझसे।।

पी.एम. संग हैं हम जनता गण।
हर पल हर दिन जीवन के हर क्षण।।

स्वस्थ रहेंगे, स्वच्छ रहेंगे।
सब निर्भय और मस्त रहेंगे।।

अफवाहों पर ध्यान न देवें।
कान सुनी पर ध्यान न देवें।।

पालन कर सरकारी ज़न का।
रखहु सुरक्षित जीवन धन का।।

"पी.के." ध्यान बात यहि लावै।
कोस दूर कोरोना भागै।।

दोहा
कोरोना बुरी आत्मा, तुम्हरा सत्यानाश।
तुम्हरे बुरे विचार का, होगा महाविनाश।।

विश्व के हम सब एक हो, करेंगे ऐसा उपाय।
जड़ से तू मिट जाय, फिर कबहूँ ना आय।।
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पता -
प्रशान्त कुमार 'पी.के.'
हरदोई (उत्तर प्रदेश)
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तेरा मेरा कब तक करेगा (कविता) - डॉ. कान्ति लाल यादव


तेरा मेरा कब तक करेगा
(कविता)
तेरा-मेरा कब तक करेगा,
हकीकत में तेरा है ही नहीं।

खा ले - पी ले और देख ले दुनिया को,
खूब कहते हैं खुदा है- है पर आंखों से दिखता नहीं।

सब कहते हैं हम तुम्हारे हैं तुम हमारे हैं,
पर सच में कोई किसी का नहीं।

आने की खुशी में खुशियों से सजाया तुझे,
घुमा मस्ती में रहा बेफिक्र से पर मौत का कोई ठिकाना नहीं।

जिंदगी के जतन में हो सके वह किया,
पर असल में इस जिंदगी का भरोसा नहीं।

जितना हो सके जीवन का जंग जीतना जरूरी था,
लड़ - लड़ कर अपना-अपना कर किया बहुत किंतु वक्त को कोई जीता नहीं।

दो आंखों से देखे तो दुनिया कितनी खूबसूरत लगती है,
अपना-अपना मानकर चला कान्ति दुनिया में कोई किसी का नहीं।
-०-
डॉ. कान्ति लाल यादव
(सामाजिक कार्यकर्ता)
-०-

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