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Thursday 23 April 2020

आग लगाकर चले गए (कविता) - शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’

आग लगाकर चले गए
(कविता)
आए थे कुछ लोग, साँस के,
निर्वासन की, बस्ती में,
रुके नहीं संबंध, अरे हाँ !
आग लगाकर चले गए.

छोटा सा वह शहर,
शांत था, गुमसुम था,
श्वेत वस्त्र से ढँका,
प्राण का कुमकुम था,
आग और कुछ धुआँ, हवा थी,
अभिनंदन की, हस्ती में,
रुके नही आबंध, अरे हाँ !
आग लगाकर चले गए.

आँसू का अर्णोद,
आँख में सावन था,
ममता का उत्कंठ,
अमत्सर पावन था,
रीति कपाल-क्रिया की, चुप थी,
कर्म-धर्म की, दस्ती में,
रुके नही अनुबंध, अरे हाँ !
आग लगाकर चले गए.

यादों की वह, योग-
युक्ति, अभिलाषा थी,
जीवन की हर सूक्ति,
मुक्ति परिभाषा थी,
देह छोड़कर गई आत्मा,
अंग-अंग हैं, पस्ती में,
रुके नहीं पदबंध, अरे हाँ !
आग लगाकर चले गए.-
पता: 
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
-०-


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सत्यमेव जयते (कहानी ) - रेशमा त्रिपाठी

