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Thursday, 9 April 2020

देशहित में चूर होना चाहिए (ग़ज़ल) - नरेन्द्र श्रीवास्तव

देशहित में चूर होना चाहिए
(ग़ज़ल)
आदमी को आदमी जरूर होना चाहिए।
आदमी में आदमी भरपूर होना चाहिए।।

चेहरा बेनूर है तो इससे कुछ हर्ज नहीं।
आदमी के दिल में मगर नूर होना चाहिए।।

लोग क्या कहेंगे ये बात सोचने की नहीं।
आदमी में ख़ुद में ही सऊर होना चाहिए।।

दिनोंदिन बढ़ता चला है शोर गली-गली में।
शोर को हर गली से अब दूर होना चाहिए।।

हरेक को नशा है कोई ना कोई तो एक।
आदमी को देशहित में चूर होना चाहिए।।
-०-
संपर्क 
नरेन्द्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)  
-०-

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कुछ दिन तो तुम और ठहरते (कविता) - शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’

कुछ दिन तो तुम और ठहरते
(कविता)
आये हो तो, जाओगे ही,
छोटी लेकिन बात सही है,
यह बस्ती है, गाँव तुम्हारा,
कुछ दिन तो तुम और ठहरते.

माटी के घर, नहीं रहे अब,
ईंटों की है, नई भूमिका,
अभी पलस्तर, नहीं हुआ है,
थिरकी तक है, नहीं तूलिका,
तूलम-तूल, खड़ीं दिवारें,
नहीं सफेदी के, पग धमके,
सूर्यदेव के, किरण पंख तक,
पेड़ों पर हैं, नहीं छ्हरते.

मान रहा यह, अभी शहर की,
नहीं खेलतीं, सुख-सुविधाएँ,
अब भी घर-घर, दुहने जाते,
लछुमन काका, भैंसें-गायें,
किन्तु यहाँ अब, रोज टहलतीं,
मुमकिन होने की गतिविधियाँ,
अमन-चैन के, घी-जौ-फल-तिल,
समिधाओं के कुंड लहरते.

बदले हुए समय में, सच है,
गाँव-मुहल्ले, कुछ शहराए,
बीत गए दिन, दुःख सावन के,
उत्पीड़न के, घन छितराए,
वर्तमान पर, उस बचपन की,
यादों के पल, कीर्तिमान ध्वज,
नीलगगन के उच्चमान तक,
लहर-लहरकर, विविध फहरते.०-
पता: 
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
-०-


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कुछ कोरोनाएं (व्यंग्य) - घनश्याम अग्रवाल

कुछ कोरोनाएं

(कविता)
@
कोरोना की वजह से
कवि सम्मेलन रद्द हुए।
(कवियों के लिए बुरी खबर ),
अब ये कवि
कविता लिखने लगे ।
(कविता के लिए अच्छी खबर )
@
" कवि सम्मेलन रद्द हुआ "
मर गया कवि जीते जी,
" रद्द नही, पोसपोंड हुआ ।"
जी गया कवि मरते-मरते ।
@
खूब खाना मंगवाइये
लोगों को जमा कर
धूमधाम से ' बर्थ डे ' मनाइये,
आपका खाना व्यर्थ नहीं जायेगा,
आपकी ही
तेरवीं में काम आयेगा ।
@
संयम और सावधानी की
लक्ष्मण रेखा
आप मत लांघिये
बड़ा मजा आयेगा
जब हरण करनेवाला
कोरोना रावण
खुद लांघते ही
भस्म हो जायेगा ।
@
सुहागरात को दुल्हन
दूल्हे को छोड़कर
घर से भाग गई,
वजह ?
बिना साबुन से हाथ धोये
दूल्हे ने दुल्हन का
घूँघट उठाने की ज़ुर्रत की थी ।
@

एक मीटर की दूरी सदा बनायें रखें
एक-दूजे को
करें नहीं टच
आप कोरोना से
और देश
जनसंख्या विस्फोट से
दोनों जायें बच।
@

