सावित्री
(लघुकथा)
" सावित्री ! आज मैंने एक सुन्दर- सा सपना देखा। सपने में मुझे महादेव ने साक्षात दर्शन दिये और एक वरदान मांँगने के लिए कहा तो; मैंने करबद्ध होकर कहा- हे भोलेनाथ ! मैं चाहता हूं कि भारत फिर से सोने की चिड़िया बन जाये। तथास्तु....! कह कर महादेव अंतर्धान हो गये। फिर मुझे लक्ष्मी जी ने दर्शन दिये तो; उनसे मैंने निर्धनों के लिए समृद्धि मांँगी। तीसरी बार में सरस्वती जी का स्वरूप दिखा तो; उनसे मैंने साहित्य- कला के क्षेत्र से जुड़े सभी संघर्षरत लोगों के लिए सफलता की याचना की। और अंत में गायत्री माता से साक्षात्कार हुआ तो; मैंने साष्टांग नमस्कार करते हुये; उनसे सद्बुद्धि मांँगी। ताकि पूरे विश्व में अमन- चैन कायम हो और आतंकियों के दिलों में मानवता के प्रति दया जागृत हो....! "
तभी सावित्री ने झट से कहा- " बाप रे....! तुम मांँग रहे थे; या दूसरे को दे रहे थे। यह बताओं, अपने लिए कुछ मांँगा; या यूं ही स्वामी विवेकानंद की तरह बुत बने रहे ? " सावित्री ने प्रश्नवाचक निगाहों से पति के चेहरे को देखकर बोली।
" मैंने, अपनी सावित्री के लिए एक छोटी- सी गायत्री मांँगी; जो हमारे घर- आँगन को खुशियों से गुलजार कर दे " पति के इतना कहते ही निस्संतान सावित्री भावुक हो गई।
पता:
बजरंगी लाल यादव
बक्सर (बिहार)