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Tuesday, 3 November 2020

अरमान (कविता) - प्रीति चौधरी 'मनोरमा'

 

अरमान
(कविता) 
आओगे जब पास हमारे,
हृदय में बिखरेंगे उजियारे।

अरमान की लौ जलती रहेगी,
सदियों तक दिल के द्वारे।

रवि से प्रतीत होंगे हमको,
साथ खड़े आशा के तारे।

कह दो व्याकुल मन से आज,
आकुल होकर नहीं पुकारे।

प्रेम दीप जलकर कहता है,
दूर हुए पथ से अँधियारे।

साँसों की गति बढ़ती जाती,
आओ न प्रिय निकट हमारे।

सीने की बढ़ती है धड़कन,
वश में नहीं अब जिया रे।

सिमट रही रात चादर में,
लाज का घूँघट हमको मारे।

प्रथम स्पर्श से रोमांचित
होने लगा प्रेम पिया रे।

बनकर मीत मनोरम साथी,
आ जाओ प्रियतम प्यारे।

भावुक स्नेहिल भावों से,
परिपूर्ण हुए हैं सभी नज़ारे।

आशाओं का जलता दीपक,
प्रेम ज्योति से रवि हुआ रे।

आकर गले लगा लो साथी,
विरह वेदना कौन गुजारे।

मैं कलिका बन जाऊं आज
तू भ्रमर बनकर मंडरा रे।
-०-
पता
प्रीति चौधरी 'मनोरमा'
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)

-०-


***
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गुरु (कविता) - अनवर हुसैन

 

गुरु
(कविता)
मन पे  मृदुलता थाप लगा के
माटी से जीव कलश  बना के
तम  में ज्योति - पुंज  बता के
भ्रम में सत्य का ज्ञान करा के
*जो प्रतिपल आयाम बनाता है*
*वह 'गुरु' भगवान कहलाता है*

परमार्थ  का  संवाहक बना के
आशाओं  में  पल्लवन  ला के
जीवन  रेखा  में  रंग  चढ़ा  के
कर्तव्य - पथ  हमें  दिखला के
*जो जीवन - पथ का प्रदाता है*
*वह 'गुरु' भगवान कहलाता है*

सुसंस्कारों  का  बोध करा के
प्रगति - पथ की राह दिखा के
प्रतिपल  स्वार्थ से परे हटा के
मानवता का अवबोध करा के
*जो खुद से परिचित कराता है*
*वह 'गुरु' भगवान कहलाता है*

मनभावों को कागज पर लाके
जीवन - रस में  ज्ञान मिला के
नैतिक  मूल्यों से हमें सजा के
कोरे कागज पर लक्ष्य बना के
*हमें मन मानवता सिखलाता है*
*वह  'गुरु' भगवान कहलाता है*

संबंधों का  मधु - पान करा के
विद्या प्रदाता हमें स्वयं बना के
हर्ष,प्रेम,त्याग की भेंट चढ़ा के
संस्कृति का आचरण सिखाके
*जो सभ्यता को आगे बढ़ाता है*
*वह 'गुरु ' भगवान कहलाता है*

विकट  क्षणों  में 'धैर्यता ला के
कंटको  में  सुमन  दिख ला के
सागर तल छट में  रत्न बता के
जीवन  का  सार  हमें  बता के
*जो कर्म - योगी  बन  जाता  है*
*वह 'गुरु 'भगवान  कहलाता है*
-०-
पता :- 
अनवर हुसैन 
अजमेर (राजस्थान)

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