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Tuesday, 17 March 2020

ईमानदारी (लघुकथा) - हिमानी भट्ट


ईमानदारी
(लघुकथा)
दिन की बात है, स्कूल में लंच का समय हुआ। सभी दोस्त टिफिन खाने बेठे। दोस्तो ने रवि को बोला। चलो रवि लंच करते हैं, रवि बोलता हैं, तुम लोग करो मैं कैंटीन से सामान लेकर आता हूं। रवि कैंटीन में जाकर समोसा खरीदता है, कैंटीन में ज्यादा भीड़ होने के कारण दुकानदार ज्यादा पैसे वापस कर देता है। रवि खुश हो जाता है। वाह क्या बात है, समोसा भी खा लिया और पैसे भी बच गए। उसके घर लौटने के बाद थोड़ा सोचता है ,उसे लगता है। यह मैंने गलत किया रवि दूसरे दिन जाता है ।दुकानदार को पैसे वापस कर देता है। वह बोलता है, कल दुकान में ज्यादा भीड़ होने के कारण आपने मुझे ज्यादा पैसा दे दिये थे। दुकान वाला यह देख कर खुश हो जाता है। बेटा तुम बड़े ईमानदार बच्चे हों रवि की ईमानदारी देखकर दुकान वाला खुश हो जाता है। उपहार के रूप में समोसा भेट करता है।
"ईमानदारी एक अच्छी निति है। विपरित परिस्थिति मे भी जो ईमानदारी के पथ पर चलता है , वह भय ओर तनाव से मुक्त रहता है ।।"
-०-
पता 
हिमानी भट्ट
इंदौर (मध्यप्रदेश)
-०-

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गौरया (कविता) - सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'

गौरया
(कविता)
मेरे घर की मुंडेर पर गौरैया रहती थी।
रोज सबेरे अपनी भाषा में,आके वो कुछ कहती थी।
चीं चीं चूं चूं करती थी वह, रोज मांगती दाना पानी।
गौरैया को देख मुझे,
आती बचपन की याद कहानी।
आती थी वो नील गगन से,
झुंडों में पंख पसारे।
कभी फुदकती घर आंगन में,
कभी फुदकती द्वारे
चावल औ दानों के टुकड़े,
बीन बीन ले जाती थी।
बैठ घोसलों के भीतर, बच्चोंकी भूख मिटाती थी।
आहट सुन गौरैया की,
बच्चे खुशियों से चिल्लाते थे।
माँ की ममता दानों के टुकड़े,
पाकर निहाल हो जाते थे।
गौरैया का निश्छल प्रेम देख,
मेरी आंखें भर आई थी।
जाने अंजाने माँ की मूरत,
आंखों में मेरी समाई थी।
उस दिन माँ की यादों ने,
मुझको खूब रूलाया था।
एक अबोध नन्ही चिड़िया ने,
प्रेम का पाठ पढ़ाया था।
नहीं प्रेम की कीमत कोई,
और नही कुछ पाना।
अपना सब कुछ लुटा लुटा,
इस दुनिया से जाना।
प्रेम में जीना प्रेम में मरना,
प्रेम मे ही मिट जाना।
ढाई आखर प्रेम का मतलब,
गौरैया से जाना -०-
पता:
सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

-०-

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कोरोना (कविता) - गीतांजली वार्ष्णेय

कोरोना
(कविता)
कोरोना ,कोरोना,कोरोना
जाओना,जाओना,जाओ ना
खेलेंगें हम रंग लगा के
मानेंगें हम तुमको भगा के
होली में तुमको जिंदा जलाके,
भारत से तुम
जाओ ना,जाओ ना,जाओ ना
कोरोना कोरोना कोरोना।
चाहो तो तुम गुझियाँ खा लो,
चाहो तो तुम भांग चढ़ा लो,
मनाने होली और कहीं तुम
जाओ ना,जाओ ना,जाओ ना
कोरो ना.............
चीन ने तुमको जन्म दिया
पाकिस्तान ने गोद लिया
जाके वहीं पे गुझियाँ खाओ ना
कोरोना, कोरोना,कोरोना।
आये हो तो रंग में रंग दें,
चाहो तो तुम्हें धूल चटा दें
होली की आग से तुम
खेलो ना,खेलो ना, खेलो ना
कोरोना,कोरोना,कोरोना।
जिसने तुमको जन्म दिया
वहीं पे अपना रंग जमा लो,
जाके वहीं पे मेहमानी खालो,
खाके मेहमानी भारत से मेरे
जाओ ना,जाओ ना,जाओ ना
कोरोना, कोरोना,कोरोना।।-०-
पता:
गीतांजली वार्ष्णेय
बरेली (उत्तर प्रदेश)
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बेटी (लघुकथा) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे


बेटी
(लघुकथा)
"त्यागी जी,क्या हुआ ?"
" जी,बेटी "
"ओह ! "
"त्यागी जी,घर क्या आया ?
"जी,प्यारी सी बेटी "
"ठीक है"
"त्यागी जी,नया मेहमान क्या है,बेटा या बेटी ?"
"बेटी"
"डोंट माइंड,चलेगा "
"त्यागी जी,क्या खुशख़बरी है ?"
"जी ,लक्ष्मी आई है "
"नाइस,जब लड़की आ ही गई है,तो यही सोचना सही होगा ।"
बहुत देर से त्यागी का मित्र पाल यह सब सुन रहा था ।अंत में उससे रहा नहीं गया,तो पूछ बैठा--"यार त्यागी,तुम्हें हुआ तो बेटा है,पर तुम सबको बेटी क्यों बता रहे हो ? "
"वह इसलिए प्रिय मित्र कि मैं इन नारी-मुक्ति व नारी सशक्तिकरण के संचालकों की असलियत को पहचान सकूूं ।" त्यागी ने टका- सा जवाब दिया ।-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मप्र)
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