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Tuesday, 14 April 2020

तुमने ना पहचाना (ग़ज़ल) - अमित खरे

तुमने ना पहचाना
(ग़ज़ल)
तुमने ना पहचाना जब
अपना ही ना माना जब
आँखों की मजबूरी थी
पथरा के बह जाना जब
खंजर पार जिगर के था
तुमने मारा ताना जब
जब से तुमसे दूर हुए हैं
हमने ग़म को जाना जब
ख्वाबों की हर इक दस्तक पर


नींदों का उड़ जाना जब
-०-
अमित खरे 
दतिया (मध्य प्रदेश)
-०-




***
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