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Saturday, 9 November 2019

माँ का प्रतिरूप (लघुकथा) - डॉ लता अग्रवाल

माँ का प्रतिरूप 
(लघुकथा)
आज नवेली रूपल का रसोई में पहला दिन है। सभी ने अपने – अपने पसन्दीदा व्यंजन की लंबी लिस्ट उसे थाम दी ।
यूँ ससुराल में उसके पढ़े लिखे होने की तारीफ तो सभी ने दिल खोलकर की मगर रसोई…वह तो हमेशा बचती रही है रसोई से ।
सब्जी वगैरह तो फिर भी वह नेट से देखकर कभी -कभार शौकिया बना लेती थी मगर रोटी..! दादी हमेशा माँ से कहती -
“अरी कृष्णा! चाहे कितना ही पढ़ा ले बेटी को मगर बनाना तो उसे रोटी ही है। कभी रसोई के दर्शन भी करादे कर।“
“ वक्त आएगा तो सीख लेगी मांजी ।“
कभी दादी चेलेंज करती – ,
“चल री रूपल आज मैं तेरे हाथ की ही रोटी खाऊँगी, देखूं कैसी बनाती है ।’
रूपल कितनी कोशिश करती मगर गोल की जगह कोई न कोई नक्शा ही बनता ,
जब थक जाती तो माँ धीरे से आकर उसके हाथ पर हाथ रख बेलन चलाती और गोल रोटी तैयार हो जाती। मगर आज वह क्या करेगी ?
उसने दाल- चावल, खीर, पनीर कोफ्ता, सब नेट की सहायता से बना लिए मगर रोटी की बारी …वही वह बार- बार लोई बनाती , बेलती फिर तोड़ती होंसला छोड़ रही थी
माँ की याद कर आँखों में आंसू भर आये।
अचानक रूपल ने अपने दोनों हाथों पर किसी का स्पर्श महसूस किया और उसके हाथ चकोटे बेलन पर गोल- गोल घूमने लगे। सब कह उठे, ‘ वाह! बहू ने तो बिलकुल चाँद सी गोल रोटी बनाई है।’
रूपल आँखों में खुशी के आंसू लिए सासु माँ को निहार रही थी।
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निवास -
डॉ लता अग्रवाल
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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दर्द लिखने में (गज़ल) - उषा तिवारी 'विष्णु देवी तिवारी' (नेपाल)


दर्द लिखने में
(गज़ल)   

दर्द लिखने में मज़ा है जो मुहब्बत में नहीं
लुफ्त जो प्यार में मिलता है सियासत में नहीं

ये तो दुनिया का तमाशा है भरोसा देना
प्यार पलकों पे बिछाती हूँ शरारत में नहीं

तुम मुझे देख रहे हो जो किसी महफ़िल में
मेरी जुल्फों में घटा है वो नज़ाकत में नहीं

मैं तो तनहा ही निकल पड़ती हूँ मंज़िल खातिर
तेरे दामन से लिपट जाऊँ ये आदत में नहीं

मैं तुम्हें रोज़ लिखा करती हूँ ख़त आँसू से
फ़िक्र कागज़ पे किया करती हूँ नफरत में नहीं


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उषा तिवारी (विष्णु देवी तिवारी)
चितवन (नेपाल)





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सद्भाव बाक़ी रहे देश में (ग़ज़ल) - मुनव्वर अली 'ताज'


सद्भाव बाक़ी रहे देश में
(ग़ज़ल)

याद करता है जो उसको होकर मगन
नाचती है धरा नाचता है गगन

किस हृदय ने किया इस विधा का चयन
रक्त पीने लगी आस्था की अगन

कर लिया शब्द ने भाव का आचमन
नित्य झरने लगे अश्रुओं के सुमन

वन लगा लीजिये हर नगर में सघन
इस तरह से प्रदूषण का होगा निधन

जब लगी चूमने काग़ज़ों को क़लम
चूमते ही ग़ज़ल का हुआ आगमन

चाहिए काव्य मेंं धार तो कीजिए
शब्द का, भार से, सार से संगठन

कैसे सद्भाव बाक़ी रहे देश में
'ताज' चिंतित हैं व्याकुल हैं, चिंतन मनन
मुनव्वर अली  'ताज' 
उज्जैन -म. प्र.

