(कविता)
मैं स्त्री हूँ......
कायनात की रचयिता,
सृष्टि का चक्र चलाती।
ममता, धैर्य , भरोसे के साथ।
जो चाहती हूँ...कर सकती हूँ,
है विश्वास..।
मेरे पास हैं...कुछ ऐसी शक्तियाँ,
सम्भावनाएँ, मिसालें ,उपलब्धियाँ ।
उस पर भी...,
असंवेदनाए पैर पसारती,
भ्रूण हत्या,ऐसिड अटैक,
अस्मिता पर हमलों से..
ख़ुद को बचाती।
समाज की निशानदेही पर रह कर भी,
ख़ुद को हारने ना देती।
झूझती रहती...।
सहती सब हँसके,
कभी ख़ामोशी से...,कभी विद्रोह करके।
पार पा लेती हूँ..., मुश्किलों से।
चोबीस घंटो की ड्यूटी में,
ना छुट्टी लेती, ना ढिलाई बरतती ,
ना ही कोई काम टालती।
पगार के नाम पर...
बस थोड़ा सा प्यार चाहती।
बाहर की ज़िम्मेदारी से मुँह ना मोड़ती,
घरेलू दायित्वों को नहीं छोड़ती।
सृष्टि की कड़ियाँ जोड़ने की क्षमता समेटे,
तनाव जीतने की ख़ुशी लपेटे,
प्रकृति द्वारा असाधारण गुनो से नवाजी ,
ख़ुद पर भरोसा करती गई....,चलती गई।
अंतर्मन के आइने में झाँकती,
अपने को आँकती...,
मैं सृष्टि की रचयिता ,
नव निर्माण की शक्ति ,
मैं हूँ तो ये कायनात है।
चाहती हूँ....
चलती रहे ये कायनात,
क्योंकि चला सकती हूँ।
मैं धरा स्वरूपा...,जानती हूँ,
बादलों में बीज नहीं बोए जाते।
डरती नहीं किसी बात से,
देखती हूँ दुनिया,विश्वास से।
मैं....स्त्री....।
-०-
पता
कायनात की रचयिता,
सृष्टि का चक्र चलाती।
ममता, धैर्य , भरोसे के साथ।
जो चाहती हूँ...कर सकती हूँ,
है विश्वास..।
मेरे पास हैं...कुछ ऐसी शक्तियाँ,
सम्भावनाएँ, मिसालें ,उपलब्धियाँ ।
उस पर भी...,
असंवेदनाए पैर पसारती,
भ्रूण हत्या,ऐसिड अटैक,
अस्मिता पर हमलों से..
ख़ुद को बचाती।
समाज की निशानदेही पर रह कर भी,
ख़ुद को हारने ना देती।
झूझती रहती...।
सहती सब हँसके,
कभी ख़ामोशी से...,कभी विद्रोह करके।
पार पा लेती हूँ..., मुश्किलों से।
चोबीस घंटो की ड्यूटी में,
ना छुट्टी लेती, ना ढिलाई बरतती ,
ना ही कोई काम टालती।
पगार के नाम पर...
बस थोड़ा सा प्यार चाहती।
बाहर की ज़िम्मेदारी से मुँह ना मोड़ती,
घरेलू दायित्वों को नहीं छोड़ती।
सृष्टि की कड़ियाँ जोड़ने की क्षमता समेटे,
तनाव जीतने की ख़ुशी लपेटे,
प्रकृति द्वारा असाधारण गुनो से नवाजी ,
ख़ुद पर भरोसा करती गई....,चलती गई।
अंतर्मन के आइने में झाँकती,
अपने को आँकती...,
मैं सृष्टि की रचयिता ,
नव निर्माण की शक्ति ,
मैं हूँ तो ये कायनात है।
चाहती हूँ....
चलती रहे ये कायनात,
क्योंकि चला सकती हूँ।
मैं धरा स्वरूपा...,जानती हूँ,
बादलों में बीज नहीं बोए जाते।
डरती नहीं किसी बात से,
देखती हूँ दुनिया,विश्वास से।
मैं....स्त्री....।
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)