आनंद मंगल
(कविता )
हे मानव मत कर गरूर !
ज़िन्दगी है क्षण-भंगुर !!
बन सहज व्यवहार कर !
मानवता का मुकुट धर !!
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।
ईर्ष्या-द्वेष का त्याग कर,
प्रेम-भाव आत्मसात कर ।
ऊँच-नीच का भेद-भाव छोड़ ,
अहंकार का नाता तोड ।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।
दान-पुण्य की गंगा बहा दे ,
सबसे अपनत्व का नाता जोड़ दे ।
दीन-दुखियों की आह सुन ले ।
सत्कर्म का पूण्य बुन ले।।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।
छोटे- बड़ों का आदर कर ,
वाणी-विवेक से सादर कर ।
काल-चक्र का सम्मान कर ,
सृष्टि नियंता का अभिवादन कर ।।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।
ज़िन्दगी है क्षण-भंगुर !!
बन सहज व्यवहार कर !
मानवता का मुकुट धर !!
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।
ईर्ष्या-द्वेष का त्याग कर,
प्रेम-भाव आत्मसात कर ।
ऊँच-नीच का भेद-भाव छोड़ ,
अहंकार का नाता तोड ।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।
दान-पुण्य की गंगा बहा दे ,
सबसे अपनत्व का नाता जोड़ दे ।
दीन-दुखियों की आह सुन ले ।
सत्कर्म का पूण्य बुन ले।।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।
छोटे- बड़ों का आदर कर ,
वाणी-विवेक से सादर कर ।
काल-चक्र का सम्मान कर ,
सृष्टि नियंता का अभिवादन कर ।।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।
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