तुमने ना पहचाना
(ग़ज़ल)
तुमने ना पहचाना जब
अपना ही ना माना जब
आँखों की मजबूरी थी
पथरा के बह जाना जब
खंजर पार जिगर के था
तुमने मारा ताना जब
जब से तुमसे दूर हुए हैं
हमने ग़म को जाना जब
ख्वाबों की हर इक दस्तक पर
नींदों का उड़ जाना जब