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Monday, 23 November 2020

ऐ मेरी किताब (कविता) - रेशमा त्रिपाठी

 

अधूरी रही
(कविता)
“आनन्द के उन्मेष में
जीवन के अंश में
रोते हुए कंठ में
शोक के अंश में
आशा के शोर में
उन्माद के सन्तोष में
आत्मा की ग्लानि में
कर्म के मार्ग में
अधर्म और अन्याय में
बुद्धि के विचार में 
अध्ययन और ध्यान में
गुरू और देव में
मैंने तुम्हें ढूंढा हैं
मैंने तुम्हें पूजा हैं
अज्ञानी के ज्ञान में भी 
मैंने तुम्हें खोजा हैं
 ए मेरी किताब
जीवन का सार तू
ज्ञान और अध्यात्म तू
धन और परिवार तू
प्रेम और प्रकाश तू
द्वन्द्व की अनुभूति में 
जीवन का मार्ग तू
ए मेरी किताब।।"
-०-
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

-०-

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लड़कियाँ अपने घर में भी हैं (कविता) - धीरेन्द्र त्रिपाठी

लड़कियाँ अपने घर में भी हैं
(कविता)
एक लड़की चाहती है ,
आपसे थोड़ा प्यार , थोड़ी इज्जत
एक लड़की चाहती है आपसे
थोड़ा अपनापन , थोड़ी आदमियत
पर हर कोई उसे देता रहा उकूबत

हर लड़की चाहती है , कोई समझे उसे
पर हमको कहाँ है इतनी फुर्सत
हर कोई बस जिस्म से खेलने की चाह रखता हैं
और जो नहीं रखता है,वो लडक़ी के लिए होता है कुदरत

अगर कोई समझ पाया किसी लड़की को
तो आजिम है कि वो कातिब होगा
या फिर अपनी बहन,बीबी,के दर्द से मुखातिब होगा

'धीरेन्द्र"माँ की परवरिश पर सवाल नही आएगा
गर फ़ाज़िल रहोगे, एक लड़की की नजर में
किसी भी लड़की से पेश आना,तो यहीं सोचकर
कि लड़किया है तुम्हारे भी घर में । 
-०- 

पता 
धीरेन्द्र त्रिपाठी
सिद्देधार्शथनगर (उत्तरप्रदेश)
-०-



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यादों के गलियारे से (कहानी) - रीता झा


यादों के गलियारे से
(कहानी)
मेरे कमरे की खिड़की से उसके घर के आंगन का दृश्य साफ - साफ दिखाई देता था । राजेश आज यादों के गलियारे में भटकने लगा था ,जब पंद्रह साल बाद आज वह अपने ममेरे भाई की शादी में शामिल होने के लिए अपने ननिहाल (मामा के गांव) पहुंचा था । राजेश का ननिहाल बहुत ही समृद्ध था तथा गांव में भी दो मंजिला इमारत थी और सुख-सुविधा के सारे सामान मौजूद थे उनके घर में । जरूरत से कुछ ज्यादा ही कमरे थे उस इमारत में ।

जब वह बारहवीं में पढ़ रहा था तभी मां बहुत बीमार हो गई थीं, डाक्टर ने उन्हें एक दो महीने पूरा आराम करने की सलाह दी थी । पिताजी ने मां को नानी के घर भेज दिया था, और घर पर सिर्फ़ मैं और पिताजी रह गए थे । हमें खाने- पीने का काफी दिक्कत हो गया था और इसी कारण जैसे ही मेरी गर्मी की छुट्टियां हुईं पिताजी ने मुझे भी नानी के घर भेज दिया था। मैं अपने साथ किताब कापी ले कर गया था कि वहां एक महीने रह कर पढ़ाई करूंगा और फिर छुट्टी खत्म होने पर मां के साथ वापस आ जाऊंगा । ननिहाल में मेरे लिए उपर का एक कमरा सजवा दिया गया जो कि चार खिड़कियों वाला सबसे हवादार कमरा था ,पर घर के बाकी लोग नीचे के कमरों में ही सोते थे , जिससे एकांत में रहकर मैं अच्छे से पढ़ पाऊंगा , यही बात कहा गया था मुझे ।

मैं भी खुशी खुशी वहां पढ़ाई करने लगा ।पांच दिन तक तो मैं अच्छे से पढ़ता रहा था, पर छठे दिन मुझे कुछ अधिक गर्मी महसूस हुई तो मैंने कमरे की तीसरी और चौथी खिड़की भी खोल दिया जो कि पिछले पांच दिन से बंद ही था । पूर्वी दिशा की चौथी खिड़की से सामने के एक छोटे से घर का आंगन दिखाई दे रहा था और वहां एक बहुत खूबसूरत सी लड़की बैठी थी और उसके सामने एक औरत बैठी थी जिनका पीठ मेरी तरफ था । मैं एकटक उस लड़की को देख रहा था, तभी वह किसी बात पर खिला कर हंसी और उसका यूं हंसाना देखकर तो मुझे कुछ कुछ होने लगा। मैं तब तक वहीं जड़वत खड़ा रहा जब तक वह उठकर अंदर नहीं चली गई थी ।

