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Tuesday 29 September 2020

सावित्री (लघुकथा) - बजरंगी लाल यादव

 

सावित्री
(लघुकथा)
 " सावित्री ! आज मैंने एक सुन्दर- सा सपना देखा। सपने में मुझे महादेव ने साक्षात दर्शन दिये और एक वरदान मांँगने के लिए कहा तो; मैंने करबद्ध होकर कहा- हे भोलेनाथ ! मैं चाहता हूं कि भारत फिर से सोने की चिड़िया बन जाये।  तथास्तु....! कह कर महादेव अंतर्धान हो गये। फिर मुझे लक्ष्मी जी ने दर्शन दिये तो; उनसे मैंने निर्धनों के लिए समृद्धि मांँगी। तीसरी बार में सरस्वती जी का स्वरूप दिखा तो; उनसे मैंने साहित्य- कला के क्षेत्र से जुड़े सभी संघर्षरत लोगों के लिए सफलता की याचना की। और अंत में गायत्री माता से साक्षात्कार हुआ तो; मैंने साष्टांग  नमस्कार करते हुये; उनसे सद्बुद्धि मांँगी। ताकि पूरे विश्व में अमन- चैन कायम हो और आतंकियों के दिलों में मानवता के प्रति दया जागृत हो....! "
            तभी सावित्री ने झट से कहा- " बाप रे....! तुम मांँग रहे थे; या दूसरे को दे रहे थे। यह बताओं, अपने लिए कुछ मांँगा; या यूं ही स्वामी विवेकानंद की तरह  बुत बने रहे ? " सावित्री ने प्रश्नवाचक निगाहों से पति के चेहरे को देखकर बोली।
" मैंने, अपनी सावित्री के लिए एक छोटी- सी गायत्री मांँगी; जो हमारे घर- आँगन को खुशियों से गुलजार कर दे "  पति के इतना कहते ही निस्संतान सावित्री भावुक हो गई।
-०-
पता:
बजरंगी लाल यादव
बक्सर (बिहार)


-०-



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कान्हा मेरा (कविता) - लक्ष्मी बाकेलाल यादव


कान्हा मेरा
(कविता)
कान्हा मेरा बड़ा ही नटखट
रुप-रंगीला, छैल-छबिला
मोरपखा सिर ऊपर राखे
चोरी-छुपे वह माख़न चाखे
गोपियों संग मिल हमजोली
खेले वह आंख-मिचौली
बासुरी की धुन मनोहर
राधा का वह प्रिय मुरलीधर
श्यामरंग मेघ घटा सी सुंदर
चमक है बिजली से बढ़कर
चार भुजाएं अतिशोभित 
चक्र,पद्म,शंख,गदा से विभूषित
तरूण पिताम्बरधारी केशव
वनमालाएं उसपर भाएं
मथुरा का कहलाए पालनहारी
ऐसा है हमारा यह कृष्णबिहारी...
***
पता:
लक्ष्मी बाकेलाल यादव
सांगली (महाराष्ट्र)

-०-



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मेरा आईना (कविता) - श्रीमती रमा भाटी

 

मेरा आईना
(कविता)
पूछता है मेरा आईना
क्या यह तुम ही हो
पहचानने की कोशिश 
करता हूं तुम्हें,
बहुत अनजानी सी
लगती हो तुम।

रोज देखा करता हूं
लेकिन कुछ बदली बदली
सी लगती हो तुम,
ना मुझे देख अब 
संजती संवरती हो तुम।

क्या अब तुम्हारा
मन नहीं करता
अपने को मुझमें देखो तुम,
तुम्हें क्या पता मेरा
अनुभव क्या कहता है।

याद है आज भी वो दिन
जब बार-बार आकर तुम
निहारती थी मुझे देख,
लगाती थी बिंदी तो
कभी संवारती थी बाल
मुझे देख तुम।

ना चुराओ तुम नजरें मुझसे
सवारों अपनी लहराती लटों को
जिनमें हिना का रंग है,
लगाओ अपनी चोटी में
फूलों का गज़रा तुम।
अब तुम्हें क्या हो गया
-०-
पता:
श्रीमती रमा भाटी 
जयपुर (राजस्थान)

-०-


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शुद्धिकरण (लघुकथा) - रीना गोयल

शुद्धिकरण 
(लघुकथा)
            माया देवी एक धनाढ्य परिवार की  उच्च जाति की महिला थी ।पति की असमय मृत्यु के बाद उन्होने  ही अपने दोनों बेटों ,मनुज ओर अनुज को अकेले पाला था। किन्तु उच्च जति का गर्व उनकी हर बात में झलकता था... मनुज का विवाह अपनी जाति और बराबर के खानदान में करके फूली नही समायी थी  वे । लेकिन अनुज को  उसके साथ काम करने वाली दलित सुधा से प्रेम हो गया था । माँ के बहुत विरोध करने पर भी अनुज ने सुधा से विवाह कर अलग रहना शुरू कर दिया ।माया देवी ने स्वीकार जो नही किया सुधा को ...
            समय बीतता रहा ......
             दो वर्ष बाद जाने कैसे माया देवी के पूरे बदन में कोढ़ निकल आया कोई पास लगने को तैयार नही 
मनुज की पत्नी तो देखती भी नही थी । बहुत बुरी हालत हो चली थी माया देवी की लेकिन ऐसी स्थिति में सुधा ने दलित होते हुए भी माया देवी की जी जान से सेवा की  ओर रोग मुक्त करके ही  चैन लिया। सुधा के अथक प्रयास से वह बिल्कुल स्वस्थ हो गयी  अब माया देवी  सुधा से किये अपने  व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा थी ।
"सोच रही थी शुद्धि कर्ण किसका हुआ था "
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)




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