*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Tuesday, 24 December 2019

समाज में मनुष्यता के प्रतिस्थापक भगवान पार्श्वनाथ (आलेख) - संदीप सृजन

समाज में मनुष्यता के प्रतिस्थापक भगवान पार्श्वनाथ
(आलेख)
सनातन धर्म की पावन गंगोत्री से निकले विभिन्न धर्मों में जैन धर्म भारत का सर्वाधिक प्राचीनतम धर्म है। चौबीस तीर्थकंरों की समृद्ध जनकल्याण की परम्परा, जो वर्तमान अवसर्पिणी काल में ऋषभदेव से लेकर महावीर तक पहुंची, उसमें हर तीर्थंकर ने अपने समय में जिन धर्म की परम्परा को और आत्मकल्याण के मार्ग को समृद्ध किया है तथा संसार को मुक्ति का मार्ग दिखाया है।

काल के प्रवाह में ऐसा होता आया है कि एक महापुरुष के निर्वाण के बाद उसका प्रभाव तब तक ही विशेष रूप से जन सामान्य में रहता है जब तक की उसके समान कोई अन्य महापुरुष धरती पर अवतरित न हो। लेकिन कुछ महापुरुष इसका अपवाद होते है। जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में तेवीसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के बाद भगवान महावीर हुए लेकिन भगवान पार्श्वनाथ के प्रभाव में कोई कमी आज तक नहीं आई है। जैन मान्यताओं के अनुसार वर्तमान में भगवान महावीर का शासन चल रहा है लेकिन सर्वाधिक जैन प्रतिमाएँ आज भी केवल भगवान पार्श्वनाथ की ही है। जैन मंत्र साधनाओं में भी सर्वाधिक महत्व पार्श्वनाथ के नाम को ही दिया जाता है।
भगवान पार्श्वनाथ का जन्म भगवान महावीर के जन्म से 350 वर्ष पहले हुआ। सौ वर्ष की आयु उनकी रही तदानुसार लगभग तीन हजार वर्ष पहले वाराणसी के महाराजा अश्वसेन के यहॉ माता वामा देवी की कुक्षी से पोष कृष्ण दशमी को हुआ। राजसी वैभव के बावजूद आत्मा में असीम करुणा का भाव जो सांसारिक जीवन में उनको लोकप्रिय बना देता है। वे उस दौर के तमाम आडम्बरों के बीच एक कमल पुष्प थे। धर्म और समाज में फैली हिंसा और कुरीतियों के बीच एक धर्म पुरोधा थे। जो मनुष्य समाज में मनुष्यता के गुण करुणा, दया, अहिंसा के जीवन की प्रतिस्थापना करने को आए थे।
जैन धर्म ग्रंथो में एक प्रसंग आता है- जब भगवान पार्श्वनाथ मात्र उम्र सोलह वर्ष थे तब वाराणसी नगरी में एक तापस आया जो नगर के मध्य अग्नी तप कर रहा था। और सारा नगर उस तापस के इस हठ योग से प्रभावित हो कर उसके दर्शन के लिए जा रहा था। ऐसे में लोक व्यवहार अनुसार पार्श्वकुमार भी वहॉ पहुंचे। तभी उन्होने अपने ज्ञान से देखा की तापस ने जो लकड़ी अपने सामने जला रखी है उसमें नाग नागिन का जोड़ा है, और वो जल रहा है। पार्श्वकुमार ने तापस से कहा कि- योगी आपके इस हठ योग में जीवों की हिंसा हो रही है। इस पर तापस क्रोधित हो गया और अशिष्ठ भाषा का प्रयोग पार्श्वकुमार के प्रति किया। तभी पार्श्वकुमार ने अपने कर्मचारी को आदेश देते हुए काष्ठ के उस टुकड़े को आग से निकालने कर उसे चीरने को कहा, जैसे ही कर्मचारी ने लकड़ी को चीरा उसमें से जलता हुआ नाग नागिन का जोड़ा निकला जो मरणासन स्थिती में पहुँच चुका था । पार्श्वकुमार ने जलते नाग नागिन के प्रति अपनी करुणा बरसाते हुए उनको नमस्कार महामंत्र सुनाया और बोध दिया कि वैर भाव को त्याग करे और समाधी मरण का वरण करे। पार्श्वकुमार की वाणी उस समय उस सर्प युगल के लिए किसी अमृत से कम नहीं थी। क्योंकि कहा जाता है ‘अंत मति सो गति’। पार्श्वकुमार के वचनों से उनके मन से वैर भाव खत्म हुआ और वे समाधी मरण को प्राप्त कर देव लोक में धरणेन्द्र और पद्मावती नाम से इन्द्र और इन्द्राणी बने। जो की भगवान पार्श्वनाथ के जीवन काल में हर समय उनके साथ रहे और माना जाता है कि आज भी भगवान पार्श्वनाथ का स्मरण करने वाले के साथ रहते है।
भगवान पार्श्वनाथ करुणावतार तो थे ही वे कर्मावतार भी थे उन्होने अपने सत्तर साल के दीक्षा पर्याय में कभी किसी से सहायता की याचना नहीं की अपने तपोबल के माध्यम से केवल ज्ञान को प्राप्त किया। और मोक्ष को गये। भगवान पार्श्वनाथ कर्मकांड और आडम्बर को धर्म नहीं मानते थे वे जीवंत धर्म को ही धर्म मानने और उसकी प्रतिस्थापना करने के लिए धरा पर आए थे। उन्होंने करुणा, दया, परोपकार और जगत कल्याण के कार्यों को धर्म बताया और उसी तरफ जगत के जीवों के ले जाने के लिए उपदेश दिया। भगवान पार्श्वनाथ का जन्मकल्याणक मनाते हुए हमें भी उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।
-०-
संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
-०-



***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

माँ की गुहार (हाइकु) - डॉ. निशा महाराणा

माँ की गुहार
(हाइकु)
डॉ निशा महाराणा
बिटिया आओ
निर्निमेष पलकें
राह निहारे..