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लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल (आलेख) - डॉ गुलाब चंद पटेल

लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल
(आलेख)
अखंड भारत के निर्माता सरदार वल्लभभाई पटेल गुजरात के खेड़ा जिल्ले में 31 अक्टूबर 1875 मे जन्मे थे, उन्होने भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में भी हिस्सा लिया था, बार डॉली सत्याग्रह मे नेतृत्व के रूप में सफलता हासिल की थी इस लिए महिला ने उनको सरदार की उपाधि से नवाजा था, वो भारत के स्वातंत्र्य सेनानी थे, उन्होने रियासतों बिखरी हुई थी उन्हे भारत में विलय कराया था लेकिन जम्मू कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद के राजवी शामिल न हुए, उन्हे लोह पुरुष के नाम से जाना जाता है,, वो राष्ट्रीय कॉंग्रेस में शामिल थे, उनका जन्म किसान परिवार में हुआ था, उनके पिताजी का नाम झवेर् भाई पटेल और माताजी का नाम लाडबा था, वो उनके माता पिता की चौथी संतान थे,
खेड़ा मे जब अकाल पड़ा था तो एँग्रेज सरकार को कर माफी मांगी थी, इस कार्य में गांधीजी और अन्य लोग जुड़े हुए थे लेकिन सरकार ने माना कर दिया लेकिन उन्होने सरकार को कर नहीं भरने के लिए किसानो को बताया, अंत में सरकार झुकी और कर मे राहत दिया था,
वो बेरी स्टार की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए थे, उन्होने अहमदाबाद में वकालत की थी, वो गांधीजी के विचारों से प्रेरित होकर स्वतंत्रता की लड़ाई में जुड़े थे, वो निडर और राष्ट्र को समर्पित थे,
उनकी सम्मान में ahm में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम सरदार वल्लभ भाई पटेल हवाई अड्डा रखा, नर्मदा के किनारे सरदार पटेल के नाम से सरदार डेम बनाया गया है, उनके स्वन्त्रता के समय में लिखे गए पत्र का 10 खंड में प्रकाशित किया गया है, उसका हिन्दी अनुवाद भी किया गया है, वो दुर्गा प्रसाद ने संपादित किए गए थे और नवजीवन प्रेस ने प्रकाशित किया गया है, 1945 से 1950 तक के स्वतंत्र ता के समय के ये पत्र राष्ट्र के भंडार में रखे गए हैं, उनके नाम से सरदार पटेल विश्व विद्यालय भी बनाया गया है,
31 अक्टूबर 2013 में सरदार पटेल की 137 वी जन्म जयंती के अवसर पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सरदार वल्लभ भाई पटेल स्मारक का शिलान्यास किया गया था, लोह धातुसे 93 मीटर ऊंची विश्व की सबसे बड़ी, ऊंची प्रतिमा नर्मदा नदी के बीच बनाई गई है, उसे स्तेच्यु ऑफ यूनिटी नाम दिया गया है, उसका अर्थ है एकता की मूर्ति, वो करीबन 3000 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया गया है, उसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग जाते हैं, ऎसे लोह पुरुष सरदार पटेल जी को नमन.....

(संकलित)
लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल

यही प्रसिद्ध लोह का पुरुष प्रबल
यही प्रसिद्ध शक्ति शीला अटल
हिला उसे सका कभी न शत्रु,
पटेल पर स्वदेश के गुमान है
सुबुध्दि उच्च श्रुग पर किए जगह
ह्रदय गंभीर हे समुद्र की तरह
कर मे धुएं हुए जमीन की तरह
पटेल देश का निगाह बान हे
हरेक पक्ष को पटेल लोभाता
हरेक भेद को पटेल खोलता
कुशल या छिपाव से उसे गरज
कठोर नग्न सत्य बोलता
पटेल हिम्मत की निडर जबान हे

-हरिवंश
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डॉ गुलाब चंद पटेल
गाँधी नगर  (गुजरात)
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