त्राही त्राही हर ओर मची
(गीत )
ऐ राम विचार करोगे कब।
जो रावण छिपे हुवे घर घर,
उनका संहार करोगे कब ।।
घर घर में अपने नामो का,
सिक्का तुम ही चलवाते हो।
हर घर में राम खड़े करके ,
बेशक तृप्ति तुम पाते हो ।।
लेकिन कैसे चुपके चुपके ,
उनमें रावण आ जाते हैं ।
बदनाम तुम्हीं को करते हैं ,
देखो कैसे इठलाते हैं ।।
जो छद्म वार करने वाले,
उनपर तुम वार करोगे कब।
जो रावण छिपे हुवे घर घर,
उनका संहार करोगे कब ।।
क्या नहीं जानते तुम सचमुच,
किरदार डॉक्टरों के बोलो ।
पहले हकीम और वैद्य दवा ,
जो देते थे उनसे तोलो ।।
ये गला काटते दुखियों का ,
केवल अपना घर भरते हैं।
रोगी को टेबल पर रखके,
पैसा लेते कब डरते हैं ।।
कर्तव्यहीन पथभ्रष्टो को ,
बोलो बेदार करोगे कब ।
जो रावण छिपे हुवे घर घर,
उनका संहार करोगे कब ।।
मर्यादा करते तार तार ,
पर राम दुपट्टा धारेंगे ।
ताबूतो में रिश्वत खाते,
कैसे ये कर्ज उतारेगे ।।
ये अबलाओं की इज्जत को ,
अपनी जूती पर रखते हैं ।
हर नीच काम करते हैं ये,
न डरते हैं न थकते हैं।।
इनके कुत्सित मंसूबों का ,
हर पग बेकार करोगे कब ।
जो रावण छिपे हुवे घर घर,
उनका संहार करोगे कब ।।
ये राम नाम तो रटते हैं ,
पर छुरी बगल में पाओगे।
जो करें मिलावट कम तोलें ,
उनसे कैसे बच जाओगे।।
वनवास नहीं ये खुद जाते,
रिश्तों को तोड़े पल भर में ।
बूढे माँ बाप कबाड़े का ,
सामान रखें क्यों कर घर में।।
अंधे जो धन के पीछे हैं,
उनसे उद्धार करोगे कब ।
जो रावण छिपे हुवे घर घर,
उनको संहार करोगे कब ।।
रक्षक जो देश के बनते हैं,
भक्षक हैं खाने वाले हैं।
कंगाल वतन को करते हैं,
जाने कैसे रखवाले हैं।।
सेवा के नाम पे आये हैं ,
हर कोई सेवक कहता है ।
ये रामराज्य के हामी हैं ,
जो वादों में बस रहता है।।
झूठे वादों का तुम "अनंत"
बोलो प्रतिकार करोगे कब
जो रावण छिपे हुवे घर घर,
उनका संहार करोगे कब ।।-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
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