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Thursday 8 October 2020

बताने निकले (ग़ज़ल) - राम लाल साहू 'बेकस'

बताने निकले
(ग़ज़ल)
मेरी हर बात को, वह भी तो दबाने निकले
बात आई तो, कई राज पुराने निकले.

हर्फ़ जब लव पे मेरे, आए थे कुछ कहने को
फिर नई बात मुझे, वह भी बताने निकले.

दर्द जब दिल में उठा, सोच न पाए कुछ हम
उनका हर दर्द, जमाने से छिपाने निकले.

हम भी मज़बूर थे, कुछ वह भी नहीं कर पाए
दर्द को देख के, हम आंँसू बहाने निकले.

देख दुनिया का चलन, चुप ही रहे हैं हम अब 
वह मगर अपनी, मोहब्बत को जलाने निकले,
-०-
पता- 
राम लाल साहू 'बेकस'
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

-०-

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सोहर के गीत (आलेख) - साधना मिश्रा

सोहर के गीत 
(आलेख)
आजकल  सुगंधा की सासु माँ बहुत ही खुश रहने लगी थी ।  उनको दादी दादी कह कर कोई  गोद में खेलने वाला  आने वाला था। कभी  पोती के तो कभी पोते का ताना बाना बुनती रहती सोहर के गीत गुनगुनाती रहती,। तो कभी नाम रखने की मौखिक लिस्ट सुगंधा को सुना डालती।
              सुगंधा की गर्भावस्था का आखरी महीना चल रहा था। ये  सुगंधा की पहली प्रसूति थी। बुआजी जब कभी आती तो कहती भाभी देख लेना  बहू  को पहला बेटा ही होगा। उसकी सासू माँ  भी कहती ....हाँ दीदी मुझे ऐसा ही लगता  है ।  
              सुगंधा को बेटा ही होगा तब देखना मैं अपनी बहू को एक अच्छी सी गाड़ी  नज़राना के रूप में  दूंगी ।  उसे ऑफिस जाने के लिये। बच्चे के साथ वो कम से कम अपने हिसाब से घर से निकल तो सकेगी। अभी तो  बस से  जाने में  इसका कितना समय खराब होता है।

             पिछले चार महीनों से  सुगंधा  छुट्टी लेकर घर पर ही थी। सास-ससुर और  उसका पति  व्योम उसका बहुत ध्यान रख रहे थे। उस पर से सासु माँ का कड़क अनुसाशन और गर्म मिज़ाज़ उसे जरा भी लापरवाही नही करने देते। उसका पूरा ख्याल रखा जा रहा था ।  उसे  हरदम  यही लगता कि सब कुछ  बेटे की चाह मैं हो रहा है।
            जुलाई-अगस्त का उमस भरा मौसम उसे बेचैन कर देता था। कभी रात भर नींद नही आती , तो कभी घने बादलों की गर्जना से पैदा हुई बिजली की चमक जब अंधेरे को चीरकर उसके कमरे मे  पड़ती तो वो डर कर सिमट जाती।।  और कभी सोचने लगती  कि अगर   बेटा न हुआ तो ??   क्या तब भी सब ऐसा ही रहेगा?? सोचते हुए दिन निकलते जा रहे थे। और एक रात ऐसी भी आ ही गयी जिसे सोचते सोचते   ही सारी रात निकल गयी और सुबह होते होते उसे प्रसव  पीड़ा  होने लगी।  सुगंधा को तुरंत अस्पताल ले जाया गया।
   बाहर सुबह का वह नज़ारा देख उसे लगा  कि  पूरी प्रकृति ओस के मोती लगी हरियाली की चादर ओढ़े  खड़ी है  लहलहा कर आल द  बेस्ट कह रही है। मानो उसके होने वाले बच्चे  का स्वागत  करने को बेताब हो रही है।

               तीन  चार  घंटो की प्रसव  पीड़ा के बाद  सुगंधा ने  एक सुंदर, प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया।  बच्ची को देखते ही वो अपना हर कष्ट भूल गयी, वही तो एक क्षण ऐसा होता है कि अपने ही अंग को ,वजूद को देख कर हर नवप्रसूता अपने सब दर्द समेत लेती है।

           लेकिन सासु माँ का ख्याल आते ही उदास हो गयी । अब उनके सपने का क्या होगा?  क्या सासु माँ फिर से मुझे वही प्यार,  सम्मान दे पाएंगी ?   क्या मेरी बच्ची उनकी लाड़ ली बन कर उनकी गोद मे खेल पाएगी ? इसी उहा पोह में उसकी नज़र अपनी सास माँ को खुज रही थी ।
           तभी उसने देखा कि सासु माँ फ़ोन पर बात कर रही है और अपनी पोती को निहारते हुये अपनी बेटी से फ़ोन पर कह रही है कि ...  

