पृथ्वी पर जब हम जीवन की कल्पना करते हैं तो सब से पहली छवि जो मन में आती है वो है.पाँच तत्वों से निर्मित जीव.के जीवन को पोषित करने वाले उस इंसान की जो खुद कड़ी
गरमी सर्दी, वर्षा, आँधी तूफान ,में निड़र खड़ा रह कर ,अड़ा रहता है।अपने खेत में श्रम करके दूसरों का पेट भरता है। वो है किसान। भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में कृषि करने वाले व्यक्ति यानि किसान का ऊँचा स्थान है क्योंकि धरती चाहे कितनी ही उपजाऊ हो ,समय पर वर्षा, धूप, हवा ,पानी, सब हो पर खेत में हल चला कर बीज बोने से ले कर पूर्ण निष्ठा , श्रम से देखभाल करने वाला किसान ना हो तो सोने सी धरती भी धूल है।
भारतीय सा हित्य तो किसान ,खेत बैल, अनाज सुख-दुख ,आशा -निराशा, जमींदारों के चुंगल, सादगीपूर्ण जीवन,संघर्ष की कथा कहानियों से भरा है । मुशी प्रेमचंद की गोदान ऐतिहासिक दस्तावेज है।पुराने समय से लेकर वर्तमान काल में कृषि के तरीकों में संसाधनों में,व्यापार में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। बैलों के स्थान पर ट्रेक्टर, रहट की जगह टयूबवेल, साहूकार की जगह बैंक लोन, उपचारित बीज केंद्र भी जुड़ गए हैं। वक्त बदला पर अपने खेत, अनाज और गाँव के लिए जान देने के लिए आज भी किसान ही खड़ा रहता है.
ज्ञान -विज्ञान, तकनीक ने समय चक्र को तेजी से प्रगति पथ पर दौड़ा दिया है। कृषि वैज्ञानिक, प्रयोगात्मक तरीकों से बेहतर फसलें ले कर किसान समृद्ध तो हुआ है पर यह एक छोटि ,नगण्य वर्ग है। आधुनिक यंत्र युग ने किसान को भ्रमो में भी उलझाया है। शहरीकरण के कारण खेतों पर उधोग, ,कल- कारखाने , व्यापारिक केंद्रों की शनि नजर पड़ी और किसान फिर चित्त हुआ। किसानों के युवा बच्चे शहरों में मजदूरी करने, व छोटे -मोटे काम कर के प्रसन्न हैं पर पिता की तरह खेत में ही रमना नहीं चाहते हैं क्योंकि शहरी चकाचौंध के अलावा नये प्रलोभन भी आकर्षित करते हैं।
सरकार ने जो नीतियां बनाई हैं वो किसानों तक सही रूप मेन पहुँचती नही हैं। बिचौलिए आज भी ऐजंट(पूर्व के लाला)के रूप में उन्हें लूटते हैं ।यथार्थ और सपनों में उलझाए रखते हैं
पिछले कयी सालों में किसानों में आत्महत्या का प्रतिशत बड़ा हीहै। प्राकृतिक आपदा तो उसके बस में नहीं है पर मानव निर्मित उसे दिन रात भयभीत करती हैं। लोन सुरसा की तरह राह में है।सरकारी आंकड़े चाहे कितने ही सब्जबाग दिखाए पर किसान आज भी गोदान के नायक बन विद्रूप नवीनी रूप जी रहा है।
वहाँ सेठ साहूकार, जमींदार, प्रकृति दुखदायी थी यहाँ बाजारवाद, कानूनी कारवाही, लोन की लंबी प्रक्रिया चक्रव्यूह उसे जीने नहीं देता है।
किसान कौन? किसान वो जो दूसरों के घरों में अन्न ,धन -धान्य ,भरता है पर उसके घर परिवार में भूख पैर पसार कर रहता है ।बाजारीकरण ,भौतिकवाद और माल संस्कृति ने उसके श्रम का अवमूल्यन ही कहा है । त्रासदी देखिए"उपज अधिक तो मूल्य कम, उपज अधिक तो लागत भी नहीं निकलती। संते बनाने में जीवन खपा देता है। किसान जीवट की जीती जागती मिसाल है।वह आज भी खेती ,मजदूरी, रिक्शे वाला कूली बन कर भी आज भी अपनी पुरानी दृढ़ छवि खोज रहा है।धरती का सच्चा सपूत है किसान ।।