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Wednesday, 26 February 2020

आँखें चार मुहब्बत (ग़ज़ल) - मृदुल कुमार सिंह

आँखें चार मुहब्बत
(ग़ज़ल)
दुनिया भर की रार मुहब्बत
करते फिर भी यार मुहब्बत।

लेला मजनू का किस्सा क्या
बिकती जब बाजार मुहब्बत।

सारी दुनिया एक तरफ है
ना माने पर हार मुहब्बत।

घर आँगन से खूब बगावत
करती हैं दिलदार मुहब्बत।

नींद उड़ गई चैन छिन गया
दिल में मारा मार मुहब्बत।

जाने कितने दिल टूटे हैं
करके पहली बार मुहब्बत ।

गाँव शहर हर चौराहे पर
करती आँखें चार मुहब्बत । -०-
पता:
मृदुल कुमार सिंह
अलीगढ़ (अलीगढ़) 

-०-


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मकसद (लघुकथा) - बजरंगी लाल यादव

मकसद
(लघुकथा)
"मम्मी! आज अगर स्कूल फ़ीस नहीं जमा हुई तो, मैडम फिर मुझे धूप में खड़ा करेंगी..." आठ वर्षीया श्वेता ने आशंकित हो कर कहा।
"कितनी बार तुझसे कहा है कि धंधे वाली जगह पर नहीं आने को....?" लक्ष्मी ने श्वेता को डांटते हुए कहा।
" मगर मम्मी....!"
" अगर-मगर कुछ नहीं... अब तुम स्कूल जाओ! आज तुम्हारी फ़ीस मैं जरूर भर दूंगी" लक्ष्मी ने श्वेता को निशब्द करते हुए कहा।श्वेता बेमन से स्कूल की तरफ चल पड़ी,आज उसके पैर स्कूल की तरफ बढ़ी नहीं रहे थे।
तभी किसी ग्राहक ने लक्ष्मी को टोका- " क्या.. रे सनी लियोनी? आज तो बड़ी चिकनी लग रही है,चल आ-जा भीतर....!"
" अबे! उजड़े चमन, पहले दो पत्ती हाथ पर रख... तब भीतर जा...? "
"सौ रुपए से ज्यादा नहीं दूंगा, वरना रूपा रानी के पास चला जाऊंगा!"
" जा... स्साले! अपनी मां रूपा रानी के पास" लक्ष्मी ने उस टकले को झिड़कते हुए कहा।
तत्पश्चात तीन लड़के लक्ष्मी से मुखातिब होते हुए बोले- "हम तीन हैं, सिर्फ तुम्हारे साथ जाना चाहते हैं?"लड़कों ने सकुचाते हुए कहा।
" शक्ल से तो पढ़ने वाले लड़के लगते हो, इस गली में नए आए हो क्या ? क्यों, अपने मां-बाप के पैसों को बर्बाद कर रहे हो...? जाओ घर और पढ़ाई में मन लगाओ! वरना डिग्रियां की जगह यहां एड्स का सर्टिफिकेट मिल जाएगा...!" लक्ष्मी की तीखी बातों से तीनों लड़के उस वेश्या-बाजार की गली से रफू-चक्कर हो गए। तभी एक व्यंग्यात्मक स्वर ने लक्ष्मी के कानों को स्पर्श किया- " क्यों.... बच्चे पसंद नहीं तुझे?"
" मुझे हिजड़े भी पसंद नहीं...! लक्ष्मी ने भी तीखा प्रहार किया।
" बहुत बोलती है स्साली... चल अंदर आ... तुझे दिखाता हूं मर्दानगी....?उस शोले फिल्म के गब्बर सिंह माफिक दिखने वाले आदमी ने कहा,जिसके साथ दो और लफंगे थे।
" देख मंगुआ! धंधे का टाइम है,पहले दो सौ हाथ पर रख, फिर साथ चलूंगी तेरे ?"
" हम तीनों चलेंगे तेरे साथ! खुश कर दे मेरी रानी हमें...?
" फिर तो छः सौ लूंगी..?" लक्ष्मी ने साफ तौर पर कहा।
"चल! पाँच पत्ती ले लेना..." मंगुआ ने लक्ष्मी का गाल पकड़ते हुए कहा।
लक्ष्मी ने सर उठाकर आसमान की ओर देखा तो, आग उगलते सूर्य ने कहा- 'श्वेता की फ़ीस..!'
लक्ष्मी हालातवश मासूम खरगोश की भाँति तीनों खूंखार भेड़ियों के सामने निर्वस्त्र हो गई। कुछ देर बाद लक्ष्मी अपने आंचल से माथे के पसीने को पोंछती हुई श्वेता के स्कूल की तरफ भागी। जहां क्लास-रूम में श्वेता बेंच पर बैठी किताब के पन्नों में खोई थी। लक्ष्मी ने राहत की सांस लेते हुए, तुरंत आँचल की गांठ से पैसे निकालकर काउंटर पर जमा किए। फिर क्लास-रूम में जाकर श्वेता के माथे को चूमते हुए बोली- " बेटी! तुम्हारे जीवन का सिर्फ एक ही मकसद होना चाहिए सिर्फ पढ़ना और पढ़ना। ताकि तुम बड़ी होकर शिक्षिका बनों और अपने जैसे गरीब बच्चों को पढ़ाना"। मां के आत्मविश्वास और पसीने से लथपथ शरीर को देखकर श्वेता ने कहा- "मम्मी ! तुम चिंता मत करो? मैं इतना पढूंगी कि तुम्हें धंधे वाली गली में नहीं जाना पड़ेगा....!" इतना सुनते ही लक्ष्मी की आंखें भर आई और वह श्वेता से लिपट कर रो पड़ी।
-०-
पता:
बजरंगी लाल यादव
बक्सर (बिहार)
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किसान कौन? (आलेख) - डा. नीना छिब्बर