अब तो मेरा रोज़ का यही सिलसिला हो गया, उसकी एक झलक पाने को मैं घंटों खिड़की पर इंतजार करता रहता था और जैसे ही वह दिखाई देती मेरे दिल में मानो सितार बज उठते । मेरा पढ़ाई लिखाई तो उस खिड़की पर खड़े रहने की वजह से चौपट सा ही हो गया था । दो-तीन दिन में शायद वह भी मेरी मनोदशा भांप गई थी और इसी कारण वह बार-बार आंगन में आती थी और मुझे देख कर मुस्कुरा देती थी ।

इस तरह ही सिलसिला चलता रहा और अब मेरे वापस जाने में सिर्फ दो ही दिन बच गया था । मैंने अपनी ममेरी बहन को पास बिठाकर अपने दिल का हाल बयां कर दिया था तथा उससे गुजारिश की थी कि वह अपनी पड़ोसी सखी से मुझे एक बार मिलवा दे । "पर भैया वो तो ..", बस इतना ही कह पाई थी ममेरी बहन कि मैंने उसे झट से कहा" प्लीज़ एक बार मुलाकात करवा दो मेरी प्यारी बहना फिर परसों सुबह तो मैं चला ही जाऊंगा । प्लीज़ , प्लीज़ मेरी खातिर बस एक बार...."। 

उसने हामी भर दी तथा अपनी सहेली से बात करने चली गई और फिर थोड़ी देर बाद आकर उसने मुझसे कहा कि दोपहर के तीन बजे आम के बगीचे में जाना है क्योंकि उस वक्त सभी सोते रहते हैं और किसी को भी पता चल जाने का खतरा नहीं होगा । फिर उसने यह भी कहा कि वह भी हमारे साथ ही रहेगी ।

तय समय पर हम तीनों मिले और मैंने अपनी ममेरी बहन से थोड़ी दूर ले जा कर उससे अपना हालेदिल बयां कर दिया तथा बिना एक पल गंवाए यह भी कह दिया कि वो मेरा इंतजार कुछ वर्षों के लिए करे !!

इतना सुनते ही वह तो फफक- फफक कर रो पड़ी थी। मेरी बहन भी दौड़ी हमारे पास आई और बोली,"भैया मैं तो सुबह आपसे यही बात कहने जा रही थी कि उसकी (गरिमा की) सगाई हो चुकी है और अगले महीने की दस तारीख को उसकी शादी भी होने वाली है, पर आपने तो बात बीच में ही काट दिया था।" यह बात सुनते ही मेरी तो हालत ऐसी हो गई थी कि मानो काटो तो खून नहीं!

फिर कुछ देर बाद गरिमा मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर बोली कि "मुझे माफ़ कर दीजियेगा, वैसे मुझे भी आपका उस तरह निहारना अच्छा लगता था । पर… मैं गांव की एक ऐसी लड़की हूं जिसके लिए उसके अपने अहसास मायने नहीं रखते हैं । मुझे शादी के लिए मना करके अपने पिताजी की बदनामी नहीं करवानी है, अतः मैं वहीं शादी करूंगी जहां उन्होंने तय कर दिया है, आप यह सब बातें और जज्बातों को भूल जाना बस.. ।"

मैं वापस घर आया और फिर नीचे के कमरे में ही यह कहकर रह गया कि "एक दिन तो सबके साथ बिता लूं पता नहीं फिर कब आना होगा।" उस दिन मैंने यह ठान लिया था कि अब जीवन में कभी भी उस कमरे में नहीं जाउंगा और उस खिड़की से वास्ता तो कभी भी नहीं रखूंगा ।

"राजेश तुम्हारा बिस्तर उपर के सबसे हवादार कमरा में लगवा दिया है ।" मामा जी का यह स्वर सुन राजेश अतीत के गहवर से वर्तमान में लौट आया । खाना पीना हो जाने के बाद राजेश आराम करने उपर के उस कमरे में गया और आराम करने की कोशिश करने लगा , कुछ देर बाद अचानक ही वह उठकर खिड़की को खोल सामने गरिमा के घर के आंगन को निहारने लगा था और पुरानी यादों के झरोखे से उन बीते दिनों को मानो फिर से जीने की एक कोशिश कर रहा था ।
-०- 

पता 
रीता झा
कटक (मध्यप्रदेश)
-०-



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