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Saturday, 21 November 2020

जीना सिखाता है (ग़ज़ल) - डॉ० अशोक ‘गुलशन’

 

जीना सिखाता है
(ग़ज़ल)
हमारी गलतियों को वो सही होने नहीं देता,
हमें  वह आदमी से आदमी होने नहीं देता।

सताता है मग़र हमको दुःखी होने नहीं देता,
हमारे  दर्द  में  कोई  कमी  होने  नहीं  देता।

जहाँ  हम  चाहते  होना वहीं होने नहीं देता,
हमें वो अब कहीं से भी कहीं होने नहीं देता।

आसमां हूँ मगर हमको जमीं होने नहीं देता,
हमारी  ज़िन्दगी को ज़िन्दगी होने नहीं देता। 

जिसे अपना समझते हम वही दिल को दुःखाता है,
याद  में  वो  कभी  कोई  कमी  होने  नहीं  देता।

रुलाता है हमें इतना कि आँसू सूख जाते हैं,
हमारी  आँख में थोड़ी नमी होने नहीं देता।

मुहब्बत में हमें अपनी तरह जीना सिखाता है,
हमारी ही  तरह हमको  कभी होने नहीं देता।
-०-
संपर्क 
डॉ० अशोक ‘गुलशन’
बहराइच (उत्तरप्रदेश)
-०-



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हकीकत (कविता) - शाहाना परवीन

हकीकत

(कविता)

क्या है "हकीकत"?
जी हाँ इसे वास्तविकता भी कहते हैं
सच्चाई.....का दूसरा नाम
यदि इस शब्द क बारे म़े जाने तो
बहुत सारे भेद छिपे हैं इसमें।
पर उनकी तह तक पहुँच पाना
मुश्किल ही नहीं , नामुमकिन भी है।

चलिए जानते है जीवन की हकीकत,
क्या है जीवन ?
कोई नहीं जानता कि जीवन की हकीकत क्या है?
किसी से पूछो यही उत्तर होगा 'जो हम जी रहे हैं' वही जीवन हैं।
पर क्या इसकी यही हकीकत है?

दूसरा प्रश्न व्यक्ति का अस्तित्व क्या है?
इस हकीकत से भी आज तक इंसान अंजान है
व्यक्ति और अस्तित्व,
दोनों ही की हकीकत का,
किसी को भी सही - सही ज्ञान नहीं है।

हकीकत है तो केवल "जन्म और मृत्यु",
जो शाश्वत सत्य है।
इन दोनो को कोई झुठला नहीं सकता।
जन्म और मृत्यु के विषय में व्यक्ति
यह भी नहीं कह सकता कि
वह कुछ नहीं जानता।
क्योकिं उसने जन्म लिया है और अपने सामने मरते हुए लोगों को भी देखा है।

हकीकत केवल जन्म और मृत्यु है ,
बाकी सब अंधकार में लिप्त परछाइयां हैं जो चाह कर भी नहीं दिखती।।
-0-
पता -
शाहाना परवीन
मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)
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बाल साहित्य: विश्व बाल दिवस (आलेख) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'