अंत में एक " काव्य कथा "
पापा ने आज पहली बार पूरा दिन
पीहू के साथ बिताया
उसके हाथ से खाया
अपने हाथों खिलाया
टाफी और कहानी की आड
ढेर सारी बातें, ढेर सारा लाड
चहक उठी पीहू
महक उठी पीहू पूछा तो पापा ने बताया है
"ये जो कोरोना आया है
इससे कर्फ्यू लगा है
न कहीं आना, न कहीं जाना है
आज का दिन बस
पीहू के साथ बिताना है।"
पीहू और भी चहक उठी
और भी महक उठी ।
दूसरे पल उदास हो पूछा-
"पापा , क्या कोरोना अंकल कल चले जायेंगे ?
फिर नहीं आयेंगे ? "
पापा को हुआ अपनी गलतियों का एहसास
वे भी हो गये उदास।
" बोलो न पापा क्या कोरोना अंकल कल चले जायेंगे ? फिर नहीं आयेंगे ? "
" हाँ बच्चा, कल तुम्हारे कोरोना अंकल चले जायेंगे फिर कभी नहीं आयेंगे।"
दोनों और उदास हो गए।
अचानक मुस्कुराते पापा बोले-
"मगर तुम्हारे कोरोना अंकल
जाते-जाते मुझसे कह गये-
टाफी, कहानी मौज-मस्ती के साथ
रोज पीहू के साथ खेलना होगा।"
कहते हुए पापा ने अपनी बाहें फैलाई ।
" थैंक्यू कोरोना अंकल "
और पीहू पापा की गोद में आ गई।
दोनों की उदासी भाग गई
दोनों चहक उठे।
दोनों महक उठे।
@
-०-
पता:
घनश्याम अग्रवाल
(हास्य-व्यंग्य कवि)
आकोला (महराष्ट्र)

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दुःख के बाद सुख (कविता) - हेमराज सिंह

दुःख के बाद सुख
(कविता)
दुख आने पर ही दुनियाँ में,सुख के दर्शन होते है।
फूलों की सौरभ वे पाते,जो कांटो के दंश सहते हैं।

अगर नहीं पतझड़ तो कैसे,बासंती मधुमास खिले।
अगर नहीं तम घोर निशा का,तो कैसे प्रत्यूष मिले।
विषका घट ले हाथ वही,घट अमृत का फिर पातेहैं।
दुख आने पर ही दुनियाँ में,सुख के दर्शन होते है।

जो लहरों से डरे,किनारे पर ही, हार खड़े रहते।
पाँव डूबोने से डरकर जो,साहिल बीच पड़े रहते।
भला कहाँ वे सागर की,मौजो का सुख ले पाते है।
दुख आने पर ही दुनियाँ में,सुख के दर्शन होते है।

जो चोटो संग नही खेलते,वे कोरे पाषाण रहे।
जो घन की थापों से डरते, कोरे अनगढ़ पड़े रहे।
अविरल चोटे सहते जाते,शिव लिंगी कहलाते है।
दुख आने पर ही दुनियाँ में,सुख के दर्शन होते है।

कदम कदम पर लिया सहारा,कहाँ देरतक टिक पाये।
उदयकाल से अस्तकाल तक,गैरो के कंधे आये।
फोड़ धरा अपने बलबूते, वृक्ष वही बन पाते हैं।
दुख आने पर ही दुनियाँ में, सुख के दर्शन होते है।

छोड़ निराशा बढ़ो वेग से,हर तुफां से भिड़ जाओं।
डरो नहीं तुम हालातों से,हर बाधा से लड़ जाओं।
होड़ लगाते पवन वेग से,वे पंछी उड़ पाते है।
दुख आने पर ही दुनियाँ में,सुख के दर्शन होते है।-०-
पता:
हेमराज सिंह
कोटा (राजस्थान)

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दोस्ती (कविता) - अमित डोगरा

दोस्ती

(कविता)
दोस्ती क्या है?
दोस्ती एक एहसास है,
जो बिन बोले
सब कुछ समझ जाती है।

दोस्ती क्या है?
दोस्ती एक प्यार है,
जो हर नफरत को
भूला देती है।

दोस्ती क्या है?
दोस्ती एक खुशी है,
जो कभी हमें
मायूस नही होने देती है।

दोस्ती क्या है?
दोस्ती एक मुस्कुराहट है,
जो हर गम
भुला देती है।

दोस्ती क्या है?
दोस्ती ईश्वर का
सुनहरी उपहार है ,
जो बड़े भाग्य से मिलती है
-०-
पता:
अमित डोगरा 
पी.एच डी -शोधकर्ता
अमृतसर

-०-

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