किसान कौन?
(आलेख)
पृथ्वी पर जब हम जीवन की कल्पना करते हैं तो सब से पहली छवि जो मन में आती है वो है.पाँच तत्वों से निर्मित जीव.के जीवन को पोषित करने वाले उस इंसान की जो खुद कड़ी 
गरमी सर्दी, वर्षा, आँधी तूफान ,में निड़र खड़ा रह कर ,अड़ा रहता है।अपने खेत में श्रम करके दूसरों का पेट भरता है। वो है किसान। भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में कृषि करने वाले व्यक्ति यानि किसान का ऊँचा स्थान है क्योंकि धरती चाहे कितनी ही उपजाऊ हो ,समय पर वर्षा, धूप, हवा ,पानी, सब हो पर खेत में हल चला कर बीज बोने से ले कर पूर्ण निष्ठा , श्रम से देखभाल करने वाला किसान ना हो तो सोने सी धरती भी धूल है।
भारतीय सा हित्य तो किसान ,खेत बैल, अनाज सुख-दुख ,आशा -निराशा, जमींदारों के चुंगल, सादगीपूर्ण जीवन,संघर्ष की कथा कहानियों से भरा है । मुशी प्रेमचंद की गोदान ऐतिहासिक दस्तावेज है।पुराने समय से लेकर वर्तमान काल में कृषि के तरीकों में संसाधनों में,व्यापार में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। बैलों के स्थान पर ट्रेक्टर, रहट की जगह टयूबवेल, साहूकार की जगह बैंक लोन, उपचारित बीज केंद्र भी जुड़ गए हैं। वक्त बदला पर अपने खेत, अनाज और गाँव के लिए जान देने के लिए आज भी किसान ही खड़ा रहता है. 
ज्ञान -विज्ञान, तकनीक ने समय चक्र को तेजी से प्रगति पथ पर दौड़ा दिया है। कृषि वैज्ञानिक, प्रयोगात्मक तरीकों से बेहतर फसलें ले कर किसान समृद्ध तो हुआ है पर यह एक छोटि ,नगण्य वर्ग है। आधुनिक यंत्र युग ने किसान को भ्रमो में भी उलझाया है। शहरीकरण के कारण खेतों पर उधोग, ,कल- कारखाने , व्यापारिक केंद्रों की शनि नजर पड़ी और किसान फिर चित्त हुआ। किसानों के युवा बच्चे शहरों में मजदूरी करने, व छोटे -मोटे काम कर के प्रसन्न हैं पर पिता की तरह खेत में ही रमना नहीं चाहते हैं क्योंकि शहरी चकाचौंध के अलावा नये प्रलोभन भी आकर्षित करते हैं।
सरकार ने जो नीतियां बनाई हैं वो किसानों तक सही रूप मेन पहुँचती नही हैं। बिचौलिए आज भी ऐजंट(पूर्व के लाला)के रूप में उन्हें लूटते हैं ।यथार्थ और सपनों में उलझाए रखते हैं
पिछले कयी सालों में किसानों में आत्महत्या का प्रतिशत बड़ा हीहै। प्राकृतिक आपदा तो उसके बस में नहीं है पर मानव निर्मित उसे दिन रात भयभीत करती हैं। लोन सुरसा की तरह राह में है।सरकारी आंकड़े चाहे कितने ही सब्जबाग दिखाए पर किसान आज भी गोदान के नायक बन विद्रूप नवीनी रूप जी रहा है।
वहाँ सेठ साहूकार, जमींदार, प्रकृति दुखदायी थी यहाँ बाजारवाद, कानूनी कारवाही, लोन की लंबी प्रक्रिया चक्रव्यूह उसे जीने नहीं देता है।
किसान कौन? किसान वो जो दूसरों के घरों में अन्न ,धन -धान्य ,भरता है पर उसके घर परिवार में भूख पैर पसार कर रहता है ।बाजारीकरण ,भौतिकवाद और माल संस्कृति ने उसके श्रम का अवमूल्यन ही कहा है । त्रासदी देखिए"उपज अधिक तो मूल्य कम, उपज अधिक तो लागत भी नहीं निकलती। संते बनाने में जीवन खपा देता है। किसान जीवट की जीती जागती मिसाल है।वह आज भी खेती ,मजदूरी, रिक्शे वाला कूली बन कर भी आज भी अपनी पुरानी दृढ़ छवि खोज रहा है।धरती का सच्चा सपूत है किसान ।।
-०-
डा. नीना छिब्बर
जोधपुर(राजस्थान)