विश्व बालदिवस के अवसर पर विशेष आलेख 

बालसाहित्य 
(आलेख)
सौभाग्य की बात है कि बाल साहित्य का सृजन आजकल बहुत ही होने लगा है पर अफसोस यह है कि बालकों तक यह साहित्य पहुंच पाता है या नही । बाल साहित्य आजकल सभी भाषाओं में लिखा जाने लगा है साथ ही बाल साहित्य की आवशयकता को भी अंगीकार किया जाने लगा है। बाल मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बालकों के बौद्धिक व चारितत्रिक विकास में स्वस्थ व उत्तम साहित्य की नितान्त आवश्यकता है ।
आम तौर पर ऐसा साहित्य जो मात्र बच्चों को केंद्र में रख कर लिखा जावे,बच्चों की आकांक्षाओं को ध्यानपूर्वक लिखा गया साहित्य ही वास्तव में बाल साहित्य की श्रेणी में सही माना जा सकता है । ऐसा साहित्य ज्ञानवर्धन के साथ साथ कल्पना शक्ति को भी बढ़ाता है ।
अब प्रश्न ये उठता है कि बाल साहित्य कैसा हो ? इस बारे में अधिकतर बाल सर्जकों की राय है कि बालकों में संस्कार,मानवीय मूल्य व नैतिक आचरण पैदा करने वाला साहित्य हो जो बच्चों की रुचि, आदत, आवश्यकता व विचारों को केंद्र में रख कर लिखा साहित्य ही बच्चों के ज्ञानवर्धन में सहायक होता है । 
बाल साहित्य कैसा हो ? इस बारे में सर्जन कर्ताओं, मनोवैज्ञानिकों विविध विद्वानों के अपने-अपने विचार है कि बाल साहित्य रोचक एवं प्रेरक हो । कुछ लोगों का कहना है कि बालकों की बात को बालकों की भाषा मे लिखने से बालक जल्दी ग्रहण करता है । लेखक को बाल साहित्य लिखते समय बालक बन कर ही बाल मन के अनुसार लिखे तो वह बालक जल्दी ग्रहण कर लेता है ।
बाल साहित्य बालकों की जिज्ञासा को शांत कर तथा रुचियों में इजाफ़ा करे व अच्छे संस्कारों का निर्माण करे वही श्रेष्ठ बालपोयोगी होता है ।
ज्यादातर लोगों का मानना है कि सरल,सहज व समझ आने वाला साहित्य हो जो सामाजिक तथ्यों को प्रतिपादित करने वाला भी हो ।अधिकांश सृजनकर्ताओं का कहना है कि बाल साहित्य बालकों का मनोरंजन कर सके तथा मनोभावों , जिज्ञासाओं व कल्पनाओं के अनुरूप हो जिससे बालकों में आनन्द की अनुभूति हो व बालकों के सर्वांगीण विकास में सहायक हो ।
विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में " बालकों का अर्धचेतन पेड़ों की तरह सक्रिय होता है। जैसे पेड़ में धरती से रस खींचने की शक्ति होती है वैसे ही बच्चों के मन मे अपने चारों ओर के वातावरण से जरूरी खाद्य प्राप्त करने की क्षमता होती है " ।
कुल मिलाकर बाल साहित्य बाल मनोविज्ञान को प्रतिबिंम्बित करने वाला व बालकों के व्यक्तितत्व का चहुंमुखी विकास करने वाला हो ।
बाल मन कोमल होता है अतः बाल साहित्य का सृजन करते समय सावधानी रखनी चाहिए , जिससे बालक का सन्तुलित विकास हो क्योंकि बच्चों का संसार बड़ों के संसार से सर्वथा भिन्न होता है ।बाल साहित्य का सृजन करते वक़्त बालकों की रुचि, योग्यताएं , उम्र एवं प्रतिभा को भी ध्यान में रखना नितान्त आवश्यक है ।
बाल साहित्य बालक के मानसिक धरातल उसकी भावनाओं के स्तर के अनुरूप ही रचनाओं का रचाव हो। 
बाल साहित्य में अतीत का स्मरण व वर्तमान की समझ हो तथा भविष्य की जिज्ञासा भी हो ।
बाल साहित्य आत्मविश्वास भर सके तथा बालक भी स्वम प्रेरित हो व नवीन चेतना को स्वतः स्फुरित करने वाला हो।
हमारी संस्क्रति की परंपरा को सुरक्षित रखने व बालक मे पुरुषार्थ का महत्व जगाने में भी मददगार हो ।
बालक को बालक के स्तर का साहित्य उपलब्द्ध कराए ताकि बालक समय परिस्थितियों का मुकाबला कर सके।
आजका बालक क्या चाहता है ,सर्जन करता को सर्जन करते समय सोचना होगा की ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में जहां बालक के सामने सारे गैजेट्स खिलौनों की तरह पड़े हैं, शहरीकरण तेजी से गांवों की ओर कदम बढ़ा रहा है।
आज का बालक विज्ञान के उन सभी साधनों जैसे टी वी के चैनल ,मोबाइल व ईन्टरनैट से अपड़ैट है तो ऐसे में बाल साहित्य का स्वरूप ,बाल साहित्य की सोच ,उनकी मन स्थिति औऱ उनके चिन्तन को ध्यान में रखते हुए साहित्य सृजन होना चाहिये ।
आज बाल साहित्य की विषय वस्तु समय के साथ साथ निरन्तर बदल रही है । आज का बालक अब उन परम्परा गत संसाधनों से हट कर ई मेल, वाट्सअप , वायरस , ब्लॉग , फेसबुक , पैन ड्राइव , लैपटाप , टेबलेट ,कम्प्यूटर व बुलेट ट्रेन आदि में ज्यादा विश्वास करने लगा है।अब आज का बालक गुड्डे -गुड्डी से हट कर साहित्य चाहता है ।
आज के बालक की सोच परिपक्व हो चुकी है इसलिए रचना कर्मियों को बाल साहित्य का सृजन करते समय विषय वस्तु ,पात्र , स्थान व बालको की मानसिकता के अनुरूप ही साहित्य सृजन करना होगा ।आज बाल साहित्य लिखा तो जा रहा है पर बालकों तक पहुंच नही पा रहा है। अब बालकों को कैसे साहित्य परोसे जाएं इस पर गहन मनोवैज्ञानिक सोच की आवश्यकता है ।
बाल साहित्य का अब भविष्य उज्ज्वल है क्योंकि राजस्थान के लोकपीरय मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने बाल साहित्य अकेडमी के गठन की घोषणा कर बालकों को स्वस्थ बाल सर्जन व उपयोगी साहित्य सर्जन में भी व्रद्धि होगी तथा बाल साहित्यकारों के मान सम्मान में इजाफा होगा ।विश्व बाल साहित्य दिवस के शुभ अवसर पर मैं खुद नाचीज बीकानेरी मुख्यमंत्री जी से आशा करता हूँ कि राजस्थान बाल साहित्य अकेडमी का गठन शीघ्र हो व योग्य बाल साहित्यकारों से सुशोभित हो ताकि बाल साहित्य की पोथियां आने वाले समय मे हर बालक -बालिका के हाथ मे हो ।
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

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मंजिल (कविता) - श्रीमती रमा भाटी

  

मंजिल
(कविता)
अगर चाहत हो मंजिल तक
पहुंचने की मत रुकना कभी
चलते रहना बस चलते रहना।

चाहे आयें मुश्किलें राहों में
या हो रास्ता चुनौती भरा
चलते रहना बस चलते रहना।

ना छोड़ना कभी उम्मीदों को
ना होना कभी मायूस तुम
चलते रहना बस चलते रहना।

उड़ान कितनी भी ऊंची हो
पांव जमीं पर ही रखना तुम
चलते रहना बस चलते रहना।

ख्वाहिशें सदा रखना जिंदा तुम
ना टूटने देना कभी विश्वास तुम
चलते रहना बस चलते रहना।

अंधियारों को चीरते हुए
जब दिखेगी रोशनी तुम्हें
वही होगी तुम्हारी मंजिल 
चलते रहना बस चलते रहना।
-०-
पता:
श्रीमती रमा भाटी 
जयपुर (राजस्थान)

-०-


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