कोहरे की चादर लपेटे, सर्द रात, निहार रही ज़मीं पर, अलाव तापते कहीं कोई कान्हा, छेड़ रहा बाँसुरी की तान, सर्द ठिठुरती रात, अलाव की नर्म गर्माहट ले, हटा कोहरे की चादर, लगी है थिरकने, मन्द-मन्द कदम ताल में, और रात के नर्तन संग, बाँसुरी की धुन पर, गाने लगा है चाँद, मधुर-मधुर स्वरों में, गीत कोई प्रेम का, गुनगुनाने लगा है चाँद, भोली भाली रात के, भोलेपन पे रीझ कर, मुस्कुराने लगा है चाँद...
कविता कहां है आपकी
ReplyDeleteकोहरे की चादर लपेटे,
Deleteसर्द रात,
निहार रही ज़मीं पर,
अलाव तापते
कहीं कोई कान्हा,
छेड़ रहा बाँसुरी की तान,
सर्द ठिठुरती रात,
अलाव की नर्म गर्माहट ले,
हटा कोहरे की चादर,
लगी है थिरकने,
मन्द-मन्द कदम ताल में,
और रात के नर्तन संग,
बाँसुरी की धुन पर,
गाने लगा है चाँद,
मधुर-मधुर स्वरों में,
गीत कोई प्रेम का,
गुनगुनाने लगा है चाँद,
भोली भाली रात के,
भोलेपन पे रीझ कर,
मुस्कुराने लगा है चाँद...