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रोटी बंदी है (कविता) - शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’

रोटी बंदी है
(कविता)
महानगर के कारागृह में,
रोटी बंदी है.

गगरे की गरदन से देखी,
लड़ी हथौड़ी कल,
बोतल में ही ढूँढ़ रही थीं,
बड़ी-पकौड़ी हल,
कुछ भी ठीक नहीं है, युग की
आदत गंदी है.

विश्व आज है एक हुआ, पर,
घर-जन छूट गए,
मेलजोल के संवादों के,
बरतन फूट गए,
बाजारों में भीड़भाड़ है,
फिर भी मंदी है.

साधुवाद की भाषाओं के,
शाश्वत बोल नहीं,
मूलतया मर्यादाओं का,
अब है मोल नहीं,
प्रेमचन्द के होरी के घर,
कब नौचंदी है.

नंदनवन का नाम हो चुका,
ग्रन्थों का किस्सा,
रामलला की जन्मभूमि में,
धर्मों का हिस्सा,
सदियों से पूजा का पत्थर,
शिव का नंदी है.
-०-
पता: 
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
-०-


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पानी (हाइकु) - बलजीत सिंह

पानी
           (हाइकु)
(1) बारिश आई
ठहरा हुआ पानी
ले अँगडाई ।

(2) वर्षा का पानी
एक-एक पौधे को
दे जिंदगानी ।

(3) जलती घास
अंतिम साँस तक
पानी की आस ।

(4) फसलें धानी
अमृत कहलाता
नदी का पानी ।

(5) भूमि में वास
जल ही जीवन है
बुझाएँ प्यास ।
-०-
बलजीत सिंह
हिसार ( हरियाणा )
-०-

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