सत्यमेव जयते
(कहानी)
“एक राजनेता जिसकी छवि पूरे समाज में एक आदर्श व्यक्ति के रूप में थी । वहीं एक आम कार्यकर्ता जो यथार्थ में आदर्श जीवन जीता था और उस राजनेता को भगवान की तरह मानता था । एक घटना ने परछाई और धूल में अन्दर बता दिया ...! एक दिन राजनेता की सेक्रेंटरी से उस आम आदमी को उससे प्यार हो जाता हैं कुछ दिनों बाद दोनों शादी कर लेते हैं सब कुछ ठीक रहता हैं। एक दिन एक प्रोजेक्ट के कारण कुछ गाॅ॑वों को खाली करवाना होता हैं वह आम कार्यकर्ता आसानी से यह कार्य करवा सकता था इसलिए राजनेता ने उसकी पत्नी से कहकर गाॅ॑व को खाली करवाने के लिए राजी करवा लिया किन्तु गाॅ॑व के लोग जब अपना– अपना सामान लेकर गाड़ी में बैठ रहे थे तब कुछ लोगों की पोटली नीचे गिर गई और उसमें से नोटों की गड्डियां गिरने लगी उस आम आदमी ने इतना सारा पैंसा देख कर कहा कि तुम लोगों को यह सारे पैसे कहाॅ॑ से मिले तब लोगों ने बताया गाॅ॑व खाली करवाने के लिए उसे मिला हैं आम आदमी गांव वालों को तुरन्त गांव छोड़ने से रोक देता हैं और अपनी पत्नी के पास बात करने चला जाता हैं । दोनों में बहस होने लगती हैं कि यह सब क्यों किया झूठ क्यों बोली वह। इतने में राजनेता वहां आ जाता हैं और वह कहता हैं ये झूठा हस्ताक्षर उसने स्वयं करवाया हैं गांव वालों को पैसें उसने भेजवाया । इससे उसको लाभ होगा सरकार से बहुत पैसे मिलेंगे इस प्रोजेक्ट पर । तुम दोनों आम आदमी के चक्कर में मत पड़ो और मेरा विरोध जो करेगा वह जान से मारा जाएगा उस दिन सेक्रेटरी और आम आदमी दोनों समझ गए यह भगवान के रूप में शैंतान हैं इसलिए राजनेता का सपोर्ट किया सेकेंटरी ने और आम आदमी बहुत देर तक हाथापाई करता रहा और जानबूझकर अंत में जब हार गया तो पत्नी के हाथों से गोली चलवा मर गया । सेक्रेंटरी जेल चली गई और राजनेता भगवान बन जनता को लूटता रहा । किन्तु अन्य ऑफिसर को शक हुआ कि आखिर क्यों ?और कैसे ?कोई राजनेता इतना पाक साफ हो सकता हैं तब तक कुछ दिनों में सीबीआई जांच बैठ गई और उस सेक्रेटरी को तारगेट किया गया सेक्रेटरी ने भी कहानी बना कर परोस दिया । कहानी थी प्रेतआत्मा के रूप में क्योंकि उसे जहां रखा गया था वह कोई पुरानी हवेली थी । वह कहानी बनाने में पूर्णतः सफल रही उसे लोगों ने मेंटल हॉस्पिटल भेज दिया यह समझ कर कि शायद वह डिप्रेशन में पागल हो गई हैं । राजनेता सोच रहा था उसको बचाने के लिए सेकेट्ररीं ने यह सब कुछ किया जानबूझकर किन्तु ..
अब तक तीन महीने बीत गए थे और अंतिम समय था पति के मौत का इल्जाम कोर्ट में अंतिम समय में चल रहा था राजनेता भी सीबीआई जांच से बाहर ही लगभग निकल चुका था । जो महिला ऑफिसर जांच कर रही थी वह भी निराश हो गई थी । एक दिन अपने बच्चें के साथ पार्क में दौड़ रही थी बच्चें ने एक कहानी सुनाई कहानी खत्म हुई ही थी कि ऑफिसर का तब तक फोन आ गया उसने ध्यान नहीं दिया जब बात खत्म हुई तो उसने अपने चारों ओर देखा वही कहानी सुनाई थी बच्चें ने जो उस पार्क में चीजें थी उन्हीं को जोड़कर ऑफिसर ने अपने बच्चें से कहा बेटा तुमने मुझे बेवकूफ बनाया यह सब यहीं से देखकर तुमने कहानी बनायी बेटा बोला–‘ मां सब कुछ तो आपके सामने ही था अब आपको नहीं दिखाई दिया तो मैं क्या करूं।' यह बात ऑफिसर को सोच में डाल देती हैं वह उस स्थान पर गई जहां पर उसने सेक्रेटरी को पूछताछ के लिए रखा था और उन सभी कड़ियों को जोड़ने लगी अब उसे समझ में आया कि सेक्रेंटरी झूठ नहीं बोल रही थी बल्कि कहानी बनाकर सच बता रही थी लेकिन अब तक समय हो चला था और सेक्रेंटरी ने अपना पूरा ताना-बाना बुन लिया था राजनेता इतने में हस्ताक्षर लेने के लिए प्रोजेक्ट के पैसे का सेक्रेंटरी के पास गया जो कि उसने जान बूझ कर सेक्रेंटरी के नाम पर किया था वह मेंटल हॉस्पिटल में थी इसलिए वह सेक्रेंटरी से अकेले ही मिलने गया दोनों में काफी देर बातचीत हुई और बहस हुई तब सेक्रेटरी ने कहा राजनेता जी– मैंने शैतान को हरा दिया उसकी चाल में अब सुनों मैंने ही अपने गुप्तचर के सहयोग से तुम्हारी सीबीआई जांच बैठवाई, मैंने ही कहानी बनाकर तुम्हारी चोरी/ मारपीट इत्यादि कारनामों का वीडियों बनवाया। आज तुम्हारे सभी आदमी पकड़े जायेंगें मैंने वीडियो क्लिप सीबीआई को भेजवा दिया हैं आज तुम भी मारे जाओंगें और मैं आजाद हो जाऊंगी और तुम्हारे प्रोजेक्ट का पैसा जो मेरे पति के नाम पर तुमने आम लोगों से लूटा हैं ,सरकार से जो लिया हैं वह सब मेरा होगा अब ।राजनेता इतना सब सुनकर तिलमिला उठा और उसने रिवाल्वर निकाली तभी सेक्रेंटरी ने अपने हाथों पर गोली चलवा लिया । गोली कि आवाज सुन पुलिस वाले अन्दर आ जाते हैं क्योंकि सेक्रेटरी लोगों की नजरों में मेंटल हैं इसलिए राजनेता के हाथ में रिवाल्वर देख पुलिस राजनेता पर गोली चला देती हैं एक बार फिर राजनेता ने कोशिश की, कि वह सेक्रेंटरी पर गोली चलाएं उससे पहले ही पुलिस वालों ने गोली मार दिया और राजनेता की मौत हो जाती हैं सेक्रेंटरी धीरे से मुस्कुरा देती हैं सीबीआई को भी अब तक पता चल जाता हैं कि राजनेता ने बड़े-बड़े घपलें कर लोगों को बेवकूफ बनाया हैं और यह भी कि मर्डर सेक्रेंटरी ने नहीं बल्कि उसने जबरन करवाया था । वह आजाद हो गई तब उसने बताया कि अब तक जेल में पहुंचने के बाद जो कुछ भी उसने किया वह सब अपने बचाव में और राजनेता के गुनाहों को उजागर करने के लिए किया । क्योंकि वह लोगों की नजरों में देवता था मेरे लिए भी भगवान हुआ करता था सच जानने से पहले। अब वह अपने पति की तरह वह आम आदमी की सेवा कर भारतीय आदर्श जीवन जीना शुरु कर दिया। उसका पद भी उसे वापस मिल गया । सेक्रेंटरी तो वह राजनेता की थीं किन्तु थी तो आईएएस ऑफिसर जिसने सत्यमेंव जयते शब्द को जिया । किन्तु बोली नहीं । इसलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि अपने बच्चों को शिक्षित करें साक्षर नहीं क्योंकि बन्दूक की नोंक पर ही शुरू होती हैं राजनीति और जहां राजनीति हो वहां कोई भगवान नहीं हो सकता । किसी ने कहा हैं–‘ बन्दूक की गोली से ज्यादा ताकत कलम की होती हैं ।।'
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रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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जीवन घर तक (ग़ज़ल) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे


जीवन घर तक
(ग़ज़ल)
जीवन घर तक, पर सुखकर है ।
कितना प्यारा लगता दर है ।

अब विराम में भी गति लगती,
हर्ष भरा यह आज सफ़र है ।

जीवन लगता एक ग़ज़ल-सा,
खुशियों से लबरेज बहर है ।

शांत रहो,खामोश रहो सब,
अंधकार के बाद सहर है ।

ऊंचा उड़ना नहीं रुकेगा,
कायम मेरा हर इक पर है ।

वीराना भाता है अब तो,
मीठा लगता हर इक सुर है।

रहे बात यह अंतरमन में,
कभी न ठहरा सदा क़हर है ।

'शरद' अभी भी रौनक सारी,
कल मेरा अब से बेहतर है ।-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मप्र)
-०-

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