(ग़ज़ल)
मेरी हर बात को, वह भी तो दबाने निकले
बात आई तो, कई राज पुराने निकले.
हर्फ़ जब लव पे मेरे, आए थे कुछ कहने को
फिर नई बात मुझे, वह भी बताने निकले.
दर्द जब दिल में उठा, सोच न पाए कुछ हम
उनका हर दर्द, जमाने से छिपाने निकले.
हम भी मज़बूर थे, कुछ वह भी नहीं कर पाए
दर्द को देख के, हम आंँसू बहाने निकले.
देख दुनिया का चलन, चुप ही रहे हैं हम अब
वह मगर अपनी, मोहब्बत को जलाने निकले,
-०-
बेहतरीन जी
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