उलझी निंद्रा
जीवन का क्रंदन
किसे बताऊँ....

मौन वेदना
हाहाकार करता
ममता रोती....

सीख माँ की
भूलना नहीं कभी
खुद है बचना ...

ममता रोती
प्राण है सिसकता
बिटिया आओ..

मेरी जान है
तुम्हारे ही हवाले
उसे बचाना ....

किसने देखा
माँ के रिसते ज़ख्म
बेचैन मन ....

सोन चिरैया
सिसक रहा आँचल
लौट के आना ....

मेरी जान
तुझमें है बसती
भूल ना जाना ..

झूठी दुनिया
साथ नहीं है कोई
बिलखती माँ ...

खुद की रक्षा
है तुमको करना
हाथ जोड़ती .....
-०-
पता:  
डॉ. निशा महाराणा
मन्दसौर (मध्यप्रदेश)
-०-


***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

माँ की याद (कविता) - चंद्रमोहन किस्कू

माँ की याद
(कविता)
दुःख के समय
आँसू गिरने पर
तुम ही तो माँ
पोंछती थी .
मीठी स्वर में
लोरी गाकर सुलाती थी
नींद न आने पर ,
और तुम पूरी रात
ताकते रहती थी मुझे
नींद की सपने मेरी
पूरी करवाती थी .
तुम ही तो माँ
वर्षा की पानी के जैसी
मुझ पर प्यार वर्षाती थी
आपने न खाकर
मुझे भरपेट खिलाती थी
सभी तरह की कष्टों से
मुझे बचाती थी .

अब बदल गया है युग
दया- प्यार का कोई
मूल्य नहीं है .
प्यारा रिश्तों में
तीखापन आ गया है
अब मनुष्य मुलाकातों के साथ ही
मार- काट मचा रहे है
बाढ़ की पानी जैसी
इंसानी खून बहा रहे है

इन सबसे बावजूद भी ,माँ
तुम बदली नहीं हो
मुझ पर प्यार की
वर्षा करना भूले नहीं हो

अब तुम्हारी गैर मौजूदगी में
तुम्हे याद कर
छाती भींग रहा मेरा
आँसू से -०-
पता -
चंद्रमोहन किस्कू
पूर्वी सिंहभूम (झारखण्ड)


-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

स्कूल की छुट्टी (बाल आलेख) - दिलीप भाटिया

स्कूल की छुट्टी
(बाल आलेख)
लो स्कूल की छुट्टी हुई अब घर जाएंगे। बहुत तेज भूख लगी है जो मम्मी ने बनाया वही खा लेंगे। टी वि का रिमोट मम्मी से छीन कर कार्टून फिल्म देखेंगे। कुछ देर रेस्ट कर के स्कूल से मिला होमवर्क पूरा कर लेगे। स्कूल की मैडम से मिले गुड स्टार को मम्मी को बताएंगे। मैडम से पड़ी डान्ट को मम्मी पापा से छुपा जाएंगे। शाम को पापा से मम्मी उनसे हमारी शिकायत करेगी। पापा कभी डाटते नहीं बस मुस्करा कर चुप रह जाएंगे। घुमाने ले जाएंगे पापा हमारी पसंद की चाकलेट दिलाएंगे। मैदान में पापा के साथ खेल कर मन बहलाएगे। अपनी पसंद की डिश मम्मी से बनवाकर खाकर समय से सो जाएंगे। सुबह समय से उठकर तैयार हो कर फिर कुछ नया पढ़ने स्कूल चले जायेंगे। दिलीप अन्कल जो बतलाकर गए थे उन अच्छी आदतों को जीवन में अपनाएंगे। बड़ों का कहना मान कर पढ़ लिख कर अच्छे इंसान बनेंगे।
-०-
दिलीप भाटिया
रावतभाटा (राजस्थान)


***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

खौफ/भय (कविता) - गीतांजली वार्ष्णेय

खौफ/भय
(कविता)
है भयभीत बेटियाँ पौरुषता के विचार से,
कहीं प्रताड़ित है घर में,कहीं त्रस्त व्यभिचार से।
खौफ नहीं इन दुष्टों को कानून और संविधान से,
बाहर न निकलो,कपड़े ढंग से पहनों
न करो श्रृंगार,न किसी से बात करो
सारे बंधन माने बेटी,
क्यों वंचित रखते बेटों को इन संस्कार से।।
कुछ तो धर्म सिखाओ,नारी का महत्व बताओं,
जो साइड जगाती मन में यौनाचार ,हटा दो उनके मोबाइल से।
बेटों पर भी रख नियंत्रण,बेटियों को भयमुक्त करो।।
बेटों में भी भय जगाना होगा,पाप पुण्य के परिणाम से।।
हो सुरक्षित समाज,खुद कदम उठाना होगा,
भ्रष्ट नेता,नहीं उम्मीद न्याय की सरकार से।।
न बहन,बेटी को बनाओ बंधक परिवार में
जहाँ नहींसुरक्षित बहन बेटी ,आग लगा दो ऐसे संसार में।
बेटियों को पंख दो,झाँसी की रानी पैदा होने दो,
वरना जीके क्या करेगी बेटी ऐसे संसार में।। -०-
पता:
गीतांजली वार्ष्णेय
बरेली (उत्तर प्रदेश)
-०-
***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