      प्रिया , देख  2 दिन बाद राखी  है।  लेकिन तुम कल ही आ जाओ ।   तुम्हारी भाभी ने सुंदर सी बेटी   और  तुम्हारी भतीजी को जन्म दिया है  और हां  दिवस  को जरूर लाना अब उसके मामा के घर भी उसे राखी बांधने के लिए चुलबुली से बहन आ गयी है। इतना कह कर सुगंधा के सिर पर हाथ फेर कर हाल चाल लेने लगी।
          व्योम की तरफ मुड़ कर  बोली.....और  व्योम तुम मेरी बहू  के लिए गाड़ी आज ही बुक कर दो ।  आज से ज्यादा शुभमुहूर्त  कोई हो ही नही सकता  क्योकि  आज मेरे घर लक्ष्मी जो आयी है। आंसू जो  सुगंधा  की पलको मे रुके हुए  थे,  वे सासु-माँ की प्यार भरी बातों की बरसात मे बहते चले गए   और उसने प्यार से अपनी बच्ची का सर चुम लिया ।
        सासू माँ को भी मन ही मन धन्यवाद और नमन करते हुए उनका जो हाथ सिर पर धीमे धीमे चल रहा था उसी  हाथ को अपने हाथ मे लेकर चूम लिया।  बन्द आंखों से अश्रु की अविरल धारा को वह रोक नही पा रही थी।
                   तभी सासु माँ की प्यार वाली झिड़की सुनाई दी..... अब   ज्यादा रोयेगी तो सिर में दर्द बढ़ जाएगा। और हाँ तूने क्या सोचा था , कि मैं बेटी होने पर तुझसे  दूर  हो जाऊंगी
           देख सुगंधा ... बेटे  की चाहत किसे नही  होती।  लेकिन घर मे जब पहले लक्ष्मी आती है ना ,  तो घर की आन बान और शान बढ़ जाती है। जो मेरी इस नन्ही कली  ने बढ़ा दी है।
और सासू माँ पोती को गोद में लेकर सोहर के  गीत गुनगुनाने लगी................
"अब तो ज़मा.. आ ,,आना  बदल गयो रे,...
पैदा हुई बेटी,  हां पैदा हुई बेटी,  ना गम करो रे"
-०-
पता:
साधना मिश्रा
लखनऊ (मध्यप्रदेश)
-०-






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ऑनलाइन कक्षाओं का बच्चों के शारीरिक विकास पर दुष्प्रभाव (आलेख) भावना 'मिलन' अरोड़ा

ऑनलाइन कक्षाओं का बच्चों के शारीरिक विकास पर दुष्प्रभाव

(आलेख)

कोरोना महामारी के चलते हमारी ज़िंदगी में बहुत बदलाव आए हैं | जहाँ एक ओर अर्थव्यवस्था और जीवनयापन पर इसका दुष्प्रभाव देखने को मिला वहीं इसका एक और पक्ष बहुत घातक सिद्ध हुआ है, वो है बच्चों की भाग-दौड़, खेल-कूद, उनका बैग टाँगकर विद्यालय की ओर बढ़ना और एक खूबसूरत नियमित ज़िंदगी |

  नर्सरी की नन्ही उम्र तो एक नन्हें पौधे सी होती है, जिसे विद्यालय के खुले प्रांगण,खिली धूप और ज्ञान और स्नेह के जल की आवश्यकता होती है ताकि वह निखर सके, बढ़ सके,

    किन्तु इस मासूम उम्र से लेकर आज विद्यालय जाने वाला हर उम्र का बच्चा घर में कंप्यूटर-लेप्टोप की स्क्रीन के आगे बैठा है | लगभग पिछले पाँच महीने से शिक्षा का यह तकनीकी माध्यम एक ओर उनके 2020 के शिक्षा सत्र को आगे बढ़ा रहा है वहीं घंटो तक उनका स्क्रीन के आगे बैठने का समय भी बढ़ चुका है | पढ़ाई, परीक्षाएँ, हर गतिविधि इन्हीं के प्रयोग से संभव है | बच्चों का एक जगह पर इतनी देर तक बैठना उनके शारीरिक विकास के मार्ग में बाधा बन गया है | बच्चे कभी कमर मोड़ते हैं, कभी उल्टे-सीधे आसन में बैठते-लेटते हैं और अभिभावक यदि पास में न हों तो टीचर के सामने अपनी वीडियो बंद कर आराम से गेम खेलते हैं, सो जाते हैं  |

प्रश्न यह है कि अभी तो यह परिस्तिथि नहीं कि विद्यालय खुलने के कोई आसार नज़र आते हों आगे अभी कब तक ऐसा चलेगा कुछ भी निश्चित नहीं |

 यह एक बड़ी समस्या बन रहा है, इससे न केवल शारीरिक विकास अवरुद्ध हो रहा है बल्कि बच्चे लिखित अभ्यास के प्रति भी बोझिल हो रहे हैं जो कि व्यवहारिक शिक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है | सोचना होगा कि घर पर रहकर बच्चों को फ़िज़िकल एक्टिविटीस में कैसे व्यस्त किया जाए ताकि वो इस कोरोना काल में भी स्वस्थ-सक्रिय और प्रसन्नचित रह सकें और कुछ नया सीख सकें |-०-
पता:
भावना 'मिलन' अरोड़ा
नई दिल्ली
-०-






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