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Thursday, 2 April 2020

कोरोना वायरस को भगाओ (कविता) - शाहाना परवीन

कोरोना वायरस को भगाओ
(कविता)
भारत देश मे घुस आया
कोरोना वायरस
सब कह रहे हैं इसे
"चाइनिज़ वायरस"
पहले से ही भारत देश मे
चाइनिज़ चीज़ो की भरमार है
"कोरोनो वायरस" उन सबके साथ
हमें फ्री उपहार है
हमें आदत है एक के साथ एक
फ्री सामान लेने की
शायद यही फ्री
हम सबका उपहार है
कहते हैं खतरनाक है यह वायरस
सबकी नींद उड़ा दी है इसने
कई मृत्यु की शय्या पर सो गए
बाकी की रिपोर्ट अभी आनी बाकी है
कोरोना वायरस जानलेवा बीमारी है
गंदगी से फैल रही लगातार
लोगों को स्वच्छता का ध्यान रखना है
सादा जीवन उच्च विचार
को लागू करना होगा अपने जीवन मे
ना जाने क्यों आ गई
हमारे देश भारत मे
सबका ध्यान इस ओर
खींच रहा "कोरोना " है
सब काम हो गए ठप लोगों के
लोग बोर हो गए खाली बैठे घरों मे
पर "कोरोना" का किसी से
क्या लेना देना है
अभी ना जाने और कितने
दिन "को रोना" है
बचना होगा इस बीमारी से
इसे देश से बाहर निकालना होगा
सेनीटाइज़र और बार बार हाथ धोकर
स्वयं से दूर करना होगा इससे
अपने अपने घरों मे रहकर
सुरक्षित रखना होगा स्वयं को
अपने परिवार को
कोरोना वायरस को भगाना होगा।।पता -
शाहाना परवीन
मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)
-०-

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मखमली अहसास (ग़ज़ल) - अलका मित्तल

मखमली अहसास 
(ग़ज़ल)
मखमली अहसास दिल में बसाकर रखना,
ख़्वाब आँखों में रोज़ इक सजाकर रखना।

यकीनन रात के बाद सुबह होगी ये तय है,
बदलेगा वक्त उम्मीद दिल में जगाकर रखना।

कितनी दूर तलक जाना है अब ये तुम जानो,
लौटकर आने का रास्ता भी बनाकर रखना।

बदल दिया है उसूलों को अपनो की खातिर,
वाजिब होगा आँखों के पर्दे गिराकर रखना।

भरोसा कितना है तुम्हें खुदपर ये तो तुम जानो,
ज़रूरी ये है सामने वाले पर भी नज़र रखना।

गुज़र जाती है ताउम्र इक उम्मीद के सहारे,
होगी शबे-विसाल साँसों को मुंतज़िर रखना।-०-
पता:
अलका मित्तल
मीरत (उत्तरप्रदेश)

-०-

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कब तक? (लघुकथा) - ज्योत्स्ना ' कपिल'

कब तक?

(लघुकथा)
छोटे-छोटे बच्चे,दो वक़्त की रोटी जुटाने की मशक्कत,और बिटिया की जान पर मंडराता खतरा देखकर परमेसर सिहर उठा। अंततः उसने अपनी एक किडनी देकर बेटी के जीवन को बचाने का संकल्प कर लिया।

" तुम तो पहले ही अपनी एक किडनी निकलवा चुके हो,तो अब क्या मजाक करने आये हो यहाँ ?" डॉक्टर ने रुष्ट होकर कहा।

" जे का बोल रै हैं डागदर साब,हम भला काहे अपनी किटनी निकलवाएंगे। ऊ तो हमार बिटिया की जान पर बन आई है।छोटे-छोटे लरिका हैं ऊ के सो हमन नै सोची की एक किटनी उका दे दै।"

" पर तुम्हारी तो अब एक ही किडनी है, ये देखो ऑपरेशन के निशान भी हैं "

" अरे ऊ कौनौ किटनी न निकलवाई हमने।ऊ तो मुला नसबन्दी का आपरेसन हुआ था।" वह डॉक्टर की मूर्खता पर ठठाकर हँस पड़ा ।

" ऊ जा साल सूखा पड़ा था,तबहीं एक सिविर लगा था। सबका मुफत में नसबन्दी का आपरेसन करके हज्जार रुपैया ,एक कम्बल ,अउर इशट्टील का खाने का डब्बा दै रै थे। तबहिं हमन नै आपरेसन करवा के हज्जार रुपैय्या अपनी अन्टी में ....." कहते कहते वह रुक गया। और उसकी आँखें भय से फैल गईं।
-०-
पता - 
ज्योत्स्ना ' कपिल' 
गाजियाबाद (उत्तरप्रदेश)

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शहर हो गये दूर गाँव से (कविता) - विजयानंद विजय

शहर हो गये दूर गाँव से
(कविता)
शहर हो गये दूर गाँव से
बाग-बगीचे-क्यारी गुम।

आँगन में वो हँसती-खिलती
बच्चों की किलकारी गुम।

रिश्तों के इस बियाबान में
मौसी-चाची-दादी गुम।

मिसरी-सी कानों में घुलती
नानी की वो कहानी गुम।

होली की वो हँसी-ठिठोली
रंग-भरी पिचकारी गुम।

नीम तले की शाम-बैठकी
रिश्तों की फुलवारी गुम।

घर के बीच दीवार उठ गयी
सुख-दुःख का बँटवारा गुम।

क्या बैठें डायनिंग टेबल पर ?
पाँत लगी वो थाली गुम।

ताल-तलैया-नदी सूख गयी
लहरों की झलकारी गुम।

सावन के झूले-हिंडोले
चैता-पूर्बी-कजरी गुम।

दुल्हन विदा कार में होती
डोली कहार औ ' पालकी गुम।

बृहत् सिमटकर एकल हो गये
परिवारों की प्रणाली गुम।

मोबाईल - गूगल के युग में
हाथ लिखी वो पाती गुम।

पढ़-लिख हम विद्वान बन गये
घर-परिवार की थाती गुम।

भौतिकवाद की इस आँधी में
उजड़ी हर परिपाटी गुम।-0-
पता:
विजयानंद विजय
बक्सर (बिहार)

-०-
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प्यारा भारत (कविता) - दीपिका कटरे

प्यारा भारत
(कविता)
मेरा भारत,प्यारा भारत,
प्यारा ही रहेगा।
कोई जाति हो, कोई धर्म हो,
सबको ये अपनाएगा।
हिंसा जिसके, मन में होगी,
उसको ये, ठुकरायएगा।


मेरा भारत,प्यारा भारत,
प्यारा ही रहेगा।
उँगली जो, कोई उठाए,
सर उसका, कट जाएगा।


मेरा भारत, प्यारा भारत,
प्यारा ही रहेगा।
हिंदू , मुस्लिम ,सिख,इसाई,
तिरंगे में दिखे है,सबकी परछाई।
सबने मिलकर, कसमें खाँई,
हम सब तो हैं,भाई -भाई।


क्या कर लेगा, तब पाक हरजाई,
नजरें तो उसने , बुरी ही थी ढ़ाई।
करनी पड़ेगी, उसको तो भरपाई,
जान तो उसकी, अब आफत में हैं आई।
-०-
पता:
दीपिका कटरे 
पुणे (महाराष्ट्र)

-०-

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